एक बूँद भी टपक न पाई

स्टैंड पोस्ट का नल बेचारा
खड़ा रहा बस खड़ा रहा,
एक बूंद भी टपक न पाई,
ऐसा सूखा पड़ा रहा।
प्यासों के खाली बर्तन जब
देखे उसने रोना चाहा,
मगर कहाँ से आते आँसू,
ऐसा सूखा पड़ा रहा।
पिछली बारिश के मौसम में
ठेकेदार ने खड़ा किया था,
तब पानी था स्रोतों में भी,
इस कारण से खड़ा किया था,
जैसे ही बीती बरसातें
क्या करता बस खड़ा रहा,
एक बूंद भी टपक न पाई
आशा में बस खड़ा रहा।
परेशान है टोंटी उसकी
आते-जाते घुमा रहे हैं,
यह भी तो बेकार लगा है
ऐसी बातें सुना रहे हैं।
कुछ करना बस नहीं है उसके
बस उलझन में खड़ा रहा है,
कभी तो टपकेगा जल मुझसे
ऐसी आशा लगा रहा है।

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Responses

  1. कुछ करना बस नहीं है उसके
    बस उलझन में खड़ा रहा है,
    कभी तो टपकेगा जल मुझसे
    ऐसी आशा लगा रहा है।
    ________ नल का मानवीकरण करते हुए , पानी की कमी की समस्या को परिलक्षित करती हुई समाज के हित में रचित कवि सतीश जी की एक बेहतरीन रचना, उम्दा लेखन

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