by Pragya

‘एक माटी का दीपक सिखा गया’

November 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक माटी का दीपक सिखा गया
खुलकर हँसना,
हँसकर जीना,
जीकर अपना सपना पूरा करना
एक माटी का दीपक सिखा गया…..
बोला प्रज्ञा !
मत रो पगली
आज तो है दीवाली अपनी
मुझे जला तू रौशन कर दे
अपना घर और अपना मन
मुझमें जीने की
अलख जगा गया
एक माटी का दीपक सिखा गया….
दीप जलाये मैंने कितने
मुझको भी कुछ याद नहीं
पिया मिले थे मुझको छत पर
थोड़ा मुझको रुला गये
दीप ने टिमटिम करके मुझको
देखो कैसे हँसा दिया
जी ले तुझमें है
प्रज्ञा शक्ति !
ऐसा मुझको बता गया
फिर से जीना,
फिर से हँसना
एक माटी का दीपक सिखा गया…

by Pragya

घुट-घुट आँसू पीना है..

November 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुझको तो बस तन्हाई में ही जीना है
सिसक-सिसक कर रहना है
घुट-घुट आँसू पीना है
कोई ना समझा मेरी पीर को
तो तुम क्या समझोगे !
नहीं किया कभी प्यार किसी ने
तो तुम क्या मुझको दिल दोगे !
अब तो आदत हो चली पीर की
अब तो पीर में ही जीना है…
कोई ना समझा मेरी पीर को
घुट-घुट आँसू पीना है…
दिन हो मेरा रोते-रोते
रात कटे करवटें बदलते
मेरे नैना बरसें हर पल
इनका ना कोई महीना है
कोई ना समझा मेरी पीर को
घुट-घुट आँसू पीना है…

by Pragya

बालदिवस:- नेहरू जी का जन्मदिवस

November 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

टिमटिम करता देखो दीपक
बच्चों इसे सजा दो
अपने घर के हर कोने को रोशन
आज बना दो
बाल दिवस है प्यारे बच्चों
आज तुम्हारा दिन है
खूब जलाओ दीपक, फुलझड़ी
क्योंकि दीवाली का दिन है
खाओ मिठाई
धूम मचाओ
थोड़ा काम में हाथ बटाओ
बाल दिवस है और दिवाली
मिलकर खुशी मनाओ
नेहरू चाचा जी का बच्चों
आज जन्म दिवस है
उनको बच्चे बहुत थे प्यारे
तभी तो आज ही बाल दिवस है
प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू* जी का
हैप्पी बर्थ डे’ तुम मनाओ
आज है बच्चों बाल दिवस
तुम सारे खुशी मनाओ…

काव्यगत सौंदर्य:-
इस कविता में मैंने दीपावली, बाल दिवस तथा
पंडित जवाहर लाल नेहरू जी के जन्म दिवस इन तीनों कड़ियों का समावेश करने की कोशिश की है उम्मीद है आपको पसंद आयेगी|

विशेष:-
हमारे प्रिय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी का जन्म १४ नवम्बर सन् १८८९ को इलाहाबाद में हुआ था |जिसे पूरे देश में बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। वे बच्चों से बेहद प्यार करते थे। बच्चे प्यार से उन्हें चाचा नेहरू कह कर बुलाते थे। वे जानते थे की जिस देश के बच्चे स्वस्थ, शिक्षित और चरित्रवान होंगे, जिस देश में उनका शोषण नहीं किया जाएगा , वह देश ही उन्नति कर सकता है।

by Pragya

“कौमुदी से भरा प्याला”

November 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नम हैं लोचन
तिमिर के
चारों तरफ फैला उजाला
चीरता तम को चला
कौमुदी से भरा प्याला
रात बैठी गगन में
देख अचरज चकित थी
आज धरती
गगन से भी मनमोहक थी,
स्वच्छ थी.
आसमां में जितने सितारे नहीं !
उतने दीप थे धरती
पर जल रहे
‘राम जी की जय हो’
‘लक्ष्मी-गणेश आपका सुस्वागतम्-सुस्वागतम्’
यह मानुष सभी थे कह रहे
जोर डाला अपनी स्मृति पर
तभी प्रशान्त ने
भ्रमण कर सबको बताया
दीपावली है हिन्द में….

*******************
“आप सभी को ‘प्रज्ञा शुक्ला’ की ओर से
प्यार भरी दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें”

by Pragya

मेरे हिस्से में अभी कुछ साँस बाकी है…

November 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुबह होने में अभी
कुछ रात बाकी है
सो जाने दो मुझको जरा
कुछ रात बाकी है….

मुझको टूटकर बिखरने में
लगेगा कुछ और वक्त !
क्योंकि मुझमें अभी कुछ आस बाकी है….

वो मुझसे खफा हो बैठा है
एक बात पर
सुबह उठकर कर लेंगे सुलह
अभी तो कुछ रात बाकी है….

पी ली है मैंने
नशे में झूमता सारा जहान
सुबह घर जाऊंगा
अभी कुछ रात बाकी है….

आ गया मेरा बुलावा
रुक जा ओ यमराज ! तू
जी लेने दे मुझको जरा
मेरे हिस्से में अभी कुछ साँस बाकी है…

by Pragya

आई शुभ दीवाली..

November 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आई शुभ दीवाली देखो
आई शुभ दीवाली
टिमटिम करते देखो दीपक
आई शुभ दीवाली
धनतेरस को खूब खरीदा
हमनें सोना-चाँदी
सज-धज देखो
लक्ष्मी माँ आई
आई शुभ दीवाली
नर्कचतुर्दशी को हमने झाड़ा
घर का कोना-कोना
ओ लक्ष्मी माँ !
हम पर अपनी कृपा बनाये रखना
दीपावली में हमनें गणपति संग
लक्ष्मी जी को बुलाया
रामचन्द्र जी के शुभआगमन पर
सौहार्द से त्योहार मनाया
हर गली सजाई दीपों से
फूलों से सजाई थाली
आई शुभ दीवाली
देखो आई शुभ दीवाली
गोवर्धन पूजा पर माँ ने
कृष्ण जी को कर जोड़ मनाया
भाई दूज पर मैंने कर दी मैंने
भाई की जेबें खाली
आई शुभ दीवाली
देखो आई शुभ दीवाली…

काव्यगत सौंदर्य और समाज में योगदान:-

यह कविता मैंने दीपावली के सभी कार्यक्रमों को ध्यान में रखकर लिखी है.
इस कविता के माध्यम से मैंने दीपावली के सभी पर्वों के दर्शन कराये हैं.
और हिन्दू परंपरा के अनुसार धनतेरस, नर्कचतुर्दशी एवं दीपावली पर राम और लक्ष्मी गणेश जी के आगमन को प्रमुखता दी है..
गोवर्धन पूजा पर कृष्ण जी के द्वारा जो गोवर्धन पर्वत उठाकर इन्द्र का घमण्ड तोड़ा गया उसे
गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाता है..
भाई दूज पर भाई-बहन के प्रेम को दर्शाया गया है..जो यम द्वितीया के रूप में जानी जाती है इसदिन मान्यता है कि बहन के घर का भोजन खाने से भाई की उम्र बढ़ती है और उसे यमराज जी का कोप सहन नहीं करना पड़ता उसे मृत्यु पश्चात यमराज लेने नहीं आते..
मेरा यह कविता हिन्दू धर्म का पवित्र संदेश देती है

by Pragya

“आखिर दीवाली उनकी भी तो है”

November 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चाइनीज झालर नहीं
दीये जलाओ
किसी गरीब के घर रोशनी करके
दीपावली मनाओ
झुग्गी, झोपड़ी वालों के भी अरमान होते हैं
किसी एक के घर में प्रकाश तुम फैलाओ
यूं तो अरबों की बारूद में
तुम आग लगा देते हो
किसी के घर का इस बार
अंधकार तुम मिटाओ
पटाखे जलाने से भी ज्यादा
सुख मिलेगा तुम्हें
एक बार किसी गरीब की
भूख तुम मिटाओ
हमेशा मनाते हो तुम दीवाली
शानों शौहकत से
इस बार दीपावली
साधारण तरीके से मनाओ
चाइनीज शो-पीस से नहीं
इस बार दीप और मोमबत्ती
जलाकर दीपावली मनाओ
यकीन मानो
जब तुम दीये किसी गरीब से
खरीदोगे
बड़ा चैन आयेगा
एक बार दीपावली
कुछ ऐसे ही मनाओ
“आखिर दीवाली उनकी भी तो है”
इस बार किसी गरीब की मुस्कान बन जाओ…

by Pragya

धन्वन्तरि जी को प्रणाम

November 12, 2020 in मुक्तक

जिन्होंने दूर अनेकों रोग किये
औषधियों पर कितने शोध किये
उन धन्वन्तरि को नमन करती है प्रज्ञा
जिन्होंने लाखों तन नीरोग किये..

by Pragya

नींदों ने झकझोर दिये

November 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पी लेती हूँ घूंट जहर का
अमृत का अरमान नहीं
जो समझे मेरे मन को
ऐसा कोई इंसान नहीं
दीप जले सपनों के कई
पर नींदों ने झकझोर दिये
सुमन खिले दरवाजे पर थे
पर जाने किसने तोड़ लिये !!

by Pragya

“भाग्य और प्रीत”

November 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

भाग्य कहाँ ले जाता है
और कहाँ मैं जाती हूँ !

प्रीत के बदले प्रीत लुटाती
प्रीत नहीं मैं पाती हूँ..

जीत सके जो मेरा मन
किसी में ऐसी बात कहाँ !

तुझे छोंड़ मैं किसी और को
प्रेम कहाँ कर पाती हूँ..

राह चलूं तब मेरी पायल
छमछमछमछम बजती है,

तेरे मिलन को श्याम ! राधिका
देखो निस दिन सजती है..

हृदय कहाँ ले जाता है
और कहाँ मैं जाती हूँ !

प्रीत के बदले प्रीत लुटाती
प्रीत नहीं मैं पाती हूँ….

by Pragya

प्रीत है मेरी राधा जैसी..

November 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गर पढ़ते हो जिस्म मेरा
तो सुन लो
क्या तुम इस लायक हो!
दर्द दिया करते हो मुझको
चैन नहीं आने देते
पढ़ते हो बस रूप मेरा
कभी रूह में क्यों नहीं झांकते !
हाँ, मेरे रूप से ज्यादा सुंदर
रूह है मेरी देखो ना !
पढ़ते हो तुम जिस्म के पन्ने
रूह को पढ़कर देखो ना !
प्रीत है मेरी राधा जैसी
मीरा जैसी इबादत करती हूँ
तू इतना है बेदर्दी
फिर भी तुझे मोहब्बत करती हूँ..

by Pragya

“दीपों की दिवाली है तो दीपों से मनाओ”

November 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पटाखे ना जलाओ मित्र
दीपों को जलाओ
अपने मन के अन्धकार को मिटाओ
राम आये अवध में तो हे देशवासियों !
अपने क्षेत्र को दीपों से सजाकर
दीपावली मनाओ
पटाखे जलाने से होता है प्रदूषण
आतिशबाजी से ही क्या खुश होता है मन !
हर घर सजाओ प्यारे,
हर गली सजाओ
“दीपों की दिवाली है तो
दीपों से मनाओ”…

काव्यगत सौंदर्य और समाज में योगदान:-
यह कविता मैंने आतिशबाजी से हो रहे प्रदूषण को रोंकने के लिए लिखी है…
दीपावली का अर्थ आतिशबाजी करना नहीं वरन् प्रकाश फैलाना है
रामजी के आगमन पर प्रदूषण फैलाना भला कहाँ की समझदारी है??
पटाखे जलाने से तमाम प्रकार की दूषित गैसें
वायु में मिल जाती हैं जो सांस लेने पर हमारे फेफड़ों में प्रवेश करके हमारे शरीर को विविध प्रकार से नुकसान पहुंचाती हैं
साथ ही धमाके के साथ कुछ धूल के कण भी वायु में मिल जातें हैं जो हमारे शरीर में पहुंच जाते हैं..
दीपावली प्रकाश का पर्व है जिसे लोग अपने स्टैंडर्ड का पर्व बना बैठे हैं और दिखावे की होड़ में लग गये हैं

by Pragya

“कटी पतंग”

November 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पहले रहती थी
खिलखिलाती मुस्कुराती मैं कली
फिर आया एक भंवरा
मेरे सम्मुख हे अली !
पी लिया उसने मेरे जीवन का
सारा रस अली
मुस्कुराती कली फिर
सिसकते हुए रोने लगी
मेरे जीवन की जो खुशियां थीं
वो सब ले गया
एक बेजान-सा बस जिस्म ही
अब रह गया
जो ना मरता, जो ना मिटता
वो मन भी अब बुझ गया
रंग जितना मुझमें था
वह रंग सारा उड़ गया
मेरा जीवन अब तो है बस
एक कटी पतंग-सा*
धुल रही हूँ जख्म़ सारे
हो रहा है दर्द-सा…

विशेषता:-
यह रचना मेरे जीवन का सत्य प्रकट करती है
एक ऐसा सत्य जिसे मैं स्वीकार नहीं करना चाहती..

by Pragya

**कुर्बानी दो कुत्सित सोंच की**

November 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो बंदे बकरा-मुर्गा काट
छौंककर खाते हैं
वो मानुष भगवान के घर में
उल्टा लटकाए जाते हैं
निर्जीवों का तो इस जग में
कोई मान नहीं
क्या जीवित जीवों में भी
कोई जान नहीं ?
महसूस तो हैं वह भी करते
प्रेम और नफरत को
तो आखिर क्या कष्ट नहीं
होता होगा उन बकरों को
देते हो कुर्बानी तुम जीवित
जन्तुओं की
और मांगते हो बदले में
रहमत तुम खुदा की !
देनी है यदि बलि तो
अपनी कुत्सित सोंच की दे डालो
जिनको भूनकर खाते हो
उनको अपने घर में पालो
प्यार करेंगे वो इतना की
आँखें नम हो जायेंगी
खुदा से ज्यादा उनके दिल की
दुआएं तुम्हें मिल जायेंगी
बंद करो तुम जीवित
जीव-जन्तुओं को खाना-पीना
वरना किसी दिन तुमको इनकी
बद् दुआएं लग जायेंगी..

by Pragya

“जीव हत्या पाप है”

November 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो छोटे-छोटे मासूम से थे
कमरे में मेरे बैठे थे
मैं गई रात को देर से थी
उस समय थोड़ी-सी सर्दी थी
फिर देखा मैंने उनको तो
मन में हमदर्दी जाग उठी
वह सिकुडे़-सिकुड़े बैठे थे
एक नहीं चार-पांच थे
मैंने उनको अलमारी में बिठाया
ऊपर से कम्बल भी ओढ़ाया
दूध रखा एक प्याली में
रुई के फाहे से उन्हें पिलाया
उनकी सेवा करके एक
शान्ति-सी मन को आई थी
फेंक दिया मैंने फिर झट से
चूहामार जो लाई थी…

by Pragya

जाने क्यूँ..

November 10, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जाने क्यूँ तुम मुझे
इतना चाहते हो
ना चाहते हुए भी
प्यार जताते हो
हम किसी और की
अमानत हैं साहब!
क्यों हम पर
इतना प्यार लुटाते हो ?

by Pragya

अर्धनारीश्वर…

November 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं पैदा हुआ तो था कुछ अजीब
फूटा हुआ था मेरा नसीब
शंकर-पार्वती का मिश्रित रूप हूँ मैं
चुप रहो अर्धनारीश्वर हूँ मैं
बचपन से ही मेरे साथ
भेदभाव होता था
शीशे को देखकर मुस्कुराता था
माँ की लिपस्टिक से
मुझे कुछ अलग ही लगाव था
चूड़ी, पायल से मुझे अत्यधिक
प्रेम था
एक दिन बिठा दिया गया मुझे
ऐसे बाजार में
जहाँ रोज मेरी इज्जत
चंद पैसों के लिए लूटी जाती थी
जहाँ से गुजरता था
लोगों की हँसी छूट जाती थी
ताली बजाऊं या चूड़ी
पर तुम सबसे अच्छा हूँ
चुप रहो स्त्री-पुरुष का
गुणगान करने वालों
मैं तुम्हारी दूषित सोंच से
काफी अच्छा हूँ
अपनी बेटी जैसी लड़की
की इज्जत लूट लेते हो
सीना तान कर चलते हो
मर्द कहाए फिरते हो
बस अब बहुत हो चुका
हमको आगे बढ़ना है
तुम सबकी विकलांग सोंच से
हम किन्नरों को अब लड़ना है..

by Pragya

बेटी और बहू में फर्क

November 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो उठा ले झाडू तो सबकी
शामत आ जाती है
मेरे पूरे दिन की मेहनत
ना रास किसी को आती है
हाथ में उसके पानी पकड़ाओ
तब वो मैडम पीती हैं
उम्र में हैं मुझसे छोटी पर
आर्डर देती रहती हैं
हाथ में उसको टिफिन बनाकर
मैं ही प्रतिदिन देती हूँ
एक भी दिन यदि देर हुई तो
ताने सुनती रहती हूँ
वो लाडली है, मुझसे बेहतर है
हर दम यही जताया जाता है
मुझको उसके आगे हरदम
छोटा दिखलाया जाता है
ऐसा क्यों है ?
यह सवाल मैं खुद से करती रहती हूँ
मुझमें ही है खोंट कोई
यह खुद से कहती रहती हूँ
दूध उबल जाए तो फिर
संस्कारों पर मेरे सवाल उठे
धीरे-धीरे काम करो
मेरी बेटी ना जाग उठे
उसको इतना प्यार है मिलता
मुझको हरदम ताने क्यों ?
बेटी और बहू में दुनिया फर्क
इतना माने क्यों ?

काव्यगत सौंदर्य और समाज में योगदान:-
यह कविता मैंने बेटी और बहू में अन्तर करने वालों के लिए लिखी है.
मेरा उद्देश्य यह फर्क मिटाकर दोनों के प्रति समान दृष्टिकोण अपनाने
का है.
जो घर में बहू बनकर आती है वह भी किसी की लाडली बेटी ही है.
वह अपना सब कुछ छोंड़कर आती है उसे प्रेम से अपनाने की आवश्यकता है ना कि किसी उपदेश की..

by Pragya

*पाप-पुण्य*

November 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

यूं नजरों से ना देख मुझे
रूह में झांक कभी
मैं क्या हूँ उसका परिचय
तू पाएगा तभी
रूप तो मेरा उजला-उजला
बस दिल थोड़ा-सा काला है
बता रही हूँ तुझको नजरों से
क्योंकि तू मेरा शौहर होने वाला है
परख रहा है तू मुझको ऐसे
मुझमें जान नहीं जैसे !
एक-एक कर मेरा इंटरव्यू
ले जो रहे तेरे घरवाले
मुझको ऐसा लगा के जैसे
मेरा भविष्य सुधरने वाला है
मेरे गालों पर तिल जो है
उस पर कई सवाल उठे
बचपन से इस तिल पर
लाखों मजनू अपना दिल हार चुके
कर लो जितनी करनी है तुमको
मेरी झान-बीन
जिस दिन बनकर आई मैं दुल्हन
लूंगी बदले मैं गिन-गिन
अभी तो मैं रोऊंगी साहब !
फिर मेरे हँसने के दिन होंगे
जैसा भी बर्ताव करूंगी
तुम सबके पाप-पुण्य होंगे…

by Pragya

बेटी को सम्मान कब..??

November 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सब मुझे देख रहे थे ऐसे
जैसे मैं कोई चीज बिकाऊ
कुर्सी, मेज खरीदने जैसे
वो कर रहे थे भाव-ताव
क्या मेरा कोई स्वाभिमान नहीं
क्या मैं कोई इंसान नहीं
लड़कियों का इस देश में
क्या कोई अस्तित्व नहीं ??
क्या लड़की होती है बाजारू
बस एक ‘शो पीस’ बिकाऊ
ना उसकी अपनी मर्जी है
ना उसमें है कोई जान
सीना तान के कहते हैं पुरुष यहाँ
“मेरा भारत देश महान”
देश महान हैं लेकिन देश के
नियम बड़े पौराणिक हैं
हम जैसे लोग इसी कारण से
अभी तक अविवाहित हैं
जितना अधिकार मिले बेटे को
उतना ही बेटी को सम्मान मिले
सीता, रुक्मिणी की तरह ही
पति चुनने का अधिकार मिले
तब बनेगा सुंदर प्यारा-सा
हर घर, हर परिवार
करेगी फिर हर बेटी अपने
परिवार, पति से प्यार…

by Pragya

“जीवन चुनने का अधिकार”

November 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सब मुझे देख रहे थे ऐसे
जैसे मैं कोई चीज बिकाऊ
कुर्सी, मेज खरीदने जैसे
वो कर रहे थे भाव-ताव
क्या मेरा कोई स्वाभिमान नहीं
क्या मैं कोई इंसान नहीं
लड़कियों का इस देश में
क्या कोई अस्तित्व नहीं ??
क्या लड़की होती है बाजारू
बस एक ‘शो पीस’ बिकाऊ
ना उसकी अपनी मर्जी है
ना उसमें है कोई जान
सीना तान के कहते हैं पुरुष यहाँ
“मेरा भारत देश महान”
देश महान हैं लेकिन देश के
नियम बड़े पौराणिक हैं
हम जैसे लोग इसी कारण से
अभी तक अविवाहित हैं
जितना अधिकार मिले बेटे को
उतना ही बेटी को सम्मान मिले
सीता, रुक्मिणी की तरह ही
पति चुनने का अधिकार मिले
तब बनेगा सुंदर प्यारा-सा
हर घर, हर परिवार
करेगी फिर हर बेटी अपने
परिवार, पति से प्यार…

by Pragya

माँ मुझे बुला लो अपने पास…

November 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ मुझे बुला लो कुछ दिन अपने पास
यहाँ कुछ भी अच्छा नहीं लगता
प्यार तो सब करते हैं पर फिर भी
कुछ नहीं जचता
गोल-गोल रोटियां बनाकर तू
मुझे जबरदस्ती खिलाती थी
बुरा लगता था तुझको गर
मैं जो रूठ जाती थी
घर में सबसे पहले मुझे ही
खाना परोस कर मिलता था
आज तेरी लाडली सबकी थाली लगाती है
माँ तेरी डाँट बड़ी बुरी लगती थी,
भाभी की आवाज कर्कश थी पर
यहाँ के तानों से अच्छी थी
तेरी डाँट में जो अपनापन था
तेरी कॉफी में जो मीठापन था
वो बहुत याद करती हूँ
वो प्यार तो करते हैं पर वो तेरा वाला
अपनापन नहीं दिखता
वो पति परमेश्वर हैं
पर मुझे यहाँ कोई इंसान भी नहीं समझता
देर से उठने वाली अब
सूर्योदय से पहले उठ जाती है माँ
सच कहूँ तेरी चाय की महक
मुझे बड़ा याद आती है
माँ मुझे बुला लो कुछ दिन अपने पास
यहाँ कुछ भी अच्छा नहीं लगता
है तो हर कोई पर अपना-सा नहीं लगता..

by Pragya

पर वह ना उठी, बड़ी निष्ठुर थी !!

November 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बड़ी ठण्ड है माँ !
बर्फ पड़ रही है
तू क्यों आग-सी तप रही है ?
बाहर इतनी धुंध छाई है
माँ मेरी जान पर बन आई है
लगाकर छाती से माँ बोली
आ बेटा ! गर्म कर दूं बदन तेरा
कल सुबह उठना
ढूंढ लूंगी स्वेटर तेरा
रात बीती माँ की हड्डियों से
चिपककर बेेटे की
सुबह मिलेगा स्वेटर
यह स्वर्णिम स्वप्न था आँखों में बेटे की
सुबह हुई तो नजारा ही कुछ और था
बेटा माँ से लिपटकर रो रहा था
और कह रहा था
उठ जा माँ ! तेरा बदन बिल्कुल बर्फ है
आग दाऊ घर जल रही
उठ भूमि से मौसम सर्द है…
पर वह ना उठी, बड़ी निष्ठुर थी !!

by Pragya

तुझमें रब दिखता है….!!

November 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिल में छुपा एहसास हो तुम
ऱब से भी ज्यादा खास हो तुम..

हमारे बीच है मीलों तक की दूरी
पर साँसों से भी ज्यादा पास हो तुम..

कड़वा है ये सारा जग हमदम
पर ‘चाय की मीठी प्यास’ तुम..

धड़कन तुम हो, दिल भी तुम हो
मेरे हिस्से की साँस हो तुम..

छोंड़ गया है जग सारा मुझको
मेरी आख़री आस हो तुम..

तुझमें ही रब दिखता मुझको !
मेरा अटूट विश्वास हो तुम..

by Pragya

खुदा का फरमान

November 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब तन्हाइयों में भी आराम आने लगे
जब ख्वाब खुली आँखों
का आसमान पाने लगे
दिल की जमीं जब भीगने
लगे आँसुओं से
चाँदनी रात में जब अरमान
जागने लगे
तब समझ लेना चाहिए कि
दिल का पंछी आजाद हो
चुका है
तेरा साथ छोंड़कर किसी
और का हो चुका है
अरे पगले ! तुझे हो चुकी है
मोहब्बत
या फिर खुदा का तुझको
फरमान आ चुका है..

by Pragya

*अशोक वाटिका और रामभक्त हनुमान*

November 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अशोक वाटिका में कितना शोक !
माता सीता का दुःख देख
हनुमान सके ना खुद को रोंक
माता सीता के अग्नि मांगने पर
डाली मुद्रिका हनुमान ने
राम की महिमा से अशोक वाटिका
में गुञ्जन किया हनुमान ने
दूत बताकर राम का सीता को मातु बताया
मैं राम भक्त हूँ माते यह कहकर
अपना वृहद रूप दिखाया
माता सीता की आज्ञा पाकर
भूख मिटाई हनुमान ने
अशोक वाटिका तहस-नहस कर
रावण का अहंकार मिटाया हनुमान ने
विभीषण का गृह छोंड़ा परंतु सारी लंका जलाई
कुछ इस तरह से हनुमान ने रामभक्ति दिखलाई..

by Pragya

सिसकियां अब कमरे में ही बंद रहती हैं..

November 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम आदतों से अब बाज आने लगे
तुमसे दूरियां बनाने लगे
रोया करते थे रात भर तुम्हें
याद करते हुए
अब हम अपने आँसू छुपाने लगे
सिसकियां अब कमरे में ही
बंद रहती हैं
बाहर नहीं जाती !
अब हम झूंठी हँसी दिखाने लगे
कोई फर्क नहीं पड़ता हमें
तुम्हारी मौजूदगी से
ये झूठी दिलासा दिल को दिलाने लगे
देख ना ले कोई मेरे गहरे जख्म़
इसलिए बेवजह मुस्कुराने लगे..

by Pragya

माँ की आखिरी विदाई

November 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो शाम याद है तुम्हें !
तुम बैठे थे बस स्टाप पर
मैं वहाँ आई और
तुम चले गये
एक बार भी मुड़कर
नहीं देखा तुमने मुझे !
मैं तुम्हारी इस बेरुखी से
नाराज हो गई
कारण जानना चाहती थी
तुम्हारी बेपरवाही का
फिर तुम्हारे दोस्त से
पता चला कि
तुम परेशान थे
थे कुछ हैरान क्योंकि
तुम्हारी प्यारी माँ
तुम्हें छोंड़कर जा चुकी थी
सारी नाराजगी दूर हो गई पर
मन आज भी खिन्न है
आह! तुम्हारी माँ को
आखरी विदाई* भी ना दे पाई मैं!!

by Pragya

“कितना बेबस है इन्सान”

November 6, 2020 in गीत

कोरोना ने छीन ली जान
कितना बेबस है इन्सान |
(१) घूमा रहा सड़कों पर देखो
अपने घर के अन्दर देखो
संकट में हैं प्राण |
कितना बेबस है इन्सान ||
(२) अस्त हुआ प्रगति का सूरज
खोता देखो मानव धीरज
कितनी सस्ती हो गई जान |
कितना बेबस है इन्सान ||
(३) रिश्तों में अब आ गई दूरी लम्बी
मानव जाति ही अब मानवता भूली
अन्त्येष्टि’ को तरसे इन्सान |
कितना बेबस है इन्सान ||

by Pragya

“प्यार वाली खिड़की”

November 5, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक ही तो खिड़की थी
जिससे दीदार हो जाता था
खिड़की खोलने-बंद करने में
ही इजहार हो जाता था
आज वो भी बंद कर दी तुमने.!
अब वो हंसी नजारे कैसे होंगे ?
भेजा करते थे जो एक खिड़की से
दूसरी खिड़की पर हम चिट्ठियां
अब वो इशारे कैसे होंगे ?
रात भर देखते थे उठ-उठकर
तुम्हें खिड़की से
अब तो तुम्हारे दीदार को
तरसते चाँद-तारे होंगे
खोल दो ना वो प्यार वाली खिड़की*
तुम्हें रब का वास्ता’
वरना हम भगवान को प्यारे होंगे ||

by Pragya

*जयमाला की बेला*

November 5, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

याद आई मुझे वो घड़ी
मेरी बहन की शादी थी
बुआ की वो प्यारी लाडली थी
मैं गई थी थोड़ा देर से ही
जाकर जल्दी तैयार हुई
जयमाला की बेला थी
सारी बहनों को संग में जाना था
मैं कोने में छुपकर बैठी
मुझको संग ना जाना था
सब चली गईं मुझे ढूंढ-ढूंढकर
मैं छिपकर कोने में बैठी रही
हो गया जब जयमाल तो
मैं कोने से निकल पड़ी
फिर पकड़ लिया सबने मुझको
खींचकर जबरन ले गईं वहाँ
फोटो खिंचवाकर
मैं खिसक गई
छुप गई नहीं था कोई जहाँ
फिर दीदी का देवर दीवाना
पहुंच गया मुझे ढूंढते हुए
मैं उसी से थी छिप रही अभी तक
वो पहुंच गया मुझे सूंघते हुए
वो बोला मुझसे कैसी हो ??
मैंने चाँद की तरफ इशारा किया
फिर बोला तुम कुछ बोलो ना
मैंने भाई बोल दिया
जब चलने लगी वहाँ से मैं तो
पकड़ ली उसने मेरी चूनर
बोला तेरा दीवाना हूँ
भाई ना हूँ मैं
तेरा शौहर !
फिर क्या था मुझको गुस्सा आया
खींचकर मारे मैंने दो-चार थप्पड़
हल्का-सा भूचाल आया
वो मजनू फिर ना मुझे दिखा
दीदी भी हो गईं विदा….

by Pragya

**हो गए साजन जोगी**

November 5, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

साजन गये परदेश
वो ना आए सखी…
मैंने राह देखी खूब
वो ना आए सखी…
चूड़ियां भी खनकाई
पायल भी झनकाई
सुंदरवाली सेल्फी भी भेजी पर
वो ना आए सखी…
व्रत रखा मैंने उनकी खातिर
विधि-विधान से पूजा भी की
रोते हुए वाइस कालिंग भी की पर
वो ना आए सखी…
बैठकर चाँद निहारती रही
तन्हाई मुझको काटती रही
उल्टे-सीधे मैसेज भी किये पर
वो ना आए सखी…
है जरूर कोई सौतन
जिसका सफल हुआ पूजन
जिसके प्रेम में हो गए साजन जोगी*
तभी तो ना आए सखी..
हमने उनको खूब रिझाया
त्रिया चरित्र* भी कर दिखलाया
वीडियो कॉलिंग कर व्रत तोड़ा क्योंकि
वो ना आए सखी…

by Pragya

चाँद अलसाया हुआ था !!

November 5, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चाँद ने गोद में जाकर
हिमालय की
बिछाया बिस्तर सोने के लिए
तभी एक टिमटिमाता तारा
आकर रोने लगा
कहने लगा ऐ चाँद !
आज कोई तेरा इन्तजार कर रहा है
भूखा प्यासा रहकर
उपवास कर रहा है
तू नहीं गया गर तो वह
छत पर ही बैठा रह जाएगा
किसी की रातों का चाँद
तेरे इन्तजार में मर जाएगा
चाँद अलसाया हुआ था !!
थोड़ा इतराया हुआ था
पर जब देखा उसने जमीं पर
हजारों चाँदनी
अपनी छत पर ही खड़ी हैं
तब उसे कुछ होश आया
आज तो करवाचौथ की
घड़ी है
भागा सरपट चाँद फिर
नंगे ही पैरों आ गया
तारा भी फिर खुश हुआ
प्रज्ञा’ ने जब पूरा व्रत किया ||

by Pragya

‘करवाचौथ का व्रत’

November 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चाँद को देखा और छुप गई
अपनी चादर में प्रज्ञा

पीपल की टहनी को हटाकर
चाँद ने झाँका जब मुझको

मैं भोली फिर थोड़ा मुसकाई
मुझको जब आई लज्जा

करवाचौथ का व्रत रखकर मैं
चाँद को तकने बैठी हूँ

वो चाँद तो बिल्कुल फीका है
मेरा चाँद है सुन्दर सबसे ज्यादा

आज चाँद आएगा छत पर
अपने साथ चाँद मेरा लेकर

यही सोंचकर सोलह श्रृंगार कियें हैं
अब देर ना कर चंदा जल्दी आजा….

by Pragya

“सौभाग्यवती भवः”

November 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हाथों में मेंहदी खूब रचाई है
लाल चूनर से सिर की शोभा बढ़ाई है

शादी का लहंगा-चूड़ी पहनकर
माथे पर सिंदूर की लम्बी रेखा बनाई है

चमकती बिंदी और लाली से
घर में फैली है रौनक

बनी हूँ आज फिर से दुल्हन
करवाचौथ की बेला जो आई है

मैं सजी हूँ अपने सुहाग की
दीर्घायु के लिए

गौरी माँ के आशीर्वाद से
अटल सुहाग की बेंदी सजाई है

सास-ससुर के चरणस्पर्श करके
“सौभाग्यवती भव” का प्रज्ञा
आज आशीर्वाद ले आई है..

by Pragya

प्यार की कहानी

October 31, 2020 in मुक्तक

तपकर धूप से मुझमें निखार आया है,
शोलों पर चलकर अब सम्हलना आया है।
कायनात में लिखूँगी अपने प्यार की कहानी,
जुनून से अपने अब यह विश्वास आया है।

by Pragya

खुदा लिखने चले थे..!!

October 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो हुनर में हमारी बराबरी करने चले थे
अरे ! वो नासमझ हैं ये क्या करने चले थे
हमने तो तबाह कर दिया खुद को मोहब्बत में
तब जाकर लिखना आया है
वो तो जल्दबाजी में हमें
खुदा’ लिखने चले थे
यूं तो लिखने को कुछ भी लिख सकते हैं वो
पर वो तो हमारी ही कथा लिखने चले थे
कोई जाकर रोंको उन्हें
मत लिखें हम पर
वरना हम सरेआम बन जाएंगे एक तमाशा
हम तो दिलजले हैं
दिल के जख्म लिखा करते हैं
पर वो तो हमें बेवफा लिखने चले थे…

by Pragya

मुलाकात के सिलसिले

October 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

उनका नंबर भी है
और मुलाकात के सिलसिले भी होते रहते हैं
मुकद्दर ऐसा है
हम फिर भी रोते रहते हैं
बात सदियों से नहीं हुई उनसे
ना हम उनकी तरफ देखते हैं
आ भी जाएं गर वो सामने तो हम
नजरें अपनी झुका के रखते हैं
ना खबर हो कहीं मेरे दिल की
अपने जज्बात छुपा के रखते हैं
हाँ, हुई थी एक बार गुफ्तगू उनसे
वो मुस्कुराये थे हमें छूकर
मारा था थप्पड़ जोर से हमने
क्योंकि हम फरेबी उन्हें समझते हैं…..

by Pragya

वो आया था..!!

October 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं थककर चूर थी
जा बिस्तर पर लेटी थी
साँसें तेज थीं
बदन में अकड़न थी
आँखें अधखुली थीं
शायद नींद थी
कुछ पुरानी-सी यादें
कर रही बेचैन थी
वो बहुत देर से देख रहा था
ना हिल रहा था
ना डुल रहा था
अपनी जुगनू जैसी आँखों से
एकटक मुझको घूर रहा था
भाभी से पूँछा मैंने ये
असली है या नकली है
जरा इसे छूकर देखो
भाभी बोलीं तू पगली है
यह तो बिल्कुल असली है
शायद तेरा पूर्वजन्म का आशिक है
या प्रिय का संदेशा लेकर आया है
या फिर कोई मजनू है
जो वेश बदलकर आया है
यह सुनकर वह भाग गया
जा छुपा पर्दे के पीछे
मुझको उंगली में काटा
मैं जब थी अँखियां मीचे
वह कौन था बस एक “चूहा” था !!

by Pragya

ना भूली वो रात…!!

October 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बीत गईं लाखों शामें
पर ना भूली वो रात अभी तक |
तुमने छोंड़ दिया था जिस पथ पर
मैं बैठी हूँ उस राह अभी तक |
तुम हो धड़कन तुम ही हो दिल
मेरा तो जो भी हो तुम ही हो
यह छोटी-सी बात तुम्हें मैं
समझाने में रही नाकाम अभी तक |
तुमने जो भेजी थी पायल
पहनी नहीं पर अब भी रख्खी है
तुझ तक ना पहुंचा पाई मैं
दिल का ये पैगाम अभी तक |
तुम मुझको पागल कहते थे
प्यार में जब डूबे रहते थे
तुमने कहना छोंड़ दिया पर
लेते हैं सब वो नाम अभी तक |

by Pragya

निःशब्द

October 31, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हम हर किसी में कमियां ढूंढते थे,
जब आईने के सामने आए तो निःशब्द हो गये..

by Pragya

बेचैन से हैं हम

October 31, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बहुत उंगली उठाते थे हम उस पर,
आज वो चला गया तो भी बेचैन-से हैं हम..

by Pragya

वो इतना भी बुरा नहीं था

October 31, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जब वो रोता हुआ घर से गया
तो समझ आ गया हमको,
वो इतना भी बुरा ना था
जितना हम उसे समझते थे..

by Pragya

आँसुओं की परवाह

October 31, 2020 in शेर-ओ-शायरी

रो रहा था वो भी
रो रहे थे हम भी..
लेकिन ना उसे हमारे आँसुओं की परवाह थी
और ना हमें उसके जाने की..

by Pragya

वो रुक नहीं सकता था..

October 31, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हालात इतने भी बुरे ना थे कि वो रुक नहीं सकता था,
हम इतने भी मजबूर ना थे कि उसे रोंक नहीं सकते थे..

by Pragya

चार दिन का मेला

October 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो जाते-जाते एक सबक सिखा गया
कि कोई किसी का नहीं होता
और कोई किसी के लिए नहीं रोता
चार दिन का मेला है ये जिन्दगी
ना कोई किसी के साथ जाता
ना कोई किसी का साथ है देता..

by Pragya

वह पत्थर तोड़ती थी

October 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वह पत्थर तोड़ती थी
पर दिल की कोमल थी
अपने सीने से लगाकर
बच्चों को रखती थी
भूँख जब लगती थी उसको
तो बासी रोटियाँ पोटली से
निकाल कर खा लेती थी
पर अपने बच्चों को
छाती का दूध पिलाती थी
अन्न का दाना जब नसीब होता था
तो गाना गाते हुए भोजन बनाती थी
मेरी कविता का जो विषय बनी है आज
वो मेरे गाँव की काकी कहलाती थी…

by Pragya

तहे-दिल से शुक्रिया

October 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तहे-दिल से शुक्रिया !
मोहब्बत में जो रुसवा किया तुमने,
————————————————-
हम तो बर्बाद हो जाते जो थोड़ा प्यार दे देते…

by Pragya

आँसुओं को लिखती हूँ मैं

October 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारे लिए ही तो गजल,
नज्में लिखती हूँ मैं
मैं तो कुरान में भी
पढ़ती हूँ तुम्हें |
तुम्हें खो देने का खयाल
इतना तड़पा देता है मुझे
रात को जब भी आँख खुलती है
बस तुझी को ढूंढती हूँ मैं |
ये कविता ये गीत
सौगात है बस तुम्हारी
तेरी बेवफाई से ही तो
तुलसीदास बनी फिरती हूँ मैं |
लोग कहा करते हैं
मैं बहुत अच्छा लिखती हूँ
उन्हें क्या पता तेरा ही
दिया दर्द लिखा करती हूँ मैं |
सब करते हैं तारीफ मेरे
गीत, गजलों की
पर तेरी तालियों के साज को
तरसती हूँ मैं |
जब नहीं बनती है कोई
कविता मुझसे तो
तेरी गली में कदम रखती हूँ मैं |
लोग बेवजह ही मुझे
कवयित्री कहते हैं
तुझसे ही दर्द पाकर
आँसुओं को लिखती हूँ मैं |
*********************

by Pragya

बहाने ढूंढते हैं हम

October 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तुमसे दूर जाने के बहाने बहुत हैं साहब!!
————————————————-
पर तुम्हारे पास आने के बहाने ढूंढते हैं हम

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