दिल क्यूँ मांगो “More” ….!
दिल क्यूँ मांगो “More” ….!
दिल तुम्हरी नहीं मानेगे हम, क्यूँ तुम मांगो “More”
“More” “More” ही दुःख का कारण, सुख ले जावे चोर…..!
इतना सारा पास जो अपने, देख तो उसकी ओर,
जो कुछ है, इसमे ही समाया समाधान संतोष….. !
भगवत्प्रेम और भक्तिभाव में होकर मन मदहोश,
सुख है, जो है, उसका करना परिपूर्ण उपभोग,
सुख है, जो है, उसका करना प्यार से सद्उपयोग …..!
ये जीवन है प्रभु की पूजा, ठान ले तू हररोज,
प्रभु का ही हर काम समझ, हर काम में आए जोश….!
चीजों के इस “More” का चक्कर लेता सबको मोह,
इस चक्कर में ना पड़ने, कर बुद्धि का उपयोग ….!
अंतर्मन सुविचार उभरते, नामस्मरण से रोज,
सतज्ञान सुख की अनुभूति का अनुभव हो रोज…..!
दिल प्यारे अब होश में आओ, और ना मांगो “More”
जपो प्रभू का नाम प्यार से, जपना छोडो “More”….!
” विश्व नन्द “
different but good poetry..:)
Panna ji, Comment aur protsaahan kaa hardik shukriya. “Dil Maanage More” apani sanskrati nahiin hai, balki “Dil Mat maango more” hai… isee baat par ye rachnaa ubharii thii …! 😉
वाह
Good
बहुत खूब
Waah