कविता : हौसला
हौसला निशीथ में व्योम का विस्तार है
हौसला विहान में बाल रवि का भास है
नाउम्मीदी में है हौसला खिलती हुई एक कली
हौसला ही है कुसमय में सुसमय की इकफली
हौसला ही है श्रृंगार जीवन का
हौसला ही भगवान है
हौसले की ताकत इस दुनियां में
सचमुच बड़ी महान है ||
हौसले की नाव में बैठ जो आगे बढ़ा
मुश्किलों के पर्वतों पर वो चढ़ा
हौसला नव योजनाओं का निर्माण है
हौसला विधा का महाप्राण है
हौसले से ही उतरा धरती पर आकाश है
हौसला ही शक्तियों का पारावार है
हौसला है सच्चा मीत जीवन का
हौसला ही भगवान है
हौसले की ताकत इस दुनियां में
सचमुच बड़ी महान है ||
चलो खुद अपनी ताकत पर
बदल सकते हो तकदीरें
चमकेगा भाग्य का सूरज
तुम्हारे मेहनतकश पसीने से
मंजिलें दूर दिखेंगी
अपने ख्वाबों को मत छोड़ो
आलस छोड़ कर करो मेहनत
व्यर्थ नहीं यों डोलो
हौसलों के द्वारा ही मानव
विजयपथ पर गतिवान है
हौसले की ताकत इस दुनियां में
सचमुच बड़ी महान है ||
‘प्रभात ‘ रात दिवस जीवन का धागा
यहाँ वहां से उलझा है
ओर नहीं है ,छोर नहीं है
सिर्फ हौसलों से सुलझा है
हौसलों के आगे झुक जाते
बड़े से बड़ा शत्रु भी
हौसले के आगे नतमस्तक है
बड़े से बड़ा कष्ट भी
हौसले ने ही हराया ,असम्भव शब्द को
हर्ष में बदला है दर्द और विशाद को
हौसलों के द्वारा ही मानव
विजयपथ पर गतिवान है
हौसले की ताकत इस दुनियां में
सचमुच बड़ी महान है ||
हौसलों के द्वारा ही मानव
विजयपथ पर गतिवान है
हौसले की ताकत इस दुनियां में
सचमुच बड़ी महान है ||
———- कवि प्रभात सर आपकी यह कविता उच्चस्तरीय है। भाषा और शिल्प सब कुछ अदभुत। बहुत ही सुन्दर।
अति उत्तम रचना
वाह वाह