माँ

माँ!!!
तूने जो संस्कार मुझमें
कूट कूट कर भरे
उसने ही ईंट-गारा बनकर
मुझे बनाया मनुष्य रूप।
तेरी दी हुई शिक्षा ने
हर जंग में मेरा साथ दिया,
कर्म पथ की ओर समर्पित रहा
भटकाव को मैंने हरा दिया।
जो सही गलत सोचने की
क्षमता तूने दी मां मुझको,
उसने मेरा पथ आलोकित कर
आगे बढ़ने का सबल दिया।
तूने इतना कुछ दिया मुझे
मजबूत किया हर तरह मुझे
हर मेरी बारी है
मैं ऊंचाई दूँगा तुझे।
—- डॉ0 सतीश पाण्डेय

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Responses

  1. माँ ही तो हमें इंसान बनाती है, सावन में सुंदर प्रस्तुति

  2. वो शब्द कहाँ है शब्दकोष में
    जो माँ की महिमा का बखान करे।
    शारदे की लेखनी भी माँ बनके
    मातृशक्ति का भरसक गान करे।।
    माँ स्रष्टा है माँ द्रष्टा है
    माँ हीं तो है पालनकारी।
    औगुन हरती बच्चों की ये
    बन रूद्रों की अवतारी।।
    माँ से हीं तो ‘विनयचंद ‘
    अग जग में सम्मान बढ़े।।

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