लौट आओ
अंधेरी रात में यूँ छोड़कर
रूठ कर चल दिये थे
तुम अचानक
सोचते रह गए हम
कि आगे क्या होगा,
मगर देखा सुबह तो
रोज की ही भांति
सूरज उग आया।
उड़गनों ने सदा की
तरह ही गीत गाया।
जहाँ कल तक थी किरणें
अब भी हैं,
जहाँ रहती थी अब भी है छाया।
नलों में आज भी पानी आया
उदर की पूर्ति को है
आज भी खाना खाया।
धड़कनें आज भी हैं सीने में
जिन्दगी आज भी है जीने में।
चल रही हैं घड़ी की सुइयां भी
रोज की ही तरह
तुम नहीं हो कमी है इतनी सी,
मगर ये दुनिया चल रही है
रोज की ही तरह।
जरा सा आंगन उदास है,
गमले उदास हैं,
खिल रहे फूल थोड़ा सा निराश हैं,
हम भी उदास हैं।
इसलिए लौट आओ,
रूठने की अंधेरी रात थी जो
वो अब नहीं है
अब सवेरा है, वो बात थी जो
अब नहीं है।
लौट आओ
अब सवेरा है।
अब सवेरा है, वो बात थी जो
अब नहीं है। लौट आओ
अब सवेरा है।
____जब जागो तभी सवेरा वाली कहावत को चरितार्थ करती हुई कवि सतीश जी की बहुत उत्तम रचना, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत खूब
अति उत्तम रचना
बहुत सुंदर