बनूँ मैं जानकी तेरी..!!
तू मेरी नज्म़ बन जाए
मैं तेरी नज्म़ बन जाऊं
तू मेरा राग बन जाए मैं
तेरा राग बन जाऊं
कुछ इस तरह जुड़ जाएं
अलग ना कर सके कोई
तू मेरी रूह बन जाए
मैं तेरी रूह बन जाऊं
ना शबरी हूँ ना अहिल्या हूँ
ना शूर्पनखा-सी हूँ कामुक
बनूँ मैं जानकी तेरी
तू मेरा राम हो जाए…!!
बहुत सुंदर भाव
बहुत सुंदर पंक्तियां
धन्यवाद प्रतिमा
सुंदर
Thanks
बनूं मैं जानकी तेरी
तू मेरा राम हो जाए।…
बहुत ही उच्च स्तरीय लेखन है आपका। सदैव यूं ही आगे बढ़ती रहें। इस लेखन को सैल्यूट।
बहुत आभार दी आपके आशीष के लिए
आप जब हौसला बढ़ाती हैं
मेरे मन में उतर जाती हैं
उम्र में मुझसे छोटी हो आशीष तो दूंगी ही।
बस, दुआ करो कि ये दुआ कुबूल हो जाए..
As u wish
बहुत खूब
आभार
पाठक के मानस पटल पर सीधे तौर पर अंकित हो सकने में सक्षम इस कविता में प्यार है, मनुहार है। और एक आदर्श स्थिति की स्थापना की गई है। कवि की जबरदस्त साहित्यिक क्षमता को प्रकट करती सुन्दर कविता है।
इतनी सुन्दर समीक्षा का अन्दाजा भी नही कर सकती थी
बहुत सुन्दर
Thanks
Tq