सावन की रिमझिम बूंदें
सावन की रिमझिम बूंदों में,
भीगे तुम भी, भीगे हम भी
भीग गया है तन – मन सारा।
नभ से मेघा जल बरसाते,
धरती को हैं सरस बनाते
गीले हैं आगे के रस्ते।
अरे! अरे, आगे फिसलन है,
ज़रा संभलकर, हाथ पकड़कर
फिसल ना जाए पांव हमारा।
पवन तेज़ है, छतरी भी उड़ गई
कैसे पहुंचें अभी दूर है, लक्ष्य हमारा।
Very very nice
Thank you very much 🙏
बहुत बढ़िया
बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
वाह
भीगे तुम भी, भीगे हम भी
भीग गया है तन – मन सारा।
नभ से मेघा जल बरसाते,
धरती को हैं सरस बनाते
बहुत सुंदर पंक्तियाँ, लेखन प्रतिभा की उत्कृष्टता को दर्शाती कविता।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका सतीश जी 🙏 आपकी प्रेरक समीक्षाएं मुझे और बेहतर लिखने के लिए प्रेरित करती हैं। आपका हृदय से आभार।
बारिश के मौसम का लुफ़्त उठाने का अलग ही अनुभव होता है
रिम -झिम बारिश की बूंदें जब तन पर गिरती है काया आनंदित हो जाती है और चारों तरफ हरियाली को देखकर मन भी खुश हो जाता है
अतिसुंदर भाव
बहुत बहुत धन्यवाद मोहन जी 🙏 इस सुन्दर समीक्षा के लिए बहुत आभार।
बहुत खूब
धन्यवाद भाई जी 🙏
प्राकृतिक सुंदरता की सुन्दर प्रस्तुति
बहुत बहुत धन्यवाद प्रतिमा जी🙏
वाह बहुत शानदार
बहुत बहुत शुक्रिया जी 🙏
Very nice
Thank you very much chandra ji 🙏
बहुत उम्दा
Thank you sis
Very nice
Thank you isha ji
बहुत लाजवाब
बहुत बहुत धन्यवाद पीयूष जी 🙏