“जी कर गया”…….
जब भी मैं गया वहां पर, जी कर गया और लोग कहते है, की मैं शराब पी कर गया……! -देव कुमार
जब भी मैं गया वहां पर, जी कर गया और लोग कहते है, की मैं शराब पी कर गया……! -देव कुमार
कुछ ऐसे वक़्त बीता, मोहोब्बत की परख करते हुए गर्मी, सर्दी, और बरसात कब बीते, पता ना चला….! -देव कुमार
पकड़ न सही पर साथ चल सकते हैं, हम वक्त के पहिये के आस पास चल सकते हैं।। राही (अंजाना)
शर्तिया ऐसा कोई बन्धन नहीं था जो मुझे बाँध पाता, मगर तेरी जुल्फों से मैं अपनी ये शर्त हार गया।। राही (अंजाना)
शब्दों की दुनियाँ का कोई साहिर मिले तो बताना, किसी राह में मिल जाए गर वो ताहिर तो बताना।। राही (अंजाना)
गर दिल नहीं होता तो ये दरार कहाँ होती, मेरे जिस्म और रूह के बीच दीवार कहाँ होती।।। राही (अंजाना)
बहुत कम वक्त लगा मुझे मकाँ मेरा बनाने में, मगर एक मुद्दत लगी मुझे उसे घर बनाने में।। राही (अंजाना)
चलो चल कर आज तुम्हारा दिल देख लेता हू, के एक अररसे से तुम मोहोब्बत के मरीज हो…..! -देव कुमार
चलो ये किस्सा भी आज खत्म करो साहिब, तुम हमारी मोहोब्बत दे दो, हमसे अपने गम ले लो……!! -देव कुमार
किसी ना किसी का साथ तो मिलना ही था हमको….! गम मिला, तन्हाई मिली, तुम ना मिले तो ना सही…..! -देव कुमार
दुनिया मे ना जाने कितने गम है साहिब हमारा गम कोई, अनोखा तो नही…..!! -देव कुमार
कुछ बातें मोहोब्बत की भी कर लो साहिब, के शिकवों का सिलसिला तो चलता ही रहेगा……!! -देव कुमार
कुछ तो पल बिता अब तो मेरे साथ तू ज़ालिम के तेरी आगोश में दम निकले, बस यही खुवाईश हैं मेरी….!! देव कुमार
ये गमो की दौलत तेरी अधुरी मोहोब्बत ने बक्शी हैं वरना हम क्या थे, हमारी ज़िन्दगी क्या थी, और हमारी सक्शियत क्या थी…..!! देव कुमार
आ कर हमारे दिल मे, जो आप मुस्कुरा गए खुशी का ठिकाना ना रहा, सारा गम आप भुला गए……!! देव कुमार
रिस्तों का ख़याल रखना ज़िन्दगी का उसूल हो जाता है के ये मोहोब्बत ही है साहीब, कभी कभी बेउसूल हो जाता है….!! देव कुमार
क्या बेच कर हम तुझे खरीदे ए ज़िन्दगी सब कुछ तो गिरवी पड़ा है, मोहोब्बत के बाजार मे…..!! देव कुमार
ये दिल के विराने मे आज ये शौंर कैसा आभास किसका इस मय के पेमाने मे ये कैसे बदली आज मौसम की नजरें क्या बरसा…
बेशक खुशबू से भरा होगा मेरे दोस्त तेरा सनम, मगर मुझे तो माँ का मैला आँचल ही सुहाता है।। – राही (अंजाना)
जब किसी ने ना देखा एक नज़र मुझे पलटकर, तब आइना भी रो दिया मेरा चेहरा देखकर।। – राही (अंजाना)
होंठो पर झूठी हंसी और आँखों में नमी लिए बैठी थी, वो अंदर से हजार बार टूटकर भी बाहर से जुडी बैठी थी।। राही (अंजाना)
जो उड़ रहे थे परिंदे बेख़ौफ़ खुले आसमाँ में, आज उस खुदा ने उन्हें ज़मी का मुरीद कर दिया॥ – राही
जब बात करो तो बातों से बातें निकलती हैं, उलझी हुई राहों से सुलझी राहें निकली हैं।। – राही (अंजाना)
ताल्लुक संस्कृति से अपना वो खुल के दिखाती है, बेटी इस घर की जब गुड़िया को भी दुप्पट्टा उढ़ाती है।। राही (अंजाना)
इक लौ जलाकर आया हूं अंधेरों में कहीं ख्वाहिश है के वो कल तक सूरज बन जाये
तेरे कलाम में हर पहर पढ़ती रहती हूं तेरी हर नज्म में खुद को ढ़ूढती रहती हूं इक चाहत थी कि तुझसे किसी दिन मिलूं…
मोबाइल की उपस्थिति में किताबों की अनुपस्थिति लग रही है, जिंदगी छोटे से गैजेट्स में डिजिटली कैद लग रही है।। – राही (अंजाना)
सवाल जीत का है या हार का न मालूम राही, मगर जिंदगी तो हर पल जंग सी लगती है।। – राही (अंजाना)
माना के आँसूओ में वजन नहीं होता, पर एक भी जो छलक जाए तो मन हल्का हो जाता है।। – राही (अंजाना)
तुम्हारे जाने से ज़िन्दगी उलझ सी गई है, तुम्हारे साथ में कुछ तो सुलझा सा था।। राही (अंजाना)
यूँ तो हल्की सी है ज़िन्दगी, वजन तो बस ख्वाइशों का है।। राही (अंजाना)
अँधेरे और रौशनी का कोई मलाल नहीं रखता, मैं ‘राही’ अपने दिल में कोई सवाल नहीं रखता।। राही (अंजाना)
मैं उसकी तलाश में हुँ जिसकी तलाश ” मैं ” हुँ… – राजनंदिनी रावत
कोई दीवाना कहता है हमको, कोई पागल करार देता है ये इश्क है महरबान हमपर, हरपल बेशुमार देता है
जब एहसासों को शब्दों में उतार न सकी मेरी कलम, तब स्याही की हर बून्द ने मिलकर तेरी तस्वीर बना ली।। राही (अंजाना)
इक दास्तान है दबी दिल में कहीं कोई सुने तो हम सुनाये कभी|
नेट के इस ज़माने में ऐ ” प्रेम ” ख़ुद ही तुम इक किताब हो जाओ …. पंकजोम ” प्रेम “
मेरे हर ख़्वाब पर तेरा ही पहरा है। अब कोई और इनका पहरेदार नहीं।
Jo log mujhe samhte hai, Unhe mujhse safai chahiye nahi…. Or jo log mujhe samjhte hi nahi, Unhe safai dene ka koi fayda bhi nahi….
वो परछाईं सा साथ चलता रहा है, कभी दिखता तो कभी छिपता रहा है, दिन के उजाले की शायद समझ है उसको, तभी अंधेरे में…
गुजरती जाती है जिंदगी चुपके से लम्हो में छुपकर बहुत ढूढता हूं इसे, मगर कभी मिलती ही नहीं
इक फरियाद थी मेरे दिल की आरजू थी इक दबी दबी सी सब अधूरी ही रह जायेंगी कह कर गया था वो अभी
सारा का सारा सागर हो , फिर भी , प्यास अधूरी । अगर भाग्य में प्यास लिखी , यह.किस्मत की मजबूरी। जानकी प्रसाद विवश
तेरी आँखों के बिस्तर पर अपने प्यार की चादर बिछा दूँ क्या? तेरे ख़्वाबों के तकिये के सिरहाने मैं सर टिका लूँ क्या? कर दूँ…
प्यार की कैद से रिहाई रव करे न कभी । इश्क की रिहाई से ,मौत भली होती है । – जानकी प्रसाद ‘विवश’
“दरारें दिल की” ******** दरारें दो दिलोंकी दिख न जायें, दुनिया वालों को। प्यार से पाट लो, कहीं प्यार न बदनाम हो जाए ।
आप जैसे, प्यारे मित्रों से जीवन सुहाना होता है। न चाह कर भी, जीवन जीने का बहाना होता है। जानकी प्रसाद विवश
लफ्ज ही है जो कतराते है कागज पर उतरने से वरना अहसासो का दरिया तो साथ लिये फिरते है
बन्द पिंजरे से उड़ जाने का अरमान लिए बैठे हैं, कुछ परिंदे अपनी आँखों में आसमान लिए बैठे हैं, बनाये थे जो कभी रिश्ते इस…
खुद ही से खुद ही के परिचय की तलाश में, लोग भटकते हैं दरबदर कस्तूरी की तलाश में, यूँ तो तय हैं सभी किरदार कहानी…
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