तुम्हारे भोलेपन
तुम्हारे भोलेपन से हीं मुझको बहुत प्यार है। वरना इस दुनिया में दिल लगाने को बथेरे यार हैं।
तुम्हारे भोलेपन से हीं मुझको बहुत प्यार है। वरना इस दुनिया में दिल लगाने को बथेरे यार हैं।
ई जेठक मास आ आमक गाछी। गेया केॅ संग संग चरावति बाछी।। सब किछु मोन परति अछि कोना बताएव हम सब का छी।।
पर्वत से निकली खिल-खिल गंगा सागर में जाकर शांत हो गई। जान गई जंजाल में तो उड़ती चिड़ियाँ भी शांत हो गई।।
ना छेड़ कुदरत को कुदरत परेशान हो जाएगी। इसकी परेशानी के संग संग तेरी जान जाएगी।।
कुदरत के संग बदफेली के खुद हीं हम शिकार हो गए। आबोहवा संग धरती भी तो दूषित हो गई और हम बीमार हो गए।
नजरों से बातें होती है और जुबान खामोश है। अजीब सी दुनिया है ये मधुर प्रेम का आगोश है ।।
झर-झर आँसू बहते उनके झरना बनकर आँखों से। मरणासन्न कर छोड़ा उनको दुष्ट काटकर पाँखों से।। परवाह नहीं थी निज दुख की वश राम नाम…
पत्थर का पर्वत होकर भी आखिर पानी सबको देता है। बिना नाक और मूँह के बृक्ष सबको सुरभित वायु देता है।। बिन ईंधन के जलकर…
रूखी सूखी खाकर भी अमृत का पान कराती है। वो तो गैया मैया है अपनी जो हर विपदा से बचाती है।।
देवव्रत का भीष्मप्रतिज्ञा या धृतराष्ट्र का अंधापन। गंधारी के आँखों की पट्टी या कुन्ती का अबलापन।। किसको दोषी कहूँ मैं आखिर सब हैं कारण महाभारत…
जिम्मेदार किसे ठहराया जाय आखिर महाभारत के युद्ध का। उत्तर मांग रहा तत्काल हमार ये कैसा धर्मयुद्ध प्रबुद्ध का।।
वटसावित्री का पूजन किया बड़गद की टहनी रोपकर। वृक्षराज को देकर कलेश कैसी पूजा है ये शोकहर।।
शरण में आया जभी विभिषण कह लंकेश राम अपनाए। सागर जल से कर अभिषेक नीरनिधि का मान बढ़ाए।। ऐसे राम भगत हितकारी। भज ले राम…
तुम लाखपति हो गए कोरोना आखिर मेरे भारत में। हम मध्ययबर्गी मिल गए देखो आज कितने गारत में।।
अहिल्या द्रोपदी तारा कुंती और मंदोदरी। सदाकाल कन्या ये पांचों सर्वपाप कर हरी।।
जिस नारी को समझ पातकी पति ने पत्थर बना दिया था। दे निज चरणन की धूल रामजी पंचकन्याओं में सजा दिया था।। प्रातकाल उठि सुमिरन…
पति ने पत्थर बना दिया था एक जीती जागती नारी को। परमेश्वर ने फिर नारी कर डाला निज चरणन अधिकारी को।।
राजनीति और पार्टीबाजी से बाहर भी है सेवा की दुनिया। मदर टरेसा सम दुखियों की सेवा कर कर सुखदाई दुनिया।।
मीठे बोल सदा हीं बोलो करबा बोल कभी ना फरमाना। गरम दूध में शीतल जल सम मीठे बोलों का कायल है सारा ज़माना। ।
दादाओं के भी दादा थे वो ना जाने कितने युगों से खड़े थे एक पाँव पर अपने घर के पास। खेल कबड्डी गिल्ली डंडे भाग…
माँ की ममता कभी भी झूठी नहीं होती। रूठी होकर भी कभी माँ रूठी नहीं होती।।
आज के इस दौर में उल्फत के हर रस्म झूठे लगते हैं। अपने घर में भी सभी एक दूजे से रूठे-रूठे लगते हैं। ।
चिलचिलाती धूप और भयंकर गर्मियां व्यापित है इस जेठ में । दशा बताये क्या प्राणियों की छाया भी जाए छाया की हेठ में।।
कदम-दर-कदम है ठोकर लगी। ज्ञान की जोत दिल में है निश दिन जगी। फिर भी ना बुद्धि तुम्हारी बढ़ी।।
लाॅकडाउन भी देखो बेअसर हो रहा। सारे भारत में कोरोना का बढ़ता कहर हो रहा। रात में नींद आती न दिन में है चैन अब…
देश धर्म के ख़ातिर है अपनी जान हथेली पे। वीर सिपाही हैं हिन्दी हम कुर्बां जन्महवेली पे।।
तीर किसी को घायल करके बोलो कब पछताता है? कड़वा बोल कहो दुनिया में कब भला काम कर पाता है??
देख अनीति को चुप रहना सचमुच एक अनाचार हुआ। पाठ अहिंसा का पढ़ाकर खुद हिंसा का शिकार हुआ ।।
इसी समाज में सीता को भी अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी। इसी समाज के कारण निर्दोष जानकी वन के बीच पड़ी थी।।
ये समाज है जिसका क्या ठिकाना। किसी को मान दे किसी को दे अपमाना।।
पेड़ रहे नित धूप में बाँटे सबको छांव। ऐसे हीं परोपकार में लगे हाथ और पांव।।
कौन कहता है कि दिल में सुराग नहीं होते। गर ना होते तो बेवफा कभी फरार नहीं होते।।
एक था अंधा एक था लंगड़ा । दोनों का याराना हो गया तगड़ा।। आग लगी जब गाँव में । सब भागने लगे शीतल छाँव में।।…
इम्तिहान -ए-इश्क़ में सारे शरीक होते हैं। जो पास हो गए वही तो खुशनसीब होते हैं।।
तुम्हारे नजर- ए-रहम से तेरे,सब मीत बन जाते हैं। मेरे अल्फाज तेरे लबों से छूकर गीत बन जाते हैं।।
जमाने में सबसे निराला है । इसलिए नहीं कि मेरा यार है वो , मन का बड़ा हीं सच्चा और भोला भाला है।।
मुहब्बत के कई रंग देखे हैं। जो भी मिला उसे तंग देखे हैं। यूँ तो बड़ी सुहानी है ये दुनिया पर कहीं खुशी तो कहीं…
तुम अपने मुहब्बत में कर लो परीक्षा सनम। पास निश्चित करुँगा पर आगे की तेरी इच्छा सनम।।
कुछ छंद अनोखे लाए हैं कुछ गीत सुहाने लाए हैं। हम तो तुम्हारे आशिक़ हैं कुछ भाव तराने लाए हैं।।
दुनिया दरकिनार होना चाहती थी हमसे पर दरकिनार हो न पाई । मुहब्बत ने ईंटे तो काफी लगाए पर इश्के मीनार हो न पाई।।
कहते हैं किसको हँसना गमगीन ज़िन्दगी है। मिट्टी करे समर्पित अश्कों से बन्दगी है। हरदम रहे वो गीला उसका सदा हीं जून है। क्या नाम…
ये कोरोना की छुट्टी भी अब बेकार हो गई । मोबाइलों में होम वर्क और पव जी बेकार हो गई।।
गर्मी की छुट्टी हो गई गर्मी के आने से पहले। शायद स्कूल लग जाऐंगे नानी 🏡 जाने से पहले।।
ऐ वक्त जरा रुक जा कुछ देर के लिए। दुनिया में लाॅकडाउन है नये सबेर के लिए।।
मन्दिर बन्द है फैक्टरी बन्द है बन्द है कारोबार। घर में सोना बाहर कोरोना जीना है दुश्वार।।
जनताओं को कैद कर दो’कोरोना के नाम पे। बिजली पानी भी मुफ्त करो कोरोना के नाम पे।।
लाॅकडाउन बढ़ाते रहो अध्यादेश लगाते रहो आखिर जो आप मंत्री ठहरे। मजदूरों को भगाते रहो शराबियों को अजमाते रहो आखिर जो आप मंत्री ठहरे।।
भक्त भले थे विदुर कृष्ण के पर फल विदुरानी के हिस्से आया। फल झोली में देकर कृष्णा मांग-मांग खुद छिलका खाया।।
दर्शन की चाह में सुदामा दर्शन मान सब पा जाता है। प्रेरक सुशीला के खातिर पल में रंंगमहल आ जाता है।।
चौथापन है लाॅकडाउन का फिर भी कोरोना अभी जवान है। करते रहो अध्यादेश जारी तुम्हें क्या जनता कितनी परेशान है।।
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