विग्यान

मत करो महाभारत सब नाश हो जाता है
राम चरित मानस मन क्यूँ नहीं दुहराता है
लालच व भय के वशीभूत मत तुम हो
विग्यान है वरदान अभिशाप क्यूँ बनाता है

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