बहते पवन को किसने देखा?
न तुमने देखे न मैंने देखा।
बहते पवन को किसने देखा?
जुल्फ चुनरिया उड़ते जब जब।
बहती हवाएँ समझो तब तब।।
बादलों को जो चलते देखा।
बहते पवन को उसने देखा।।
न तुमने देखे न मैंने देखा।
बहते पवन को किसने देखा?
चहुदिश बजती एक सीटी-सी।
तन को ठण्ड लगे मीठी-सी।।
बृक्ष लता सब हिलते देखा।
बहते पवन को उसने देखा।।
न तुमने देखे न मैंने देखा।
बहते पवन को किसने देखा?
रोसैटी के ये भाव मनोहर।
शब्दों के एक हार पिरोकर।।
‘विनयचंद ‘ नित देखा।
न तुमने देखे न मैंने देखा।
बहते पवन को किसने देखा?
अरे वाह बहुत सुंदर रचना है
धन्यवाद बहिनजी
बहते पवन को किसने देखा? बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद धन्यवाद
nice
Thanks
मजा आ गया सर
शुक्रिया जी
अति सुन्दर।
धन्यवाद
बहुत ही अच्छी कविता है
nice poem
Bahut Khoob
“बहते पवन को किसने देखा?”सुन्दर भावाभिव्यंजना की गयी है, तत्सम, तद्भव और देशज शब्दों का सुंदरता से प्रयोग किया गया है, बहुत खूब,
आभार सहित धन्यवाद पाण्डेयजी
💯💯