सतरंगी यादों के संग

सतरंगी यादों के संग
देखे रंग बिरंगे स्वप्न कयी
पावस के छाये में दिखा जो दिनकर
फिर से पली उम्मीद नयी

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जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

  1. वाह सुमन जी ।सतरंगी यादों में आशा की किरण, बहुत ही सुन्दर भाव में आपने रचना रचीं है।

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