Categories: मुक्तक
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करो परिश्रम ——
करो परिश्रम कठिनाई से, जब तक पास तुम्हारे तन है । लहरों से तुम हार मत मानो, ये बात सीखो त जब मँक्षियारा नाव चलाता,…
करो परिश्रम कठिनाई से
करो परिश्रम कठिनाई से, तुम जब तक पास तुम्हारे तन है । लहरों से तुम हार मत मानो, ये बात सीखो तुम मँक्षियारा से ।…
“भगवान बताएं कैसे :भाग-1”
कहते हैं कि ईश्वर ,जो कि त्रिगुणातित है, अपने मूलस्व रूप में आनंद हीं है, इसीलिए तो उसे सदचित्तानंद के नाम से भी जाना जाता…
सौन्दर्य एक परम अनुभूति है।।
सौंदर्य एक परम अनुभूति है, हमारे नेत्रों से आत्मसात होकर अन्तस तक जाता है। प्राकृतिक सौंदर्य हर मन को भाता है। काव्यगत सौंदर्य काव्य के…
भुलाके सादगी हमने
भूलाके सादगी हमने अपनी अस्तित्व ही मिटायी है । ब्रह्मचर्य को जिन्दगी का हिस्सा न बनाके अपनी सारी शक्तियाँ यूँही गँवाई है । किया है…
क्या बात है, बहुत खूब, “अपनापन अत्युत्तम रिश्ता,” ,में आनुप्रासिक अलंकरण से सुसज्जित, भाव प्रधान पंक्तियाँ, गागर में सागर है। यही खूबी है आपकी जो लिखा सटीक, लयबद्ध, अलंकारिक और स्तरीय लिखा, वाह।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका सतीश जी 🙏 इतनी सुन्दर समीक्षा के लिए आपका हार्दिक आभार ।आपकी समीक्षाएं बहुत प्रेरक हैं, मुझे लेखन में बहुत उत्साह प्रदान करती हैं ।
बहुत ही उम्दा ।
चमत्कारी लेखनी है आपकी
अरे, इस सुंदर समीक्षा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद सुमन जी 🙏
बहुत बहुत आभार आपका ।
बहुत ही लाजवाब कविता
बहुत बहुत धन्यवाद आपका चंद्रा जी🙏 आभार
बहुत सुंदर, wow
बहुत सारा धन्यवाद कमला जी,बहुत बहुत आभार 🙏
Nice
Thank you pragya
सुंदर
धन्यवाद भाई जी 🙏
बहुत शानदार
सादर आभार एवं धन्यवाद सर 🙏
बहुत खूब
धन्यवाद पीयूष जी 🙏
बहुत लाजवाब
बहुत बहुत धन्यवाद आपका इंदु जी 🙏
Bahut khhob
Thank you very much Isha ji
लाजवाब
शुक्रिया जी