*कर्म*
कर्म ही जीवन का सार,
कर्म ही प्राणों का आधार
कर्म करते हुए हो इच्छा,
सौ वर्ष तक जीने की
कर्म नहीं तो इस दुनियां में
जीना है बिल्कुल बेकार
कर्म,परिश्रम नहीं हुआ तो,
जीवन में ना रुके बहार
कर्म पूजा, कर्म आराधना,
कर्म ही है तेरी साधना
कर्म ,परिश्रम कर मनुज तू
“गीता” की तो यही कामना..
*****✍️गीता
वाह वाह गीता जी, बहुत स्तरीय कविता है, कर्म ही जीवन है, कर्म के पथ पर अग्रसर राही जरूर मंजिल प्राप्त करते हैं। सादर अभिवादन
इस सुन्दर और उत्साह वर्धक समीक्षा हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद सतीश जी
सादर अभिवादन सर 🙏
बहुत खूब
शुक्रिया जी
बहुत अच्छा है👌
धन्यवाद ऋषि