वाह !! कहीं कहीं…..

कहीं दीप जले तो कहीं ,
गरीब के घर में चूल्हा न जले।
हम खुशियाँ मनाते रहे और वो,
अंधेरे में माचिस खोजते रहे।।
कहीं दीपावली की धूम तो कहीं
पापी पेट में भूख की शहनाई।
गगन में देखो रंग बिरंगी पटाखे
वाह रे दुनिया क्या मस्ती है छाई ।।

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

  1. इसी को कहा गया है सर..
    कहीं धूप कहीं छाया
    यही है ईश्वर की माया..
    अत्यन्त संवेदनशील एवं यथार्थ रचना जिसकी समीक्षा करने में मैं असमर्थ हूँ…😯😯😯

+

New Report

Close