ओ रोशनी ! चली आ….
ओ रोशनी! चली आ
बीता तम
हुआ सवेरा
जगमग कर दे यह जग
ओ प्रकाशपुंज !
भर प्रकाश जीवन में
पुष्पों की लालिमा से
महक उठे यौवन
ओ रोशनी ! चली आ
बीता तम
हुआ सवेरा…
ओ रोशनी! चली आ
बीता तम
हुआ सवेरा
जगमग कर दे यह जग
ओ प्रकाशपुंज !
भर प्रकाश जीवन में
पुष्पों की लालिमा से
महक उठे यौवन
ओ रोशनी ! चली आ
बीता तम
हुआ सवेरा…
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ओ रोशनी! चली आ
बीता तम
हुआ सवेरा
जगमग कर दे यह जग
ओ प्रकाशपुंज !
भर प्रकाश जीवन में
पुष्पों की लालिमा से
महक उठे यौवन..
वाह प्रज्ञा जी श्लेष, उपमा, अनुप्रास तथा विशोक्ति अलंकार का सुंदर प्रयोग
प्रगतिवाद और आधुनिकता का अद्भुत समन्वय किया है आपने
बहुत ही सुंदर प्रोफेशनल रचना
आभार आपका
प्रेरणादायक रचना
धज
धन्यवाद
धन्यवाद
अति सुंदर रचना
धज
धज
धन्यवाद
धन्यवाद
अतिसुंदर रचना
धन्यवाद
ओ रोशनी ! चली आ
बीता तम
हुआ सवेरा……… . बहुत खूब, प्रातः काल की बेला का सुंदर चित्रण प्रस्तुत किया है प्रज्ञा जी ने अपनी कविता में
धन्यवाद आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूँ
शानदार प्रस्तुति
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