by Pragya

क्या लिखूँ…!!

October 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज सोंचती हूँ क्या लिखूं
दर्द लिखूं या मोहब्बत का उन्माद लिखूं
चैन लिखूं या बेचैनी लिखूं
तेरे इश्क में फना होने का
अफसाना लिखूं
गजल लिखूं या कि तुझ पर गाना लिखूं
लिखूं अपने दिल की हकीकत
या तेरी रुसवाई लिखूं
क्या लिखूं ? क्या लिखूं ?
कुछ भी समझ आता नहीं…

by Pragya

अंधेरा

October 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

चारों तरफ अंधेरा छाया है
मेरे पीछे ये किसका साया है
डर लगता है मुझको ले लो अपनी बाँहों में
कई सालों बाद ऐसा मौका आया है

by Pragya

सुविचारों का पिटारा (२)

October 15, 2020 in Other

आबाद होने के लिए दोस्ती अच्छी है,
——————————————-
बर्बाद होने के लिए एक तरफा मोहब्बत |
****************************

by Pragya

“सुविचारों का पिटारा”

October 15, 2020 in Other

पुरुष नारी से हर एक क्षेत्र में पीछे है
देने में भी और लेने में भी|
कैसे??
—————————————
नारी ममता, प्रेम और त्याग देती है अपने रिश्तों को बनाए रखने के लिए….
पर वही नारी जब आक्रोश में आती है तो
बदला लेने में भी पुरुष से अधिक निर्दयी हो जाती है|
“इतिहास गवाह है इस बात का”
तो हो गया ना लेन-देन !
अब पुरूषों को तय करना है कि वह स्त्री को किस रूप में पाना चाहते हैं…

by Pragya

प्रज्ञा के सुविचार

October 15, 2020 in Other

खूबसूरती चकाचौंध में नहीं
मन में होती है
इसीलिए कभी कोई
चीज बहुत खूबसूरत लगती है
तो कभी वही चीज बुरी भी लगती है…
—————————————-
आपने देखा होगा जब भूख ना लगी हो तो
छप्पन भोग भी अच्छा नहीं लगता
पर जब जोर की भूख लगती है तो
कंकड़-पत्थर भी बहुत स्वादिष्ट लगते हैं
स्वाद आने के लिए खाना नहीं
भूख अच्छी होनी चाहिए…

by Pragya

मीठी बातें

October 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हम उऩ पलों को याद करते हैं
खाली-खाली जब अपने दिल को
पाते हैं..
बरस पड़ता है आँखों से पानी
जब तुम्हारी मीठी बातों को
याद करते हैं..

by Pragya

नाकामयाबी

October 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तुम हरकतों से कहाँ बाज आओगे
जब जी चाहेंगा
मुझको सताओगे..
सारी मजबूरियां समझते हो मेरी
फिर भी मेरी नाकामयाबी का
फायदा उठाओगे..

by Pragya

“हमदर्द का दर्द”

October 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कितना लिखती हो
वो ये कहते रहते हैं
सावन पर क्यों रहती हो
बस यही बोला करते हैं
इतनी कविताएं तुम्हारे
मन में कहाँ से आती हैं
जब बैठती हो तन्हा
तो कविताएं कैसे बन जाती हैं
पूँछ-पूँछकर तंग कर रहे थे
वो मुझको पका रहे थे
कविता मैं लिख रही थी
वो मोबाइल लेकर भाग रहे थे
आया गुस्सा मुझे जोर से
आँखें दिखलाकर चिल्लाई
जो मन में आया वो बोला
गाली भी उनको दो-चार सुनाई
फिर बोली:- सुन लो ‘पतली कमर’
मैं कविताएं कहाँ लिखती हूँ
मैं तो तेरा ही दिया हर दर्द लिखती हूँ|

by Pragya

गमों की नुमाइश

October 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जरूरी नहीं हम अपने
गमों की नुमाइश करें
जो दिल में है
वो जग जाहिर करें
जिसे समझना है मेरी तकलीफों को
वो यूँ ही समझ सकता है
मापने के लिए मेरा दर्द
मेरी कविताएं पढ़ सकता है|

by Pragya

मुट्ठी भर सामान***

October 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज लॉकडाउन खत्म हुए
तमाम दिन हुए
और आज मैं इतने
महीनों बाद बाजार गई
कुछ कपड़े खरीदने
बाजार पहले की तरह ही
सजा था
लग ही नहीं रहा था कि
कोरोना भी चला रहा था
सब व्यस्त थे
अपने-अपने में सब लगे थे
चाट, मटर, बताशे खूब बिक रहे थे
हलवाई तो सेठ लग रहे थे
कपड़ों की दुकानों पर भी
खचाखच भीड़ लगी थी
चूड़ी, बिंदी, लिपस्टिक भी
खूब बिक रही थी
सब्जी, फल वाले भी
आवाज लगा रहे थे
खरीददार भी उनसे
भाव-ताव कर रहे थे
मैं जब अपनी जानी-पहचानी दुकान पर
खस्ता खा रही थी
एकाएक मेरी नजर
एक बाबा पर गई
वो फुटपाथ पर डमरू बजा रहे थे
कोई उनकी दुकान पर भी
नजर डालेगा भगवान से
मना रहे थे
उनकी छोटी-सी दुकान पर
मुट्ठी भर सामान था
एक भी ग्राहक ना था
भरा-पूरा बाजार था
मेरा दिल भर आया
मन में सोंचा ये क्या कमाते होंगे
अपने घर का खर्चा कैसे चलाते होंगे !
मैं गई और भावुक होकर
पूँछा उनका हाल
वो बोलते-बोलते रूक गये
उनकी आँखों में भर आये अश्क अपार
मैंने खरीद लिया सब कुछ
कर दिया उन्हें खाली हाथ
कुछ गाड़ी थीं कुछ घोड़े थे
और तमन्चे, गुब्बारे थे
वो बाबा खुश थे और मेरा मन भी
मैं अपने घर वापस चल दी
कुछ खरीदने गई थी पर कुछ ना खरीदा
कुछ दुआएं और कुछ खिलौने लेकर
वापस आ गई
सच कहूँ अब मैं खुश हूँ, शान्त हूँ
कुछ भी खरीदने का मन अब नहीं है
पहली बार मैं बाजार करके तृप्त और संतुष्ट हूँ..

by Pragya

“अमावस का अंधेरा”

October 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मन खिन्न है मेरा
तेरी बेवफाई से
रो रहा है अम्बर भी
धरती की जुदाई से
बेबस हैं पत्ते सूखकर
मिल गये धरती में टूटकर
ग्लानि में मर रहा है
विरह का दुःख तो
वृक्ष भी सह रहा है
तप रहा है सूरज भी देखो
आसमां की बेरुखी पर
चाँद को सिर पे चढा़कर
चाँदनी में नित नहाकर
अम्बर और सुंदर लग रहा है
प्रज्ञा शुक्ला’ स्तब्ध है
होंठों पर ठहरे लफ्ज हैं
प्रिय मिलन की बेला में
अमावस का अंधेरा* घिर रहा है..

by Pragya

यादों की परछाईं

October 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आँखों में जब उमड़ है उठता
बीता हुआ अतीत
फिजाओं में तब गूंज हैं
उठते भूले-बिसरे गीत
एक-एक कर स्मृति में
वो पल घुमड़-घुमड़
आ आते हैं
ना जाने अब कहाँ खो गये
वो पल वो मनमीत
यादों की परछाईं जब
धुंधली पड़ जाती हैं
महक उठते हैं सपने प्यारे
तरुणाई मुसकाती है
चल देती हूँ जब मैं
मीठे लम्हों की बारातों में
विरहिणी आँखों से
पावस मचल-मचल
बह जाती है…

by Pragya

‘सजदा’

October 14, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सजदा करते हैं हम इश्क का
इबादत यार की अपने
खुदा मान कर किया करते हैं
वो तो नसीब में नहीं अपने
उसकी यादों में जिया करते हैं

by Pragya

उमड़ते मेघ…

October 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिल में हैं मेघ उमड़ते
जब-जब तेरी यादों के
बरस पड़ें तब-तब पानी
ओ साजन ! मेरी आँखों से
रिमझिम-रिमझिम
रुनझुन-रुनझुन
झननन- झननन-झनन-झनन!
अब तो मोरे साजन आजा
कब से रस्ता देख रही
तेरी तस्वीरों से मैं तो
अपनी अँखियां सेंक रही..

by Pragya

“पीर मोहब्बत की”

October 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभी झाँककर देखो
मेरे दिल की गहराई

तुम भी रो पड़ोगे देख !
मेरे यार की रुसवाई

पीर मेरी मोहब्बत की
बस जानता है वो !

जिसने उम्र भर मोहब्बत में
फकत दिल पे चोट है खाई

by Pragya

गलत बात है..

October 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी

करें कितनी भी कोशिश
तेरे दिल में समाने की,

सोंचना ही गलत है
जगह तेरे दिल में बनाने की|

मार खाओगे मुझसे
बात ये सोंची जो तुमने,

मुझकों छोड़कर किसी और
की बाहों में जाने की |

by Pragya

‘जन्नत की हुकूमत’

October 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी

दीदार बिन यार के महफिल अधूरी है

हर किसी की प्यार बिन जिन्दगी अधूरी है

मिल जाए चाहे मुझको जन्नत की
हुकूमत भी !

मेरे यार के बिन प्यार के ये प्रज्ञा* अधूरी है||

by Pragya

**आत्मविश्वास की महक**

October 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मेरी सोंच में आत्मविश्वास की महक है
इरादों में हौसलों की चहक है
और नीयत में है सच्चाई की मिठास
इसीलिए मेरी जिन्दगी है एक महकता गुलाब..

by Pragya

तमाशबीन

October 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हम फिसले थे इस उम्मीद से
कि वो हमें उठा लेंगे..

हम डूबे थे दरिया में इसलिए
कि वो हमें बचा लेंगे..

नहीं पता था कि वो
तमाशबीन निकलेंगे

हमें मुसीबत में देखकर
बस मजा लेंगे..

by Pragya

दिल की बस्ती

October 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी

शिकवा करते-करते हम
तुझको हार बैठे हैं
पहले दिल हार बैठे थे
अब जान हार बैठे हैं
तुम्हारी बेवफाई से
हम अपनी बस्ती उजाड़ बैठे हैं

by Pragya

कहाँ है फुर्सत

October 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आजकल जिन्दगी देती
कहाँ है फुर्सत
बस जिम्मेदारियों के बोझ
तले दबी रहती हूँ
मिलता कहाँ है वक्त
खुद के लिए
बस कभी कभार
खुद को निहार लेती हूँ
जब याद आती है तेरी तो
दिल को सम्भाल लेती हूँ

by Pragya

दिल के मन्दिर में…

October 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम बेकार ही तुम्हें
अपना समझा करते थे
यादों में तेरी अक्सर
तड़पा करते थे
तुम तो हो दूजे की
बाहों का हार प्रिये!
हम तुमको अपना
दिलबर समझा करते थे
बुनते थे तुझको पाने के अरमां
ख्वाबों में भी तुझको
माँगा करते थे
देवता थे तुम प्रज्ञा* के
दिल के मन्दिर में
तुमको अपना मान के
पूजा करते थे…

by Pragya

कैसा ये इश्क है !!

October 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बहुत सोंचने समझने के बाद
मैं इस नतीजे पर पहुँची कि
तू मेरा नहीं हो सकता
और चाहे जिसका हो जाए
मैं तेरे सिवा किसी और की नहीं हो सकती चाहे दुनिया
इधर की उधर हो जाए..

by Pragya

कयामत हो ही जाती है..!!

October 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारे नाम से दिल में
एक हलचल-सी मचती है
तुम होते हो जब पास
शराऱत हो ही जाती है
लगा ले लाख कोई
अपने दिल पर पहरे
हो जब महबूब इतना
खूबसूरत तो
मोहब्बत हो ही जाती है
तेरी यादों की गर्मी से
तपा करती हैं ये साँसें
जब पास में मौजूद हो
चाँद-सा हमदम
कुछ हो ना हो लेकिन
कयामत हो ही जाती है…!!

by Pragya

इंसान कहाँ मानते हो तुम

October 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नहीं सोंचा था हमनें
इतना बैर मानते हो तुम
हम छिड़कते हैं जान तुम पर
और मुझे गैर मानते हो तुम
दूरियों से प्यार बढ़ता है
ये जमाने को कहते सुना करते थे
अब आया समझ में
मुझे क्या मानते हो तुम
बेकार ही है तुमसे दिल
लगाना मेरा
मेरे प्यार को प्यार
कहाँ मानते हो तुम
सबकी रखते हो खबर और
सबका खयाल
मुझको इंसान कहाँ मानते हो तुम…

by Pragya

“वो कॉलेज वाला लड़का”

October 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो कॉलेज वाला लड़का
परीक्षा में मेरे पीछे
बैठा करता था
बोलता कुछ भी नहीं था
पर छुप-छुप के देखा
करता था
सारी परीक्षाओं में
मेरी कॉपी से लिखता
रहता था
पढ़ता कुछ भी नहीं था
मेरे ही भरोसे रहता था
मैं भी ना जाने क्यों
परोपकार करती रहती थी
पलट के कॉपी के पन्ने
उसको दिखलाया
करती थी
मेरी कॉपी से टीपने
के कारण वह भी टॉपर
बन जाता था
मैं आती थी कॉलेज में फर्स्ट
वह भी सेकेण्ड आ जाता था
फिर मिल गई डिग्री और
हम दोनों हो गए अलग-थलग
वो अपने रस्ते और
मैं अपनी सड़क
फिर आयी टी.ई.टी की बारी
वो हो गया बेचारा फेल
मैंने फिर बाजी मारी
काश ! टी.ई.टी में भी वो
मेरे पास बैठा होता
वो भी मेरी तरह
69000 भर्ती में लटका होता !!
————————

by Pragya

कामयाबी का जुनून

October 12, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कामयाबी का जुनून है मुझे
फिर मुश्किलों की मजाल है
जो मुझे रोंक पाएं
मंजिल तक पहुँचने से…

by Pragya

***राम कसम***

October 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रह जाते हैं ख्वाब अधूरे
झूठे-मूठे वादों से
जब से तूने ये दिल तोड़ दिया
डर लगता है सबकी बातों से
चाँद ताक कर कटती हैं
जब से मेरी रातें
*राम कसम’* तबसे मुझको
डर लगता है रातों से…

by Pragya

‘मेरे चाँद की मुस्कान’

October 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बहुत दिनों बाद देखा
आज मैंने चाँद
मुस्कुरा रहा था,
लग रहा था खुश था !
आँखों में थी उसकी बदमाशियाँ
होंठों पर सजी थी खामोशियाँ
एक अर्से बाद
उसका दीदार हुआ
मुझे यूँ लगा के नया जनम हुआ
तरस गई हूँ मैं उसके दीदार के लिए
मन्नतें माँगती हूँ मैं उसके प्यार के लिए…

by Pragya

मेरी छोटी-सी गुड़िया

October 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

छोटी-सी है पर बड़ी शैतान है
उसी में बसती हर पल मेरी जान है
नादानियों पर उसकी
बड़ा प्यार आता है मुझको
मैं ही नहीं पूरा परिवार
प्यार करता है उसको
ना जाने कहाँ की
बोलती है वह भाषा
हो जाए झट से बड़ी
यही है हम सबकी आशा
बहुत प्यारी है मेरी छोटी-सी गुड़िया
लगती है जैसे हो आफत की पुड़िया

by Pragya

टूट जाते हैं रिश्ते

October 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी

फूल से कोमल होते हैं रिश्ते
हरी डाल की तरह लचीले
होते हैं रिश्ते
बहुत सम्भाल कर रखना
पड़ता है इन्हें
वर्ना शीशे की तरह टूट
जाते हैं रिश्ते..

by Pragya

खामोंश हैं लब

October 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कितना बोलता है दिल
पर तुम नहीं सुनते
मेरी धड़कनों की सदा
क्यों नहीं सुनते
खामोंश हैं लब मेरे
कुछ मजबूरियां हैं इसलिए
वरना ऐसा नहीं है कि
तुमसे प्यार हम नहीं करते…

by Pragya

खत में रखे गुलाब…!!

October 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारा खत
*********************
तुम्हारा खत पढ़ ही रही थी कि
भाभी आ गईं
खत तो छुपा लिया पर
खत में रखे तुम्हारे दिए गुलाब
गिर पड़े पलंग पर
इससे पहले भाभी देखें
उन्हें बातों में भरमाया
अपने दुपट्टे के अन्दर
फूलों को तुरंत छुपाया
“ओ भाभी ! आज तो आपका चेहरा
बहुत चमक रहा है
क्रीम का है कमाल या
एल.ई.डी. लाईट का इफेक्ट पड़ रहा है”
भाभी मुसकाने लगीं और
मन ही मन शरमाई
कुछ इस तरह उस दिन बुद्धी से मैंने
अपनी जान बचाई….

by Pragya

“एक और परीक्षा”

October 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

खत्म हुई अाज जिन्दगी की
एक और परीक्षा
फिर जीत गई मैं
हमेशा की तरह
अब परिणाम की प्रतीक्षा भी नहीं
क्योंकि स्वयं की मेहनत पर
अटूट विश्वास है
परीक्षा का अनुभव कैसा भी
रहा हो पर
परिणाम तो अच्छा ही होगा
मेरा दिल मुझसे कहता है प्रज्ञा !
एक दिन ऐसा भी आएगा जब
तेरे कदमों तले जहान होगा..

by Pragya

**स्वयंवर**

October 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सीता सम हो स्वयंवर
हर नारी को मिले
अपना वर चुनने का अधिकार
तभी तो बनेगी राम-सीता की जोड़ी..

परिवार ढूंढ लाते हैं रावण-सा
दामाद और भेज देते हैं संग में
अपनी दुलारी
कैसे रहेगी ? कैसे निभेगी ?
जब मिलती नहीं है जरा भी सोंच दोनों की
आखिर दुलारी
होती है प्रताड़ित झेलती है जीवन भर
रावण को या फिर
छोंड़ जाती है बेबस हो दुनिया बेचारी…

लड़के की खातिर ढूंढ लाते हैं
शूर्पनखा-सी पत्नी
और बनाते हैं उसे अपने घर की लक्ष्मी
वो तो बेटा ही जानता है
कैसे कटती हैं उसकी रातें
किससे कहे वह
अपने दिल की बातें…

by Pragya

**डोली अरमानों की**

October 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अनगिनत सपनें लेकर
बैठी थी डोली में
कैसे होंगे ससुराल वाले
यह प्रश्न उठा करता था मन में
विदा होकर परिजनों से
पिया संग चल दी
मेरे अरमानों की डोली भी
मेरे साथ चल दी
मेरे सपनों को मेरा पति ही
पूरा करेगा
जिस डगर चलूंगी
मेरा साथ देगा
बसाऊंगी घर मैं उसके दिल में
कोई ना होगा संग
पर पिया साथ होगा
जब आई ससुराल तो
एक-एक करके
टूटते नजर आए सपनें
रोई मैं फूट-फूट करके
जो डोली अरमानों की
साथ आई थी मेरे
उठ गई अर्थी उसकी सदा के लिए!!

by Pragya

*मेरा प्रण तो भीष्म प्रतिज्ञा है*

October 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

है सपना कुछ कर जाने का
दुनिया में छा जाने का
बेमोल जिन्दगी को
अनमोल बना दिखलाने का
हैं मुट्ठी भर अरमान मेरे
जग में छा जाने का
कौशल है
यदि ठान लिया कुछ करना है!
तो मेरे कदमों नीचे भूतल है
प्रज्ञा’ नहीं है यूँ ही नाम मेरा
मुझमें सचमुच प्रज्ञा है
जो ठाना करके दिखलाया
मेरा प्रण तो भीष्म प्रतिज्ञा है….

by Pragya

“कचरापार्टी”

October 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

उसकी आवाज सुनकर
आँख खुल जाती हैं
उनींदी आँखों में ही
उठ पड़ती हूँ बिस्तर से
धड़कनें तेज और तेज हो जाती हैं
रात होती है ब्रह्म मुहूर्त में मेरी
उठने में दोपहर हो जाती है
पर जब से आने लगी है
कचड़े वाली गाड़ी
मेरी नींद हराम हो जाती है
अजान की आवाज से खुल ही
जाती थी आँखें !
अब तो
नगरपालिका की गाड़ी भी
आ जाती है
“गाड़ी वाला आया घर से कचरा निकाल”
ये गाना लाउडस्पीकर पर रोज
बजाती है
मन आता है मार-पीटकर
उसी को कचरा बना दूँ
कसम से जब आँख खुल
जाती है
यूँ ही गर रोज गाड़ी आती रही
तो मैं पागल हो जाऊंगी
फिर तो सड़कों का कचरा
खुद ही बीनने लग जाऊंगी…

by Pragya

आशु कवि

October 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब कविता लिखने का कोई
मूड नहीं बन पाता है
मार सुड़ुप्पा चाय का प्यारे !
ये दिल आशु कवि बन जाता है
दो-तीन कपों में मैं तो पूरी
कविता लिख लेती हूँ
पाँच कपों में खण्डकाव्य और
निबंध का सृजन कर लेती हूँ
यदि होती कोई टेंशन है तो
चाय का सुट्टा मार के मैं
खुद को टेंशन फ्री कर लेती हूँ
यदि पी लूँ पच्चीस प्याला चाय
तो टोन में फिर आ जाती हूँ
महाकाव्य लिखकर ही मैं
नशे से बाहर आती हूँ…

by Pragya

वो मेरा जीवनसाथी था….

October 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे सुंदर चेहरे और मीठी आवाज
पर टिका थे वो रिश्ते
जब आवाज घरघराने लगी
चेहरे पर झुर्रियां पड़ गईं
ढल गई जवानी
शाम-सी जब
दर्पण भी नजर चुराने लगा
तब टूट गये सारे रिश्ते
सब छोंड़ गये
मुझको मरते
तब दिया सहारा
जिन बाँहों ने
सहलाया जिसने हाँथों से
वह मेरा जीवनसाथी था
जो मेरे सुंदर चेहरे पर नहीं
सुंदर हृदय पर मरता था
उस समय समझ आया मुझको
ये जो सम्बंध होते हैं
वो सुंदर
हृदय और अटूट विश्वास पर
चलते हैं…..

by Pragya

‘कोरी जिन्दगी’

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरी तस्वीर को व्हाट्सएप पर देखा
आज मैंने कई सालों बाद
वो दौर याद आ गया
जब हम रात-रात भर
बातें किया करते थे
उन होंठों से काफी
पुराना रिश्ता रहा है मेरा
जो तस्वीर में खामोश
दिख रहे थे
आँखों में वो चमक भी नहीं थी
जो पहले हुआ करती थी
मैं तो सिमट ही गई हूँ
अपनी कोरी जिन्दगी में
पर तुम्हें क्या हो गया ?
बडे़ उदास नजर आ रहे हो !
वो प्यारी-सी हँसी कहाँ गई ?
जो कभी होंठों पर सजा करती थी….!!

by Pragya

मलिका***

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिन्हें हम प्यार करते हैं
नहीं इजहार करते हैं
देखते हैं उन्हें छुपकर
पर सामने जाने से डरते हैं
एक दिन पूँछ बैठे हम
किसी से प्यार है तुमको
वो बोले हाँ हम किसी
से किसी से प्यार करते हैं
आज तो उगलवा ही लेंगे हम
ये सोंच लिया हमने
पूँछा कौन है वो लड़की
क्या नाम है उसका ?
वो बोले:
जिसे हम प्यार करते हैं
नहीं बदनाम करते हैं
हमने बड़ी शिद्दत से
फिर पूँछा
कहाँ रहती है वो लड़की
और दिखने में है कैसी ?
वो बोले जाने कैसी है !
मुझे तो अच्छी लगती है
गोरी-सी है पतली-सी
है थोड़ी नकचिढ़ी लड़की
रहती है सीतापुर में
और करती है बी.टी.सी.
मेरे दिल की है मलिका
रोज ख्वाबों में आती है
लिखा करती है कविताएं
मुझे जी-जान से चाहे
करता हूँ बात जब उससे
तो टेसू ही बहाती है
खुद को ही अपनी वो
सौतन समझती है
अपने आप को ही वो
सौ गाली बकती है
मुझे प्यार है किसी और से
वो इस गलतफहमी में
रहती है
मेरे प्यार का वो कहाँ
एहसास करती है
ना बोलूंगा कभी उसको
कि कितना प्यार है मुझको
देखता हूँ वो कब इस
बात को जान पाती है…

by Pragya

वो ज्वार है इश्क

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मर के भी ना खत्म हो
वो जुनून है इश्क
जी कर जो अधूरी रह जाए
वो कहानी है इश्क
तेरे-मेरे दर्मियां जो
रिश्ता है
उसका नामोनिशान है इश्क
बीच की खिड़की खोलकर
जो बातें होती हैं
उन बातों का बहाना है इश्क
रब होगा पर देखा नहीं
मेरे लिए तो मेरा भगवान है इश्क
नजरों से नजरें टकराने पर
जो होता है
वो एहसास है इश्क
मेरे होंठों ने जो ना कहा
मेरे कानों ने जो ना सुना
वो अल्फाज है इश्क
तेरे सामने आते ही जो मचती है
हलचल दिल में
वो ज्वार है इश्क
तेरे स्पर्श से जो रोंम-रोम
पुष्पित हो उठता है
उस बसंत की बहार है इश्क..

by Pragya

प्यार का इजहार

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अरमां हमारे कम नहीं
इरादों में भी दम कम नहीं
रोज सोंचते हैं आज तो कर देंगे
उनसे प्यार का इजहार पर
उनके सामने जाने की हिम्मत नहीं
खिड़की से देखकर खिड़की
बंद कर लेती हूँ
वो भी हमारे प्यार में पागल
कम नहीं
गर हो गई किसी और से शादी तो
इस जहान में रहेगे हम नहीं
मर जाएगे और रोज आएगे सताने
किसी सौतन को उनके पास
आने देगे हम नहीं
कितने भी भूत-प्रेत भगाने के
जतन कर लें वो पर
उनके शरीर को छोंड़कर
जाएगे हम नहीं…

by Pragya

हमारे दिल में रहते हैं

October 9, 2020 in शेर-ओ-शायरी

इरादे नेक रखते हैं
सभी को प्रेम करते हैं
वही दिल को दुःखाते हैं
जो हमारे दिल में रहते हैं

by Pragya

उसने कहा…!!

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

उसने कहा
बड़ा अच्छा लिखने लगी हो आजकल
मैंने कहा नहीं तो पहले भी
बेहतर लिखा करती थी
वो बोला हाँ
तो मैंने ऐतराज कब किया !
बस आज कुछ खास था तो
बता दिया
मैंने शर्माते हुए कुछ कहना चाहा
पर ना कहा
दिल बोल रहा था
पर होंठों ने कुछ ना कहा…

by Pragya

कौन कहता है…!!

October 9, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कौन कहता है कि दूरियाँ सिर्फ मीटरों में मापी जाती हैं
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कभी-कभी तो खुद से मिलने में भी एक उम्र बीत जाती है…

by Pragya

शब्द और सोंच

October 9, 2020 in शेर-ओ-शायरी

शब्द और सोंच दोंनो ने बढ़ा दिये फासले
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क्योंकि कभी हम समझ नहीं पाए और
कभी समझा ही नहीं पाए…

by Pragya

जिन्दगी के हर दौर का मजा लेती हूँ

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

छोंड़कर शिकायत बस
शुक्रिया अदा करती हूँ
जितना है पास बस
उसी का मजा लेती हूँ
जिधर से भी निकलती हूँ
मीठी मुस्कुराहट बिखेरती हूँ
जिन्दगी के हर दौर का
मजा लेती हूँ
अश्क देख ना ले कोई
मेरी आँखों में इसलिए
आँखों में ही छुपा लेती हूँ….

by Pragya

पानी:- जीवन का आधार

October 9, 2020 in मुक्तक

जीवन का आधार है पानी
हर मानव का प्राणाधार है पानी
चलो बचाए जीवन इसका
सृष्टि का दिया वरदान है पानी

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