ऐ बेदर्द सर्दी! तुम्हारा भी कोई हिसाब नहीं
ऐ बेदर्द सर्दी ! तुम्हारा भी कोई हिसाब नहीं।
कहीं मंद शीतल हवाएँ ।
कहीं शबनम की ऱवाएँ ।।
दिन को रात किया कोहरे का कोई जवाब नहीं।
ऐ बेदर्द सर्दी ! तुम्हारा भी कोई हिसाब नहीं।।
कोई चिथड़े में लिपटा ।
कोई घर में है सिमटा ।।
कोई कोट पैंट में भी आके बनता नवाब नहीं।
ऐ बेदर्द सर्दी,,,, ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,।।
रंग बिरंगे कपड़ों में बच्चे ।
आँगन में खेले लगते अच्छे ।।
दादा -दादी के पहरे का कोई हिसाब नहीं।
ऐ बेदर्द सर्दी ! तुम्हारा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,।।
रंग -बिरंगी फूलों की क्यारी।
पीले खेत सरसों की न्यारी।।
मटर मूंगफली गाजर के खाने का कोई जवाब नहीं।
ऐ बेदर्द सर्दी…………………………………………………।।
खोज रही है धूप सुहानी ।
जड़-चेतन व सकल प्राणी।।
एक सहारा जिसका सबको ऐसा कोई लिहाफ नहीं।
मन की गर्मी रख “विनयचंद ” ऐसा कोई ताव नहीं।।
ऐ बेदर्द सर्दी!…………………………………………………।।
सुन्दर
धन्यवाद
अति सुन्दर
धन्यवाद
Vry gud
Thanks
Kamal hai
Kavita bemisaal hai
धन्यवाद
बहुत ही सुंदर कविता है
धन्यवाद
Wow
Thanks
Good
Thanks
Welcome
Nice
Thank you
Previous collection mere yaar
Thanking lot of u
Accha h
धन्यवाद
सुन्दर रचना
धन्यवाद
Bahut bahut badhiya kabita