दम तोड़ती जिंदगी
अचानक से कर्ण में एक ध्वनि गूंजी ,
देखा तो भीड़ में कोई दम तोड़ रही थी,
पालन हार अपनी जिंदगी की जंग लड़ रही थी,
कटती अंग – प्रत्यंग के साथ काली घटा छा रही थी,
मानों अपनी कातर नजरों से बहुत कुछ कह रही थी,
प्राण खोने का भय न था उसमें जरा भी,
मानों किसी की तिवान उसे कचोट रही थी,
कौन देगा जीवन इस संसार को ?
पखेरू कहाँ ढूंढेगा अपना बसेरा ?
बटोही ढूंढेगा छाँव कहाँ ?
सुत करेंगे किलोल कहाँ ?
ओह !….. उसकी पीड़ा असहनीय थी ,
सवालों के साथ जिंदगी ने भी दम तोड़ दी,
नेक इरादा मानव स्वार्थ के बली चढ़ गयी ,
अकस्मात घनघोर बादल छा गयी ,
मानों प्रकृति भी मातम माना रही ,
पर मानव इसबार भी मूक दर्शक बनी रही l
इसबार भी मूक दर्शक बनी रही l l
Rajiv Mahali
Nice line
Thank you
कविता अच्छी है।
Thank you
Good
Thank you
ह्रदय स्पर्शी रचना
Thank you
बहुत खूब
Thank you
Very good
Thank you