“राजा दशरथ और श्रवण कुमार”
“राजा दशरथ और श्रवण कुमार”
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उठा लिया एक भारी बोझ-सा कंधे पर
अंधे माँ-बाप को तीर्थ यात्रा कराई
श्रवण कुमार सा हो लाल मेरा
यही दुआ करे हर माई’
राजा दशरथ गये आखेट को
समझे कोई जन्तु है भाई
मार दिया शब्द-भेदी बाण
जो श्रवण कुमार को जा लगा भाई
दौड़े सरपट, पछताये, रोये और गिड़गिड़ाये
गये लोटे में जल लेकर और श्रवण कुमार के हत्यारे कहलाये
दिया श्राप बूढ़े माँ-बाप ने
कहा- जिस प्रकार पुत्र वियोग में मैं मरा तू भी तड़प-तड़पकर मरेगा
होंगे तेरे चार सुत पर अन्तिम समय में कोई ना होगा
यह सुनकर धीर-अधीर हुए सूर्यवंशी दशरथ राजा
जब प्राण तजे पुत्र-वियोग में
तब कोई भी पुत्र पास ना था
राम-राम कह तजे प्राण
राजा दशरथ ने श्रापानुसार
एक था राजा वचनप्रिय,
एक था आज्ञाकारी श्रवण कुमार…
पौराणिक कथा पर बहुत सुंदर कविता
वाह प्रज्ञा जी काश!! ऐसा बेटा हर माँ बाप को मिलता। तो आज हमें माँ बाप के प्रति दु:ख भरी कहानी व कविता लिखना नहीं पड़ता। आपकी कविता उन अभागे बेटों के लिए है जो घर में गंगा रहते हुए भी काशी मथुरा तीर्थ करने को जाते है। माँ बाप के लिए बीवी बच्चों को छोड़ दे ज़माने में किसका मजाल है। अति उत्तम चित्रण किया है आपने। यदि सूत की जगह पूत होता तो और अच्छा होता ।दशरथ जी तो आदत से लाचार थे। शिकार करना पशु पक्षी के जान लेना घोर पाप ही तो है। आखिर उनको अपनी करनी का फल तो मिलना ही था। और उधर आज्ञा पालक संतान पा कर उन माता पिता का भी घमंड था। आखिर घमंड किसी न किसी विधि से नष्ट होना ही था।
बहुत सुंदर
बहुत सुन्दर रचना