माँ तेरी बहुत याद आती है
जब भी कोई उम्मीद कभी, मेरे सर पर हाथ फिराती है ..
माँ तेरी बहुत याद आती है.. माँ तेरी बहुत याद आती है..
कोई सतरंगी चादर गर, तेरी चूनर सी लहराती है..
माँ तेरी बहुत याद आती है.. माँ तेरी बहुत याद आती है..
जब तक तू थी माँ, थाली में, चटनी अचार न खत्म हुई..
हर दिन कुछ अच्छा खाने की, इच्छा दिल में ना दफ्न हुई..
पहले थी फरमाइश पर अब, सूखी सब्जी चल जाती है..
कितनी भी कोशिश कर लूं पर, अक्सर रोटी जल जाती है..
अब हर चिराग हर सूरज और, हर शमा तेरे बाद आती है..
माँ तेरी बहुत याद आती है.. माँ तेरी बहुत याद आती है..
बचपन में तूने माँ मेरे, जूतों के फीते बांधे थे..
कितनी ही दुआओं के धागे, तूने वक्त के बीते बांधे थे..
कैसे तेरी हर माँग ऐ माँ, अक्सर पूरी हो जाती है..
मुझको बस इतना बतला दे, तू दुआ कहाँ से लाती है ?
हर बार बनी तावीज़ मेरा, मुझपे जो कोई बात आती है..
माँ तेरी बहुत याद आती है.. माँ तेरी बहुत याद आती है..
बेहतरीन प्रस्तुति
धन्यवाद सर
सुन्दर काव्य
बहुत शुक्रिया आपका
bahut sundar
🙏🙏
J llllAtisunder
🙏🙏
बहुत खूब
Nice