होली, रुत पर छा गयी है
होली, रुत पर छा गयी।
मस्तों की टोली आ गयी।।
लाज़ शरम तुम छोड़ो।
आज मुख मत मोड़ो।।
दिल को दिल से जोड़ो।
झूम कर अब बोलो॥
होली, रुत पर छा गयी है।
मस्तों की टोली आ गयी है।।
यार को गले लगा लो।
रंग गुलाल उड़ा लो।।
मनमीत को बुला लो।
प्रीत से तुम नहा लो।।
फागुन में मस्ती छा गयी है।
होली, रुत पर छा गयी है।
बैठ के फाग गा लो ।
आज नंगाड़ा बजा लो।।
गोरी को भी बुला लो।
गालों पे रंग लगा लो।
उसकी बोली भा गयी है।
होली, रुत पर छा गयी है।
हंसनी को हमें रंगने दो।
उनके मन में बसने दो।।
आज दलदल मचने दो।
प्रेम अब तो बरसने दो॥
हमें चुनरी भीगी भा गयी है।
होली, रुत पर छा गयी है॥
बादल तुम इधर देखो।
धरती से कुछ तो सीखो।।
अंतस में तुम रंग भरो।
आज गुलाबी वर्षा करो।।
देख हमजोली आ गयी है।
होली, रुत पर छा गयी है।।
ओमप्रकाश चंदेल “अवसर”
रानीतराई पाटन दुर्ग
छत्तीसगढ़
7693919758
Nayaab kavita
धन्यवाद आपका
Good
वाह बहुत सुंदर