सबका सुनो गौर से सुनो

सबका सुनो, गैर से सुनो अपनी निन्दा तुम ।
ये जो निन्दा करते लोग, ये तेरे दुश्मन नहीं ।
ये तो तेरे जिन्दगी के सूर्यताप है ।
जिनके उगने से प्रकाशमय होता सारा संसार है।।1।।

निन्दा करना निन्दक व्यक्तियों का कार्य है ।
अपनी निन्दा पे कभी परदा मत रखना नर तु ।
सोच-समझके हर कदम उठाना, यहीं तेरा सौभाग्य है ।
जगह-जगह पे अगर भी कठिनाई दिखे,
तो भी राहें बदलना पर मंजिल मत बदलना तुम ।
मान-हानि का भय भूलाके अपनी आदर्शों पे चलते रहना तुम ।।2।।

स्तुति-निन्दा के पीछे मत भागना नर तुम।
निन्दा से सीखन तुम स्तुति से सावधान रहना तुम ।
होते नहीं जग में सब नर एकसमान है।
सबसे हिलमिल रहना यहीं तेरा कर्म है।
अच्छाई-बुराई के चक्रव्यूह में मत फँसना तुम ।।3।।

होते नहीं हर नर पूर्ण है।
सबमें कुछ-न-कुछ थोड़ी-बस-कुछ गुण कम है ।
अच्छाई ग्रहण करना तुम हर नर से ।
बुराईयों से कोशों दूर रहना तुम ।
सबका सुनो, गैर से सुनों, अपनी निन्दा तुम ।।
कवि विकास कुमार बिहारी ।।

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