शहीदों की होली
“एक ये भी होली है एक वो भी होली थी जो शहीदों ने खेली थी, देश को आज़ाद कराने की ख़ातिर…मेरी कविता 23 मार्च पर शहीद दिवस के उपलक्ष्य में शहीदों को नमन करती है…..”
रंगों का गुबार धुआँ बन कर,
उठ रहा है मेरे सीने में…………….
वो रंग जो ‘आज़ादों’ ने भरा था,
आज़ादी की जंग में,
वो रंग जो निकला था आँखों से,
चिनगारी में,
वो रंग जिससे लाल हुई थी,
भारत माता,
इन्हीं रंगों का गुबार धुआँ बनकर,
उठ रहा है मेरे सीने में…………….
रंग जो उपजे थे, उबले थे, बिखरे थे,
आज़ादी का रंग पाने,
वो रंग जो शहीदों ने पहने थे,
सीना ताने,
उन केसरिया, लाल, सफ़ेद, और काले रंगों को,
रंगों के उस मौसम को,
मेरा सलाम…..
उन नामचीन ‘आज़ादों’, बेनामी किताबों,
उन वीरांगनाओं, उन ललनाओं,
थोड़ी सी उन सबलाओं, हज़ारों उन अबलाओं को,
मेरा सलाम……
बंटवारे में जो बंट गईं, भूखे पेट दुबक गईं,
कोड़े खाकर भी जो कराह न सकीं,
कुएँ में कूद कर भी जो समा न सकीं,
उन हज़ारों आत्माओं को,
मेरा सलाम……..
इतिहास के गर्त से उकेर कर,
सिली हुई तुरपाइयों से उधेड़ कर,
निकाली गई, हमें दिखाई गई,
1947 में आज़ादी के दीवानों की,
होली की उस उमंग को,
‘शहीदों की होली’ की उस कहानी को,
मेरा सलाम…………..
स्वरचित ‘मनीषा नेमा’
nice
Thanks Seemaji
Good
Jai hind