दर्द की फलियों में बंद थे दंश जो !!
जाने क्यूं आजकल
खुद पर प्यार आने लगा है
अपना ही चेहरा
अब हमको रिझाने लगा है
पहले डूबे रहते थे हम
किसी की आँखों की मदहोशी में
अब तो अपना चेहरा ही
हमको भाने लगा है
आँखों से टपकते हैं जब मेरे आँसू
दर्द दिल को अब जियादा
सताने लगा है
है ये साजिश या कोई करिश्मा !
रूबरू मेरे,
मेरा ख्वाब आने लगा है
दर्द की फलियों में
बंद थे दंश जो
अब उन्हीं में हमको बेहद मजा आने लगा है…
“दर्द की फलियों मेंबंद थे दंश जोअब उन्हीं में हमको बेहद मजा आने लगा है…”
मन के भावों को व्यक्त करती हुई बहुत ही सुन्दर कविता
इतनी सुंदर समीक्षा हेतु धन्यवाद गीता दी
जब इन्सान को उनके मुताबिक हर कार्य में कामयाबी मिले तो, बैठे बैठे यादों के पिटारा में भी उमंग की शहनाई बजने लगती है।
धन्यवाद
बहुत खूब