by Pragya

***बौना***

December 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बौना
******
मैं बौना हूँ सब कहते हैं
जब निकलूं
हँसते रहते हैं
मानो मैं कोई
जोकर हूँ
सर्कस का कोई
बन्दर हूँ
हाँ, प्रकृति ने
किया खिलवाड़
ना मिल पाया
पोषण और प्यार
तभी बना मैं
कद में छोटा
मेरा कोई दोष नहीं
कुछ शारीरिक कमियां हैं मुझमें
पर मन में कोई
दोष नहीं
मैं भी तुम लोगों
जैसा हूँ
कद में थोड़ा छोटा हूँ
मानसिकता अपनी
शुद्ध करो
मुझसे थोड़ा प्यार करो
मैं भी तो तुम जैसा हूँ
बस कद में थोड़ा छोटा हूँ…..

जो लोग शारीरिक या मानसिक रूप से
दिव्यांग हैं उनका मजाक ना बनाएं उनसे प्रेम से बात करें
प्रकृति ने तो उनके साथ पहले ही खिलवाड़ किया है, उन्हें हँसकर उनका मन छोटा ना करें
बल्कि उनका हौसला बढ़ाये…

by Pragya

“जिन्दगी का पन्ना”

December 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी से कुछ कहना
अच्छा नहीं लगता
पर खामोश रहना भी
अच्छा नहीं लगता
पर्त दर पर्त खुलता जा रहा है
जिन्दगी का पन्ना,
पर हर पन्ना यूं
बेवजह पलटना
अच्छा नहीं लगता
तुम्हारी आँखों में
डूबे रहते थे
बेसुध होकर
अब तुम्हारी
आँखों में नशा
अच्छा नहीं लगता….!!

by Pragya

मन तुम्हारा हो गया…****

December 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मन तुम्हारा हो गया
यह तन तुम्हारा हो गया
मन की पर्तों में जो गहरे
दर्द बोये थे कभी
तेरा निश्छल प्रेम उन
जख्मों का मरहम हो गया….
तुम धूप-सी लगती रही
मैं नीर-सा बहता रहा
टहनियों की लचक-सी
कोमल तुम्हारी कमर थी
स्वप्न में मैं उस कमर पर
बर्फ-सा पिघलता रहा
मन तुम्हारा हो गया
यह तन तुम्हारा हो गया….

देह की लाली जो देखी
व्याकरण गढ़ने लगा
केतु की आँखों में मुझको
हाय! क्या दिखने लगा ????
मधुयामिनी में मैं प्रिये !
जुल्फों में तेरी उलझा रहा
रातभर कुछ ना कहा
सुबह फिर सोता रहा
तेरी जुल्फों से गिरे जब
मोती मेरे गालों पे
सदियों का प्यासा मैं जैसे
यूं उन्हें पीता रहा
मन तुम्हारा हो गया
यह तन तुम्हारा हो गया….

काव्यगत सौन्दर्य एवं विशेषताएं:-

यह कविता मैंने मन की गहराईयों से तथा
गेय पद के साथ माधुर्य में लिखी है
संयोग श्रृंगार रस का प्रयोग करते हुए
प्रेम में विलीन दो आत्माओं के मिलन में लिखी हैं….

by Pragya

हे पयस्विनी ! तृप्त कर दे…

December 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हे पयस्विनी !
तृप्त कर दे
अपने निर्मल दुग्ध से
दूर कर दे पाप सारे
पंचगव्य से बुद्धि के
शुद्ध कर दे
प्रकृति सारी
अपने सुंदर चरण से
तेरी पूजा से मिले वह फल
जो ना मिले किसी कर्मकाण्ड से
फिर क्यों अस्तित्व तेरा
धुंधलाया हुआ है ?????
यही पूँछे ‘प्रज्ञा’
सारे ब्रह्माण्ड से….

by Pragya

पथ में भटके राही जो हैं

December 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हे तरंगों !
सज के निकलो
भेदना तुमको हृदय है
रोंकना तुमको है
पथ में भटकते राही जो हैं
राह दिखलानी उन्हे है
जो बिछड़कर
स्वयं से
खो गये फिर ना मिले
जोड़कर उनको स्वयं से
राह दिखलानी तुम्हे है
बीनकर पथ के कंकरीट
पुष्प बिखराने तुम्हे हैं
बहकर सरिता प्रेम की
सागर में मिलना तुम्हे है
हे तरंगों !
सज के निकलो
भेदना तुमको हृदय है….

by Pragya

हिन्दी कविता: किसान दिवस

December 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसान दिवस स्पेशल:-
*********************
२३ दिसम्बर को हर वर्ष
किसान दिवस मनाया
जाता है
मीठी-मीठी बातें कर
हम किसानों को
फुसलाया जाता है
बैठा है दिल्ली में किसान
मांगे अपने हक का मान
पर सरकार को दिखे नहीं
रोते-बिलखते परेशान किसान
हम दिखते स्मगलर उनको
हम दिखते कांग्रेसी उनको
हमी में दिखते पाकिस्तानी
हमी में दिखते चीनी
मगर नहीं दिखती मुगलेआजम को
हमारी आँखें भीनी-भीनी
सोंचा था ‘किसान दिवस पर ही
उपहार मिलेगा
सियासत थोड़ी ठण्डाई होगी
शहंशाह का दिल पिघलेगा
पर ऐसा कुछ नहीं हुआ
किसान ठिठुरता ही रहा !!

काव्यगत सौन्दर्य:-

यह कविता वर्तमान में किसान बिल के खिलाफ
दिल्ली में हो रहे किसान आन्दोलन को
समर्पित है..
क्योंकि किसान दिवस तो हमारे देश में
मनाया जाता है परन्तु किसानों की समस्याओं
को नहीं सुलझाया जाता..
यह कविता व्यंगात्मक शैली में लिखी गई है कवि का धर्म है कि वह समाज में हो रहे दुर्व्यवहार पर अपनी कलम से प्रहार करे और
समाज को आईना दिखाये….

by Pragya

जमाना तमाशबीन..!!

December 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लब खामोश हों फिर भी
बहुत कुछ कह जाते हैं
आँखें नम हों फिर भी
हम मुस्कुरा जाते हैं
कोई नहीं समझता
तन्हा दिल के गमों को
चीखकर आह निकले तो
जमाना तमाशबीन ही समझता है…

by Pragya

“माँ का दिल”

December 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ ने कहा:- सुनते हो जी
आज ही के दिन हुआ था जन्म हमारे बेटे का
पिता ने बोला हाँ, याद है
माँ बोली अब फोन करके
कर देती हूँ विश
माँ ने बेटे को फोन मिलाया
बेटा माँ पर चिल्लाया
इतनी रात गये माँ ने तुमने मुझको क्यों फोन मिलाया ?
सुबह करूंगा बात नींद तुमने कर दी है खराब
फिर पिता ने बेटे को फोन मिलाया
बोला यह तो पागल है
तेरे जन्म से हर रात मुझे यह जगाती है
इसी समय जन्मा था लल्ला मुझको रोज बताती है
आज तुम्हें तुम्हारे जन्मदिवस पर देने को बधाई
माँ है ना इस कारण खुद को रोंक ना पाई
तू सो जा मैं समझा लूंगा
बेटा सुनकर दंग हो गया
खुद पर ही शर्मिंदा हो गया
घर आया और हाथ जोड़कर
माँ के पैरों में गिर गया
बोला माँ मैं शर्मिंदा हूँ
अपनी गलती की निंदा करता हूँ
माँ बोली तू लाल है मेरा
मैं तुझसे नाराज कहाँ हूँ!!

by Pragya

**महिला प्रताड़ना**

December 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कहते हो मैं मर्द हूँ
और औरत पर हाथ
उठाते हो
मर्जी हो या ना हो
जबरन बातें मनवाते हो
कभी जलाते हाथ तो कभी
फेंकते एसिड हो
सीना तान के फिर तुम
मर्द कहाये फिरते हो…

क्या गलती है मेरी जो
हमको औरत का जन्म मिला !
मत भूलो
तुम्हारा अस्तित्व भी औरत की
कोख में पला
तुमको जन्म देने वाली,
तुमको साजन कहने वाली,
तुमको राखी बांधकर
प्यार से लड़ने वाली,
सब औरत है, सब बेटी हैं
तुमको पापा कहने वाली…
जो लक्ष्मी जेब में रखते हो
जिनकी पूजा करते हो
नौ दिन व्रत रखकर जिसका
तुम वंदन अर्चन करते हो
सब नारी हैं, सब पूजनीय हैं
औरत का हर रूप
सम्माननीय है वंदनीय है….

काव्यगत सौन्दर्य:-

यह कविता मैंने महिला प्रताड़ना की निंदा वा औरत के अस्तित्व वा अहमियत समझाने के लिये लिखी है…
नारी का हर रूप वंदनीय वा सम्माननीय है जहाँ नारी का सम्मान नहीं होता वहां कोई भी देवता निवास नहीं करता..
साथ ही वहाँ हमेशा दरिद्रता छाई रहती है.

“घरेलू हिंसा अपराध है”

नारी के प्रति हो रहे दुर्व्यवहार की हम घोर निंदा करते हैं…

by Pragya

हे स्वर्णरश्मि !

December 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हे स्वर्णरश्मि !
हे दिनकर छवि !
विलम्ब न कर
आजा झटपट
निकला जाये
मेरा दमखम
प्रभु निवेदन है तुमसे विनम्र
कर जोड़ खड़ा
देखो मानव
संकुचित है प्रकृति का हर अंग-अंग
अविराम पड़े
कोहरे से तन है सिकुड़ रहा
मन सिहर रहा
प्रकृति की कोमल साँसों से
एक बर्फ का गोला
पिघल रहा
है दिनकर तपस
अब हुआ विलम्ब
कांपे धरती का अंग-अंग
हे स्वर्णरश्मि !
आजा झटपट
पिघला दे तू सारे हिम खण्ड !!

काव्यगत सौन्दर्य:-

यह कविता सूर्यातप के लौकिक ओज पर लिखी गई है
इसमें कवि सर्दी से पीड़ित जीव-जन्तु तथा प्रकृति के हर कण को सूर्य की किरणों से प्रकाशित करना चाहता है
उसे हर ओर ठण्ड से कराहते प्राणी नजर आ रहे हैं यहाँ तक निर्जीव वस्तुएं भी वह सूर्य से आग्रह कर रहा है कि वह अविलम्ब निकले और अपनी गर्मी से प्रकृति का कष्ट हरे….

by Pragya

हिन्दी कविता: चिता के फूल

December 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

“चिता के फूल”
****************
मेरी नाकामयाबी पर
हँसकर वो चल दिये,
मेरे ऊपर लानत के
हजार कथन वह कह गये…
हम भी चल दिये…
इस जहान से
नाउम्मीदी का एक बोझ लेकर,
मेरी अर्थी के फूल वो
मुस्कुराकर
सजाकर चल दिये…
ना रोंका मुझे,
ना रोये चिता पर
बस एक अविस्मरणीय
मुस्कान से विदा करके मुझे वो चल दिये…
हम तड़प रहे थे
जलती लकड़ियों के सुलगते धुंए में!
वो हाथ लहराकर खुशी से चल दिये…
कितना क्या सोंचा था !
पर उन्हें इतना बेरहम ना सोंचा था
मेरी चिता के फूल’
अभी ठण्डे भी ना हुए होंगे
और वो मेंहदी लगाकर चल दिये….

by Pragya

शनि और वृहस्पति मिलन

December 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज का दिन पावन दिन है
८०० वर्षों बाद ऐसा संयोग बना
शनि और वृहस्पति देव जी
आये एक-दूजे के सन्निकट
इतिहास में यह पावन दिन
सदा के लिए दर्ज हो गया
शनि और वृहस्पति का
एक-दूजे से मेल-मिलाप हो गया
यह घटना ८०० वर्षों बाद घटी
दोनों ग्रह परिक्रमा करते हुए
एक-दूजे के नजदीर आ पहुंचे….

by Pragya

ठिठुरता जीवन…

December 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ठिठुरता जीवन
कांपता है मन
सर्दियों से डरता है ये मन
चिपक रहा
बेटा जब माँ से
कितना बेबस होगा वह तन
हड्डी-हड्डी कांप रही है
रोम-रोम पिघलाता यौवन
कंबल-चादर
फटी पुरानी
सिर ओढ़े तो
खुल जाता है दूजा अंग
शुक्र मनाऊं
जब आये सूरज
धूप देख खिल जाता जीवन….

by Pragya

लहरों ने किनारा पा ही लिया…

December 20, 2020 in मुक्तक

आखिरकार बुलंदियों का
आसमां पा ही लिया…
आखिरकार आसमां से
एक सितारा तोड़ ही लिया…
बिछ गये रंगीन पंखों की तरह ख्वाब मेरे,
आखिरकार लहरों ने किनारा पा ही लिया…

by Pragya

अपने ही साथ छोंड़ देते हैं

December 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

शिकायत किससे करें !
जब अपने ही दामन को
दागदार कर देते हैं
उम्मीद किससे करें जब
अपने ही साथ छोंड़ देते हैं
जो कभी हमारे हो नहीं सकते !
आखिर ये नैन उन्हीं को
पाने का ख्वाब क्यों देखते हैं !!

by Pragya

“एक ख्वाब जिया है मैंने”

December 20, 2020 in मुक्तक

किस्मत को आजमाकर
एक ख्वाब जिया है मैंने
आँसुओं को शराब- सा पिया है मैंने,
यहाँ से दूर चला जाऊंगा मैं
ये फैसला अब किया है मैंने…

by Pragya

“काँच का दिल”

December 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ले चल साकी!
मुझे दरिया के पास
मेरा मन बहुत प्यासा है
मचल पड़ता है ये कांच का दिल
जब वो मेरे करीब आता है
बोल दो उसे-
“मैं उसका नहीं किसी और का हूँ”
अाने देना उसे अगर वो
फिर भी मेरे पास आता है..!!

by Pragya

“राजा दशरथ और श्रवण कुमार”

December 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

“राजा दशरथ और श्रवण कुमार”
**************************

उठा लिया एक भारी बोझ-सा कंधे पर
अंधे माँ-बाप को तीर्थ यात्रा कराई
श्रवण कुमार सा हो लाल मेरा
यही दुआ करे हर माई’
राजा दशरथ गये आखेट को
समझे कोई जन्तु है भाई
मार दिया शब्द-भेदी बाण
जो श्रवण कुमार को जा लगा भाई
दौड़े सरपट, पछताये, रोये और गिड़गिड़ाये
गये लोटे में जल लेकर और श्रवण कुमार के हत्यारे कहलाये
दिया श्राप बूढ़े माँ-बाप ने
कहा- जिस प्रकार पुत्र वियोग में मैं मरा तू भी तड़प-तड़पकर मरेगा
होंगे तेरे चार सुत पर अन्तिम समय में कोई ना होगा
यह सुनकर धीर-अधीर हुए सूर्यवंशी दशरथ राजा
जब प्राण तजे पुत्र-वियोग में
तब कोई भी पुत्र पास ना था
राम-राम कह तजे प्राण
राजा दशरथ ने श्रापानुसार
एक था राजा वचनप्रिय,
एक था आज्ञाकारी श्रवण कुमार…

by Pragya

सपनें तो वो होते हैं…!!

December 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अक्सर आगे बढ़ने पर
रुकावटें आती हैं
मंजिल बहुत दूर बहुत दूर
नजर आती है
पर किया भी क्या जाये
जब सपनें हों इतने बड़े कि
सोने ना दें
जागने पर भी चैन से रहने ना दें
सपना देखा है
आसमां में छा जाने का
जुनून है मुझे आगे बढ़ जाने का
वादा है अपने सपने को सचकर
दिखलाऊंगी
नहीं तो मैं सपने देखना ही भूल जाऊंगी
सपने वो नहीं होते जो
सोने के बाद आयें
सपने तो वो होते हैं जो
हमें सोने ना दें और दिन-रात जगायें….

by Pragya

हाईकु विधा में ; ऐ नींद !!

December 17, 2020 in Haiku

*हाइकु विधा*
**************
ऐ नींद !
बता तेरी क्या दुश्मनी है
क्यों तू मेरे पास नहीं आती है
डूबते हैं सब सपनों में
क्यों तू मुझसे अदावत निभाती है ??
ना परेशान होती हूँ मैं
प्रथम मिलन के अविस्मरणीय प्रेमीय आलिंगन से,
ना याद ही सताती है
तेरे लिये ही रात-दिन तरसती हूँ
तू रोज रूठ जाती है…!!

by Pragya

“गुलमोहर की मोहर”

December 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

“गुलमोहर का पुष्प”
अति मनमोहक है
सुगंध इसकी
अद्धभुत है
इसकी जड़ें मिट्टी को
चारों ओर से जकड़े हैं
मानों जैसे हाथों में
वक्त पकड़े हैं
रात्रि की उनींदी आँखों में
कुछ गहरे सपने हैं
चाँदनी की चादर में
कुछ दाग गहरे हैं
गुलमोहर की मोहर है
हृदय पर ऐसे छपी
जैसे तितलियों के पंख से
रंग बिखरे हैं
कोयल की कूँक से है
मन- मयूर नाचता
रितुओं के परिवर्तन में
कुछ राज गहरे हैं…

by Pragya

जन्नत की राहें..!!

December 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पहले जैसे सनम !
अब हम ना रहे
जानते हैं ये हम
कुछ बदल से गये…

पर करें क्या बता
है मेरी क्या खता !
तेरे आने से हम कुछ
बदल से गये….

ना रही खुद से यारी
पहले की तरह
तूने दिल में दी दस्तक
हम संवर से गये…

मिल गईं हमको
जन्नत की राहें सनम !
होके तुझमें फना
हम पिघल से गये…

चाहते-चाहते
तुझको माना खुदा !
अपनी हस्ती से भी हम
मुकर से गये…

खो गये तुझमें ऐसे
कि पाया जहान
हाँ, मोहब्बत में हम
कुछ बिगड़ से गये…

by Pragya

‘विचारों का मंथन’

December 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

उत्प्लावन करती
हृदय में,
अतृप्त अवांछित आकांक्षाएं
संकीर्ण एवं सूक्ष्म
वेग के व्याकरण’ गढ़ती हैं
असंतृप्त आस्थाओं का प्रतीत प्रेम
मधुमास की मधुर
गर्जना करता है और
ले जाता है
पीपल की घनी छांव में,
जहाँ मधुर गुञ्जन करती हुई
मधुप यौवनीय मधुयामिनी
संगिनी सुंदरियां
प्रेम के भावातिरेक में
मधुर-मधुर कल्पनाएं करती हैं
वही से प्रस्फुटित होती हैं
हृदय में सृजन की
असीमित, अनसुलझी,
अलिखित, अव्यक्त भावनाएं और
आरम्भ होता है
विचारों का मंथन…!!

by Pragya

दर्द की फलियों में बंद थे दंश जो !!

December 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जाने क्यूं आजकल
खुद पर प्यार आने लगा है
अपना ही चेहरा
अब हमको रिझाने लगा है
पहले डूबे रहते थे हम
किसी की आँखों की मदहोशी में
अब तो अपना चेहरा ही
हमको भाने लगा है
आँखों से टपकते हैं जब मेरे आँसू
दर्द दिल को अब जियादा
सताने लगा है
है ये साजिश या कोई करिश्मा !
रूबरू मेरे,
मेरा ख्वाब आने लगा है
दर्द की फलियों में
बंद थे दंश जो
अब उन्हीं में हमको बेहद मजा आने लगा है…

by Pragya

हम तुम्हारे हैं

December 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारे कानों के झुमके
बहुत ही प्यारे हैं
तुमने मुस्कुरा के जब कहा
हम तुम्हारे हैं
तुम्हारी बोली मुझको भजन-सी लगी
तुम्हारी हँसी भी
फूलों से प्यारी लगी
तुमने जब कहा हम
बहुत प्यारे हैं
थोड़ी-सी हँसी आ गई मुझको
लाज के मारे
छुप गई मैं तो
तुम्हारे इशारे मुझको प्यारे हैं
चलो कह देते हैं हम भी
हम तुम्हारे हैं….

by Pragya

‘मातृभाषा एकमात्र विकल्प’

December 15, 2020 in Other

लेख:- ‘मातृभाषा एकमात्र विकल्प’

मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने के लिये भाषा का प्रयोग करता है। वह अपनी बात लिखित,मौखिक व सांकेतिक रूप मे दूसरे तक प्रेषित करता है। भाषा संप्रेषण का कार्य करती है। यह आवश्यक वार्तालाप,भावनाओं,सुख- दुख और विषाद को प्रकट करने मे सहयोग देती है। भारत देश मे लगभग तीन हजार से ज्यादा क्षेत्रीय व स्थानीय भाषाओं का प्रयोग लोगो द्वारा किया जाता है। भारतीय सविंधान मे इक्कीस भाषाओ को मानक स्थान प्रदान किया गया है।
शिक्षा के क्षेत्र मे भाषा का अतिमहत्वपूर्ण योगदान है। भाषा के बिना किसी पाठ्यक्रम व विषय ज्ञान की कल्पना भी नही की जा सकती है। भारत के इतिहास का अध्ययन करने पर हम संस्कृत,पालि,अरबी,फ़ारसी आदि अनेकानेक भाषाओं के बारे मे पढ़ते है। संस्कृत भाषा की महत्ता हमे उसके उन्नत,समृद्ध साहित्य और व्याकरण से ज्ञात होता है।
भारत विविधताओ का देश है। ऐसे मे बहुभाषिता का होना कोई बड़ी बात नही है। बच्चे अपने आस-पास के परिवेश मे प्रचलित भाषा को आसानी से सीख लेते है। जिस भाषा को उनकी मातृभाषा कहा जाता है। इस भाषा को सीखने के लिये बच्चों को कोई विशेष प्रयास नही करने पड़ते। यह उनके द्वारा सीखी गयी पहली भाषा होती है। अपनी मात्रभाषा का प्रयोग अपने दैनिक जीवन मे आसानी से करते है। बच्चे अपनी पहली भाषा यानी मातृभाषा के साथ विद्यालय मे प्रवेश करते है और वहाँ पर दूसरी और तीसरी भाषा को सीखते है।
बच्चों को विद्यालय मे पाठ्यक्रम सीखने मे कठिनाई होती है। विद्यालय मे प्रयोग होने वाली भाषा उनके परिवेश की भाषा से भिन्न होती है। पाठ्यक्रम की भाषा उच्चस्तरीय व क्लिष्टता से परिपूर्ण होती है। उसमे मानक शब्दों का प्रयोग होता है। कभी- कभी तो भाषा ही पूरी तरह बदली हुयी होती है। ऐसे मे ज्वलंत प्रश्न यह उठता है कि बच्चों को अन्य भाषाओं और विषयों का ज्ञान कैसे कराया जाये?
किसी भी भाषा का विकास सुबोपलि यानी सुनना,बोलना,पढ़ना और लिखना पर निर्भर करता है। इसलिये प्राथमिक कक्षाओं मे सुबोपलि का प्रयोग करते हुये बच्चों मे भाषा का विकास करना चाहिये।
कविता पाठ और सस्वर वाचन सुनने की क्षमता का विकास का एक सशक्त माध्यम है। कक्षा मे अध्यापक द्वारा किसी कविता का पाठ करना चाहिये और उसमे प्रयुक्त शब्दों को स्थानीय शब्दो मे वर्णित करना चाहिये। प्रारंभ मे विद्यालय मे बच्चों की स्थानीय भाषा का प्रयोग करते हुये उन्हे अन्य विषयो से जोड़ने का प्रयास करना चाहिये। उसके उपरांत ही बच्चों मे अन्य विषयों की समझ विकसित की जा सकती है।
शिक्षक के सामने तब गम्भीर समस्या आती है जब बच्चे की मातृभाषा, शिक्षक की स्वयं की मातृभाषा और पाठ्यक्रम की भाषा अलग- अलग हो। ऐसी परिस्थिति मे शिक्षक को स्वयं मे सर्वप्रथम बच्चों की मातृभाषा की समझ विकसित करनी चाहिये।
बहुभाषी कक्षाओं का संचालन करके बच्चों मे उनकी मातृभाषा के सहयोग से दूसरी और तीसरी भाषा को विकसित करना चाहिये।
शिक्षकों को भाषा शिक्षण करते समय उच्चारण शुद्ध रखना चाहिए। प्राथमिक कक्षाओं मे बच्चों को सुलेख लिखने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये ताकि उनका लेखन सुन्दर और त्रुटिरहित हो सके। श्रुतलेख भी बच्चों के लिये अनिवार्य होना चाहिये।
भाषा से ही अन्य विषयों की समझ बच्चों मे विकसित होती है तथा अन्य विषयों के सहयोग से भाषा का भी विकास होता है।
शिक्षक को यह जान लेना नितान्त आवश्यक है कि बच्चों की मातृभाषा के सहयोग से ही उन्हे विद्यालय से जोड़ा जा सकता है। मातृभाषा की बच्चों के ज्ञान के विकास का एकमात्र विकल्प है। मातृभाषा के प्रयोग को कक्षा मे प्रयोग करके बच्चों को भयमुक्त वातावरण प्रदान किया जा सकता है। शिक्षा ही जीवन का आधार है। इसलिये बच्चों को बहुभाषी कक्षाओं के माध्यम से ज्ञान प्रदान करते हुये उन्हे सुनहरा भविष्य प्रदान करना ही शिक्षक का पावन कर्त्तव्य है।

by Pragya

‘मधुयामिनी’

December 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रात थी बात थी एक मुलाकात की

तू मेरे साथ था मैं तेरे साथ थी

पढ़ रहे थे तुम रात्रि में रश्मियां

आँच में तेरी मैं फिर पिघलती रही

चूड़ियों ने कहा जो था कहना हमें

पायलों की झनक में था सोना तुम्हें

जुल्फों की छांव में तुम सिमटते रहे

हम तो खोते गये तुमको पाते हुये

चुम्बनी बारिशों में था भीगा बदन

हम तुम्हारी रगों में समाते गये

रातभर ना करी हमनें बातें कोई

गहरे समुन्दर में दोनों नहाते रहे

प्रिय! तुम्हारी- हमारी मधुयामिनी’

हम बिखरते रहे तुम तुमको पाते रहे

by Pragya

मेरी आँखों को ऐसी हँसी आ रही है

December 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी आँखों को ऐसी
हँसी आ रही है
जैसे मोमबत्ती जलकर
पिघलती जा रही है
कुछ जल गई रौशनी की फिक्र में
कुछ बेखबर-सी
पिघलती जा रही है
पिघल गई
धागे को जलाने के जश्न में
आधी जली तम मिटाने के लिए
आधी पिघलकर
खुदी में लिपटती जा रही है
नश्वर है
ये अंधेरा और रात का साया,
बता रही है ये और
मचलती जा रही है….

by Pragya

सूर्य की लावण्यता से

December 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लौट चल साथी !
यहाँ गम सबसे जियादा (ज्यादा) है
बेबुनियादी रस्मोरिवाज में
मन उलझा जाता है

करते रहे कोशिश लाख
जिंदगी संवारने की
पर तरुवर में पीत पत्र
फल से जियादा है

नई सुबह की तलाश में
जागे तमाम रात
सूर्य की लावण्यता से
मन ये जागा है

by Pragya

कुछ तो रिश्ता है दीवारों से…..

December 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेईमान-सा मन
गिरती-उठती दीवारें
आज सिर उठाकर खड़ी हैं
यूँ तो सरचढ़ी हैं
पर कुछ जिम्मेंदारियां भी हैं
छत को संभाले हुए
दिन भर खड़ी रहती हैं
शाम को थककर चूर हो जाती हैं
रात के एकाकीपन में
मेरी नज़रों से फिसलती हैं
सुबह उठकर
मेरी ओर बढ़ती हैं
कुछ तो रिश्ता है दीवारों से
शायद कुछ कहना चाहती हैं!!

by Pragya

प्रेम का बीज

December 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बोया था एक रोज
बड़े नाजोअंदाज से
प्रेम का बीज’
आज उसमें फल पके हैं
मायूसी और बेबसी के
बहुत लदा है वो वृक्ष
माँ अक्सर कहा करती थी
तुम्हारा बोया बीज
एक पुष्ट पौधा बनकर
बहुत फलता-फूलता है
सही कहा करती थीं माँ..!!

by Pragya

कविता: मनमर्जियाँ

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चाहती हूँ एक कविता लिखना
मगर नाकाम हो जाती हूँ
विषय चुनने के लिए
छटपटाती हूँ
शब्द कुछ ऐसे हों
भावनायें मेरी व्यक्त करें
और कह दें
वह जो मैं कह नहीं पाती हूँ
निरर्थक है लेखन
जब तक भाव ना सिमटें
कविता में,
पल्लवित ना हों इरादे
प्रस्फुटित ना हों आकांक्षाएं और
ना चल पायें
मेरी मनमर्जियां….

by Pragya

‘दुःख की गगरी’

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुश्किल बहुत है
खुशियों की तिजोरी भरना
दुःख की गगरी भरने में
दो पल नहीं लगते
झूम जाता है मन
जब कोई अपना कह देता है…

अपनेपन के लिए
तरसता रहता है जीवन
नये सिक्के की तरह है
हमारा ये रिश्ता
थोड़ा घिस जाये
तब पता चल जायेगा कि
कैसा है ???

by Pragya

मुझे लिख लो कहीं !!

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुझे लिख लो कहीं
निकलने लगी हूँ
तुम्हारी स्मृति से…

खयालातों की दुनिया से
बेदखल होने लगी हूँ
मुझे छुपा लो कहीं…

तुम जवाब दो हमको
हम जवाब दें तुमको
बातचीत का सिलसिला
नजरों से शुरू हो तो अच्छा है…

चुप हो जाते हो
जब पूंछती हूँ
मुझसे प्यार है या नहीं
तुम्हारी खामोशी को ही
इजहार समझती हूँ
इसमें बुरा क्या है!!

by Pragya

जुनून था तुमको हरगिज यार !!

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गज़ल
******************
सुना तुमने नहीं हमको,
सुना हमने नहीं तुमको
मगर महसूस करते थे
हर एहसास में तुमको
जुनून था तुमको हरगिज यार!
औरों की मोहब्बत का,
सब कुछ जानते थे हम
मगर रोंका नहीं तुमको
सोंचा था ये हमने
तुम मेरी परवाह करते हो
जताते हो नहीं लेकिन
मुझी से प्यार करते हो
मगर जब तोड़ डाला दिल
तो यह आया समझ हमको
फकत तुम अच्छे लगते हो
मगर ना दिल के अच्छे हो…

by Pragya

तुम्हारा प्यार से बोलना अच्छा लगा मुझे

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुमने कहा तो कम से कम
मैं हूँ ना
यही सोंच रही थी मैं
कि कोई है ही नहीं अपना
जो पूंछे हाल हमारा और कहे अपना
लगाई थी आस अपनों से
पर बेगानों ने दर्द बांटा,
तुम नहीं हो अपने
पर फिर भी तुमने हाथ थामा
लगाकर गले से
दी दिल को सांत्वना
थोड़ा आराम आया दिल को मेरे
तुम्हारा प्यार बोलना
अच्छा लगा मुझे…

by Pragya

हम माझी हैं मजधार के

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पत्थर में डाल प्राण
सेतु हम बनायेंगे
माझी हैं मजधार के
पार ही हो जायेगे
ना रुकेंगे हम कभी
आगे बढ़ते ही जायेगे
सूर्य की आँखों से
आँख हम मिलायेगे
और चल पड़ेगे हम
पवन से भी तेज फिर
बालू के ढेर पर
घरौंदा हम बनायेंगे
आसमानी पंख से
भर लेंगे उड़ान हम
अपने हौसलों से
आगे बढ़ते ही जायेंगे

by Pragya

*आँसू मेरे प्राणाधार*

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लिखकर अपने मन की पीर
बोझ करूं मैं हल्का
रोकर मिलता बड़ा सुकून
लगता दिल को अच्छा
आँसू से सींचू मैं जख्म
हरे-भरे लहूलुहान हुए
लेप लगाकर वही जख्म
मेरे प्राणाधार हुए
गटक लिए जो गले में आए
पोंछ लिए जो आँख में आए
दिल से जो बह निकले आँसू
छुपा लिए
कोई देख ना पाए
आँसू ही जीवन का आधार
आँसू मेरे प्राणाधार….

by Pragya

“कुदरत का अनमोल रत्न”

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुदरत का अनमोल रत्न
********************
कुदरत का अनमोल रत्न है ये जीवन
जब हों फूल से रिश्ते तो
महकता है जीवन
अगर हों बेनाम से रिश्ते तो
सुगंध ही दुर्गंध बन जाती है
फिर बोझिल- सा लगने लगता है जीवन
स्वार्थ की पैनी दृष्टि जब
पड़ती है रिश्तों पर
कंकड़ की तरह
चुभने लगता है जीवन
बेबुनियाद जब अविश्वास
पनप उठता है
ताश के पत्तों के माफिक
बिखर जाता है जीवन…

by Pragya

“अवसाद का सुंदर स्वरूप”

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुझे लिखना कैसे आया ?
अक्सर ये सवाल कर बैठते हैं लोग
मैं कवियित्री क्यों बनी
यही जानना चाहते हैं लोग
पर कोई ये क्यों नहीं समझता
ये कुदरत का वरदान नहीं
मानवता का दिया दर्द है
रिश्तों में बनी गांठ है
मेरे दिल में बनी पस है
ये अवसाद का ही सुंदर स्वरूप है
आत्महत्या का विकृत रूप है
मेरी कवितायें,
मेरी काव्य प्रतिभा को नहीं दर्शाती
ये लोगों द्वारा मुझे नवाजा गया
पीर का सर्वोत्तम तोहफा है….
जो लेखनी के माध्यम से प्रस्फुटित होता है
फलता है, फूलता है..

by Pragya

ये रिश्ता क्या कहलाता है ???

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आँसू बहाते रहे हम रातभर
इन्तजार करते रहे
कोई आकर पोंछेगा !
कोई हाल तक पूंछने नहीं आया
सिस्कियां कमरे के बाहर तक
जाती रहीं
तड़पकर चीख भी निकलती रही
पर अनदेखा ही कर दिया सबने
हमें ऐतबार था कोई तो आएगा
जो सिर पर हाथ रखेगा,
संभालेगा, पुचकारेगा
पोंछेगा अश्क गालों से
देगा प्यार- दुलार बेशुमार
पूंछेगा रोने की वजह
कम करेगा दिल का दर्द
पर सब सुनते रहे
कोई नहीं आया
सब अपने ही हैं
रिश्ते तो हैं,
मगर कैसे हैं यही दिल सोंचता रहा…!!

by Pragya

आत्मा की संतुष्टि

December 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सुख की तलाश में हम
अनगिनत इच्छाओं की पूर्ति करते रहे
आशाओं के अम्बार
लगाते रहे
परंतु सुख तो केवल
आत्मा की संतुष्टि से ही मिलता है…

by Pragya

दिल दुःखाने लगे हैं लोग

December 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बेगाने हो गये हैं लोग
अब कतराने लगे हैं लोग
अपने साये से भी
अब कोई उम्मीद ना रही
जाने क्यूं इतना दिल दुःखाने लगे हैं लोग…

by Pragya

“आत्मीयता का अभाव”

December 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्यार के हजारों रंग देखे
मगर उन सभी रंगों में
आत्मीयता का अभाव ही मिलता है
लौटकर फिर
तुम्हारे पास आ जाती हूँ
फिर से उलझ जाती हूँ मैं
बातों के जंजाल में,
दुनिया के अनसुलझे प्रपंच में,
ना पूरी हो सकने वाली अकाक्षाओं में….

और बटोरने लग जाती हूँ
दर्द, सिस्कियां, वैमनस्य भरे चेहरों की परछाईयां !!

by Pragya

“विश्व मानवाधिकार दिवस”

December 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

१० दिसम्बर १९४८ ई० को
संयुक्त राष्ट्र सभा ने
संयुक्त रुप से मानवाधिकारों की
घोषणा को अंगीकृत किया गया…
जिसमें प्रस्तावना और ३० अनुच्छेद हैं
प्रस्तावना में कहा गया:-
हर मनुष्य को समानता एवं
स्वतंत्रता का समान अधिकार मिलेगा
उसे गौरवपूर्ण जीवन जीने का अधिकार है
मानव अपने हित के लिए
लड़ेगा,
उसके हितों की रक्षा संविधान करेगा..
आज हम मानवाधिकार दिवस मना रहे हैं
पर क्या सच में
अपने हितों की रक्षा कर पा रहे हैं ?????

by Pragya

*मांग की सिन्दूर रेखा*

December 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मांग की सिन्दूर रेखा
******************
हर सुबह बड़े
स्वाभिमान से सजाती हूँ
अपनी मांग में लाल सिन्दूर
मेरे रूप लावण्य में
मैं स्वयं एक
वृहद परिवर्तन पाती हूँ….
मांग की सिन्दूर रेखा
खूब लम्बी सजाती हूँ और
मैं आत्मिक संतोष पाती हूँ
यह मांग की सिन्दूर रेखा
मेरे परिणय के
सुंदर वट के समान है
यह महावर
मेरे आत्मगौरव का मान है…..
मेरी मांग का सिन्दूर
अन्तरिक्ष का ज्ञान है,
मनचलों के प्रेम का
अन्त है,
लौकिक प्रेम की पराकाष्ठा है
मेरे जीवन का मधुर आधार है
ये मेरी मांग की सिन्दूर रेखा……

by Pragya

ढूंढो मेरा प्रेम पथिक !

December 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ढूंढो मेरा प्रेम पथिक !
जाने कहाँ खो गया है
कंकड़ीली-पथरीली राहों में
विस्मृत-सा हो गया है
उदासीन राहों में राही
तुम भी भटक ना जाना
मेरा प्रेम मिले जो कहीं
उसे मेरी याद दिलाना
देना मेरा हाल पता
उसकी भी सुध लेते आना
यदि वह माने बात तुम्हारी
तो अपने संग ही ले आना…

by Pragya

मैं चाँद निचोड़ के लाया हूँ…

December 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पलकों पर सजे थे सपनें
मैं थी नींद के आगोश में,
वो आया सपनों में मेरे
बोला मुझसे हौले से;
पी लो रानी! प्रेम का प्याला
मैं चाँद निचोड़ के लाया हूँ
तेरी खातिर आसमान से
तारे भी ले आया हूँ
मांग सजा दूं आ तेरी
मैं रंगीन सितारों से
तेरे आँचल में रख दूं
तोड़ के फूल बहारों से
रजनीगन्धा महकेगा
नित तेरी जुल्फों में
यह कहकर वो अदृश्य हो गया
मेरी सोई पलकों में,
जब खोली आँखें मैंने
अश्क जमे थे अलकों में……

by Pragya

“मैं हलधर हूँ कहलाता”

December 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नाखूनों से नोंच जमीं
मैंने बोया है
मेहनत का बीज
हलधर हूँ कहलाता
चाहे कह लो
पीर-फकीर
पीता हूँ कुआं खोदकर पानी
बीती निर्धनता में जवानी
पर अपनी मेहनत से
भरता हूँ
मैं सबका पेट
आज मुसीबत
आन पड़ी
हक पे अपनी बात अड़ी
‘भारत बंद है’ तो क्या हुआ ?
कुएं में अभी भी भांग पड़ी
जो होना होगा सह लेंगे
छीन के अपना हक लेंगे
खोदेंगे हम सूखी जमीं
अश्रुओं से अपने सींचेंगे
जो लेकर चाँदी का चम्मच
पैदा हुए हैं राजकुमार
वह हम क्षेत्रपाल की
व्यथा को क्या समझेंगे..!!

by Pragya

और बेधड़ फिर धड़कता है दिल..!!

December 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारी मौजूदगी को
नजरंदाज करता है दिल
बड़ी मुश्किल से
संभलता है दिल
साँसों से ज्यादा
तेरी धड़कन में हूँ
यही आजकल
महसूस करता है दिल
जब तू होता करीब तो
थमती हैं साँसें
और बेधड़ फिर धड़कता है दिल..!!

New Report

Close