बना रहे बस संग तेरा
ठेस न दे मुझे आली
तेरी यह रंग भरी पिचकारी।
श्वेत पहनकर, निकला था घर से
तूने निशाना दे मारी, रंग भरी पिचकारी।
मन गीला कर, तन गीला कर
वसन सभी रंगों से तर कर
बदल दिया रंग मेरा,
बदल दिया ढंग मेरा।
रंग भी बदले ढंग भी बदले
बना रहे बस संग तेरा।
बहुत ही सुंदर रचना
रंगों से सरोबार रचना, वाह
वाह
श्वेत पहनकर, निकला था घर से
तूने निशाना दे मारी, रंग भरी पिचकारी।
_________होली के पर्व का सजीव चित्रण प्रस्तुत करती हुई कवि सतीश जी बहुत ही सुन्दर और लाजवाब रचना
अतिसुंदर
ठेस न दे मुझे आली
तेरी यह रंग भरी पिचकारी।
श्वेत पहनकर, निकला था घर से
तूने निशाना दे मारी, रंग भरी पिचकारी।
मन गीला कर, तन गीला कर
वसन सभी रंगों से तर कर
बदल दिया रंग मेरा,
बदल दिया ढंग मेरा।
होली के उत्सव का सजीव चित्रण