पहचान
अगर मैं होती गरीब किसान की उपजाऊ भूमि
बंजर होने पर जरूर दुत्कार दी जाती
मैं होती कुमार के चाक मिट्टी
उसी के दिए आकार में ढल जाती
मैं होती माली के बाग का फूल
मुरझाने के लिए गुलदस्ते में छोड़ दी जाती
मैं होती किसी महल की राजकुमारी
विवाह के बाद छोड़ उसे मै आती
कहने को तो होती मै लक्ष्मी घर की
पर अलमारी के लॉकर की चाबी बनकर रह जाती
चाहे चिल्लाऊं मै खूब जोर से
फिर भी मन की व्यथा ना कह पाती
चाहे मैं होती किसी जज का हथोड़ा
फिर भी मेरी पहचान ना होती
बनाती फिर भी रसोई में रोटी
सोचती काश ! कोई मेरी भी कोई पहचान होती….
Nice
धन्यवाद
Atisunder Sunder
thanks
Nice
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Nice
धन्यवाद
Good
धन्यवाद
Good
धन्यवाद
गुड
ये हाईकु विधा नहीं है
👌
Waah
Bahut khoob