हमें भी पिलाइए

मेरे लबों की आप सदा बनके आइए।
खुद जाम पीजिए, हमें भी पिलाइए।

नज़रों में आपकी मयखाना नज़र आये।
मखमूर क्यों न हो इनमें जो उतर जाए।
मयकश की लाज रखिए तशरीफ़ लाइए।
खुद जाम पीजिए हमें भी पिलाइए।

जादू की कशिश हैं ये जलबों भरी अदायें।
जुल्फों में भी हजारों महफूज हैं घटायें।
छिटकाइए ये जुल्फ प्यास को बुझाइए।
खुद जाम पीजिए हमें भी पिलाइए।

खुशरंग गुलबहार है ये हुस्न आपका।
बेदाग चाँद जैसा है चेहरा जनाब का।
हो जाए जहां रोशन घूँघट उठाइए।
खुद जाम पीजिए हमें भी पिलाइए।

संजय नारायण

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