
Pragya
गुजार दी जिन्दगी..
September 10, 2020 in शेर-ओ-शायरी
गुजार दी मैंने जिन्दगी बस इन्तजार में
तुम आकर सम्भाल लोगे मुझे टूटते हुए..
यादें..
September 10, 2020 in शेर-ओ-शायरी
तुम्हारा और मेरा हाल
एक जैसा ही है,
तुम्हें गैरों से फुर्सत नहीं
हमें तुम्हारी यादों से…
ख्वाहिशें !!!
September 10, 2020 in शेर-ओ-शायरी
ख्वाहिशें थी तुम्हें पाने की साहब !
पर बदनामी के सिवा कुछ ना हाथ आया..
आरक्षण…
September 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
क्या है आरक्षण और
क्यों है आरक्षण ?
क्यों हमें जाति के नाम पर
अलग करते हो ?
जब देखो तब हम युवाओं
का बँटवारा करते रहते हो..
सवर्ण के हों इतने नंबर
तब ही आगे बढ़ पाएगा,
उससे कम नंबर वाला
कुर्सी पर इठलाएगा..
सोंचो कभी बीमार पड़ो तो
किससे इलाज करवाओगे !
जो हो मेरिट वाला या आरक्षण
वाले से चीर-फाड़ करवाओगे ?
तब तो तुम देखोगे नेताजी!
जो हो सबसे पढ़ा-लिखा
उसी डॉक्टर से इलाज करवाओगे,
यदि हुई गम्भीर बीमारी तो
एम्स में भर्ती हो जाओगे..
लेकिन आम जनता का जीवन
तुम अयोग्य डॉक्टर को सौंप दोगे,
बोलो आखिर कब तक तुम
आरक्षण के नाम पर राजनीति करोगे ?
बहुत पढ़ा है प्रज्ञा ने बुद्धी
के बारे में,
बिने, स्पीयरमैन, थार्नडाइक भी
ना बता सके आरक्षित बुद्धी के बारे में..
यदि बुद्धी जातिगत होती तो
अबुल कलाम देश का नाम
ना रौशन करता,
विकास दुबे इतना बड़ा
अत्याचारी ना बनता..
यदि बुद्धी सिर्फ सवर्ण को मिलती
तो रावण ऐसे कुकृत्य ना करता,
राम नाम की नैया खेकर
कोई केवट भवसागर पार
ना करता..
बुद्धी प्रकृति प्रदत्त है कोई
जातिगत विशेषता नहीं है भाई,
जैसे सबके लहू का रंग है एक
हो चाहे हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख
इसाई…!!
लॉकडाउन
September 9, 2020 in शेर-ओ-शायरी
कोरोना में लगा हुआ
लॉकडाउन तो हट गया
मेरी जिंदगी तो
लॉकडाउन में ही बसर करती है..
खुशबू नहीं रही
September 9, 2020 in शेर-ओ-शायरी
मुझे मिटाकर कहता है वो
तुम पहले जैसी नहीं रही,
फकत शक्ल ही बची है
खुशबू नहीं रही…
बनूँ मैं जानकी तेरी..!!
September 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
तू मेरी नज्म़ बन जाए
मैं तेरी नज्म़ बन जाऊं
तू मेरा राग बन जाए मैं
तेरा राग बन जाऊं
कुछ इस तरह जुड़ जाएं
अलग ना कर सके कोई
तू मेरी रूह बन जाए
मैं तेरी रूह बन जाऊं
ना शबरी हूँ ना अहिल्या हूँ
ना शूर्पनखा-सी हूँ कामुक
बनूँ मैं जानकी तेरी
तू मेरा राम हो जाए…!!
कितनी पी लेते हो !!
September 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कितनी पी लेते हो जो
होश नहीं रहता है
जमाना तुम्हें शराबी
कहके हँसता है…
इतना धुत हो जाते हो कि
कुछ भी याद नहीं रहता है!
किसे क्या कहते हो
कुछ होश तुम्हें रहता है…
पीटते बच्चों को हो
नशे में तुम
दुःखी करते हो अपनी
पत्नी को तुम…
छोंड़ते कहाँ हो तुम
पुरखों तक को
हो गली के गीदड़
बनते शेर हो तुम…
लाज आती ना तुमको
करनी पर अपनी
ताव देते हो तुम
मूँछों पर अपनी…
कहाँ की है यह
मर्दानगी बताओ
नालियों में गिरते चलते हो
अब ना और छुपाओ…
सब रहता है याद तुम्हें
नशे का सिर्फ बहाना
ये नाटक जाकर तुम
कहीं और दिखाना…
ना जाने कितने घर नशे में
बर्बाद हो गए
ना जाने कितने लोग
मौत की नींद सो गए…
छोंड़ दो आज से तुम ये
दारू पीना
सीख लो बीवी बच्चों की
खातिर जीना…
गीत, गज़लें लिख रही हूँ..
September 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
गीत, गज़लें लिख रही हूँ
कुछ अलग ही दिख रही हूँ
होंठों पर हैं लफ्ज अटके
मन ही मन में पिस रही हूँ
आ गई अब शाम, दिन की
दोपहर ही लग रही हूँ
गुनगुनी-सी देह है और
ठण्डी-ठण्डी रात है
नींद है भटकी हुई सी
सिमटी-सिमटी लग रही हूँ
कुछ अलग ही दिख रही हूँ..
भाईदूज की मिठाई..!!
September 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
अपने भाई दूज की तुमको
खिला मिठाई
आँखों में थी हया
ग्लास पानी का लाई…
तुम तिरछी नज़रों से
मुझको यूँ देख रहे थे
मन ही मन में कितने
लड्डू फूट रहे थे…
ना तुम बोले ना हम बोले
दोनों में यूँ लाज भरी थी
कुछ मजबूरी भी थी
क्योंकि घरवाले भी देख रहे थे…
मैं बोली इसी लायक हो तुम
भाई दूज की खाओ मिठाई
तुमने कितनी तैश में
मुझको प्लेट घुमाई…
तब तक पीछे से आ
धमकीं मेरी भौजाई
तुम फिर से खाने लगे
लड्डू और मिठाई…
मैं रोंक सकी ना खुद को
हँसी जोर से आई
हालातों ने कुछ ऐसी
प्रेम की वाट’ लगाई…
मुझको सो जाने दो जीवन !!
September 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
मुझको सो जाने दो जीवन
रात हुई अब बहुत घनी
नैनों से ओझल हैं सपनें
साँसों से भी ठनी-ठनी
आसमान बाँहें फैलाकर
मेरे स्वागत को आतुर है
धरती पर बस बोझ बनी हूँ
मिट्टी में मिल जाने दो
रो-रोकर धो दिए दाग हैं
मैंने सूखे अश्कों के
ओ तकिये ! मेरे आँसू पोंछो
तन्हाई मुझको जाने दो !!
मुझको सो जाने दो जीवन
मिट्टी में मिल जाने दो ||
निराली दुनिया..
September 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी
बहुत निराली है ये दुनिया प्रज्ञा !
यादों की बात तो करती है पर
याद नहीं करती…
जब से अलग लिखनें लगे..
September 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
जब से अलग लिखने लगे
हम सस्ते में बिकने लगे
मौजें अलग होने लगीं
पंख भी गिरने लगे
बहरूपिया मन मोहकर
बन बैठा है मेरा पिया
हिय को अलग ना कर सके
सपनें जुदा होने लगे
स्पर्श जब उनका मिला
एक पुष्प-सा मन में खिला
ना रह गए हम पहले से
बस कुछ अलग दिखने लगे
कल्पना की चाबियां
खो गईं हमसे अभी
पैर भी टिकते नहीं
अब हाथ भी हिलने लगे
यहीं तक सफर था अपना
जा रही हूँ लौटकर
पहले दुःखता था हृदय
अब छाले भी दुःखने लगे !!
पीर का उपहार !!
September 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आपको लगता है क्या
मैं चाँद हूँ या चाँदनी
रात के झुरमुट में बैठी
हूँ मैं कोई अप्सरा
गीत हूँ या हृदय की
टूटी-फूटी रागिनी…
आपको लगता है क्या..
अमरत्व का वरदान हूँ या
करुणत्व की उत्श्रृंखला
हूँ सरोवर प्रेम का या
पीर का उपहार हूँ !!
जो सोया है अंधकार में…!!
September 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
जो सोया है अन्धकार में
जागेगा नवल प्रभात
उठ-उठकर देखेगा किरणें
सूर्योदय सम होगा ललाट
रजत-चाँदनी में स्वप्न को
नित पुष्पित कर देखेगा
नारी सम्मोहन छोंड़ कवि
अब प्रगतिवाद में चमकेगा
बहुत हुआ प्रज्ञा! अब जीवन
किसलय सम पुष्पित होगा
तेरे अन्तस में सुन्दरतम्
उच्छवास होगा
तेरे मन-मण्डप में दुल्हन
सरिस सजेगी कविता
पाकर तेरे भाव सौष्ठव
बन बैठेगी वनिता ||
क्या लिखूँ खत में तुमको..!!
August 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
क्या लिखूं कुछ भी समझ आता नहीं
कोई भी अल्फाज दिल को अब भाता नहीं..
लिख तो चुकी हूँ हजार दफा खत तुमको
आज क्या लिखूँ खत में तुमको
कुछ भी समझ आता नहीं..
सवाल उठता है क्या तुम खत पढ़ते होगे!
मेरे खतों को संभाल के रखते होगे!
ऐसा कुछ भी तुम करते होगे ऐतबार आता नहीं
क्या लिखूं, क्या लिखू? उफ!
कुछ भी समझ आता नहीं…
आज बहुत उदास है दिल ये मेरा
August 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आज बहुत उदास है दिल ये मेरा
जब से तुम मेरे सामने से आकर गए
लगता है कुछ छिन-सा गया है मेरा
भूला तो दिया था मैंने कब का तुझे
पर आज लगा जैसे गलत थी मैं
तुम्हारी धूप पड़ते ही क्यों
धुंधला गया जहान
सांसे क्यों थम गईं
रुक गया क्यों समा
तुम आस-पास मेरे आया ना करो
बड़ी मुश्किल से निकल पाई हूं सदमें से तेरे…
अगर मैं गलत निकली…
August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी
अगर मैं गलत निकली तो
कुछ भी हार जाऊंगी,
लगा लो शर्त मुझसे तुम
यकीनन हार जाओगे..
मेरी सखियां..
August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी
मेरी क्या मजबूरियां हैं
कैसे बताऊं तुम्हें!
मेरी सखियां भी कहती हैं
तुम बात क्यों नहीं करती …
ऐतबार..
August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी
कैसे होगा ऐतबार उन्हें
वफा पर मेरी,
आजकल बहुत झूठ
बोलती हो !
वो कहा करते हैं…
कांटे बिछाते क्यों हो?
August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी
जब तुम्हारे और मेरे रास्ते अलग हैं तो
मेरे रास्तों में आकर कांटे क्यों बिछाते हो?
कोई मोहब्बत नहीं है हमसे अगर
तो एहसान जताते क्यों हो?
चीन
August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी
फौज की तादात बढ़ाने से
कुछ नहीं होगा चीन
जंग जीतने के लिए
शेर-सा जिगरा होना चाहिए..
आजकल
August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी
आजकल वह बड़ा बेचैन रहते हैं..
हम जो जरा हँसकर किसी से बोल देते हैं..
मेहनत करने वाले
August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी
मेहनत करने वाले मंजिल को पा जाते हैं
और बेचारे कामचोर गाल पीटते रह जाते हैं..
पतन की बात
August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी
जो नाउम्मीदी की डगर से गुजरते हैं
वो ही शक्स पतन की बात करते हैं..
खैरात
August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी
मंजिल पाने के लिए मैंने किसी से खैरात
नहीं मांगी..
अपनी मेहनत से बुलंदियां हासिल की
हैं..
एक अर्से के बाद
August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी
बड़ी बदनामियां उठाने के बाद
आज मैं फिर मुस्कुराई…
एक अर्से के बाद जब मेरी
जान लौट आई…
भागीरथी..
August 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
पापनाशक भागीरथी
को इन्सान ने मैला कर दिया।
राम तेरी गंगा मैली’ को
हमने कड़ी मेहनत से
चरितार्थ कर दिया।
धो रही थी अब तक जो
हमारे पाप को
अपने पुनीत कर्मों से
हमनें उसकी पवित्रता को धो दिया।
बहाकर मैल नालियों, नदियों का
हमनें देख तो
ओ राम !
हमनें अब तेरी गंगा को मैली
कर दिया।
गंगाजल…
August 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
गंगाजल की भी
अपनी ही महिमा है।
तभी बिकने लगा है
आजकल
जाने किस मिट्टी का है
इन्सान यहाँ !
मिट्टी तो छोड़ी नहीं
अब गंगाजल भी नहीं छोड़ेगा।
बात अच्छी भी है कि
अब खतों के साथ डाकविभाग में
गंगाजल भी उपलब्ध रहेगा।
🙂🙂🙂🙂
भारतीय परिधान…
August 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
भारतीय परिधान सजीला
पहने जो भी लगे रंगीला।
देखी मैने एक सुन्दर बाला
हाँथों में चूड़ी, कानों में बाला।
जुल्फें जिसकी काली-काली
होंठों से टपक रही थी लाली।
माथे पर थी नीली बिंदी
होंठों पर थी अनुपम हिंदी।
सुन्दर साड़ी लाल किनारी
कमर में बिछुए भारी-भारी।
कहीं संभाले पल्लू सरपट
चाल थी उसकी डगमग-डगमग।
पीठ छुपाती कहीं बेचारी
असुविधाजनक थी साड़ी भारी।
खूबसूरती परिधान में होती
नज़र है जिनकी गंदी होती।
यही अलापें वह दिन-रात
जो रखते हैं दिल में पाप।
कविता किया करो
August 29, 2020 in मुक्तक
छोंड़कर बातें पुरानी
कविता किया करो।
सपनों में नहीं
हकीकत में जिया करो।
तोड़ दे दिल कोई तो
खैर तुम उसकी मनाओ
दिल के लिए अच्छा
यही है कि
पुरानी बातों पर
मिट्टी डाल दिया करो।
चलो एक बार..
August 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी
चलो एक बार हम
फिर से दिखावा आज करते हैं
तुम पूँछो की कैसे हो ?
हम कह दें की अच्छे हैं।
अब तो रातों में रोना भी
हमको खूब आता है
बस एक बार तेरी बेवफाई
याद करते हैं।
तेरी बेवफाई..
August 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी
नज़रंदाजी को तेरी मैं मजबूरी समझती थी..
तेरी बेवफाई को ये प्रज्ञा प्यार कहती थी..
तुलसीदास
August 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी
तेरे दर्द के बाद सोंचती हूँ मैं
क्यों जन्म दिया ऊपर वाले ने मुझे !!
ठोकर खाने के लिए
या तुलसीदास बनने के लिए !!
मेरे दामन को..!!
August 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी
मेरे दामन को सरेआम
दागदार कहता है,
गंदी नाली का कीड़ा है तू
गंगाजल को अपवित्र
कहता है..!!
बिना धागे के
August 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी
मुझे जख्म लगते ही
वो सिलने बैठ जाता था…
बात इतनी-सी थी कि
वो बिना धागे के सिलता था…
❤ दिल के छाले…!!
August 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
❤❤ अभिव्यक्ति दिल से ❤❤
_______________
बेइन्तहां
मोहब्बत थी
उनसे हमें
एक छींक पर भी
जान निकलती थी
हमारी….
ना जाने क्यूँ उन्हें
हमसे मोहब्बत
ना हुई!
इसमें भी शायद
खता थी हमारी..
जब वो बीमार होते थे
हम हमेशा उनके
पास होते थे…
फिर भी नहीं की
कदर उसने हमारी..
शायद इसमें भी
खता थी हमारी…
किसे दिखाएं
अपने दिल के छाले!
कोई नहीं समझेगा
मोहब्बत हमारी…
उल्टा मुझी पर
हँसेगा जमाना
जो भी सुनेगा
कहानी हमारी…
नारी होना अभिशाप नहीं…।
August 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
नारी हूँ मैं
मुझे इस बात का गर्व है…
नारी का जीवन
बसंत का पर्व है…
अपने सुगंधित पुष्पों से
नारी महकाती है घर-गगन
हरियाली खुशियों की
फैलाकर….
नित्य पल्लवित करती है सुमन…
नहीं है पतझड़- सी अभागन
भर देती है खुशियों से आंगन…
सब को खुश रखने में ही
लगी रहती है…
अपने सपनें भूल कर
दूसरों के सपनों को
पूरा करने की कोशिश करती है..
इसीलिए नारी होने पर
मुझे फक्र है
नारी के आगे तो
नतमस्तक कालचक्र है…
नारी होना अभिशाप नहीं
ईश्वर का आशीर्वाद है…।।
उर्मिला की विरहाग्नि
August 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
जब मैं कली बन मुस्कुराई अली
तब ही प्रियतम बन आए अली…
घेरा मुझको बाहुपाश में
डूब गई मैं प्रेमपाश में…
प्रिय चले गए वनवास अली
जब बिछोह की हवा चली…
नित क्रंदन, रुदन करूं मैं अली
कामेच्छा से विरहाग्नि भली…
ना मैं जलूँ सती सम अग्नि की ज्वाला
ना डूबूँ लक्ष्मी सम पयोनिधि धारा…
हे प्रभु! जब दी विरहाग्नि मुझे
करो सहने की भी शक्ति प्रदान मुझे…
बीते शीघ्र निशा हो सुप्रभात
उर्मिला की कर दो आकर प्रतीक्षा समाप्त…
आ गया तेरा भाई…!
August 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आज बहुत व्यथित थी
बार-बार निगाहें दरवाज़े
तक जाकर लौट आ रही थीं….
ना जाने कहाँ रह गए वो!
मेरा बेचैन मन
मुझे अधीर कर रहा था….
कहा तो था जल्दी ही
आ जाऊंगा
ना जाने कहाँ रह गए वो!
जितनी बार गली से
कोई आहट आती
मन की गति से भी जोर
मैं भागती
दरवाज़े पर निहारती
और हताश होकर
लौट आती…
ना जाने कहाँ रह गए वो!
तभी बाहर से आवाज आई
कहाँ हो बहना!
मन प्रसन्नता से
झूम उठा
आँखों में चमक आई
मेरी बेचैनी ने
मुझे छोंड़कर जाते हुए कहा
लो आ गया तेरा भाई…
सूर्य का स्वागत
August 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
नई भोर है सूर्य का स्वागत
करेंगे हम…
खिड़कियों से पर्दे हटा
किरणों से नहाएगे हम..
तितलियों के पंख से चुरा लेंगे
तमाम रंग
फीके आसमां पे जा नित नवीन
चित्रकारी करेंगे हम..
सागर की लहरों से सीख लेंगे…
जीवन के उतार-चढ़ाव
पंख खोल आसमां में जा
उड़ेंगे हम…
पपीहे की पुकार सुन झूम
उठेंगे मन-गगन
और रेत से कभी फिसला
करेंगे हम…
चुरा लाएगे एक रोज़ हम
समय की चाबियां
वक्त-बेवक्त फिर जगा
करेंगे हम…
माँ मुझे चाँद की कटोरी में
August 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कितना नादान था वह बचपन जब…
माँ मुझे चाँद की कटोरी में
खिलाती थी…
मैं खाना खाने में नखरे
हजार दिखाती थी…
पर माँ चाँदनी रात में कटोरी
में जल भर लाती थी..
मेरी बाँहें पकड़कर
माँ मुझे गोद में बिठाती थी..
याद करती हूँ मैं कि कितना
भोला था बचपन जब माँ
मुझे
चाँद की कटोरी में खिलाती थी…
ना-ना करने पर मुझे प्यार से
मनाती थी..
उस जल भरी कटोरी में
माँ मुझे चन्द्रछाया दिखाती थी…
मैं पगली उसे चाँद समझकर
कितना खिलखिलाती थी..
कितना भोला था वो बचपन!
जब माँ मुझे चाँद की
कटोरी में खिलाती थी…
उस चन्द्रछाया को स्पर्श करते ही,
जल में हलचल मच जाती थी..
चाँद के विलुप्त होते ही मैं
कितना अधीर हो जाती थी..
माँ कहती थी मत छुओ इसे
वरना विलुप्त हो जाएगा!
फिर बोलो तुम्हारे लिए
चाँद की कटोरी कौन लाएगा?
झट से मैं माँ की बातों में
आ जाती थी…
फिर माँ हर निवाले पर सबका
नाम लेकर मुझे खिलाती
थी..
एक माँ की ही ममता है जो
चाँद को फलक से कटोरी
में ले आती थी…
और मैं पगली यूँ बचपन में
चाँद की कटोरी में खाती थी…
दुर्योधन और दु:शासन
August 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
मनु की संतान पर तंज कसने की कोशिश की है मैनें..
नया विषय और भारत की समस्याओं की ओर आपका ध्यान आकर्षित करने की चेष्टा की है मैनें…
द्वापर छोंड़ दुर्योधन और
दुःशासन
कलयुग में आए..
मानव को सताने के
नए-नए हथकंडे अपनाए…
किसी ने सीखी शस्त्र विद्या
किसी ने अस्त्र विद्या…
और दुराचार के पैतरे भी
सीख कर आए…
जब पहुँचे भारत की
भूमि पर
रह गये आश्चर्यचकित
ब्रज भूमि पर..
कृष्ण मंदिर का
नामोनिशान नहीं
कुरुक्षेत्र महज
शमशान नहीं..
हँस पड़े हिन्दू-मुसलमां
पर
मस्जिद में पढ़ते कलमां
पर…
नेता की मालखोरी पर,
पुलिस की रिश्वतखोरी पर…
किसान की आत्महत्या पर,
युवाओं की बेरोजगारी पर…
रो पड़े जवान की मृत्यु पर..
कोरोना जैसी महामारी पर…
नारी की लाचारी पर…
कहने लगे दोनों भाई
यह भारत पर कैसी विपदा
आई…
हम लड़ते थे सिर्फ स्वाभिमान की खातिर…
यह सब मर रहे अभिमान की खातिर…
जिस धरती पर हमनें जन्म लिया…
कुछ पाप किये कुछ पुण्य
किया…
यह हमारी तो जन्मभूमि
नहीं…
जो छोंड़ी थी वह भारत
भूमि नहीं…
अब चलो यहाँ से चलते हैं..
ब्रह्मा जी से जाकर मिलते हैं..
पूँछते हैं यह किसकी औलादें हैं,
यह तो मनु की संतान नहीं…
संवेदनाओं की माला
August 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
संवेदनाएं कहाँ रहती हैं आज-कल,
मैं यह जानती नहीं..
लोग क्यों जलाते हैं नफरत
के चिराग
मैं यह जानती नहीं..
ऊब चुकी हूँ जिन्दगी
से अपनी,
साँसों की डोर कब
टूटेगी
मैं यह जानती नहीं…
संवेदनशील मुद्दों पर
लोग मौन धारण कर लेते हैं
करते हैं क्यों ऐसा
मैं यह भी जानती नहीं..
मरती है मानवता जब
निहत्थे होकर सड़कों पर
चुप हो जाते हैं क्यों सब
यह भी जानती नहीं…
टूट जाती हैं जब संवेदनाओं की माला
क्यों बिखर जाती है मानवता
मैं यह जानती नहीं…
बेटियाँ
August 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कितनी प्यारी होती हैं
बेटियाँ,
प्रेम की मूरत होती हैं बेटियाँ..
आती है जब परिवार पर
आँच कोई,
सबसे आगे खड़ी होती
हैं बेटियाँ…
प्यार के पालने में झूलती हैं,
माँ के आँचल में पल्लवित
होती हैं बेटियाँ…
बाबुल के घर रोशनी
उन्हीं से होती है,
चिड़ियों-सी चहकती रहती
हैं बेटियाँ..
हो जाती हैं एक दिन ये कलियाँ पराई,
अपनी यादों की महक
छोंड़ जाती हैं बेटियाँ…
कहता है जब कोई इन्हें
पराया,
बहुत बिलख-बिलखकर
रोती हैं बेटियाँ…
मायके में पराई अमानत,
ससुराल में पराये घर की कही जाती हैं…
आखिर किस घर की
होती हैं बेटियाँ..?
Ganesh ji
August 22, 2020 in English Poetry
O my ganesh ji
Your glory is infinite …
Today we all need your blessings very much…
Hey Ganesh! All your troubles …
All the troubles from the world
Erase and
Bless us ..
I beg you
Goodwill to all
Provide God…
And in all of our lives
Bring happiness…
पिता बरगद का वृक्ष
August 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
शीर्षक:- पिता:-बरगद का वृक्ष
पिता वह बरगद का वृक्ष है
जिसकी छांव में हमें
प्रेम, स्नेह तथा सुरक्षा मिलती है..
पिता नारियल का वह
फल है
जो ऊपर से सख्त
परन्तु अन्दर से
सुकोमल होता है…
माँ तो आँसू बहाकर
दुःख प्रकट कर लेती है,
परन्तु पिता
निर्मोही होने का ढोंग करता रहता है
जबकि अन्दर-अन्दर
रोता रहता है…
जब वह डाटता है तो
उसकी डाट में
फिक्र छुपी होती है
अपने बच्चे की…
वट है वह सब खुद
ही सह लेता है…
अपनी उदार लताओं
से हर कदम
सहारा देता है…
कंधे पर बिठाकर
दुनिया दिखाता है..
उँगली पकड़ कर चलना
सिखाता है..
तुम पर आए कोई आँच
तो सुरक्षा करता है
डाटता इसलिए है
क्योंकि प्रेम करता है…
पुरुष है इसलिए कह
नहीं पाता…
माँ की तरह मुख चूम
नहीं पाता…
माँ की तरह तुलसी का
पौधा नहीं है वह
बरगद है वह इसलिए
झुक नहीं पाता..
निर्भया और द्रौपदी
August 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
शरीफों की सभा लगी फिर
लुटती रही क्यों द्रौपदी?
दु:शासन के दुराचार पर
संवेदना क्यों मर गई?
यही पूँछे द्रौपदी हर सड़क
और हर गली…
देवताओं का दाग अहिल्या
के दामन जा लगा..
वह नारी से पाथर क्यों हुई?
यही पूँछे द्रौपदी हर सड़क
और हर गली…
सीता थीं चरित्र की कितनी धनी
और राम पर विपदा घनी..
फिर सीता वन-वन क्यों फिरी?
यही पूँछे द्रौपदी हर सड़क
और हर गली…
पिंगला थी कितनी सती
फिर भी चरित्र पर उँगली उठी….
वह विरहाग्नि में क्यों जल गई?
यही पूँछे द्रौपदी हर सड़क
और हर गली…
कामायनी की श्रद्धा संग भी
क्या भला अच्छा हुआ?
मनु श्रद्धा का संग छोंड़
इड़ा का प्रियतम हुआ…
क्यों श्रद्धा संग ऐसा हुआ?
यही पूँछे द्रौपदी हर सड़क
और हर गली…
निर्भया संग क्या हुआ यह
कहने की आवश्यकता नहीं…
जहाँ दिखानी चाहिए मर्दानगी
वहाँ तो दिखती नहीं…
यही कहती द्रौपदी हर सड़क
और हर गली…
तुझमें है सिंहो -सा-दम
August 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कोशिश कर आगे बढ़ने की बंदे,
तुझमें है सिंहों-सा दम…
ना मान हार तू लहरा दे,
अपनी ताकत से जग में परचम…
नित अग्रसर हो जीवन पथ पर,
मत गवां समय तू रुक-रुककर…
तू जवाँ लहू, जिसमें आता,
उत्साह उबलकर नस-नस पर…
नित कुआँ खोद पानी पी जा,
खुद बना राह आगे बढ़ जा…
तू मौत की तरफ बढ़ा ना कदम,
कटु वचन भूल जीवन जी जा….
यूँ ना सुबक-सुबक जीने से,
जीत मिलती है खून-पसीने से…
तुमसे ना कुछ हो पाएगा,
यह बात निकालो सीने से….
तू बन कर्मठ, बस हिम्मत रख,
फिर अम्बर भी झुक जाएगा,
जग भूल जाएगा यह कहना,
कि तुमसे ना हो पाएगा…
ईश्वर की कठपुतली
August 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कुछ खार जमाने में हर चमन में होते हैं,
चुभते हैं जिस्म को लहूलुहान कर देते हैं,
तो कुछ खार लफ्जों से घायल कर देते हैं,
उन खारों से कोई जाकर पूंछे, क्या उन्हीं का स्वाभिमान है सर्वो परि?
बाकी सबका क्या कोई वजूद नहीं,उनका कोई स्वाभिमान नहीं,
कुछ भी कह देने से कोई अपमान नहीं!
सब क्या माटी के ढेले हैं उन सम कोई महान नहीं,
अरे प्रज्ञा! जाकर उनसे कह दो हम सब ईश्वर की कठपुतली हैं,
इस दुनिया में सब आते हैं,सबको निश्चित दिन जाना है,
इस कालचक्र के फेरे से तो बचता कोई भगवान नहीं..फिर खार तो खार हैं, नश्वर हैं,
दामन छेदकर नष्ट हो जाएगे,बस उनके दिए जख्म़ ही यादगार रह जाएगे…