Anu
अंधों में काना राजा
July 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
हावी होने लगता
हैं कुछ थोड़ा पाकर ही
चाहे वो धन/पद/शोहरत हो,
कमतर को
पांव की जूती समझ
अभिलाषा करता हैं
राज्य करने की,
और
विपन्न व्यक्ति अपने
अधूरेपन को गाता हुआ
अन्तस की कांति को
पहचाने बिन
बिठा लेता हैं
सिर आंखों पर
साबित कर देता है
अक्षरश: सत्य
“अंधों में काना राजा”….
सुधार के लिए सुझाव का स्वागत है।
राहें
June 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
जब राहें कंटकित व वीरान हो,
और कोई ना तेरे साथ हो,
तब तुम व्यथित होना नहीं,
हिम्मत मन की खोना नहीं,
जब होता कोई पास नहीं,
तब होता हैं वो आसपास कहीं,
एहसास करो अपनी श्वासों में,
छू लो उसको अपने ख़्यालों में,
जब जग के नाथ होंगे साथ तेरे,
तब उसके हाथ होंगे सर पर तेरे
फिर सूनी राहें ना डरायेंगी,
पथ से भ्रमित ना कर पाऐंगी।
-अनु सिंगला
सुधार के लिए सुझाव का स्वागत है।
एक पहेली
May 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुम एक पहेली सी लगती हो
समझ ही नही आती हो
जब मैं खुश होती हूँ
तुम दूर खड़ी मुस्कुराती हो
जब मैं पीड़ा में होती हूँ
तुम धीरे से कंधा सहलाती हो
जब खुद को दर्पण में देखती हूँ
बहुत बार तुम से ही मिल जाती हूँ
जब भाई बहन से मिलती हूँ
तेरी ही परछाई को छू लेती हूँ
जब अपने बच्चों को प्यार करती हूँ
खुद को तेरी ममता में लिपटा पाती हूँ
जब विपदा में खुद को पाती हूँ
तेरी दी शिक्षा से ही आगे बढ़ पाती हूँ
हर पल अंग संग रहती हो
फिर क्यो बातें अधूरी रह जाती है
दिल में कसक अनोखी उठती है
खबावों में भी वीरानी सी बहती हैं
तभी तो पहेली सी लगती हो
समझ ही नहीं आती हो।।
कटघरे में हर शख्स
April 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
कटघरे में खड़ा
है हर शख्स
आज…
कुदरत पूछ रही
है कई सवाल
आज…
काबिल है क्या
कोई हम में से
जवाब जो
दे सके
आज…
काटी वही
शाख हमने
जिस पर आराम
फरमाया था तलक
आज…
फिर भी किसी
चमत्कार की
आस लगाऐ
बैठा है मानव
आज….
करिश्मा कोई
होगा नहीं
मानव को ही
करना होगा प्रयास
आज….
मानवता का फर्ज
निभाने,प्रकृति
का कर्ज
उतारने का
वक्त आया है
आज….
भोर
April 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
भोर होती है
हर रोज
बहुल के लिए
आशा की
एक किरण लेकर
नऐ विचार
नई ख्वाहिशें
नई चाह
नई भूख
जो होती है
पद-प्रतिष्ठा
धन- दौलत
वस्तुओं
संबंधों
को समेटने की…
बहुल के होती है भोर
बस वही प्राचीन
एक चिर-परिचित
भूख लिए
रोटी की…..
रंग
March 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
हे रंगरेज़
बावरी मत समझ लेना
बात बार-बार दोहरांयू तो
यह अदा है इज़हार की
मुकम्मल नही हूँ,
हूँ कुछ अधूरी सी
रंग दोगे जो अपने रंग में
इबादत पूर्ण हो जाएगी।।
पतझर
March 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
आंखे तेरी सब कह देती है
हाले दिल बयां कर जाती है
जो कह नही पाते हो जुबान से
वही दर्द वो चुपके से बता जाती है
संगी बिन जीना कितना मुश्किल
दिल का आर्तनाद सुना जाती है
जो प्यार तुम जीवन भर बता ना सके
उसी प्रीत की चुगली कर जाती है…
उसने जताया पल-पल प्रेम,
मांग दुआ,
व्रत-उपवास रख
वो भी जुबान से कुछ ना कहती थी….
वो जीवित है भीतर तेरे,
चलती है श्र्वासो की तरह,
यह तेरे अश्रुरहित भीगे नयन,
गूंजती दबी सी हंसी
तभी तो पतझर से लगते हो।।
चला चली का मेला
February 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
आखिर इक दिन सबको जाना है
यह जग चला चली का मेला है
यहाँ किसी का नही ठिकाना है
फिर किस बात का घबराना है
बस इतना सा हमारा अफ़साना है
आख़िर इक दिन सबको जाना है
ना कुछ संग आया था,ना जाना है
कर्मो ने ही अपना फर्ज निभाना है
पाप पुण्य की गठरी बांध उड़ जाना है
पांच तत्व की काया को मिट्टी हो जाना है
आखिर इक दिन सबको जाना है
आत्मा को आवागमन से मुक्त कर क्षितिज पार जाना है
कुछ प्रतीक्षारत तारों को एक बार गले लगाना है
फिर मोह माया की डोर तोड़ रूहानी यात्रा पर जाना है
आत्मा को परमात्मा में विलीन हो जाना है
आखिर इक दिन सबको जाना है।
मै हूँ ना
February 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
आज valentine’s day है
मौसम मनचला सा हो रहा है
हर और इश्क खिल उठा है
याद कर रही हूँ
खूबसूरत लम्हों को,
नही, मुझे नही याद आ रही
वो कपड़े, गहने, फूलों की
लम्बी फेहरिस्त….
झंकृत कर रहे है मुझे
वो बेशकीमती पल
जब-जब रूह से रूह
का एकाकार हुआ,
भीड़ में तुम्हारा धीरे से
मेरा हाथ थाम लेना,
घबरा जाना मेरे बीमार होने पर,
समझ जाना अनकही
मेरे मन की बात को,
और मौन नज़रों से
तुम्हारा यह कहना
“मैं हूँ ना”
कर देता है पूर्ण
हमारी प्रेम कहानी को।
रसोई घर में खलबली
February 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
आज कल रसोई घर में खलबली सी मच रही है
चाय और काफ़ी रहती थी सगी बहनों सी
ग्रीन टी आकर सौतन सी अकड़ रही है
आज कल रसोई घर में खलबली सी मच रही है
दूध,दही,छाछ की बहा करती थी नदियां
स्मूदी,माॅकटेल रंगीन बोतलों में बंद रंग जमा रही है
आज कल रसोई घर में खलबली सी मच रही है
मक्खन और घी से महकता था आंगन
चीज़ और म्योनीज चिकनी चुपड़ी बातें कर भरमा रही है
आज कल रसोई घर में खलबली सी मच रही है
दाल,रोटी सब्जी,चावल,पापड़ अचार से सजती थी थाली
पिज्जा, बर्गर, चाइनीज थाली से छेड़खानी कर रही है
चम्मच और छुरी-कांटे में थोड़ी तनातनी चल रही है
आज कल रसोई घर में खलबली सी मच रही हैं।
सोच समझ के बोल
January 21, 2021 in Other
सोच समझ के बोल रे बंदिया
सोच समझ के बोल
जो तु बोले, तेरा पीछा ना छोड़े
मांगे हर अल्फाज़ अपना हिसाब
मान-अपमान दिलवाते, दिखलाये संस्कार
यही बनाए तेरे वैरी यही बनाए यार
सोच समझ के बोल रे बंदिया
सोच समझ के बोल
छलकेगा प्यार तेरा जिन अल्फाज़ों से
वो तेरा दामन खुशियों से भर देंगे
करेगा क्रोध जब तु इन्ही अल्फाज़ों से
फिर पीछा ना छूटे दर्द भरी तनहाईयों से
सब सच है कहते
सोच समझ के बोल रे बंदिया
सोच समझ के बोल ।
लोहड़ी का त्यौहार
January 13, 2021 in Other
आजो सारे, आजो सारे ,रल मिल लोहड़ी पाइऐ,
दुल्ला भट्टी दा गीत गा,विहड़े विच अलाव जलाइऐ,
मूँगफली,गच्चक,रेवड़ी खाइऐ ते सबनू खवाइऐ,
मक्की दी रोटी, सरसों दा साग,खीर बनाइऐ,
पतंग उड़ाइऐ,नवी फसल दी खुशी मनाइऐ,
शगुनां वाला त्यौहार है आया,नच टप धूमां पाइऐ।
जिंदगी इक तमाशा
January 8, 2021 in Other
जिंदगी इक तमाशा है
तमाशा वेखण आया ऐ बंदिया तु
वेख जी भरके ज़माने दे रंगां नु
पर किसे दा तमाशा बनावी ना
ते आपनां भी विखावी ना।
मृग मरीचिका
January 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
वो छत क्या
अचानक गिर गई
गिरी नही
ऐसा कहो गिराई गई
नींव संवेदनहीनता की
रेत लालच की
ईंट भ्रष्टाचार की
सीमेंट बेईमानी का
माया का जाल बिछा
मूल्यों को तिजोरी में बंद
इंसानियत को दफना
निर्माण ……..
नहीं बस ढांचा खड़ा किया
जनता है तो मोल चुकता
करने को
जो चुकाती हैं कीमत
इन्सान होने की
एक सांस अधिक
ना ले पाओगे
फिर किस मृगमरीचिका
में गठरी बांध रहे हो
इस हादसे के बोझ के
गट्ठर को छोड़ ना पाओगे ।
2021
January 1, 2021 in Poetry on Picture Contest
उठती रहेगी
इक लहर
सागर से निरंतर
जो समाहित कर लेगी
हर पीड़ा
जो दी बीते वर्ष ने
हर बार होगी
इक नईं हिलोर
जो देगी हौंसला
सतत् नवीन
जीवन जीने की
नववर्ष में।
2021 शुभ शगुन
December 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आ रहा है दौ हजार इक्कीस का नव वर्ष
करते हैं हम दिल से अभिनंदन बार-बार
इक्कीस अंक होता है प्यारा सा शगुन
आना तुम हर जीवन में शुभ शगुन रूप धार
पग पैंजनीया बांध आना हर जीवन में रूप नव्य धार
उमंग,उल्लास,उम्मीद लाना जैसे नव शिशु मारे किलकार
वसुधा पर फैले हर और ऐश्वर्य अपार
मेहनत,हिम्मत,जुनून बन छाना जैसे तरुणाई मारे ललकार
हर परिवार में आना बन तीज-त्यौहार
सफलता, स्नेह, सम्मान सर्व को जैसे गुरु पाऐ सत्कार
विश्व में भाईचारा हो, विस्तृत हो शुभ विचार
भय,विपदा,कोरोना पर तुम करना सिंह सा प्रहार
विदाई बेला सब कहे ना जा मेरे यार
आ रहा है दौ हजार इक्कीस का नव वर्ष
करते हैं हम दिल से अभिनंदन बार-बार।
वक़्त की ताकत
December 28, 2020 in Other
बीत जाएगा यह वक़्त भी
वक़्त कभी थमता नही
अगर थमता तो वक़्त कहलाता नही
एक दिन यह वक़्त इतिहास बन जाएगा
इतिहास दोहराया जाता है
इतिहास दोहराया जाएगा
वक़्त कभी थमता नही
यह वक़्त भी बीत ही जाएगा
यह इतिहास सदियों की विरासत कहलाएगा।
कृष्णा भजन
December 23, 2020 in Other
कृष्णा जी की प्यारी ,राधा न्यारी
बसो मोरे मन मन्दिर बिहारी,संग वृषभानु दुलारी
तुम बिन कोई ना ठौर हमारी, जाऊँ बलिहारी
पल पल याद करूँ त्रिपुरारी, आऐ शरण तिहारी
कृष्णा जी की प्यारी, राधा न्यारी
बसो मोरे मन मन्दिर बिहारी, संग वृषभानु दुलारी
मुखड़ा तेरा नूरानी, तेरा मेरा रिश्ता तो रूहानी
दाता अपनी है यारी पुरानी, हमको चरणन से ना बिसारी
कृष्णा जी की प्यारी, राधा न्यारी
बसो मोरे मन मन्दिर बिहारी, संग वृषभानु दुलारी
सुदामा संग निभाईं ऐसी यारी, जाऊँ वारी-वारी
तुने सारी दुनिया है तारी,मैं भी निहारू राह थारी
कृष्णा जी की प्यारी, राधा न्यारी
बसो मोरे मन मन्दिर बिहारी, संग वृषभानु दुलारी।
राधा-श्याम
December 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
प्रिये, यह आज तुमने कैसी चाय है बनाई
कौन सी लजीज़ वस्तु है मिलाई
घूंट-घूंट पीते अजब रूहानी मस्ती है छाई
इससे पहले तो कभी ऐसी चाय ना पिलाई।
नही जानाँ, आज बस चाय बनाते
राधा-श्याम धुन थी लगाई।
दोधारी तलवार
December 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
क्यों दोधारी तलवार से हैं लोग…
क्यों सच को स्वीकार नहीं कर पाते हम लोग….
जानते हैं कुछ साथ नहीं कुछ जाना
फिर भी क्यों जोडने की होड़ में लगे हैं लोग…
सब कहते है भगवान एक है
फिर क्यों अनेक रूप साबित करने में लगे हैं लोग…
कहते हो अपने तो अपने होते हैं
फिर क्यों अपनों को बेगाना बनाने में लगे रहते हैं लोग…
क्यों दोधारी तलवार से हैं लोग…
क्यों सच को स्वीकार नहीं कर पाते हम लोग…।
अपना हक
November 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
क्यों दिल्ली आज हिल रही
क्यों इतना डर रही
वो ह़क लेने आ रहे
जान की बाजी लगा रहे
राह में कितने रोड़े अटकाओगे
अब रोक नहीं पाओगे
जितनी बंदिशे लगाओगे
संघर्ष का उग्र रूप पाओगे
क्या सुलगता रक्त देखा कभी
क्या उलझता युद्ध देखा कभी
यही तो दिल्ली को हिला रहा
नही, वो डराने नहीं आ रहा
आ बैठ,सुन उसकी बात
बस वो अपना हक़ लेने आ रहा ।
माटी के दीपक
November 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
मै नन्हा सा दीपक माटी का
घी संग बाती जब दहकूं
खिलखिला कर हसूं
चांद के जैसे इतराऊं
तम को गटागट पी जाऊँ
शांत नदिया सा जगमगाऊं
आखिरी सांस तक सपने सींचू……
तु भी तो पुतला माटी का
तु मन में आशा का दीप जला
प्रेम का घी, सदकर्मो की बाती दहका
भीतर के तम से लड़ जा
खुशियाँ जी भर के बिखरा
किसी के गमों मे शरीक हो जा
बैर-भाव मिटा
तु भी मुझ-सा कर्म कमा
दीपावली का सच्चा अर्थ समझा ।
किन्नर
November 8, 2020 in Other
प्यार दूर की बात
सम्मान कभी सपने में भी ना सोचूं
तुम तो देखने से भी कतराए
देख कर नज़र फेर ली
फिर कहते हो
मेरी दुआओं मे बड़ी ताकत हैं
जल्दी कबूल हो जाती है
अगर तुम कहो
दुआओं के मैं बादल बरसा दूं
बस एक बार
जो जन्म से मिला अधूरापन
तुम उसे भुला
इन्सान समझ लेना
कभी बदन से नजरें उठा
तानों से छलनी रूह को निहारना
कभी सम्मान की नजरों से देख
पड़ना हमारी नज़रों की बेबसी
किन्नर नही हमें हमारे नाम से पुकारना
भगवान् ने बनाया होगा कुछ सोच
उसका मान रख
हमें इज्जत से जीने का हक दे देना।
अश्क मेरे
November 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
अश्क जो बहे नयनों से
लुढ़के गालों पे मेरे
किसी ने ही देखे
अनदेखे ही हुऐ
अश्क जो अटके गले में
गटके हर सांस में
ना देखे किसी ने
अनदेखे ही रहे
तोड़े मुझे हर बार भीतर से
च़टके कुछ ज़ोर से
बिन किसी शौर के।
सुधार के लिए सुझाव का स्वागत है।
श्री राम जी के नाम एक पाती
October 24, 2020 in Poetry on Picture Contest
विजयादशमी का यह पावन पर्व
वर्षों से समाज को सच्चाई का सबक सिखाऐ
पर आज यह एक प्रश्न उठाये
आज प्रतयंजा कौन चढ़ाऐ
कौन बाण आज छुड़ाए
इस युग में कोई काबिल नहीं
जो रावण का संहार करे
आज कोई राम नहीं
हर और रावण ही रावण छाऐ
दशानन कहलाता ज्ञानी अभिमानी
डंके की चोट पर युद्ध को ललकारे
आज मानव छद्म वेश धार
अपनों के पीठ पीछे वार करे
आज मंथरा घर-घर छाई है
विभीषण ने ही दुनिया में धूम मचाई है
अब राम कैसे आए
कोई शबरी ना बेर खिलाए
केवट बिन दक्षिणा ना नदिया पार कराऐ
कौन भ्राता प्रेम में राज सिंहासन का त्याग करे
हनुमान जैसा सेवक कहाँ से आऐ
अब राम कैसे आए
हाय, अब रावण का कौन संहार करे
तो क्या रावण ही रावण को मार गिराऐ
मानव कब तक कागद पुतला बना मन बहलाऐगा
कब तक समाज नारी की अग्नि-परीक्षा लेता जाएगा
प्रश्न के उत्तर देने प्रभु आपको आना होगा
इस युग के मानव को मर्यादा का पाठ पढ़ाना होगा
नारी को अग्नि-परीक्षा से मुक्त कराना ही होगा
नर को नारी शक्ति और समर्पण का एहसास कराना होगा
अचल अटल विश्वास हमें, तुम आओगे
मानव के सुप्त आदर्शों को नई राह दिखाओगे
फिर विजयादशमी के सन्देश को मन-द्वार पहुचाओगे
सुदृढ़ विश्वास हमें, तुम आओगे, तुम आओगे।
निर्भया
October 14, 2020 in Other
कभी दिशा, कभी निर्भया,कभी मनीषा ,नन्ही बच्ची कोई,
बस नाम अलग-अलग,कहानी सबकी एक,
हर घड़ी डर का साया,
ना जाने मर्द तुझे किस बात का घमंड है छाया,
अबला होने का हर रोज एहसास करवाते हो,
मेरी जान की कीमत बस तुने इतनी-सी लगाई,
तेरी आँखों के सुकून से आगे बढ़ ना पाई,
मेरे शरीर को मांस के टुकड़े से अधिक ना समझा,
मेरी रूह में उतर जाने की तुने औकात ही नहीं पाई,
ना सीता, ना द्रौपदी चल उठ अब बन झांसी की रानी तु,
अब वक़्त नहीं गुहार का,
बहुत हुया, अब आया वक़्त खंजर हाथ में लेने का,
फिर जो होगा देखा जाएगा,
समाज यूं नहीं बदला जाएगा,
अपनी शक्ति को पहचान जरा, सब संभव हो जाएगा।
सुधार के लिए सुझावो का सवागत है।
कवि
October 12, 2020 in Other
ओ कवि, जरा सम्भल कर लिखना
यह कविता नही परछाई है तेरी
आत्मा का प्रतिरूप यह
तेरे अन्दर छिपी भावनाओं की प्रतीक है
अच्छे या बुरे उजागर हो जाओगे
फिर दुराव- छिपाव ना रख पाओगे
एक खुली किताब कहलाओगे
उजागर अपनी हर पीड़ा कर जाओगे
कलम तुम्हारा दृषिटकोण समझा जाएगी
तुम्हारा हर अनुभव जग-जाहिर कर जाएगी
फिर रहोगे ना खुद के ,बेपरदा हो जाओगे
दर्पण सा ही अनुभव कर पाओगे ।
इन्सान
October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
इन्सान नहीं कुछ बोलता
वक़्त हैं बोलता
बंदा कुछ नही
हालातों से घिरा हुआ
यह दिल है कुछ भरा हुआ
काफिला खट्टी-मीठी यादों का
छलकता पैमाना खुशियों का
दर्द भरे जज़्बातों का
समेटे कुछ आम – कुछ खास एहसासों का
पुलिंदा गलतियों का
नए पुराने किसी साज सा
उम्मीदों से बंधा हुआ
खवाबों से सजा हुआ
इन्सान बोले भी तो क्या बोले
नाच रहा किस्मत के हाथों
कठपुतली सा।
खुद की जंग
September 30, 2020 in Other
ना जाने कितनी निर्भया
ना जाने, कैसी मर्दानगी
बर्बरता की हदें लांघी
जुबां तक काटी
धरती भी नहीं कांपी
कानून को कुछ ना समझे
कौन इन्हे इन्सान कहे
जानवर भी इनसे हारे
भगवान् भी नहीं आए
बस ,अब बहुत हुया
नारी को ही जगना होगा
सितम का सामना करना होगा
जंग को खुद ही लड़ना होगा
जंग को खुद ही लड़ना होगा।
एक और निर्भया
September 29, 2020 in Other
बस कुछ दिन की बात है
सब भूल जाएंगे
काम – धन्धों में मशगूल हो जाएंगे
नईं कहानी का शोर मचाएंगे
फिर कोई और निर्भया होगी
जीवन की जंग हार जाएगी
कोई कुछ ना करेगा
बस इक नाम और जुड़ेगा।
आम का बाग़
September 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
भगवान् की कृपा से मैने आमों के पेड़ों से भरा इक घर पाया
हरेक पेड़ ने अलग-अलग रंग रूप पाया
सबका आकार अलग,महक अलग
फ़िजा में अलग ही महक उठी जब पेड़ों पर बौर आया
जब पेड़ों पर फल आया तो सब का मन ललचाया
फिर सब आमों से स्वाद भी अलग-अलग आया
फिर आमों ने मुझे भिन्न-भिन्न किरदारों से मिलवाया
किसी ने मांगे आम खुद तो किसी के घर मैने भिजवाया
बहुतों को स्वाद खूब भाया तो कुछेक के मन को छू नहीं पाया
किसी ने भगवान जी को भोग लगाया तो किसी ने आभार जताया
किसी ने जब लालच दिखाया तो माली को गुस्सा आया
किसी ने अपनी पाक कला का नमूना दिखाया
तो किसी ने पकवान बना कर चित्र भिजवाया
आम बाँटते मुझे खुद का भी भिन्न रूप नजर आया
इस उत्सव ने मुझे जीवन का नूतन और अविस्मरणीय अनुभव करवाया।
नया समाज
September 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
चलो आज अपने घर को ऐसा घर बनाते हैं
जिसमे बड़े पेड़ के नीचे ,
नए पौधों को पनपने का सुख दे,
खुशी से जिंदगी बिताते हैं,
चलो आज अपने घर को ऐसा घर बनाते हैं
पुराने अनुभव, नई सोच को,
एक दूसरे का पूरक बना,
सबको आत्म सम्मान से जीना सिखाते हैं ,
अपने छोटे से प्रयास से नया समाज बनाते है
चलो आज अपने घर को नया घर बनाते हैं।
अन्न- दाता
September 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आज हमारा जीवन रक्षक, अन्न- दाता कर्म भूमि छोड़ कर
दर – बदर सड़कों पर,
संघर्ष करता,
गरीब हर साल और गरीब होता जाता,
सदियों से हक के लिए लड़ता ,
हर बार ठगा जाता ,
आत्म हत्या का विकल्प चुनता,
कितना बेबस,सुनता कौन,
राजनीति की भेंट चढता आया,
वोट बैंक दिग्भ्रमित करता ,
अब तो उम्मीद भी हारने लगा,
भटके कभी इस छोर कभी उस छोर
कोई रखता नही याद इसका बलिदान
दुआ करो,
कही इसकी नई पीढ़ी भूल ना जाए खेत खलिहान ।
मासूम बचपन
September 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
मासूम बचपन कुचला जा रहा
भीतर से सहमा, बाहर से उददंड हुया
बिखरता हुया , गैज़ेटस के तले ,
अपनों के स्नेह-सानिध्य से वंचित
सहमा हुया, आयायों के तले ,
सर्वगुण- संपन्न बनाने की होड़ में
भागता हुआ, मृग मरीचिका के तले ,
सम्भाल लो,बचपन के खजाने को,
मासूम बचपन कुचला जा रहा।
साँवरे
September 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी
साँवरे, इसमें हमारा नही कोई दोष
तुम्हारा ख्याल आते नही रहता होश
हमारी तो क्या बिसात
जब खयाल तेरा राधे को करता मदहोश।
हिन्दी -भाषा
September 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
सीमित अक्षर, सीमित मात्राऐं
रचा शब्दों का असीमित भण्डार
बना विशाल वृन्द
भरे शब्दकोश बेशुमार
कैसा खेल रचाया है इन शब्दों ने
महकाया काव्य दरबार
वही शब्द
संभावनाएं अपार
क्षमता भरपूर
भिन्न भाव
अमिल सोच
तीव्र जज़्बात
विपरीत परिस्थितियां
तीक्ष्ण नज़र
अदृश्य विचार
स्पष्ट दृष्टिकोण
नित उदित नवीन रचनाएँ
खिला कवि परिवार
सजा साहित्य संसार
बढ़ाया सम्मान हिंदी ने हिंद का
बीच विश्व विशाल।
सन्देश हर हिन्द वासी को
बना हिंदी-भाषा को अपनी पहचान।
मानव तन
September 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कुकडू -कडू कुकडू -कडू करता रहूँ , करता रहूँ
मन में सोच रहा,
मैं भी तो एक जीव हूँ,
बांग से जगाता हूँ,
महफ़िलों की शान हूँ,
मैं भी तो एक जीव हूँ,
जल की मैं रानी हूँ,
भून दी जाती हूँ,
मैं भी तो एक जीव हूँ,
मैं-मैं करती हूँ,
मन की भोली-भाली हूँ,
मैं भी तो एक जीव हूँ,
मन में सोचूं कभी मानव तन पाऊँ
जब तेरे गर्भवती विनायकी के छल को देखूं
ऐसा ही कर्म करूँ तो कभी ना मानव तन पाऊँ
कुकडू -कडू कुकडू -कडू करता रहूँ ,करता रहूँ।
लाॅकडाउन समय
September 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
लगता था जिंदगी बहुत बेमानी हो गई
पहले-पहल ऐसे लगा कुछ छूट रहा
यह जग सारा टूट रहा
फिर कुछ दिन बीते
मन शांत होने लगा
छूटने का गम नहीं कुछ पाने की चाह हुई
यह कुछ पाना कुछ और ना था
खुद को ही जानने की चाह थी
खुद में ही खोने की राह थी
पहचाना स्वयं को,अब और क्या है बाकी
जिंदगी अब बेमानी नही
शान्त सी लगने लगी
अब भीतर-बाहर कोई शोर नहीं
मौन नदिया सी बहने लगी।