Geeta kumari
आया लोहड़ी का त्यौहार
January 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
ढोल बजाकर आग जला कर,
आओ लोहड़ी मनाएं
तिल गुड़ की बर्फी बना कर,
सब मिलजुल कर खाएं
सरसों का साग और मक्का की रोटी
मक्खन संग खाओ, स्वादिष्ट बड़ी होती
रंग बिरंगी पतंग उड़ाएं
मिल-जुल कर त्यौहार मनाएं
गज्जक की खुशबू मूंगफली की बहार,
थोड़ी सी मस्ती और ढेर सारा प्यार
मुबारक हो सबको लोहड़ी का त्यौहार
____✍️गीता
*आत्म-बल*
January 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
कभी कोई कांटे बिछा दे राहों में,
कांटे चुन-चुन के दूर कर दो।
इस तरह बढ़ाओ आत्म-बल,
कि अरि के स्वप्न चूर कर दो।
अन्धकार कर दे कोई राहों में गर,
तो जला मशाल तिमिर दूर कर दो।
प्रतिकूल परिस्थिति से ना घबराओ कभी,
स्थिति अपने अनुकूल कर दो।
मेहनत और लगन चलो संग लेकर,
कि मार्ग की बाधाएं दूर कर दो।
चलते रहो निरंतर बिन रुके,
कि एक दिन मंज़िल को फ़तह कर दो।।
_____✍️गीता
*आग्रह*
January 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
ये सर्दी का मौसम,
ये कोहरे का नज़ारा
आज है ये आग्रह हमारा
कोहरे में डूबी,
यह सुन्दर-सुन्दर सुबह
जी भर के जी लें,
आओ ना एक कप चाय,
क्यूं ना साथ-साथ पी लें..
_____✍️गीता
कला
January 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
अच्छे लोगों का,
अपनी ज़िन्दगी में आना,
सौभाग्य कहलाए
उन्हें संभाल कर रखना,
कहीं जाने ना देना
हमारी योग्यता कहलाए।
अनेक कलाएं हैं इस जहां में,
सबसे सुंदर कला क्या है
किसी के हृदय को छू लेना,
अब इससे बड़ा क्या है
_____✍️गीता
ख़यालात
January 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
ख़यालातों के बदलने से भी,
नया दिन निकलता है।
सुनो, सिर्फ सूरज चमकने से,
ही सवेरा नहीं होता।
हां ठंड में थोड़ी धूप भी जरूरी है,
बादलों के आने से अंधेरा नहीं होता।।
____✍️गीता
*भोर वाले मित्र*
January 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
अगर आपको है फिक्र,
अपने आर्थिक और दैहिक उत्थान की,
तो फ़िर बात सुनो एक काम की
आप अपने भोर वाले मित्र बनाएं,
जो आपके संग ,
नियमित रूप से सैर को जाएं
प्रभु का करते हुए नमन,
रात्रि वाले मित्र कृपया करें कम
कम शब्दों में ही,
अर्थ को समझ जाएं
तो आओ भोर वाले मित्र बनाएं।
_____✍️गीता
मेरे पापा
January 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
अब मैं बड़ा हो गया हूं,
पापा हो गए हैं बूढ़े
निज परिवार में रमता जा रहा हूं,
पापा को विस्मृत करता जा रहा हूं
कुछ कम ही सुनता है उनको आजकल,
कुछ कम ही दिखता है
एक ही बात बार-बार कहने पर,
मेरा मन भी अक्सर चिढ़ता है
अतः सुबह या शाम,
उनसे एक बार ही मिलता हूं
बहुत बीमार रहते हैं पापा,
जब से मां चली गई
कभी-कभी कमरे से उनके,
आती रहती कुछ बदबू सी
एक लड़का रखा है मैंने,
पापा की सेवा करने को
उसने कहा एक दिन मुझसे,
कोई पुरानी स्वेटर देने को
ढूंढ रहा था स्वेटर पुराना,
पुरानी एल्बम गिर गई
उसमें मेरे बचपन की,
सारी तस्वीरें मिल गई
उन दिनों पापा दफ्तर से,
थके हारे से घर आते थे
मैं दिन भर की बात बताता,
मुझे गोद में बैठाकर सारी बातें सुनते थे
बहुत बार नहलाते थे मुझको,
बाज़ार भी ले जाते थे
उन दिनों मेरे पापा, सुपर पापा कहलाते थे
युवा हुआ था जब मैं, मुझको
एक बाइक दिलवाई थी
बहुत दुखी थे पापा उस दिन,
जब बाइक से मैंने पहली बार चोट खाई थी
आज पापा की इस हालत पर,
मेरी आंख भर आई थी
पूरी एल्बम भी पलट ना पाया,
दौड़ा-दौड़ा पापा के पास आया
गीले कपड़ों में पापा,
उठने की कोशिश कर रहे
देख के मुझको हुए,गुनहगार सम
उनकी आंखों से आंसू झर रहे
“कोई बात नहीं पापा”, कह
लिपटकर फूट कर रोया
अभी बदलता हूं मैं वस्त्र आपके,
अब जाना इतने दिन मैंने क्या खोया
पापा बोले रहने दो बेटा,
तुम कैसे कर पाओगे
क्यूं पापा, जब मैं था छोटा
तो मैं आपका बच्चा था
अब मैं बड़ा हुआ हूं तो,
अब आप मेरा बच्चा हो
यह कहकर पापा से गले लगा,
अब मुझे सुकून सा मिलने लगा
______✍️गीता
*विश्व हिन्दी दिवस*
January 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
हिन्दी केवल भाषा ही नहीं,
मेरे वतन की पहचान है
हिन्दी का है हृदय में स्थान,
हिन्दी ही मेरा सम्मान है
हिन्दी की गूंज हो देश विदेश,
ऐसा मेरा अरमान है
हिन्दी मेरे भावों की जननी,
हिन्दी में चले मेरी लेखनी
हिन्दी में मेरा गर्व छिपा,
हिन्दी में छिपा मेरा गौरव
हिन्दी से जुड़ी मेरी सब मेरी भावना,
हिन्दी का हो विश्व प्रचार खूब
अब यही है मेरी कामना
भारत की बेटी है हिन्दी,
भारत के भाल की है बिंदी
कश्मीर से कन्याकुमारी तक,
हिन्दी हिन्द की पहचान है
हिन्दी में ही हो मेरी भावभिव्यक्ति,
हिन्दी है मातृभूमि पर मिटने की शक्ति
आइए हिन्दी बोलें, सीखे और सिखाएं,
विश्व हिन्दी दिवस की आज आपको शुभकामनाएं।
______✍️गीता
प्रवासी भारतीय
January 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
अपने वतन की मिट्टी को,
क्या कभी तू भुला पाएगा
जिस आंगन में खेला-कूदा,
क्या वो याद ना आएगा
जिस विद्यालय कॉलेज से
ली शिक्षा तुमने युवक
क्या उसके प्रति भी,
नतमस्तक ना हो पाएगा
जिस डिग्री के बलबूते गया परदेस,
वह डिग्री यहीं से पाई थी
क्या उस डिग्री को देख कर भी
आंख ना कभी भर आई थी
बन-संवर कर जहां से चला था,
क्या वो गलियां याद ना आती हैं
वो घर,शहर तेरा देश तेरी राह देखता
वो यादें कभी तो याद आएंगी,
तू लौटकर आएगा एक दिन,
ये मिट्टी तुझे बुलाएगी ।
_____✍️गीता
प्रवासी भारतीय दिवस पर मेरी ओर से प्रस्तुति
ऐ ज़िन्दगी तेरा शुक्रिया
January 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
ऐ ज़िन्दगी तेरा शुक्रिया
ज़िन्दगी तूने जो दिया,
उसके लिए तेरा शुक्रिया
कल कहने का वक्त मिले ना मिले,
जो भी तूने मेरे लिए किया
उसके लिए तेरा शुक्रिया
बचपन में ऐ ज़िन्दगी तूने ख़ूब हंसाया मुझे,
जवानी में मेहनत करना सिखाया मुझे
मेहनत से जो मिला ,
उसके लिए भी तेरा शुक्रिया
ऐ जिंदगी तेरा शुक्रिया
किसी के काम आ सकूं मैं कभी,
तूने ही सिखाया है ऐ जिंदगी
तेरी सीख के लिए तेरा शुक्रिया,
ऐ ज़िन्दगी तेरा शुक्रिया
चलते चलते कभी गिरी,
गिरते-गिरते कभी उठी
संभालने के लिए तेरा शुक्रिया,
ऐ ज़िन्दगी तेरा शुक्रिया
आगे भी साथ देना यूं ही
थामे रहना मेरा हाथ यूं ही
करती रहूं मैं तेरा शुक्रिया,
ऐ ज़िन्दगी तेरा शुक्रिया
____✍️गीता
लगा जैसे मां आ गई
January 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
पूस की ठंड में,
वह सिकुड़ता सिमटता सा जा रहा था
कोहरा भी उसकी ओर आ रहा था
सूर्य भी धरा से विदा लेकर,
अपने भवन जा रहा था
दिन ढलने लगा था,
तिमिर छलने लगा था
आग तापने की सोची उसने,
तभी झमाझम जल गिरने लगा था
फुटपाथ पर इतनी ठंड में,
कहां जाए वो बेचारा
ना कोई घर है उसका,
ना कोई है सहारा
बचने को आ गया,
एक छप्पर के नीचे
एक छोटी सी शॉल को
लपेटता ही जा रहा है,
तभी उसने देखा कि,
सामने से कोई आ रहा है
अधेड़ उम्र की एक महिला आ गई,
उसको एक स्वेटर थमा गई
आ गई उसकी जान में जान
एक पल को लगा उसे,
जैसे उसकी मां आ गई।
_____✍️गीता
जय हो किसान
January 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
हल उठाने वाले देखो,
हल मांगने आ गए
समस्या का हल,
कुछ ना कुछ तो निकलेगा
आज नहीं तो कल निकलेगा
ट्रैक्टर लेकर खड़े किसान,
अपने हक पर अड़े किसान
ना सर्दी की फिक्र है,
इस कड़कती ठंड में
सड़कों पर है पड़े किसान
शक्ति तो उनकी सदा ही दिखती,
अब साथ-साथ सब खड़े किसान
छोड़कर अपने खेत-खलिहान
अब दिल्ली आ गए किसान
भारत मां की है ये शान,
जय हो कृषक जय हो किसान
_____✍️गीता
*दोस्ती का रिश्ता*
January 7, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
जब वक्त मिले तो पढ़ लेना,
पढ़ लेना रिश्तों की किताब
कुछ रिश्ते मिलते हैं जन्म से,
कुछ रिश्ते देता है यह समाज
किन्तु निज चुनाव से जो रिश्ता,
पुष्पित-पल्लवित होता है हृदय में,
वो रिश्ता, दोस्ती का होता है लाजवाब
_____✍️गीता
दो किनारे इक नदिया के
January 7, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
दो किनारे इक नदिया के,
चलें साथ-साथ
पर कभी ना हो उनका मिलन
एक दूजे को देखकर ही,
रहते हैं दोनों प्रसन्न
मिलने की भी ना सोचें कभी,
दो किनारे इक नदिया के
उन दोनों के बीच की,
जल-धारा बहे निरन्तर
जल-धारा रहे निरन्तर
वो पावन जल ना सूखे कभी,
वो निर्मल जल ना सूखे कभी
ये ही चाहत करते रहते,
दो किनारे इक नदिया के..
____✍️गीता
*चाँद ज़मीं पर*
January 7, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
जब रात को मैं सो जाती हूं,
तो चाँद ज़मीं पर आता है
मेरे आंगन में खूब सारी,
वो चाँदनी छोड़ के जाता है
सुबह को जब मैं उठती हूं,
उस चाँदनी से मुंह धो लेती हूं
फ़िर चाँद के जैसे ही,
मेरा मुख भी चमचम करता है।
______✍️गीता
कल्पतरु सी बने कविता
January 7, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
कल्पतरु सी बने कविता,
सब के दुख हरे कविता
बेरोज़गारों को रोज़गार मिले,
बिछुड़ों को उनका प्यार मिले
ऐसी सुंदर बने कविता,
सुरतरू सी बने कविता
शोहरत की चाह हो उसे शोहरत मिले,
दौलत की चाह हो उसे दौलत मिले
निरोग रहे सभी का तन,
खुशियों से भरा हो सबका मन
ऐसी मंगल बने कविता,
देवतरू सी बने कविता
सबका सुखी घर-संसार रहे,
ऐसी कविता मेरी कलम कहे
“गीता” कहती है कुछ कर्म करो,
हो सके तो कुछ धर्म करो
मेहनत का फ़ल मीठा होता,
ये कथन कहे मेरी कविता
_____✍️गीता
यही तो जीवन है..
January 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
बचपन में जब मैं रोती थी,
तो हंसाते थे मुझे लोग
चलते समय जब गिरती थी,
तो उठाते थे मुझे लोग
अब बड़ी हो गई हूं तो,
हंसती हुई को रुलाते हैं
चलती हुई को गिराते हैं
रोती को हंसाने वाले,
अब भी हैं, वो मेरे अपने
कभी चलते हुए गिर जाऊं,
तो उठाने वाले
अब भी हैं, वो मेरे अपने
हंसते हुए को जो रुलाए,
उठते हुए को जो गिराए
वो अपने नहीं,
वो तो होते हैं पराए
यही तो जीवन है…
जितनी जल्दी कोई समझ जाए
_____✍️गीता
**हे मनुज**
January 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
*****हे मनुज*****
अपनी मेहनत से जो मिले,
उसमें ही तेरा दिल खिले
बढ़ते-चढ़ते देख किसी को,
कभी नहीं किसी का दिल जले
दूजे का हिस्सा ना खाऊं मैं,
निज मेहनत का ही पाऊं मैं
रहे सदा यही भावना
प्रभु से है यही कामना
स्वार्थ भाव मिट कर ,
प्रेम पथ का विस्तार हो
ना रहें किसी से शिकवे-गिले
ऐसा सुन्दर व्यवहार हो,
मेरे हक़ का भी ना ले कोई,
बस, मेरे हिस्से का मुझे मिले
_____✍️गीता
सर्दी का सितम
January 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
दुनिया से कटा कश्मीर,
बर्फ़ से अटा कश्मीर
मौसम का हुआ
पहाड़ों पर कहर
कांपा श्रीनगर और कांपा,
जम्मू-कश्मीर का हर शहर
डल झील जम गई,
उसकी रफ्तार थम गई।
बद्रीनाथ के पथ पर ,
बिछी बर्फ की सफेद चादर।
आसमान से गिरे
बर्फ के फ़ाहे
बन्द हो गई हैं,
आने जाने की सब राहें।
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में,
पर्वतों पर है बर्फबारी
कांप उठे सब नर और नारी
पर्वत कांप उठे सर्दी से,
सूर्य का कहीं पता नहीं
सर्दी का हर तरफ सितम है
सबको सर्दी सता रही।
डलहौजी की राहों ने भी,
ओढ़ रखी है बर्फ की चादर
हिमपात से लुढ़का पारा,
कांप उठा हिमाचल सारा
______✍️गीता
सौ वर्ष पुराना मन्दिर टूटा
January 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
सौ वर्ष पुराना मन्दिर टूटा
चांदनी चौक में
देखो लोगों का दिल टूटा
चांदनी चौक में
हनुमान जी की पूजा करने
आते थे जो भक्तगण
देखो उनका मन्दिर जाना छूटा
चांदनी चौक में
यदि सरकार चाहती तो
यह रुक सकता था
अदालत का आदेश भी
झुक सकता था
हो गया है हंगामा देखो
चांदनी चौक में
मन्दिर का तोड़ा जाना,
भक्तों की भावनाओं का आहत हो जाना,
ये क्या अहित हुआ है देखो
चांदनी चौक में
______✍️गीता
नोट:—-दिल्ली के चांदनी चौक में आज अदालत के आदेश पर 100 वर्ष पुराना हनुमान मन्दिर तोड़ दिया गया है। मेरी भी भावनाएं आहत हुई हैं, उसी संदर्भ में ये कविता प्रस्तुत की गई है।
सर्दी है बर्फ़ सी ठंडी
January 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
ठंडी-ठंडी पवन चल रही
भीगा-भीगा सा मौसम है,
सूर्य-देव ही कृपा करें
अब निकला जाता दम है
सर्दी है बर्फ़ सी ठंडी
मौसम भी कितना नम है,
सूर्य-देव से कहूं धूप भेज दें,
यहां धूप कितनी कम है
_____✍️गीता
मौसम
January 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
जय-जय शिव शंकर
सर्दी हुई भयंकर
जय-जय बम भोले,
गिरने लगे हैं ओले
आई तेजी से बरखा रानी,
झमाझम बरसा पानी
सर्दी से कांपे है तन,
निकला सा जाता है दम
ऐसे मौसम में हाए
गरम चाय बड़ी सुहाए
______✍️गीता
मासूम बचपन
January 4, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
बारिश में भीगते-भागते
खिलखिलाते वो दो बच्चे
ना सिर पर छतरी,
ना तन पर कोई रेनकोट
तेज़ हुई बारिश तो,
बैठ गए लेकर एक दीवार की ओट
चेहरे पर हंसी की फुलझड़ी
बालों से टपक रही थी
मोतियों की लड़ी
भीग कर भी खिलखिला रहे
दिख रहा ना कहीं कोई ग़म,
देख-देख मैं सोच रही थी
यही तो है मासूम बचपन
_____✍️गीता
मानवता
January 4, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
एक व्यक्ति का करने गए
थे अंतिम संस्कार
कच्ची-पक्की बना रखी थी,
ढह गई वह दीवार,
ढह गई वह दीवार..
बेमौत पच्चीस मरे,
यह क्या हो गया अरे !
लालच का ऐसा भी,
क्या आलम हुआ
गिरेंगी छत दीवारें चंद महीनों में ही,
क्या इतना भी ना अनुमान हुआ।
थोड़े से लालच की खातिर,
मानवता का कितना नुकसान हुआ
लालच बढ़ता ही जा रहा,
मानवता मरती जाती है।
क्या ये भी हत्या के सम ना हुआ??
सोच-सोच के रूह थर्राती है।
____✍️गीता
प्रेम-विवाह
January 4, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
यदि कोई युवक-युवती
चाहें प्रेम विवाह करना
तो उनके और परिवार के
सुख की खातिर,
कभी मना नहीं करना
प्रेम-विवाह नहीं होगा तो
माता-पिता की मर्जी वाले विवाह में,
वह सुख महसूस नहीं होगा
स्मृति में रहेंगी बीती यादें
फ़िर वो घर महफूज़ नहीं होगा
प्रेम किसी से विवाह किसी से,
यदि ऐसा हो जाता है
ज़िन्दगी भर का यह नाता
उस मजबूती से ना जुड़ पाता है
जाति धर्म कुंडली सब छोड़ो,
दिल से दिल का नाता जोड़ो
फ़िर दिल ना टूटेंगे,
सुहागिनों के घर ना छूटेंगे
भारतीय समाज में व्यवस्था-विवाह
माना एक सिंहासन है,
पर प्रेम विवाह की करो व्यवस्था,
दो प्रेमियों को मिलाने का,
ये भी तो एक माध्यम है
यदि ऐसा ना हो तो..
निज साथी में फ़िर ढूंढे वही पुराना,
ना मिल पाए उस जैसा तो
आरंभ हो उनका कुम्हलाना
निज संतानों पर ऐसे ना प्रहार करो,
दिलवा दो दिल पसंद साथी
ऐसे तुम उनसे प्यार करो
युवाओं के माता-पिता से,
हाथ जोड़ विनती है मेरी
जबरदस्ती के बंधन में बांध के,
ना उनकी ज़िन्दगी का बुरा हाल करो,
उनकी मर्जी का देकर जीवनसाथी
उनकी ज़िन्दगी को खुशहाल करो
_____✍️गीता
ये सतरंगी इन्द्रधनुष
January 4, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
ये सतरंगी इन्द्रधनुष
सात रंग से सज-संवर कर आया
अति सुन्दर सतरंगी इन्द्रधनुष
बरखा बरसे तब दिखता है,
अम्बर में यह इन्द्रधनुष
सप्तवर्ण यह इन्द्रधनुष
मोहित सी हो गई मैं,
उसकी छटा में खो गई मैं
यदा-कदा ही दिखता है,
नभ में यह इन्द्रधनुष
शोभा नभ की बढ़ जाती है,
जब जब दिखता है इन्द्रधनुष
मन-मोहित कर देता है,
यह सुन्दर सतरंगी इन्द्रधनुष
____✍️गीता
सब्जी वाला
January 3, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
वो मुफ्त में पालक काट दिया करता है
सब्जी के साथ मुफ्त में,
धनिया मिर्ची भी बांट दिया करता है
जेब से, मानो या न मानो
वो सब्जी वाला दिल से,
बहुत अमीर हुआ करता है
और तुम किस जगह चकाचौंध में,
मॉल चले जाते हो
सब दिखावटी है वहां पर,
वहां का सब्जी वाला..
“कैरी बैग” के भी पैसे मांग लिया करता है।
_____✍️गीता
*सावन पर*
January 3, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
हुई है बारिश खूब झमाझम
ठंडा-ठंडा हो गया है मौसम
मेरे आंगन का एक पौधा
है अभी जो थोड़ा सा छोटा
पानी ना मिल पाया था
उस पौधे को कुछ दिनों से
आज बारिश की बूंदों में
भीग-भीग कर,
लहरा रहा है
लगता है कुछ गा रहा है
लगता है लिखी है उसने
आज एक नई कविता
मेरा नाम लेकर मुझे बुला रहा है
कह रहा है.. आजा “गीता”
मेरी भी प्रकाशित करवा दे
सावन पर एक कविता
_____✍️गीता
*हुनर*
January 3, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
मुकद्दर में ज़्यादा हम मानते नहीं हैं
हाथों की लकीरों को पहचानते नहीं हैं
भरोसा है हमें अपनी ही लगन पर
बस उसे ही अपना ख़ुदा मानते हैं
कभी कहीं हो जाए हमसे चूक कोई
ख़ुद ही से ख़ुद के जवाब मांगते हैं
और ख़्वाब देखते हैं सुहाने अपने मन से
किसी से कुछ भी कहां मांगते हैं
पत्थर को तोड़ कर कंकर बना दे
हम ऐसा भी हुनर जानते हैं
_______✍️गीता
कस्तूरी
January 3, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
इश्क़ और मुश्क में
इश्क़ तो सभी जानें
और मुश्क ??
इसका क्या अर्थ है
मुश्क मतलब है कस्तूरी
कस्तूरी हिरण की नाभि में है
फिर भी इधर उधर भागे वो
कहां से आई है ये सुगंधि,
उसके ही अंदर है
ये भी ना जाने वो
घूमे इधर-उधर होकर दीवाना
यह सुगंधि उसके अंदर है
यह भी ना वो पहचाना
भागता है दौड़ता है
कभी-कभी करता है अहित अपना
निशा के अंधेरे से लेकर
जब तक हो ऊषा का उजाला
कस्तूरी मृग कस्तूरी की सुगंधि से ही
हैरान, परेशान हुआ मतवाला
_______✍️गीता
रिमझिम-रिमझिम जल बरसा
January 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
रिमझिम-रिमझिम जल बरसा,
आ गए काले बादल
दिन में छाया घोर अंधेरा
नभ में जैसे फैला काजल
बादल की आंख से जल बरसा
धूप को ये सारा जग तरसा
सर्दी के मौसम में
और भी ठंडा मौसम हुआ
देखो ना…
सब कुछ कितना निर्मल हुआ
लगता है सब धुला-धुला सा
अब मौसम हो गया खुला-खुला सा
धूल निकली वृक्ष, लताओं की
ठंडी-ठंडी पवन चली है
हरित पर्ण हिला-झुला कर,
दिखा रही है शान अपनी अदाओं की
कोहरा भी छंट गया,
कितना स्पष्ट सा दिख गया
______✍️गीता
कश्मकश
January 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
सूर्य उदित हुए
सुबह हुई
बड़ी ठंडी सी सुबह थी
सूरज ने भी कोहरे की
चादर ओढ़ रखी थी
वक्त का पता ही ना चला
कब सुबह हुई कब दिन ढ़ला
सुबह, दोपहर सांझ सब
एक सी हो गई
ज़िन्दगी भी यूं ही
कश्मकश में कहीं खो गई
_____✍️गीता
*अभिनंदन नव वर्ष तुम्हारा*
January 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
नए वर्ष की नई भोर है
स्वर्णिम-उजियारा चहुं ओर है
चेहरे चमके बगिया महकी
ओस सुबह की फिर से चमकी
उपवन में फिर फूल खिलेंगे
बिछड़े दिल भी आज मिलेंगे
सुंदर है कुदरत की चित्रकारी
क्या जंगल क्या पर्वतों की बर्फबारी
सागर की लहरें भी प्यारी
करती मीठा शोर है
स्वर्णिम उजियारा चहुं ओर है
है उल्लासित जग सारा
दूर होगा सब अंधियारा
खुशियों का लाएगा पिटारा
अभिनंदन नव वर्ष तुम्हारा
______✍️गीता
नूतन-वर्ष मनाना है
December 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
सागर की लहरों में जैसे खो जाएगा,
2020 भी अलविदा हो जाएगा
फ़िर नूतन-वर्ष मनाएंगे
(2021) नूतन-वर्ष मनाने से पहले
(2020) बीते वर्ष पर ग़ौर फरमाना है
फ़िर नूतन-वर्ष मनाना है
पिछला वर्ष कोरोना लाया था,
लॉकडाउन लगवाया था
तीन महीने की खातिर,
घर में सब को बंद करवाया था
लेकिन फिर भी कुछ महा-योद्धा,
पुलिस, चिकित्सक और रिपोर्टर
घर नहीं बैठे थे अपने,
पूरे करने को कुछ सपने
उन लोगों ने किए बहुत काम,
उन सब को मेरा प्रणाम
आज उन्हीं के सम्मान में,
गीत नया एक गाना है
फ़िर नूतन वर्ष मनाना है
बीते वर्ष ने सागर सा सबक सिखाया है
वह सबक अगली पीढ़ी तक ले जाना है
फ़िर नूतन वर्ष मनाना है
टीका इसका जब आएगा तब आएगा
लेकिन उससे पहले हमको,
कोई ढील नहीं दिखाना है
दो गज़ की दूरी ज़रूरी
और नक़ाब भी लगाना है
फ़िर नूतन वर्ष मनाना है
वर्ष के अंतिम दिन की चकाचौंध में,
भूल ना जाना सागर जैसी
उस विशाल बीमारी को
जिस कोरोना के कारण,
सारा संसार संकट में आया
शांत लहर सा सब्र बना के
इस कोरोना को भगाना है
फ़िर नूतन वर्ष मनाना है
____✍️गीता
नक़ाब——-मास्क
नव वर्ष से पहले
December 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
ज़रा सा मुस्कुरा देना
नव वर्ष से पहले
हर पीर भुला देना
नव वर्ष से पहले
ज़रा सा प्यार दे देना
नव वर्ष से पहले
टूटे तार जोड़ लेना
नव वर्ष से पहले
ना सोचो किस-किस ने दिल दुखाया था
नव वर्ष से पहले
ना सोचो किस-किस का दिल दुखाया था
नव वर्ष से पहले
सभी को माफ कर देना
नव वर्ष से पहले
नव वर्ष की शुभकामनाएं
नव वर्ष से पहले
______✍️गीता
सफ़लता
December 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
पिता के चरण छुए जो,
कभी गरीब नहीं होता
माता के चरण छुए जो
वो बदनसीब नहीं होता
अग्रज के चरण छुए तो
कभी गमगीन नहीं होता
गुरु के पैरों को छूकर
विद्या का वरदान मिले
विपत्ति सब पर आती है
कोई बिखर जाए
कोई निखर जाए
चलते रहना ही सफ़लता है
वरना तो हार है,
जियो तो ज़िन्दगी है
वरना सब बेकार है
____✍️गीता
उदित सविता की किरण
December 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
उदित सविता की,
किरण सुनहरी
उषा की आभा
है कितनी प्यारी
देती संदेश संसार को,
करती तिमिर को दूर है
धूप देती तपन लुटाती
सर्द मौसम में
सूर्य आभा सभी को सुहाती
_____✍️गीता
उनकी नज़र
December 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
हमें देखकर वो मुस्कुराने लगे,
उन्हें देखकर हम शरमाने लगे
जब मिली उनसे नज़र से नज़र
हम हो गए बेखबर
तो यह आलम हुआ….
वो धीरे-धीरे पास आने लगे
हम घबरा कर दूर जाने लगे
दूर भी तो जाने ना दिया
हमे रोक लिया कुछ गुनगुना कर
हम शरमा कर नज़रें चुराने लगे..
_____✍️गीता
*ज़िन्दगी जादू सी*
December 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कुछ दिनों से ज़िन्दगी “जादू” सी हो गई
कुछ भी काम करने से पहले धूप चाहिए
रात को तो धूप मिलती नहीं है
तो एक कप टमाटर का सूप चाहिए
काश किसी डब्बे में रख पाती इस मौसम को,
गर्मी के मौसम में यही ठंड चाहिए
लेकिन सर्दी की भी सीमा हो
पवन चले पर थोड़ा धीमा हो
खाने का तो मज़ा है
पर काम करना एक सज़ा है
सुहाती है सर्दी पर हो थोड़ी कम
चाय की चुस्कियों में मिटे सारे ग़म
_____✍️गीता
जब तुम दूर होते हो
December 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
जब तुम दूर होते हो
तो ये एहसास होता है
कर लूं आंख बंद अपनी,
तू मेरे पास होता है
आंख से अश्क आते हैं,
मगर लब मुस्कुराते हैं
अकेली जब मैं होती हूं,
नभ में घूम आती हूं
तुम्हारी यादें मिलती हैं राहों में,
उन्हें मैं चूम आती हूं
तेरा जाना मेरी आंखों में,
अधूरे ख्वाब बुनता है
फ़िर भी ना जाने क्यूं,
ये मन तुम्हें ही चुनता है
कहीं दूर से लाती है,
पवन जब महक तुम्हारी
चहक जाती है दिल की
यह वाटिका हमारी
तुम्हारी याद में आंसू,
रात को बर्फ बनते हैं
सुबह की गुनगुनी धूप में,
फ़िर वो पिंघलते हैं
इस तरह मैं अपने मन को
आबाद रखती हूं
कि रात और दिन
तुम्हें मैं याद करती हूं
_____✍️गीता
अश्रु की बूंद
December 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आंख से बह चली,
अश्रु की बूंद कुछ कह चली
तुम तो क्रोध कर गए,
मैं सब कुछ सह चली
नयनों से बह चली
अश्रु बूंद कुछ कह चली
तुम तो स्नेह में भीग उठे
मैं ओस की बूंद सी बह चली
तुम्हारी जुदाई सह गए
हम तो रोते ही रह गए
आंसुओं की कीमत तुम क्या जानो,
यह आंखों की नमी है
ना सिर पर आसमां है,
ना पैरों तले ज़मीं है
कहने को नेत्रनीर हैं
पर देते बहुत ही पीर हैं
और कहने को क्या बचा है,
जब से तुमसे दिल लगा है
_____✍️गीता
2020
December 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
चला ही जाएगा अब 2020,
दिए बहुत ही जिसने टीस
कई अपने बिछड़ गए
किसी के सपने बिखर गए
कोरोना का रोना ही रहा,
किस-किस ने क्या-क्या न सहा
किसी ने अपना जीवन खोया,
कोई जीवन-साथी से बिछड़ कर रोया
किसी का टूटा व्यापार,
किसी का छूटा घर बार
हे प्रभु, अब कभी ना ऐसे दिन लाना
मुश्किल में पड़ गया सारा ज़माना
_____✍️गीता
नया वर्ष
December 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
नया वर्ष खुशियां लाए
हम सब की हैं यही दुआएं
लोग मांगे नए साल में कुछ नया
मगर मुझे ए खुदा,
मेरे पुराने दोस्त ही भाएं
बस बना रहे उनका साथ,
यही दुआ मांगू दिन रात
तेरे आगे जोड़ के हाथ
_____✍️गीता
वीर शहीद
December 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
ह्रदय कांप उठा,
देखकर एक तस्वीर
बर्फ की पहाड़ियां थी,
एक मशीन गन जंग खाए पड़ी थी
वहां मौत मुंह बाए खड़ी थी
कुछ वीर जांबाज़ों के थे शव
शव क्या कंकाल ही थे,
उनके वस्त्र भी फटे हाल ही थे
वीर सैनिकों की वर्दी पहने,
पड़े हुए थे उनके कंकाल
हो गए थे सालों साल
किसी का पैर किसी का हाथ
पड़े हुए थे सारे साथ
यह दृश्य देख..
अश्रु गिर पड़े गाल पर
शहीदों के इस हाल पर
उन्हें देख कर कई उठे प्रश्न,
वीर शहीदों को है नमन
______✍️गीता
बेटियां
December 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
पापा की परी होती है बेटियां
मन की खरी होती है बेटियां
पापा बेटियों के लिए,
ज़मीं आसमां एक कर दें
क्योंकि एक पिता का
गुमान होती है बेटियां
हर किसी के घर की
शान होती है बेटियां
आंखें नम हो जाती है मां-बाप की,
उंगली पकड़कर चलना सिखाया था,
डोली में बैठकर
फ़िर चली जाती है बेटियां
छोटा सा सफ़र है बेटियों के साथ,
फिर तो पकड़ लें वो
अपने पिया जी का हाथ
बहुत ही कम वक्त के लिए
रहती है बेटियां
एक दिन ससुराल चली जाती हैं बेटियां
______✍️गीता
ठंडी हवा
December 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
झूठी हंसी से अच्छा है,
चलो खुल कर रो लेते हैं
बार-बार नजर अंदाज
होने से अच्छा है
कि नज़र आना ही छोड़ देते हैं
रोज़-रोज़ चोट खाने से अच्छा है
कि चलो हम चलना ही छोड़ देते हैं
बाहर ठंडी हवा बहुत ही तेज़ है
चलो हम घर से निकलना ही छोड़ देते हैं
_____✍️गीता
दूरियां
December 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
पास इतना रहो,
कि प्यार रहे
दूर भी इतना ही रहो,
कि इन्तजार रहे
दिलों की दूरियां
ना करना इतनी
कि पास आने को
ना कोई बेकरार रहे
____✍️गीता
चोट
December 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
फ़लक से उठा कर,
ज्यों जमीं पर पटक दिया हो
दर्द दे दिया है ऐसा
न जाने लग रहा है कैसा
दिल की चोट का पता नहीं है
पर कमर में दर्द बहुत है
सर्द हवा से चोट में
देखो ना चुभन बहुत है
लगा दो प्यार से मरहम,
तनिक दर्द हो ये कम
चैन हमें भी आए थोड़ा
सुकूं की सांस ले पाए हम
_____✍️गीता
जीवन का सच्चा आनन्द
December 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
पिता-पुत्र सैर को,
निकल पड़े खेतों की ओर
ठंडी-ठंडी पवन चल रही
चलते पानी का था शोर
कोयल कूक रही पेड़ों पर,
और कहीं नाचते मोर
तभी पुत्र ने वहीं पे देखा
एक जोड़ी पुराने जूते,
रखे हैं एक खेत के आगे
पुत्र को थोड़ी मस्ती सूझी
बोला अपने पापा से,
पापा हम ये जूते छिपाएं
फिर कोई उनको ढूंढेगा
तो उसका आनंद उठाएं
पिता हुए थोड़ा सा गंभीर,
दी पुत्र को फिर एक सीख
कभी किसी कमजोर की
कोई वस्तु गायब ना करना
प्रभु सब देखे हैं बेटा,
गरीब की आह से डरना
यदि चाहो आनन्द ही लेना,
तो फ़िर तुम एक काम करो
चंद सिक्के डालो जूतों में,
फ़िर पेड़ों के पीछे आराम करो
मज़दूर काम करके वापिस आया,
जूतों में सिक्कों को पाया
इधर-उधर फ़िर नजर घुमाया,
कोई उसको नज़र ना आया
घुटनों के बल बैठ गया
फ़िर होकर भाव-विभोर
दोनों हाथ जोड़ कर बोला नभ की ओर
हे प्रभु! किसी रूप में आज आप आए यहां
बिन आपकी मर्ज़ी के
ऐसा चमत्कार होता है कहां
हे प्रभु तेरा ऊंचा नाम
बीमार पत्नी की दवाई का,
भूखे बच्चों की रोटी का
कर गए हो इंतजाम
पिता-पुत्र पेड़ों के पीछे से,
देख रहे थे ये नजारा
पिता ने कहा,
क्या इससे अधिक आनन्द
मिल पाएगा बेटा दोबारा
कष्ट किसी के कम करके,
काम यदि तुम आ जाओ
फ़िर इस जीवन के सच्चे
आनन्द को तुम पा जाओ
_____✍️गीता
बेटा-बेटी
December 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
जब नारी का जन्म हुआ,
मां-बाप का चेहरा क्यूं सन्न हुआ
ये बात समझ ना पाती थी
जितना भी सोचूं उतनी ही उलझती जाती थी
हर गीत से लेकर कहानी तक
बचपन से लेकर जवानी तक
मैं डावांडोल सी रहती थी
ये दर्द मन ही मन सहती थी
“बेटा ही अच्छा होता है”
ऐसा क्यूं बोला जाता है
ये राज समझ ना पाती थी
मैं मन ही मन कुम्हलाती थी
फ़िर एक दिन मैंने ठाना
अपनी ये सोच बदले ज़माना
पुरानी पीढ़ी की सोच तो ना बदल पाई
अपनी अगली पीढ़ी को दूंगी संस्कार
बेटा-बेटी में फ़र्क ना करूं
यही होगी पुरानी सोच की हार
पीढ़ी बदली सोच भी बदली
बेटा-बेटी का फ़र्क मिटा
आज हमारी पीढ़ी ने
देखो ये इतिहास रचा
____✍️ गीता