पूछतीं सवाल

लगता पूछती हो, बता माँ
कबतक बंदिशो में रहना होगा
कब खुलकर हंसना, बोलना
बेखौफ़ घर से निकलना होगा ।
कब मैं भी बेखौफ़, सुबह की सैर पर जाया करूँगी
दिन ढले भी निश्चिंतता से, मैं अकेले आया करूँगी।
मेरे स्वप्न कब उङान लेगें,
मेरे लिए भी द्वार, ऊँची शिक्षा के खुलेगे
कोटा, पटना, दिल्ली, जैसे शहर भी
कोई भी ना हमसे अछूता रहेंगे ।

बिटिया दिवस की ढेर सारी शुभकामनायें

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Responses

  1. कोरोना के कारण बंदिशों के बारे में अप्रसन्नता व्यक्त करती हुई बहुत सुंदर रचना

    1. सादर आभार सर
      मेरे आसपास जो घटित हो रहा है
      उसी को उभारने का प्रयास है ।समय बदलेगा, शहरों की तरह ग्रामीणभारत की बेटियां भी उङान भरेगी । यह तय है इनकी उम्मीदों को भी परवाज अवश्य मिलेंगे ।

  2. लगता पूछती हो, बता माँ
    कबतक बंदिशो में रहना होगा
    कब खुलकर हंसना, बोलना
    बेखौफ़ घर से निकलना होगा ।
    बहुत सुंदर पंक्तियां
    प्राचीन समय से महिलाओं पर लग रही बंदिशों तथा असुरक्षितता के भावों के प्रति रोष प्रकट करती हुई बहुत सुंदर काव्य कृति

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