ख्वाहिश

तेरे कलाम में हर पहर पढ़ती रहती हूं तेरी हर नज्म में खुद को ढ़ूढती रहती हूं इक चाहत थी कि तुझसे किसी दिन मिलूं…

जिंदगी

गुजरती जाती है जिंदगी चुपके से लम्हो में छुपकर बहुत ढूढता हूं इसे, मगर कभी मिलती ही नहीं

तेरी आँखों के बिस्तर पर अपने प्यार की चादर बिछा दूँ क्या?

तेरी आँखों के बिस्तर पर अपने प्यार की चादर बिछा दूँ क्या? तेरे ख़्वाबों के तकिये के सिरहाने मैं सर टिका लूँ क्या? कर दूँ…

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