होली
जीवन जीना एक कला है
प्रतिपल एक रंगोली है
गर मानवता है दिल में तो
प्रात-रात नित होली है ।।
वसुधा अंबर में संगम का
माध्यम दिनकर होता है
तिल होता है चन्दा में भी
फिर भी शीतल होता है।।
विष से व्याप्त भुजंग है होता
चन्दन की उस डाली पर
पर शीतलता की वह भाषा
छाई है हरियाली पर ।।
स्वाति की उन बून्दों पर
पपिहा का जीवन होता है
वह याद उसी को करता है
और स्वप्न में उसके सोता है।।
ये त्याग न्योछावर की बातें
मैं तुमको नहीं बताता हूं
पर जीवन जीना एक कला है
मन्त्र तुम्हें बतलाता हूं।।
जीवन को गर समझ गये तो
पथ जैसे रंगोली है
गर मानवता दिल में है तो
प्रात-रात नित होली है ।।
अशोक सिंह आज़मगढ़
Madhur geet…ise sangeet mil jaae to kya baat ho
Waah
Nice