संतोष
सुखी है आदमी कब
जब उसे संतोष है,
अन्यथा उलझन है
मन में रोष है।
जो मिला उस पर
नहीं कुछ चैन है,
इसलिए यह मन मेरा
बेचैन है।
गर मेरे मन में
भरा संतोष है,
चमचामते दिन
मधुर सी रैन है।
हो अगर संतोष
तन पुलकित है यह
होंठ में मुस्कान
मन में चैन है।
हरेक शब्द सटीक है।
भाव पक्ष भी प्रबल है।
अतिसुंदर रचना
“हो अगर संतोष तन पुलकित है यह
होंठ में मुस्कान मन में चैन है।”
बहुत ही खूबसूरत और सच्ची पंक्तियां ,कविता का शिल्प और भाव पक्ष बेहद मजबूत है । बहुत ही शानदार रचना
वाह माह के सर्वश्रेष्ठ कवि पाण्डेय जी की कलम से निकली शानदार कविता, यह निरन्तरता बनी रहे। वाह
बहुत ही उच्चस्तरीय कविता, यह सिद्ध करती है कि आप श्रेष्ठ कवि हैं। यूँ ही लेखन चलता रहे।
बहुत अच्छी कविता, श्रेष्ठ कवि सम्मान की अनेकानेक बधाइयाँ सर
बहुत उम्दा रचना है। काव्य के मानदंडों पर खरी उतरती उच्चस्तरीय रचना है यह। कम शब्दों में अधिक कहा गया है वाह।
बहुत सुन्दर
Beautiful poem
Nice lines