माँ

प्रेम के सागर में अमृत रूपी गागर है
माँ मेरे सपनों की सच्ची सौदागर है
भूल कर अपनी सारी खुशियां
हमको मुस्कुराहट भरा समंदर दे जाती है
अगर ईश्वर कहीं है ,उसे देखा कहाँ किसने
माँ धरा पर तो तू ही ,ईश्वर का रूप है
हमारी आँखों के अंशु ,अपनी आँखों में समा लेती है
अपने ओंठों की हंसी हम पर लुटा देती है
हमारी ख़ुशी में खुश हो जाती है
दुःख में हमारे आंसू बहाती है
हम निभाएं न निभाएं
अपना फ़र्ज़ निभाती है
ऐसे ही नहीं वो करुणामयी कहलाती है
व्यर्थ के प्रेम के पीछे घूमती है दुनिया
माँ के प्रेम से बढ़कर कोई प्रेम नहीं है
आवाज़ में उसके शब्द मृदुल हैं
ममता रूपी औरत के प्रेम में देवी है
अपलक निहारूं उसके रूप को
ऐसी करुणामयी प्यार की मूरत है
प्रेम के सागर में अमृत रूपी गागर है
माँ मेरे सपनों की सच्ची सौदागर है

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

  1. वाह, मां के सम्मान में लिखी गई बहुत सुंदर कविता है।
    मां सचमुच ऐसे ही करती है। कलम को सलाम..

+

New Report

Close