गांठ बंधे रिश्तों में
गांठ बंधे रिश्तों में एहसास क्यों ढूँढ़ते हो सेहरा की रेत में प्यास क्यों ढूँढ़ते हो हर शख्स कुछ न कुछ दे ही गया ज़ख्म…
गांठ बंधे रिश्तों में एहसास क्यों ढूँढ़ते हो सेहरा की रेत में प्यास क्यों ढूँढ़ते हो हर शख्स कुछ न कुछ दे ही गया ज़ख्म…
दुनिया की रस्मों में इन्सां कहाँ मगर गया वो शहर की रौनक में कौन भर जहर गया अब भी बैठे ही उन लम्हों की चादर…
जिस भी किसी पर गई नजरे उसी का हो गया नादान सा ये दिल है मेरा हर किसी का हो गया ================ 1:- किस शर्त…
Ashru-purit nayan mere kyu—? Raah tumhari takte nhi thakkti Shunya matra bin tere jivan ke pal “Preet” hamaari kahte nhi thakkti Manuhaar dil ki,sune tera…
निगाहें उठाकर जिधर देखते हैं तुम्हें बस तुम्हें हमसफर देखते हैं उडीं हैं गुबारों सी अब हसरतें भी खड़े हम तो बस रहगुजर देखते…
मोहब्बत की गवाही देने लगती हैं धड़कने सुलझाने से सुलझ जाती है सब उलझने चाँद को पाने की हिम्मत आने लगती है ज़िंदगी में आती…
उनके अश्कों में भी इक रंग नजर आता है मुझे, तन्हा रातों में भी कोई संग नजर आता है मुझे, उल्फ़त में उनकी मैं…
कुछ ख्वाब कुछ अफ़साने वही लोग आये कुछ सुनाने अपनी अपनी वीरानी सब की देखने आये वो तेरे कुछ वीराने देखने आये वो फिर ज़ख्म…
वो फुरसतों के काफिले वो रोज़ मिलने के सिलसिले वो शहर कहाँ खो गया जहाँ पास रहते थे फासले कुछ तो हुआ अजीब सा खो…
कल दिल ने फिर गोते मारे, उसके कजरारे नैनों में हम अपना सब कुछ फिर हारे, उसके कजरारे नैनों में उसके नैनों में उतरे जब,…
अहवाल ए मोहब्बत की समझ हम में भी हैं तनिक सी , इश्क कर बेवफाई को बदनाम करना कुछ नया तो नहीं , यूँ मौत…
सहरा में मुझे तू किसी गुलशन की तरह मिल मैं मर रहा हूँ आ मुझे जीवन की तरह मिल तुझे देखकर शायद मुझे कुछ साँस…
देखिए आज ज़माना भी नहीं अच्छा है इस तरह घाव दिखाना भी नहीं अच्छा है हम खतावार नहीं खता फिर भी मानी दिल बिना बात…
रुसवा हो गयीं हो तुम या फिर समझ मैं नहीं पाया , यूँ नखरें दिखाना तिरी अदाओं में तो शामिल ना था, तड़प गर मैं…
एक युद्ध में कितने युद्ध छिपे होते हैं हर बात में कितने किंतु छिपे होते हैं नींव का पत्थर दिखाई नहीं पड़ता अक्सर रेल चलती…
किया है कभी गौर की गये मयखाने में और ना चढी शराब तो क्या होगा , गर पिला जायें कोई हुश्न के दो चार जाम…
मोहब्बत की नज़्मों को फिर से गाया जाए अपनी आज़ादी को थोड़ा और बढ़ाया जाए हक़ मिला नहीं बेआवाज़ों को आज तक हक़ लेना है…
ज़्यादा दिमाग़ न आज लगाया जाए सिर्फ मन में ज़मी मैल को बहाया जाए धर्म और परंपरा की ऐसी भी न कट्टरता हो कि होलिका…
हर चेहरे अपने पर कोई आश्ना न मिला गिला खुद से मगर कोई आईना न मिला अपनी तक़दीर-बुलंदी का क्या कहना बर्क़ को जब कोई…
सिर्फ एहसास है वफ़ा फिर छूने को जी करता है यह कौन देता है सदा सुनने को जी करता है हर शख्स का वज़ूद जुदा…
कतरा कतरा लहूँ का जिस्म में सहम गया चलो इसी बहाने रगों में बहने का वहम गया वो कोई हिस्सा था मेरे ही जिस्म का…
फासलों का मंजर देख कुछ याद आया किसी अजनबी शहर सा बस ख्याल आया कोई शोर नहीं किया आईने ने उस वक़्त जब देख चेहरा…
आयतों की खवाइश में इक मज़ार बन के रह गया दुनिया के कारखाने का बस औज़ार बन के रह गया न किसी मंदिर ,न मस्जिद…
“ हद से बढ़ जाए कभी गम तो ग़ज़ल होती है । चढ़ा लें खूब अगर हम तो ग़ज़ल होती है ॥“ इश्क़ है—रंग ,…
कुछ तो दायरे हो , जिसमे रहना जरूरी है जिस के अंदर खुद को भी रखना जरूरी है प्रगति के हम एक कारीगर है मगर…
चल पड़ा फिर जिस्म किसी राह में मन को छोड़ अकेला क्यों नहीं चलते दोनों साथ -साथ कोई रंजिश नहीं फिर भी रंजिश फूल की…
रात अपना ही कोई किस्सा बन जाता हूँ दिन के उजाले में कोई हिस्सा बन जाता हूँ निकल तो जाता हूँ बाज़ारों में कहीं शाम…
दरके आइनों को नाज़ुकी की जरूरत है गर आ जाएँ इल्ज़ाम यही तो उल्फत है फासले वस्ल के यू सायें से बढ़े जाते है ये…
वक़्त की चाल के अंदाज़ निराले तो न थे ख्वाब ही सो गए लेके कोई करवट शायद कहाँ तो आरजुएं थी तेरे मिलने की यां…
धुंधले आईने में कोई अक्स नज़र नहीं आता वक़्त की सुईया पकड़ने से वक़्त ठेहर नहीं जाता वो चिरागों सा रोशन कभी एक नूर सा…
हर सांस है मुजरिम न जाने किस गुनाह में हर ख्वाईश है क़ैद न जाने किस गुनाह में न कुछ बस में तेरे न कोई…
ज़िंदगी कभी गूंथे हुए आटे की तरह लगती कभी फायदे की कभी घाटे की तरह लगती आस के फूल हर शाख पे खिलने दो टूटी…
कोई दिल का मेरे चारागर होता यूँ न तन्हा मेरा सफ़र होता आज फिर दिल ने आरजू की है घर के अंदर मेरा घर होता…
हर लम्हा गुजर गुजर कर कुछ कह गया अपनी आँखों में हल्का सा कुछ तैरता गया ज़िद जिनकी थी वो ज़िद में रह गए हाथ…
रोज़ होती रही तेरे वादों की बरसात कमाल ये के कभी हम भीग नहीं पाएं तंगदिल है मेरा या तेरा सिलसिला क़ाफ़िर न तुम समझे…
एक जरूरी दस्तावेज ही तो है जीवन न कागज़ अपना न स्याही अपनी फिर भी भ्रम अपना कहने का अपनी सासें अपनी धड़कन से विवाद…
मुड़े कागज़ की तरह माथे की लकीरें बन गई है मेरी किस्मत की हाथों की लकीरों से ठन गई है अपने हिस्से की गिरवी रखी…
कभी तो मेरे माजी का क़त्ल कर दिया जाएँ जख्म जैसा भी हो कुछ पल भर दिया जाएँ माना की शब की जीस्त दुआओं से…
पत्थर ही पत्थर है दिल की जेब मेँ है बड़ी सच्ची मगर गर्दिशों की बात है अब के गर्मिओं मेँ ठंडक है तो हैरत किसलिए…
जाते जाते कुछ कह गयी ज़िंदगी समझ पाया तो ढह गयी ज़िंदगी करते गुजरा हर सांसों का हिसाब ज़िंदगी से कुछ कम रह गयी ज़िंदगी…
बिखरे ख्वाबों को बारहा चुनता क्या है ज़ख़्म तो जख्म है बारहा गिनता क्या है इन हवाओं से कब कोई मुड़ के देखा सेहरा की…
हर चेहरे अपने पर कोई आश्ना न मिला गिला खुद से मगर कोई आईना न मिला अपनी तक़दीर-बुलंदी का क्या कहना बर्क़ को जब कोई…
सिर्फ एहसास है वफ़ा फिर छूने को जी करता है यह कौन देता है सदा सुनने को जी करता है हर शख्स का वज़ूद जुदा…
बुझे चरागों को हवाओं का करम न दे मेरी हस्ती मिटने का कोई भरम न दे जो गुजरा नहीं खुद , मगर आखिर गुजरा तुम…
मेरे सफिनों का नाखुदा हो , जो तूफानों का तलबगार न हो मुझे ऐसा चराग बना दे जो हवाओं का कर्ज़दार न हो मेरे हिस्से…
कतरा कतरा लहूँ का जिस्म में सहम गया चलो इसी बहाने रगों में बहने का वहम गया वो कोई हिस्सा था मेरे ही जिस्म का…
हम लुत्फ़ कुछ बारिशों का यूँ उठा रहे है अपने आंसुओं को बारिशों में छुपा रहे है उसी को याद करना और हमेशा याद रखना…
मेरे तस्सवुर के रंग क्यों फीके होने लगे है मेरे सायें भी अब मुझसे दूर होने लगे है मैंने गिन गिन के सजाये थे जो…
रिश्तों का सत्य जो लगता यथार्थ से परे सदा मानते हुए छलावा हम जुड़े रहना चाहते है सदा ये रिश्तें जो खून से बनते ,खून…
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