देख धरा की स्थिति

देख धरा की स्थिति अब मानव का दिल खिल उठता है।
उसे खण्डित-खण्डित करके अपनी जिज्ञासा पूरा करता है।
धरनी की दुःख सुनता अब कौन, धरती पूजा अब होता कहाँ?
अपनी अज्ञात मा को अब पहचानता कौन?
कृष्ण ने मिट्टी खाके मृदा का मान बढ़ाया ।
अपनी माता का स्थान सबसे ऊँचा बताया ।।1।।

हम मानव हर कर्म करते इस धरा पे ।
कभी नतमस्तक होते क्या इस धरा पे?
दुर्जन पाप का रक्त बहाये, सज्जन पुण्य का फूल खिलाके।
एक मा दो पुत्र है, एक धरा को मिट्टी समझें, एक धरा को सीता समझें।।
मिट्टी से उगाते किसान खेत में वह हरपेट की दवा है।
देश के भ्रष्टाचारियों के चंगुल में सड़ रहें है जो वो हर मानवों की दवा है।।2।।

धरा की तो और भी स्थिति खराब है, लोग इसे भौतिवादिता में व्यवहार कर रही है।
फसल के लिए जमीं पर्याप्त उपलब्ध होती नहीं और कुछ लोग आलिशन भवन बनाते है।
कवि को आलिशन भवन से कोई आपत्ति नहीं, लेकिन देश में जो भूखमरी फैले उसका हम दोषी नहीं।
कृषि-प्रधान हमारा देश है, किसान हमारे अन्नदाता है, और उनकी मेहनत हमारी सफलता का श्रेय है ।
धरनी की स्थिति कौन सुने अब धरतीपुत्र अब बने कौन?
युवाओं की मति को मारी है हमारी नई शिक्षा-व्यवस्था है, तो कैसे माने वो मिट्टी हमारी माता है ।।3।।

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