by Pragya

**बेचारा दिल**

October 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ये बेचारा दिल बस
तुम पर मरता है
पागल है जो तुमसे
इतना प्यार करता है
तुम्हारी बेरुखी से तो
मौत अच्छी है
पर ये दिल एक तेरी
ख्वाहिश में धड़कता है…

by Pragya

आज कुछ परेशान-सी हूँ मैं

October 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज कुछ परेशान-सी हूँ मैं
तेरी बेरुखी से हैरान-सी हूँ मैं
जमीं पर पैर भी नहीं रुकते
तितलियों के पंख भी रचते
खाली मैदान-सा है दिल मेरा
जहाँ परिंदे भी नहीं बसते
दिल के फैसलों में थोड़ी
नादान-सी हूँ मैं
जाने क्यूं
आज कुछ परेशान-सी हूँ मैं !!

by Pragya

कृष्ण कहाँ रोता है…!!

October 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज मन में विचित्र-सा खयाल आया
मेरा मन दुःखा और भर आया
क्यों सदियों से प्रेंम की परीक्षा होती है
क्यों पुरुष के पीछे स्त्री रोती है
होती क्यों है हमेशा एकतरफा मोहब्बत
क्यों कृष्ण के लिए कोई राधा रोती है ?
उत्तर बहुत सीधा-सा था
कुछ जाना पहचाना-सा था
स्त्री ही जग की दाता है
स्त्री ही भाग्यविधाता है
पुरुष कल भी आभारी था
पुरुष आज भी आभारी कहलाता है
नारी ही ममता की देवी है
प्रेम की जीवित मूरत है
इसीलिए किसी की खातिर
प्रेम में कोई कृष्ण कहाँ रोता है !!
मीरा ही गाती है भक्ति के पद
और कृष्ण चैन की बंशी बजाकर सोता है..

by Pragya

दो दिलों का व्यापार

October 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

करता है कौन, किससे प्यार यहाँ ?
प्यार तो है दो दिलों का व्यापार यहाँ…

जिसमें अपनी पूंजी कोई और लगाता है
पर उसका मुनाफा कोई और उठाता है…

by Pragya

‘गुजरा वक्त’

October 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

वो आज कहने लगे हमसे
लौट आओ फिर से
मेरी जिन्दगी में
बहार लौट आएगी…
मैंने एक धुन में कहा-
मैं गुजरा वक्त हूँ साहब
जो घड़ी बीत गई
फिर ना लौट आयेगी…

by Pragya

मुस्कुराती है जिन्दगी

October 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभी हँसना कभी रोना
सिखाती है जिन्दगी

दो राहगीरों को पास
लाती है जिन्दगी

जब प्यार में पड़कर
तड़प उठते हैं दो दिल

क्या बताऊं कितना
मुस्कुराती है जिन्दगी…

by Pragya

गैरों को मोहब्बत

October 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कितनी शिद्दत से हम तुझे चाहते थे
तुझको अपना नसीब मानते थे..
*********************************
तुमने हमें छोंड़कर गैरों को मोहब्बत बक्शी
पर हम तो फकत तुझे अपना मानते थे..

by Pragya

‘मेरा मजहब और मेरा खुदा’

October 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

क्या कहें अब
जब तू खफा
‘मैं फकीर और तू खुदा’
इबादत में तेरी मिट गया
मेरा मजहब और मेरा खुदा…

by Pragya

मेरा मुकद्दर

October 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ऐ खुदा !
क्यों है तू खफा
किस बात की तू मुझे
देता है सजा
मेरा मुकद्दर रूठा मुझसे
हमदम हुआ जबसे जुदा…

by Pragya

मेरा वजूद

October 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मेरे जज्बातों की कद्र
कभी नहीं की उसने
फकत आँसुओं की
सौगात दी उसने
हम उसी की खातिर
मिट गये यारों!
मेरे वजूद की कभी ना
फिक्र की जिसने…

by Pragya

हम कद्र करते हैं

October 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

भागते रहे अक्सर हम
उन लोगों के पीछे
जिन्हें हम प्यार करते थे !
पर कुछ हाथ ना आया
सिर्फ मायूसी के सिवा
अब बस हम उनकी
कद्र करते हैं
जो हमारी कद्र करते हैं…

by Pragya

आसमान की ऊंचाई

October 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

पैर जमीं पर ही रहने दो मेरे
क्योंकि अक्सर आसमान की
ऊंचाइयों से अपने दिखाई नहीं पड़ते…

by Pragya

साँसें

October 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

थोड़ी देर के लिए थम गई थीं साँसें
जब रुक गया था वो चलते-चलते,
मुड़कर देखा एक बार जब उसने
हम सहम गये और मध्यम हो गई साँसें.

by Pragya

“दिल का देवता”

October 27, 2020 in शेर-ओ-शायरी

यूं देखकर भी क्यों
अनजान बनते हो

देवता हो दिल के
क्यों हैवान बनते हो

मैं जानती हूँ तुम क्या हो
क्यूं सबके सामने महान बनते हो..

by Pragya

वो कतराने लगे हैं

October 27, 2020 in शेर-ओ-शायरी

वो हमसे कतराने लगें हैं
धीरे- धीरे दूर जाने लगे हैं
दिल में उनके जगह नहीं
बची है हमारे लिए,
तभी तो हमसे नजरें चुराने लगे हैं…

by Pragya

“बाँहों का हार”

October 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

दीदार करके उसका
मैं पाक हो गई
मेरी मोहब्बत से
जिन्दगी आबाद हो गई
करता रहा वो
मेरे इजहार का इन्तजार
पर
मैं किसी और की बाँहों का हार हो गई..!!

by Pragya

अब फुर्सत कहाँ

October 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जाने क्या सोंचती रहती हूँ
बस उसके ही खयालों में
खोई रहती हूँ
जिन्दगी अब फुर्सत कहाँ
देती है
अपनी उलझनों में ही उलझी
रहती हूँ…

by Pragya

मनमीत हो तुम

October 26, 2020 in मुक्तक

गीतों में सबसे प्यारा
गीत हो तुम
मेरे हमदम मेरे
मनमीत हो तुम
नहीं चाह मुझे
आसमां की बुलंदियों की
मेरी तो जीत हो तुम…

by Pragya

बेपनाह

October 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

दिल टूट जाने के बाद भी
प्यार है तुमसे
ऐसा क्यों है नहीं जानती हूँ मैं
बस इतना ही मालूम है मुझे
कि आज भी बेपनाह तुझे चाहती हूँ मैं…

by Pragya

वक्ता हूँ

October 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभी-कभी सोंचती हूँ कि
दूसरों को जो राय देती हूँ
क्या उसे मैं स्वयं अपनाती हूँ !
क्या मैं अपने अन्दर की गन्दगी मिटा पाती हूँ ?
जवाब आता है नहीं
मैं तो सिर्फ भाषण देती रहती हूँ
दूसरों को गलत और अपने आपको
पाक-साफ समझती हूँ
पर क्या करूं मैं तो ऐसी ही हूँ
श्रोता नहीं वक्ता हूँ मैं
अच्छी नहीं बुरी हूँ मैं
पर देती रहती हूँ दूसरों को ज्ञान
और कविता लिखकर हो जाती हूँ महान !!

by Pragya

“रावण दहन”

October 24, 2020 in Poetry on Picture Contest

दशहरे का रावण सबसे पूछ रहा है

हर वर्ष देखा है मैंने स्वयं को दशहरे पर
श्रीराम के हाथों से जलते हुये,

सभी को बुराई पर अच्छाई की जीत बताते हुये।

उस लंकेश को तो मर्यादा पुरुषोत्तम ने मारा था,

प्रभु श्रीराम ने उसकी अच्छाईयों को भी जाना था।

सभी इकट्ठे होते हैं रावण को जलाने के लिए,

दुनिया से पूरी तरह बुराईयों को मिटाने के लिए।

आज रावण स्वयं पूरी भीड़ से यह कह रहा है,

तुम में से कौन श्रीराम जैसा है यह पूछ रहा है?

क्या तुम अपने अन्दर की बुराइयों को मिटा पाये हो ?

क्या तुम सब अंशमात्र भी स्वयं को श्रीराम-सा बना पाये हो?

यदि उत्तर नहीं है तो क्यों मुझे बुरा मानकर रावण दहन करने आते हो?

तुम स्वयं ही हो बुरे तो क्यों मुझे हर वर्ष जलाने
आ जाते हो ?

यदि वास्तव में विजयादशमी मनानी है तो
मुझ जैसे कागज के बने रावण को मत जलाओ,

बल्कि अपने अन्दर के पापी रावण को मिटाओ
निर्भया और सीता जैसी नारी की लाज बचाओ

मत बनो विभीषण सम कपटी
लक्ष्मण सम भाई बन जाओ

ना करो लालसा बालि की तरह कुर्सी की
तुम भरत, अंगद सम बन जाओ

राजा दशरथ की तरह तुम अपने वचन
पर अडिग हो जाओ

शिक्षा प्राप्त कर प्रभु श्रीराम के व्यक्तित्व से फिर आना विजयादशमी मनाने तुम

अपने अन्तर्मन के रावण का दहन करके फिर आना मुझे जलाने तुम…

काव्यगत सौन्दर्य एवं विशेषताएं:-

यह कविता मैंने प्रतियोगिता की फोटो को ध्यान में रखते हुए लिखी है जिसका विषय ‘रावण दहन’ है.
मैंने इस कविता के माध्यम से सामज में व्याप्त बुराईयों के ऊपर कटाक्ष किया है.
रावण के माध्यम से समाज में फैली समस्याओं, कुरीतियों और हर मनुष्य के अन्दर छुपी बुराईयों को दर्शाया है.
मेरा आशय रावण को श्रेष्ठ दिखाने का नहीं वरन् समाज को एक अच्छा संदेश देने की है जिससे वह अपने अन्तर्मन को स्वच्छ करके राम के चरित्र से सीख ले और कुपथ को छोंड़कर अच्छे पथ पर अग्रसर हो.
समाज में नई चेतना आए और रामराज्य की स्थापना हो सके.

by Pragya

थोड़ी देर

October 22, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ना जाने आप में ऐसा क्या है
जो सबका मन हर लेते हो…

थोड़ी देर बैठो जिसके करीब
उसके दिल में घर कर लेते हो..

by Pragya

वह सब क्या था..??

October 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम कहते हो प्यार नहीं तुमसे
मान लेती हूँ तुम्हारी बात भी
पर हम दोनों के बीच जो था
वह सब क्या था ?

रख लेते थे तुम मेरी गोद में सिर अपना
तो चैन तुम्हें आ जाता था
बाबू-बाबू कहते रहते थे
वह सब क्या था ?

कभी-कभी गलती से इजहार भी
कर देते थे
घण्टों मुझसे बातें करते रहते थे
बेचैन रहा करते थे मुझसे मिलने को
बोलो जानू आखिर वह सब क्या था ?

आता था गुस्सा तुमको जब
पास किसी के जाती थी
रुक जाती थी साँसें
जब पास तुम्हारे आती थी
छू लेते थे तुम चाय के कप के
बहाने से मेरी उंगली
नजरों से नजरों का टकराना
वह सब क्या था ?

पास आने की खातिर होते थे वादे
धड़कन की धक-धक भी बढ़ जाती थी
भर लेते थे जो तुम मुझको बाँहों में
होंठों से होंठों का टकराना क्या था ?

एक रोज तुम मुझसे मिलने आए थे
बाइक पर मुझको लेकर जब घूमे थे
रख लेते थे हाथ मेरा तुम कमर पे अपनी
ब्रेक लगाकर मुझको पास बुलाते थे
डिवाइटर देखकर कितना खुश तुम होते थे
ऊबड़-खाबड़ रस्ते पर ही बाइक चलाते थे
इसी बहाने से मैं तुमको छूती थी
तुम मेरी हरकत पर मंद-मंद मुसकाते थे

प्यार नहीं था तो आखिर वह सब क्या था
जब तुम मेरी ओर खिंचे चले आते थे
बोलो ना कुछ आखिर वह सब क्या था ?

by Pragya

फैसला किसके हक में ???

October 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सब सो जाते हैं पर मुझे नींद नहीं आती
जितना उसको पाना चाहूँ
उतना ही दूर चली जाती..!

पलकें बंद करती हूँ स्वागत में उसके
मन भी शांत रखती हूँ
सुनती हूँ सदाबहार नगमें उसके लिए
पर नहीं आती फिर भी नींद..

अब उसकी शिकायत करने जा रही हूँ
देखती हूँ कब सुनवाई होती है
और फैसला किसके हक में आता है!!

by Pragya

“किरदारों का रंगमंच”

October 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ना जाने किन खयालों में
खोई रहती है दुनिया
मेरा-मेरा करती रहती है दुनिया
अपनी तो देह भी साथ नहीं देती
सब कुछ यहीं रह जाता है
फिर किस मद में चूर रहती है दुनिया
भाई हो या जीवनसाथी हो
कोई साथ नहीं जाता
बस दो-चार दिन जनाजे पर
रो लेती है दुनिया
कमा-कमाकर नोटों के
गट्ठर लगा लेते हैं सब
एक कौड़ी भी साथ नहीं जाती
जब छूट जाती है दुनिया
ऊपरवाले को कोई याद नहीं करता
जिसने बनाई है ये सुंदर-सी दुनिया
महज छलावा है जग में, सब नश्वर है
किरदारों का रंगमंच बस है दुनिया…

by Pragya

पगली लड़की….!!

October 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कितनी पागल हूँ मैं
ये आज सोंचती हूँ
तेरे चेहरे पर हर बार मरती हूँ..

सुनती हूँ तेरी आवाज तो
मयूर-सा नाच उठता है मन मेरा
तेरे करीब होने पर
सिहर उठता है तन मेरा..

तेरे दूर जाने के खयाल से भी
मेरा दम निकलता है
एक तुझ पर ही
ये मेरा दिल मचलता है..

रो पड़ती हूँ, तो कभी हँस पड़ती हूँ
लोग कहते हैं
मैं पगली लड़की हूँ !!

by Pragya

हमको दीवाना कर गये

October 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बाहर से आवाज आई
जब मैंने दरवाजा खोला
तो तुम थे…
तुम्हें सामने देखकर
थोड़ी शर्म आई
मैं रुकना चाहती थी
कुछ बोलना चाहती थी
तुम्हें छूकर महसूस करना चाहती थी
पर शर्माकर वहाँ से चली आई
सोंचा था थोड़ी देर ठहरोगे
तो एक बार और कर लूंगी तुम्हारा दीदार
पर तुम रुके नहीं चले गये
अपने साथ मेरा सुकून लेकर और
हमेशा की तरह हमको दीवाना कर गये…

by Pragya

रावण तो कब का मर गया

October 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हमेशा रावण को क्यूं फूंका जाता है
रावण तो कब का मर गया !
आज तो विभीषण ही विभीषण हैं
उन्हें पहचान कर सचेत रहने की जरूरत है

by Pragya

मेरा खोंटा सिक्का…!!

October 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दुनिया में हर तरीके के लोगों से
मिलने के बाद
दर-दर की ठोकरें खाने के बाद
सभी के प्यार को आजमाकर
गैरों से दिल पर चोट खाकर
समझ आ गया मुझको,
निरमोही है पर सच्चा है
‘मेरा खोंटा सिक्का’ ही
सबसे ही सबसे अच्छा है !!

by Pragya

ना….री…..ना…..री….!!!

October 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

औरत मजह कोई
दिल बहलाने वाला खिलौना नहीं
जीती-जागती इंसान है
कोई क्यों नहीं समझता
कि उसमें भी जान है
पुरुष स्त्री को सिर्फ
विलासिता की वस्तु समझ लेता है
उसकी भावनाओं के संग खेलकर
सिर्फ मजा लेता है
औरतें अपने आपको
प्रेम के वशीभूत होकर पुरुष को
समर्पित कर देती हैं
बिना उसके अन्दर के पापी विचारों को जाने
देवता मान बैठती हैं
उठ जाग नारी….
तुझमें ही है दुनिया सारी
जो तू समझे पुरुष को श्रेष्ठ
तो यह तेरी गलती है भारी
ना….री…..ना…..री….!!!

by Pragya

जीवन रेखा

October 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन की रेखा
बहुत लम्बी देखकर
मेरी आँखों में
आँसू आ गये
आखिर अभी और कितनी
तकलीफें झेलनी हैं मुझे !
कब तलक दर-दर की ठोकरें खानी हैं
कब तलक आँसू यूं ही बहाने हैं
यही सोंचकर रो पड़ी मैं
उदास हो गई
अपने हाथों में जीवन रेखा लम्बी देखकर…!!

by Pragya

मेरा जीवनसाथी

October 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जान जोखिम में डालकर
मेरी जान बचाई उसने
अधजले बदन को भी
प्यार से सराहा उसने
मेरे आत्मविश्वास को
अपने सहयोग से बढ़ाया उसने
विवाह करके मुझसे
अपना वादा निभाया उसने
दिया जीवन भर अपना प्यार
मुझ अभागिन को
अपनी अर्धांगिनी बनाया उसने
मेरे जीवनसाथी में सब कुछ पाया मैंने…

by Pragya

वो है मेरी माँ

October 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सच में बहुत बुरी हूँ मैं
कमियां ही कमियां हैं मुझमें
एक भी अच्छाई नहीं है
पर कमियों के साथ ही
जो स्वीकार करती है मुझे
वो है मेरी माँ…
हर गलती पर मुझे डाटती है
और फिर माफ कर देती है
वो है मेरी माँ…

by Pragya

“हमारी अधूरी कहानी”

October 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब तुम सामने आए
हम कुछ ना बोल पाए
होंठ सिल गये और
हाथ थरथराये
क्या हुआ मुझको अचानक
यह समझ ना मैं सकी
कहना जो था मुझको तुमसे
हाय! क्यों ना कह सकी
कुछ तो गलती थी तुम्हारी
कुछ हमसे भी हुई
नजर जब तुमसे मिली
दिल में हलचल-सी हुई
तुम जो ना मुस्कुराते
क्यों हम अपना दिल तुमसे लगाते
नहीं हम जो कह सके
क्यों ना तुम वो सुन सके
रह गई बस इसी वाइस
“हमारी अधूरी कहानी”
दिल दुःखा जब-जब तुम्हारा
मेरी आँखों से बरसा पानी…

by Pragya

***आखरी निशानी***

October 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बहुत आहत हूँ मैं
यूं समझ लो टूट गई हूँ मैं
मेरी सहेली की दी हुई आखरी
निशानी भी टूट गई
सालों पहले जो घड़ी दी थी उसने
आज टूट गई
रोई हूँ बहुत परेशान हूँ
अपने दिल का हाल किससे कहूँ
वो घड़ी थी मेरी प्यारी
मेरी सहेली की आखरी निशानी !
जो विदाई समारोह में
उसने पहनाई थी मुझे
क्या कहूँ कितना पसंद आई थी मुझे
नई नहीं थी वो थी पुरानी
पर मेरी सहेली की थी आखरी निशानी !
वो गरीब थी पर उसका दिल था बड़ा
अपनी पहनी हुई घड़ी उतारकर
मुझे दी थी उसने
उन आँखों में
भरा था प्यार बड़ा
मैं उस घड़ी की थी दीवानी
क्योंकि वो थी मेरी सहेली की आखरी निशानी..

by Pragya

तस्वीरें

October 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कई महीनों बाद
आज अलमारी खोली
तमाम तोहफे मिले
कुछ किताबें और
कुछ पुरानी तस्वीरें भी मिलीं
उन तोहफों को घण्टों देखकर
पुरानी यादें ताजा करती रही
देखती रही मैं अपनी एक-एक तस्वीर को
कितनी खूबसूरत लगती थी मैं
कितनी मासूम हुआ करती थी
अब तो उदास ही रहती हूँ
पहले कितना खुश रहा करती थी
उन तस्वीरों में जो प्रज्ञा थी
वो आज की प्रज्ञा से बिल्कुल जुदा थी…
कुछ तो बात थी उस जमाने में
जो तस्वीरें बयां कर रही थीं..

by Pragya

मैं मेरी भाभी और वो…!!

October 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज बाजार में
तुम्हें अचानक देखा !
मानो कोई सपना देखा
पता नहीं किन खयालों में खोई थी
कल रात जरा देर से सोई थी
मन ही मन सोंच रही थी
काश! तुम्हारे साथ बाजार आती
तुम्हारी बाइक की बैक सीट पर
बैठकर इठलाती…
तुम जो भी पसंद करते खरीद लेती
हाँ ! पर पैसे मैं देती..
यही सोंचते हुए चौराहा
पार कर रही थी
कि अचानक सामने तुम आ गये!
रोंकना चाहती थी तुम्हें
छूना चाहती थी तुम्हे
करना चाहती थी बातें ढेर सारी
पर बोली तक नहीं !
साथ में भाभी जो थीं हमारी !!

by Pragya

“दो मुट्ठी आसमां”

October 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तमाम ख्वाहिशें नहीं हैं मेरी
बस ‘दो मुट्ठी आसमां’ की ख्वाहिश है
पंख हों उड़ने का हौसला हो
और हों बेहिसाब मंजिलें
उड़ चलूं जिसमें मैं अकेली
ना हो कोई मुश्किलें..
चाहें जिस राह पर चलूं मैं
मगर सफर कभी खत्म ना हो
आसमान में चाँद-सितारे हों रौशन
नाकामयाबी का धुंधलापन ना हो….

by Pragya

कत्ल कर देना मगर…

October 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं सोचती थी तुम
बदल गये हो
नये रंग, नए ढाँचे
में ढल गये हो..
पर ऐसा कुछ भी
नहीं हुआ
तुम जैसे थे वैसे ही हो..

बस कुछ लोग पीठ पीछे
तुम्हारी बुराई किया करते हैं
मेरे पास बैठकर
तुम्हारी बातें किया करते हैं…
दिल ही दिल में
जल जाती हूँ मैं…
तेरी बेवफाई के किस्से
सुनकर मर जाती हूँ मैं…
कसम है तुम्हें
मुझसे बेवफाई मत करना…
चाहें कत्ल कर देना मगर
दिल मत तोड़ना..

by Pragya

“दिल का बोझ”

October 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिल पर एक बोझ लिये घूमती हूँ
ना जाने कहाँ रहती हूँ
क्या सोंचती हूँ
दिल की बेचैनी और बढ़ जाती है
जब तेरे करीब से गुजरती हूँ
तुम्हें हो ना हो मेरी जरूरत
पर मैं तो तुझे ही खुदा समझती हूँ
हर दुआ में मांग लेती हूँ तुझको
मैं तेरे ही ख्वाब देखती हूँ

by Pragya

जीेने के बहाने

October 18, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अगर तुम होते तो और उम्मीद होती जीने की
————————————————–
बहाने चार होते दुनिया से दिल लगाने के|

by Pragya

मेरा जिक्र

October 18, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जो मेरा जिक्र किया करता था
वो ही मेरी फिक्र किया करता था
हम उसकी कद्र किया करते थे
वो मेरी कद्र किया करता था

by Pragya

धीरे-धीरे…

October 18, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तुम नहीं हो तो कुछ भी
अच्छा नहीं लगता
तन्हाई से निकलने का
रस्ता नहीं मिलता
गुजरा जाता है यूं तो
दिन धीरे-धीरे
पर जिन्दगी तुझ बिन बिताना
अच्छा नहीं लगता…

by Pragya

धीरे-धीरे…

October 17, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तुम नहीं हो तो कुछ भी
अच्छा नहीं लगता
तन्हाई से निकलने का
रस्ता नहीं मिलता
गुजरा जाता है यूं तो
दिन धीरे-धीरे
पर जिन्दगी तुझ बिन बिताना
अच्छा नहीं लगता…

by Pragya

हम तुम्हें भूल गये!

October 17, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हम तुम्हें भूल गये!
यह गलतफहमी पालकर बैठे थे
एक दिन आ गये तुम
अचानक सामने
तब से दिल हार कर बैठे हैं..

by Pragya

“माँ शेरोंवाली तेरी जय होवे”

October 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

देवीगीत:- ‘नवरात्रि स्पेशल’
*********************
माँ शेरोंवाली तेरी जय होवे
ओ जोतावाली तेरी जय होवे|

‘प्रज्ञा’ झुकाए तेरे चरणों में शीश माँ
माँ शेरोंवाली तेरी जय होवे|

पूरी कर दे माँ मुरादें अपने भक्त की
ओ पहाड़ावाली तेरी जय होवे|

तेरे सिवा कौन अपना यहाँ है माँ
ओ मेहरावाली तेरी जय होवे||

by Pragya

“अन्तस के आऱेख”

October 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

खो गये सारे शब्द
अब जाने कहाँ !
जज्बात भी चादर
ओढ़ सो गये
कल्पना भी अब
कहीं विचरण नहीं करती
सपने सारे सपने हो गये
मेरे अन्दर की
कवयित्री अन्तस के आरेख’
बन गई
धुरी कविताओं की अधूरी रह गई!!

by Pragya

**मेरी कलम**

October 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब मेरी
कलम में वो
बात नहीं रही
दिल के अल्फाजों में
वो बात नहीं रही…
लिखने को तो
लिख देते हैं
टूटी-फूटी शायरी
पर जो बात
पहले की कविताओं में
हुआ करती थी
वो बात नहीं रही…

by Pragya

“वक्त बदला है’

October 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज तुमसे बात करके लगा
यूँ लगा जैसे वर्षों बाद
मेरी साँस में साँस आई..

ना तुम बदले ना तुम्हारा अंदाज
जैसे तुम थे वैसे ही हो
जैसी मैं थी वैसी ही हूँ..

बदला तो सिर्फ वक्त है
कल तुम सिर्फ मेरे हुआ करते थे
और आज किसी और के हो..

पर खुशी इस बात की है
कि तुम्हारी दीवानगी अभी तक नहीं गई
आद भी तुम मुझी पर मरते हो…

by Pragya

थोड़ा-सा वक्त और…

October 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हमें थोड़ा-सा वक्त और दो
हम अच्छे बन जाएगे
जैसा तुम कहोगी वैसा ही कर जाएगे
जितना करीब आओगी मेरे तुम
उतना ही सबसे दूर चले जाएगे
वादा है मेरा प्रज्ञा’ तुमसे
एक दिन हम तुम्हारे हो जाएगे
ना देखेगे हम किसी और की तरफ
रहेंगी निगाहें बस तेरी तरफ
होंगे हम वफादार प्यार में इतना
देखेंगे ना हम किसी और की तरफ
दोस्ती होगी पक्की हमारी
मानेंगे सारी बातें तुम्हारी
शायद प्यार भी हो जाएगा तुमसे !
तुम ही रहोगी दोस्त हमारी..
पर सारी बातें सिर्फ बातें ही रह गईं
तोड़ दिया विश्वास मैं अकेली रह गई
तुम जिस तरह तोड़ी मेरी आस
अब दोबारा ना होगा किसी और पर विश्वास…

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