पूस की रात।
पूस की रात।
थरथरा रहा बदन
जमा हुआ लगे सदन,
नींद भी उचट गयी
रात बैठ कट गयी।
ठंड का आघात
पूस की रात।
हवा भी सर्द है बही
लगे कि बर्फ की मही,
धुंध भी दिशा – दिशा
कि काँपने लगी निशा।
पीत हुए पात
पूस की रात।
वृद्ध सब जकड़ गये
पोर-पोर अड़ गये,
जिन्दगी उदास है
बची न उम्र पास है।
सुने भी कौन बात
पूस की रात।
रात अब कटे नहीं
ठंड भी घटे नहीं,
है सिकुड़ गयी शकल
कुंद हो गयी अकल।
न ठंड से निजात
पूस की रात।
गरम-गरम न वस्त्र है
सकल कुटुम्ब त्रस्त है,
आग की मिले तपन
सेक लूँ समग्र तन।
धुआँ – धुआँ है प्रात
पूस की रात।
अनिल मिश्र प्रहरी।
अतिसुंदर हृदयक भाव
धन्यवाद जी।
सुन्दर
धन्यवाद।
Sundar
धन्यवाद।
वेलकम
Nice
धन्यवाद।
Welcome
सुन्दर
धन्यवाद।
बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद।
Good
धन्यवाद।