सुधार की दरकार
कर्म के लिए कहां कोई करार
बैठे हैं बेकार आलस की कतार
बेजार की पगार सरकार की बुखार
तंत्र में अरसे से सुधार की दरकार
सुरक्षा की दीवार में है दरार
अधिकारी दे रहे भ्रष्टों को दुलार
देश की धार हो रही जार जार
श्रमिकों का हो रहा जीना दुश्वार
खाश पदों पर काबिज हैं गंवार
बोझ के डर से कब से हैं फरार
कागज चुरा बने काम के शाह
हीरा कब कहे मैं हूं बादशाह
सरकार के संस्कार में रविवार
कैसे मिटेगा वतन से भ्रष्टाचार
सुंदर
कर्म के लिए कहां कोई करार
बैठे हैं बेकार आलस की कतार
_________ समसामयिक यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करती हुई राजीव रंजन जी की बहुत सुंदर रचना
सुंदर पंक्तियां यथार्थ चित्रण
बहुत सुन्दर रचना