दु:खों से नाता
दु:खो से उबरना क्या
इनसे तो जन्मों का नाता है
मीठा तो कभी-कभी
नमकीन साथ निभा जाता है ।
ज्यादा मीठा हो तो
मन जल्दी ही उब जाता है
नमकीन के बल पर ही
मीठा भी रास हमें आता है ।
सुख की घङियो में
इन्सान खुद को भूल जाता है
दु:ख की दारूण वेला ही
इंसान को औकात बता जाता है ।
मन में यह बेचैनी क्यूँ
क्यूँ मन जार-जार हो जाता है
दर्द का सैलाब क्यूँ
आँखो में अकसर उतर आता है ।
सुख की चाह नहीं
दु:ख से आह क्यूँ निकल आता है
अनहोनी के डर से
अंतर्मन भी कांप के रह जाता है ।
बहुत ही सुंदर पंक्तियां
बहुत बहुत धन्यवाद सर।
ज्यादा मीठा हो तो
मन जल्दी ही उब जाता है
नमकीन के बल पर ही
मीठा भी रास हमें आता है ।
बहुत खूब सुमन जी, काव्य शिल्प और भाव दोनों ही बेहतरीन हैं। लेखनी मजबूत पकड़ के साथ आगे बढ़ी है। बहुत सुंदर कविता।
इतनी सुन्दर समीक्षा एवं हौसला बढ़ाने के लिए मैं धन्यवाद ज्ञापित करती हूँ ।बहुत बहुत धन्यवाद
अतिसुंदर भाव
बहुत ही सुंदर
अति सुन्दर भाव