कुछ लोग………..

बहुत शराफत से पेश आये कुछ लोग हमारे जनाजे पर आये कुछ लोग आखरी रस्म की कदर करी उन सब ने हमें कांधा देने आये…

चले आओ

मेरी मौत का तमाशा देखने चले आओ के मैं मर रहा हु मुझे देखने चले आओ कुछ तो मेरे दिल मैं भी अरमान होंगे तुम…

कहते है

खुद को शराब, और अपनी जवानी को नशा कहते है खुद है वो एक मुर्दा और हमको वो फनाह कहते है हुसन-ऐ-शबाब परोसना एक काम-ऐ-सबाब…

अदा-ऐ-इश्क़

बस एक यही अदा हमको उसकी भाती नहीं है के बुलाने के बाबजूद भी वो मिलने आती नहीं है, मोहोब्बत है उसको हमसे हम जानते…

तेरे शहर

तेरे शहर का मौसम मैंने अजीब देखा लोगो का वह पैर एक अलग तहज़ीब देखा, खरीद सके न मुझ से इंसा को वो एक कौड़ी-ऐ-खुसी…

ग़ज़ल

वो ख़्वाब; वो ख़याल, वो अफ़साने क्या हुए । सब पूछते हैं लोग; वो दीवाने क्या हुए ॥ अपनों से जो अज़ीज़ थे आधे—अधूरे लोग…

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