by Pragya

Courage…

August 18, 2020 in English Poetry

There is no bread
without hard work,
there is no happiness
in the poor’s house…

No matter how much
you fly with a feather of courage,
the stomach does not lose its appetite…

Due to intrusive intentions,
we have kept holding
the breath of breath,
otherwise death is not easy here…

It is heard that the whole world is celebrating Rangotsav,
but where different colors
are being used here…

There is a struggle in life that someday it will be relaxed, on the same day this colorful face will also be adorned.

In forced labor, we deal with helplessness, we paint the poor Holi also with sweat. ‘

by Pragya

Tell the lamps..

August 18, 2020 in English Poetry

Tell the lamps,
be in a little leisure, now some darkness is also good…

People have faces here and there is a lot of mystery in them…

by Pragya

Why do you feel bad so soon..!

August 18, 2020 in English Poetry

Why do you feel bad so soon!
So angry
Not a good thing
I explained to you earlier
Don’t be so impatient about small things
Don’t put it to heart
Everyone has their maneuver
Have a different personality
Everyone’s thinking
Are not the same
All by god
Have a specific ability
If everyone starts thinking the same way
So these are the battle riots
It doesn’t exist
But you don’t see it all
You just get very quick
Is this correct ..

by Pragya

Seeing this season..

August 18, 2020 in English Poetry

Seeing this season
of weather today,
something like a stir in the heart started happening now…
Seeing you,
Noor sa tera mukhda darling,
she is desperate in mind…
This wind has done some mischief,
you have tried to get involved with Zulfo…
The drop water has
also done some wrongdoing,
it has tried to come on your lips…
There is a loss of mascara in your eyes, there is a shadow
of a shadow in your face…
I can write the song
of your makeup,
if I see you,
I will keep watching…
I go like this in your breath,
leave it all and be yours…
Love you,
I write the essence of life,
write songs, write, I love you…

by Pragya

Your wish..

August 18, 2020 in English Poetry

Would know if persuading
How are you
Few days of life
More in your wish
Sacrificed
And cry a few nights
Yearning for your memories
Would you know anything else
And would be infamous
In love
And we build
Creations of heart
Get nothing
Except tears from me
Solve the tricky nights
Except dreams
Put in books
Except dried roses
Except Infidelity and Russian
Life of oblivion
And helplessness
You didn’t give anything
I did not even expect…

by Pragya

You were the only one…

August 17, 2020 in English Poetry

❤ you were the only one❤
——————————————–
Whom to tell your story
No one is your friend
You were the only one..
Who used to listen
Every bit of my heart
My sweet and sweet things..
You never know where I got lost
And it is lost that you cannot be found again
You did not even remember me,
you played friendship in this way
When you were in life
Out was out
Suddenly you disappeared one day
Without saying anything without saying
anything and till date i am looking for you
But you did not find a mark
I wait every moment for you
That you might come today
You will come or not
I don’t know this
But my eyes eagerly await you
Staring…

by Pragya

Oh deer!..now come

August 17, 2020 in English Poetry

🌹🌹
Rimjhim-rimjhim clouds
rained all day..
I love your lover
Neither day nor night
Comfort me
Cloudy rain
All day my tears
Oh dear!
Now come
Rainy clouds also rained
Now you come
End my wait and take me in
Your arms…

by Pragya

A black cloud!

August 17, 2020 in English Poetry

A black cloud! just listen
After visiting the streets,
they should also know that the spring has arrived …
Restless heart
With your drops
So that they have something of my love
Realize ..
A black cloud just listen
Go and shower in their street
And make me feel my love…

by Pragya

The condition of my heart..

August 16, 2020 in English Poetry

Now identify yourself with the eyes
The condition of my heart …
Because the lips have been stitched for years due to fear of public shame …

by Pragya

Rose petals…

August 16, 2020 in English Poetry

There used to be a time!
When we used to be scattered in your arms like rose petals ..
Now just the scent of that moment
I am left in my breath
You remember
When you mine
He used to put his head to sleep ..
That old banyan
Under which we can spend hours in the evening
Used to spend ..
Now just remember those moments
When you meet me
Used to come to my house ..
We see you
How shy
And you see me
Used to smile
Now there are just memories of those moments ..

by Pragya

Does god ever change..!

August 16, 2020 in English Poetry

Relax ‘wanders from one place to another in search of this one word..
Finds its fathom
But it stops in your name ..
Of course in your love this heart
Ashk drinks only ..
But every moment
Your only wait ..
I ask this every day
Why do you do this
Then says
May or may not be fulfilled
But does God ever change ..
And i’m silent
It happens every night ..

by Pragya

let’s goanyway…

August 16, 2020 in English Poetry

I do not understand anything
except you..
Neither sleep nor
peace and agreement..
Mahafil also no longer likes
These are everyday stories,
let’s go anyway…

by Pragya

इंसान से परमात्मा

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोई वजूद नहीं था तुम्हारा
मेरे बिना..
यूंँ ही गुमसुम बैठे रहते थे..
मैंने ही आकर तुम्हारी
जिंदगी में रंग भरे
होठों को मुस्कुराना सिखाया,
हँसना सिखाया, रोना सिखाया।
मेरी ही मोहब्बत ने तुम्हें
इंसान से परमात्मा बनाया।

by Pragya

कल ही लिपटे थे दामन से

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्वतंत्रता दिवस काव्य पाठ प्रतियोगिता:-

कल ही लिपटे थे दामन से
क्यूँ आज तिरंगा ओढ़ चले?
दो कदम चले थे साथ अभी
क्यों आज मुझे तुम छोड़ चले?

अब प्रेम गगरिया को अपनी मैं
आँखों से छलकाऊँगी,
तेरे हत्यारों को साजन सूली पर चढ़वाऊँगी।
मैं सूली पर चढ़वाऊँगी…

सूनी गलियां सूना आंगन
सूनी मेरी दुनिया साजन
‘परिणय’ के वो सुमधुर कंगन
कैसे मैं खनकाऊँगी।
तेरे हत्यारों को साजन सूली पर चढ़वाऊँगी…

मीठे-मीठे सपने कल के
तुमने देखे हमने देखे
तेरे बिन ओ बोल रे साजन!
कैसे मैं जी पाऊंगी।
तेरे हत्यारों को साजन सूली पर चढ़वाऊँगी…

मेरी बिंदिया मेरी पायल
तेरी राहें देख-देखकर
आंसू भी अब सूख गए हैं
तेरे नाम का लगा के काजल
कैसे मैं जी पाऊँगी।
तेरे हत्यारों को साजन सूली पर चढ़वाऊँगी…

कवयित्री:- प्रज्ञा शुक्ला ‘सीतापुर

by Pragya

इन आँखों में..

August 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ना जाने क्या है इन आँखों में
कुछ ठहर-सा गया है..
रोती हैं तेरी यादों में
पर वक्त गुजर-सा गया है..

by Pragya

तुम्हारे सिले होंठ…

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आजकल बड़े पैतरे आजमाने लगे हो तुम!
मुझसे दूर जाने के…
इतनी समझ आई कहाँ से तुम में?
पहले तो तुम बहुत नादान हुआ करते थे…
अच्छा तो अब ये भी मेरी
संगत का असर है!
ऐसा ही बोल रहे हैं
तुम्हारे सिले होंठ…
काश! कुछ और भी सीख जाते तुम मुझसे
रिश्ते संजोना, दिल रखना, वफ़ाई
तो कितना अच्छा होता!
यूंँ टूटते नहीं हम
बिखरते नहीं हम…
और समेटना नहीं पड़ता मुझे
जज्बातों को इस तरह
गज़लों में, कविताओं में
जिंदगी नहीं ढूंढते हम…

by Pragya

दिल की गलियाँ…

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज बहुत दिनों बाद आई हूँ
तुम्हारे दिल की गलियों में..
सफर करने को
जरा संभाल कर रखना
अपनी धड़कनों को
मुझे देखकर कहीं मचल ना पड़ें…
यूं नजरों से देखने की कोशिश ना करो मुझे
आंखों को बंद करके बस महसूस करो मुझे..
तुम्हारी बंद पलकों में नजर आऊंगी
आंखें खोल कर देखना चाहोगे अगर
तो गुम हो जाऊंगी…
तभी तो आज बहुत दिनों बाद आई हूँ
तुम्हारे दिल की गलियों में सफर करने को…

by Pragya

ओ मैया! मोरी

August 8, 2020 in Poetry on Picture Contest

ओ मैया! मोरी पीर बड़ी दुखदायी
सब कहें मोहे नटवर-नागर
माखनचोर कन्हाई।
तेरो लाला बरबस नटखट
कब लघि बात छपाई।
ओ मैया! तेरो कान्हा
माखन बिखराई।
सो खावत सो माखन-मिसरी
ग्वालन खूब खिलायी।
फोड़ दई मोरी मटकी- हांड़ी
गऊवन देत ढिलाई।
पनघट पे नित बंशी बजावत
मोरी सुधि-बुधि सब बिसराई।
राह चलत नित छेड़त नटखट
छोड़े ना मोरि कलाई।
सुनि गोपिन के वचन कन्हैया
मन्द-मन्द मुसकायी।
ना मोसे फूटी मटकी-हांड़ी
नाहि गउवन दियो ढिलाई।
कान पकड़ि खींचे यशोमति माई
रोवत कृष्ण कन्हाई।
ब्रजगोपी सब बैरन लागें
झूठी चुगली करें तोसे माई।
चूमि-चूमि मुख गीलो नित करि
ग्वालिन मोहे रोजु नचाई ।
नाचि-नाचि पग पड़ि गये छाले
कमर लचकि गई माई।
ग्वालिन माखन खारा- खट्टा
बड़ो मीठो लगे तेरो माई।
ग्वाल- बाल सब चोरी कीन्ही
दोष लगावे मोहे माई।
मैं तेरो भोलो-भालो कान्हा
चोरी ना आवे मोहे माई।
कान्हा के सुनि वचन यशोदा
हँसि-हँसि लेति बलाई।
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर रीझत
नंदलाला की देखि चतुराई।
मोर-मुकुट प्रभु औरु चन्द्रमुख
‘प्रज्ञा’ बलि-बलि जाई।
‘प्रज्ञा’ के प्रभु कृष्ण-कन्हैया
धन्य यशोदा माई।

काव्यगत सौन्दर्य-
कृष्ण के बाल-चरित्र की शरारतों का सजीव तथा भावात्मक चित्रण।

भाषा:-ब्रज,अवधी
छन्द:-गेय पद
रस:- वात्सल्य
गुण:-माधुर्य
अलंकार:-पुनरुक्ति, अनुप्रास, रूपक, उपमा।

by Pragya

कवियों की नगरी में

August 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कवियों की नगरी में
भी दिल दुखाने लगें हैं लोग
ना चाहते हुए भी पास आने लगे हैं लोग।
आम जिंदगी से परेशान होकर
जी लेते हैं हम कल्पना में,
वहाँ भी हलचल मचाने लगे हैं लोग।
शोर-गुल जरा भी पसन्द नहीं है मुझको
फिर क्यों मेरे सिर पर
ढोल बजाने लगे हैं लोग।
सिलसिले बहुत कम होते हैं
मेरे मुस्कुराने के वैसे भी
तो बात-बात पर क्यों मुझको
रुलाने लगे हैं लोग।

by Pragya

नज़र

August 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लोगों की नज़रों का क्या कहना
झटपट रंग जमाते हैं
झूँठे-मूँठे रिश्ते खूब बनाते हैं।
माँ को कुछ समझते ही नहीं
हर गलियारों में शोर मचाते हैं।
बहन को माँ कहने लगे हैं लोग
लोगों की नज़रों का क्या कहना।
☹😴👏👏👏

by Pragya

प्रियतम को कैसे राखी बांधूँ…!

August 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज तुम्हारी फोटो देखी
जब मैनें स्टेटस पे।
मेरे चेहरे पर ग्लो आया
जैसे आता है फोकस से।
मुझसे राखी बंधवाने की खातिर
लेकिन जब तुम मेरे घर आये।
पैरों तले जमीन गई
आँखों में आँसू भर आए।
ना जाने क्या हो गया तुम्हें
शायद सपना है यह मेरा।
जो तुमनें प्रेम विसर्जन की खातिर
दरवाजा खटकाया मेरा।
होश मुझे तो तब आया जब
भाभी ने चुटकी काटी।
जल्दी से इनको राखी बाँधो
हाँथों में पकड़ा दी थाथी।
मैं चलती कैसे? हिलती कैसे?
मेरे दिल को कहीं सुकून नहीं।
उस पल यदि काटे कोई मुझे
मेरे ज़िस्म में रत्तीभर खूँन नहीं।
मैं बैठ गई जाने कैसे?
मुझको कोई भी खबर नहीं।
ऐसी क्या मुझसे खता हुई
जो तुमको मेरी कदर नहीं।
हाँथों में राखी लेकर
देखा मैंने जब कान्हा को
क्या तुम लोकलाज की खातिर
भगिनी बना लेते अपनी राधा को?
वो कुछ ना बोले जैसे कहते हों
मुझसे कुछ ना हो पायेगा।
इस लोकलाज के चक्कर में
तेरा प्रेम बलि चढ़ जाएगा।
जिसका हाँथ थामकर
पूरा जीवन जीने का सपना देखा।
वो आज कलाई आगे कर
राखी बंधवाने को तत्पर बैठा।
मैं कोस रही थी उस क्षण को
और राखी की कीमत जानी।
उनका चेहरा देखा जब मैनें
होंठों पर मुस्कान थी मनमानी।
वो भी कितना बेबस थे
उनकी भी मजबूरी थी।
मैं विकल हुई जाती थी पर
उनमें बहुत सबूरी थी।
विपदा थी मुझ पर आन पड़ी
अपने प्रियतम को कैसे राखी बांधूँ।
जिसके कारण हो गई सती
उस हमदम को कैसे त्यागूँ ?
इसी ऊहापोह में थी तब तक
आवाज़ लगाई मम्मी ने।
जल्दी जागो! क्या आज भी सोओगी
स्नान कर ली है तुम्हारे भैया ने।
ओ शिट! यह मेरा सपना था
यह जान कर जान में जान आई।
राधा-कृष्ण को देख के मैं पगली
मन्द-मन्द सी मुस्काई।।

by Pragya

मेरे कमरे में…

August 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज अचानक माँ मुस्काई
फोन उठाने के बाद
बोलीं आकर खुशखबरी है
बैठी मेरे पास
सबने पूँछा क्या खुशखबरी
ये तो हमें बताओ
उत्सुकता में दिल धड़क रहा है
और ना अब तड़पाओ
उसकी शादी तय हो गई है
निमन्त्रण आया है
उन लोगों ने हम सबको
सपरिवार बुलाया है
मैं हँस दी सबके समक्ष
रोई जाकर कमरे में
दिल टूट गया, हाँथों से सपने
बिखर गए एक पल में
आज लगा मेरे दो चेहरे हैं
एक घर में, एक कमरे में।।

by Pragya

रेशम के धागे…

August 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सिर्फ धागों की नहीं है अहमियत यहाँ
रिश्तो में प्यार की मिठास
भी घुलती रहनी चाहिए।
सिर्फ तू प्यार जताए तो कैसे चलेगा
अक्सर नोक-झोंक भी होनी चाहिए।
रेशम के धागे तेरी कलाई सजाते हैं
तेरी आँखों में चमक भी होनी चाहिए।
हाँथों से तुझको खिलाती हूँ मिठाई
तेरे-मेरे रिश्ते में भी मिठास होनी चाहिए।
मैं हूँ इतनी जिद्दी सताती हूँ तुझको
मेरे जाने पर तेरी आँख दुखनी भी चाहिए।
जब मैं बन जाऊँ परदेसी तो भाई
तुझे मेरी कमी खलनी भी चाहिए।
तू प्यारा है मुझको साँसों से ज्यादा
तेरी धड़कन मेरे दम से धड़कनी भी चाहिए।

by Pragya

मेरा मित्र मैं स्वयं ही हूँ

August 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरा मित्र, सखा तो मैं ही स्वयं हूँ,
मैं हूँ सुदामा तो मैं ही कृष्ण हूँ।
मैं ही सुख- दुख का संयोग हूँ,
मैं हूँ मिलन तो मैं ही वियोग हूँ।
मैं माँ की ममता- सा शान्त हूँ,
मैं ही द्रोपदी का अटूट विश्वास हूँ।
मैं प्रलय का अन्तिम अहंकार हूँ,
मैं ही भूत, भविष्य और वर्तमान हूँ।
मैं नित्य ही प्रभु का वन्दन करता हूँ,
परिश्रम से स्वेद को चंदन करता हूँ।
विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत रखता हूँ,
जुनून से अपने उनका सामना करता हूँ।
जब कभी कुण्ठा अत्यधिक व्याप्त होती है,
अन्तर्मन में सुदामा से मुलाकात होती है।
स्वयं ही स्वयं से स्वयं का आकलन करता हूँ ,
स्वयं सुदामा बन कृष्ण का अभिनंदन करता हूँ।
अपनी परिस्थितियों का मैं ही कर्णधार हूँ,
मैं हूँ पुष्प तो मैं ही तीक्ष्ण तलवार हूँ।
मेरा मित्र, सखा तो मैं ही स्वयं हूँ।
मैं हूँ सुदामा तो मैं ही कृष्ण हूँ।।

by Pragya

याराना

August 3, 2020 in ग़ज़ल

🌹🌹 Friendship Day special🌹🌹
गजल:- याराना

प्रेम से भी बड़ा बन्धन,
सुकून आये दोस्ती में।
कभी कृष्णा कभी अर्जुन
याद आये दोस्ती में।

अपनी जिंदगी से
हार थक करके हर इन्सान,
सभी परेशानियां और
गम भूल जाये दोस्ती में।

बना दे जिंदगी सुंदर
निभाओ साथ जब दिल से
यकीन करना बड़ा मुश्किल
दग़ा गर कोई दे फिर से।

दोस्ती है बड़े विश्वास
और एहसास का बन्धन,
निभाओ इसको तुम निःस्वार्थ
हो विश्वास जब दिल से।

मेरे मन के मंदिर में
दोस्ती राज करती है,
मेरे यार की मूरत
ही मन में वास करती है।

मेरे दोस्त और मुझसे
है कुछ ज्यादा ही मीठापन
साथ बस कुछ ही पल का है
ये दुनिया बात करती है।

कर्ण ने दुर्योधन से
निभाया खूब याराना।
रक्त के रिश्तों को तोड़ा
निभाया खूब याराना।

कन्हैया ने तो अर्जुन को
गीता उपदेश दे डाला,
उठा हथियार वचन तोड़ा
निभाया खूब याराना।।

by Pragya

🌹🌹याराना🌹🌹

August 2, 2020 in ग़ज़ल

🌹🌹 Friendship Day special🌹🌹
गजल:- 🌹🌹याराना🌹🌹

प्रेम से भी बड़ा बन्धन,
सुकून आये दोस्ती में।
कभी कृष्णा कभी अर्जुन
याद आये दोस्ती में।

अपनी जिंदगी से
हार थक करके हर इन्सान,
सभी परेशानियां और
गम भूल जाये दोस्ती में।

बना दे जिंदगी सुंदर
निभाओ साथ जब दिल से
यकीन करना बड़ा मुश्किल
दग़ा गर कोई दे फिर से।

दोस्ती है बड़े विश्वास
और एहसास का बन्धन,
निभाओ इसको तुम निःस्वार्थ
हो विश्वास जब दिल से।

मेरे मन के मंदिर में
दोस्ती राज करती है,
मेरे यार की मूरत
ही मन में वास करती है।

मेरे दोस्त और मुझसे
है कुछ ज्यादा ही मीठापन
साथ बस कुछ ही पल का है
ये दुनिया बात करती है।

कर्ण ने दुर्योधन से
निभाया खूब याराना।
रक्त के रिश्तों को तोड़ा
निभाया खूब याराना।

कन्हैया ने तो अर्जुन को
गीता उपदेश दे डाला,
उठा हथियार वचन तोड़ा
निभाया खूब याराना।।

by Pragya

नींद से मेरी

August 2, 2020 in शेर-ओ-शायरी

#Shayri 2liner

नींद से मेरी तो अनबन ही रहती है,
कभी-कभी आ जाती है मुंह दिखाई के लिए।

by Pragya

मेरे दीवाने कहाँ गए…?

August 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गज़ल:- ❤❤ “मेरे दीवाने कहाँ गए” ❤❤
—————————
मेरे ख्वाब सजाने वाले कहाँ गए?
मुझे जान-जान कहके बुलाने वाले कहाँ गए?
—‐———————————-
जो कहते थे तुझ बिन जी ना पाऊंगा एक पल
मुझ पर मर मिटने वाले वो परवाने कहाँ गए?
———————–‐-‐————–
ढूंढते थे जो अपना नाम मेरे हाथ की लकीरों में
मुझे अपना महबूब बनाने वाले कहाँ गए?
—————————————-
जिनकी मोहब्बत से ही थे दिन के उजाले,
मुझे अपनी रात बनाने वाले कहाँ गए?
—————————————–
खड़े रहते थे तपती धूप में दीदार को मेरे
मेरी इक झलक पर ईद मनाने वाले कहाँ गए?
—————————————-
बूढ़े बरगद के नीचे करते थे जो शरारत
मेरे दिल पर बिजली गिराने वाले कहाँ गए?
—————————————-
मेरी राह के काँटे बीन लेते थे जो
मेरी राह में फूल बिछाने वाले कहाँ गए?
—————————————
सावन में भीगने से हो जाती थी जिनको सर्दी
मेरी जुल्फों की बारिशों में नहाने वाले कहाँ गए?
————————————–
मार खाये थे जो मेरे भाई से एक दिन
ऐसे थे जो मेरे दीवाने कहाँ गए?
—————————————
मर मिटे थे जो मेरी एक हँसी पर
मेरे दामन में खुशियाँ सजाने वाले कहाँ गए?
—————————————-
सजाती थी जिसके नाम की बेंदी माथे पर
मुझे अपनी दुल्हन बनाने वाले कहाँ गए?
—————————————-
मेरी गलियों में जिनका था ना जाना
मेरी खिड़कियों पर टकटकी लगाने वाले कहाँ गए?

by Pragya

तेरी रजधूल ओ प्रियतम!

August 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारी राह देखकर ही तो मैं टूट गई
हर रिश्ते से ऊपर था तू
तेरे इश्क में मैं मगरूर हुई
तेरे इश्क का चंदन घिसकर
अंग प्रफुल्लित हुए सदा
तेरी रजधूल ओ प्रियतम! मेरे
मेरी माँग का सिन्दूर हुई।
बूंद-बूंद कर मैनें तेरे प्रेम का
रसपान किया
तेरे नाम से ही मैनें
नवजीवन का निर्माण किया।
तेरी स्मृतियों के आगे मैं तो
खुद को भी भूल गई।
फिर क्यों छोड़ा दामन तुमने
आखिर मुझसे क्या खता हुई?
तेरे वियोग में ओ प्रियतम!
यह प्रज्ञा!
कल पुष्प-सी थी अब शूल हुई।।

by Pragya

जीवन की चादर

August 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिंदगी में मुकाम और भी हैं
मंज़िल एक है पर
रास्ते और भी हैं।
कितनी छोटी है जीवन की चादर
पैर पसारने के आसमान
और भी हैं।
यूंँ नहीं बढ़ते हैं यहाँ फासले
दुश्मनी के मैदान
और भी हैं।
ये हिन्दुस्तान है यहाँ रिश्ते
निभाये जाते हैं।
रकीबों के जहान
और भी हैं।
तंज कसना ही नहीं है
हुनर अपना
पण्डितों(ज्ञानी) के रुआब
और भी हैं।

by Pragya

इतनी दीवानी

August 1, 2020 in शेर-ओ-शायरी

#shayri 2liner

इतनी दीवानी नहीं हूँ तेरी
जो तेरे प्यार में अपनी नब्ज काट लूंगी,
ज्यादा तड़पाया जो तुमने
इस रक्षाबंधन तुझको राखी बाँध दूंगी।

by Pragya

आँखों में पानी लेकर…

August 1, 2020 in शेर-ओ-शायरी

#shayri 2liner

🤣 आँखों में पानी लेकर
मुझे मत भरमाया करो।
मैं तुम्हारी सारी हकीकत जानती हूँ
यूं बातें ना बनाया करो।

by Pragya

❤❤ मेरा रक्षाबंधन ❤❤

August 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

❤❤ मेरा रक्षाबंधन ❤❤
——————-
दो भाईयों के बीच का झगड़ा
जब तक ना सुलझाती बहन
बोलो आता कैसे चैन?
———————–
सावन है मनभावन है
अम्बर से बरसे नैन
बोलो आता कैसे चैन?
-‐——————–
एक भाई सीमा पर है
दो सावन पर बेचैन
बोलो आता कैसे चैन?
———————–
उमर हो गई बाबा जैसी😃
झगड़ें बच्चों जैसे दिन-रैन
बोलो आता कैसे चैन?
———————-

by Pragya

नारी का अस्तित्व नहीं…

August 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कहते हैं नारी पानी-सी होती है
जिस रिश्ते में बंधती है
उसी की हो जाती है।
पर प्रज्ञा की यही वेदना है
क्या नारी का कोई अस्तित्व नहीं?
वह पानी-सी है।
उसका कोई स्वरूप नहीं?
वह सदियों से पुरुषों की है
उसकी कोई पहचान नहीं?
नारी तो जगजननी है
हर रूप में वन्दनीय है।
वह हर स्वरूप में सुन्दर है
उस सम कोई परिपूर्ण नहीं।
नारी दुर्गा है, जगजननी है,
जीवन की सुंदर प्रतिमा है।
पुरुषों के जीवन की आधारशिला
नारी के कन्धों पर ही अवस्थिति है।

by Pragya

पुलिस दरोगा भऊजी

July 11, 2020 in अवधी

सीतापुरिया अवधी
रचना = “हमरी तऊ पुलिस दरोगा भऊजी”

अउरेन की भऊजी जेलि करउती,
हमरी तऊ पुलिस, दरोगा भऊजी।

दिनु भरि स्वावईं अईसी-वईसी,
पहरा राति लगावई भऊजी।

भईया बाहेर तानाशाह बनति हँई,
उँगरिन नाचु नचावई भऊजी।

सीधी-साधी जेलि करउती,
हमरी तऊ पुलिस, दरोगा भऊजी।

कबहूँ हंसावई कबहूँ रोवावँई,
कठपुतली तना नचावँई भऊजी।

सास क त्वारँईं, नंद कच्वाटँई,
सब पर धाक जमावँई भऊजी।

by Pragya

समर्पण भाव…

July 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब तुम यूँ समर्पण भाव से
मुझे देखते हो..
अनगिनत आकांक्षाएं उमड़ उठती हैं
ह्रदय में…
मेरी थर्राई देह तप्त लौह -सी दहक उठती है
जब तेरी सांसों का घूंट पीती हूं मैं…
जाग उठते हैं सोए हुए ख्व़ाब
तुम्हारा स्पर्श पाकर रोम-रोम
धान के पौधे-सा लहलहा उठता है..
धड़कनों की आवाज
कानों तक आने लगती है जब
कभी तुम अलिंगन करते हो मुझे…
तुम्हारी सांसों में वही महक होती है
जो पहले मिलन के
पहले बोसे में थी..
वही महक तुम्हारी पहचान बनकर
मेरी हर नब्ज में धड़कती है
और मेरे वजूद को जिंदा रखती है…

by Pragya

शहीदों को नमन

July 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

“आजादी के मतवाले हँसकर फंदे पर झूल गये,
बोलो उन वीर सपूतो को हम सब कैसे भूल गये।
मंगल पांडेय ने देखो आजादी का बिगुल बजाया था,
टोली संग अपनी अंग्रेजो को खूब मजा चखाया था।
रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजो के छक्के छुड़ा दिये,
अपनी तलवार से जाने कितने दुश्मन मिटा दिये।
आजादी की परिभाषा चंद्रशेखर आजाद सिखा गये,
अल्फ्रेड पार्क मे न जाने वह कितनी लाशे बिछा गये।
ऊधमसिंह सबको स्वाभिमान से रहना सिखा गये,
जलियावाले का ले बदला डायर को मजा चखा गये।
सुभाष चन्द्र बोस शान से ‘जय हिंद’का नारा लगा गये,
सम्पूर्ण विश्व को सेना का अनुशासन व महत्व सिखा गये।
भगत सिंह,सुखदेव,राजगुरु के भी अंदाज निराले थे,
ये सब वीर सपूत भारत की आजादी के सच्चे दीवाने थे।
अशफाक खाँ ,राजनरायन मिश्र आजादी की राह दिखा गये,
कर आहुत अपने प्राण वो भी शान से तिरंगा फहरा गये ।
मोहम्मद इकबाल इस देश की शान से शौर्य गाथा गा गये,
‘सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा’ ये सबको बता गये।
ये देश प्रणाम उन वीर सपूतो को आज भी प्रतिपल करता है,
जो आजादी दिला गये उनको नमन देश यह करता है।”

by Pragya

लज्जा

July 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

“लज्जा नही आती जब देश के खिलाफ़ बोलते हो,
जिस थाली में खाते हो उसी में छेद करते हो।
इसी देश मे जन्मे यही पले और बड़े हुये,
बोले दुश्मन के जैसे क्यों शब्द तुम्हारे तेज हुये।
इसी धरा पर न जाने कितने देश भक्तों ने जन्म लिया,
जन्मभूमि की खातिर अपने प्राणों का बलिदान दिया।
देशद्रोहियों!रोटी खाते हो यहाँ की
और गुण दुश्मन के गाते हो,
आती न तुमको तनिक लाज अपने कुकर्मो पर इठलाते हो।
अपनी भाषा शैली पर देशद्रोहियों कुछ तो तुम शर्म करो।
रह गयी हो थोड़ी भी लाज तो चुल्ली भर पानी मे डूब मरो।।”

by Pragya

कवि का समर्पण

June 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आप लिखते खूब हो पर कभी गाते नही हो,
मंच पर समर्पण भाव मे नजर आते नही हो।
आपकी रचनाओं मे जीवन की सारी सच्चाई दिखती है,
हर पाठक को उसमे अपनी ही परछायी दिखती है।
आप कभी-कभी कड़वी बात भी लिख देते हो,
लोगों को दर्पण मे उनका अक्स दिखा देते हो।
कुछ लोग आपसे अन्दर ही अन्दर जलते है,
पीठ पीछे आपकी खूब अलोचना करते है।
पाठक से इतने सवाल सुनकर मुझे अच्छा लगा,
फिर हर एक बात का मै भी जवाब देने लगा।
मै जीवन की कड़वी सच्चाई शान से लिखता हूँ,
इसीलिये कुछ लोगों की आँखों को खलता हूँ।
जो जलते है मुझसे वो बराबरी कर सकते है,
है हुनर तो वो भी चंद पंक्तियाँ लिख सकते है।
शायद जीवन की डगर बहुत टेढ़ी-मेढ़ी होती है,
अगले पल क्या होगा ये बात हमे न पता होती है।
बोलो ऐसी अनिश्चितता को किस तरह लयबद्ध कर दूँ ,
और अपनी अधूरी छवि को कैसे मंच को समर्पित कर दूँ ।

by Pragya

‘एक सवाल’

June 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

‘एक सवाल’:-

अजीब विडंबना है देश की
एक ही समय पर एक ही बात के लिए
स्त्री पुरुष के लिए अलग-अलग नियम क्यों?
यह बात मेरी समझ से परे है।
और आए दिन यह सवाल मेरे मस्तक पटल पर घूमता रहता है कि आज के इस वैज्ञानिक युग में भी स्त्री और पुरुष के लिए अलग-अलग नियम क्यों?
यदि कोई पुरुष विवाह के उपरांत पर स्त्री से संबंध रखता है। तो बस यही कह कर टाल दिया जाता है कि वो तो आदमी है।
परंतु यदि यही कार्य स्त्री करे तो उसे समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है।
स्त्री-पुरुष दोनों एक ही ईश्वर की रचना है तो नियमों में इतना फेर क्यों?
क्या पुरुष का समाज की सभी स्त्रियों पर अधिकार है
परंतु पत्नी का अपने पति पर भी नहीं।
यही एक सवाल अक्सर मेरे मस्तक पटल पर घूमता रहता है। और मुझे निराशा की ओर ले जाता है।

by Pragya

हिन्दुस्तानी फौजी

June 28, 2020 in Poetry on Picture Contest

बदन पर लिपट कर उस घड़ी तिरंगा भी रोया होगा
जब उसने अपने हिन्दुस्तानी फौजी को खोया होगा।
माँ की छाती में भी दूध उतर आया होगा
जब उसने अपने शहीद बेटे को गोद में उठाया होगा।

by Pragya

दोहा

June 27, 2020 in अवधी

सुनि हनुमत के बचन सिय देखहिं चारिउ ओर।
अति लघु रूप धरि प्रगटे हनुमत सिय के कर जोर।।

by Pragya

सुनहु जानकी मातु मैं

June 27, 2020 in अवधी

सुनहु जानकी मातु मैं
हूँ रघुवर का दास।
करता हूँ सेवा सदा
रहता चरनन के पास।।

by Pragya

इनके तीर(पास)

June 27, 2020 in अवधी

चीन होइ या पाकिस्तान होइ
इनके तीर(पास) खाली दहशतगर्दइ हँइ
कोई अउर कामु तऊ आवति नाइ
खाली दिमाग शैतान केर घर होति हई।
तबहें तऊ चारिउ ओर खाली
आतंकवाद फैलावति हँइ

by Pragya

‘जंग का ऐलान’

June 27, 2020 in Poetry on Picture Contest

जंग का ऐलान हम नहीं करते,
पर जंग छिड़ जाने पर पीछे नहीं हटते।
यही तो है हम हिन्दुस्तानियों का हुनर,
सिर कटा सकते हैं पर झुका नहीं सकते।
आखरी साँस तक लड़ते हैं हम फौजी देश के लिए,
शहीद हो जाते हैं पर हिम्मत हार नहीं सकते।
हारना तो हमको आता ही नहीं है और,
कभी दहशतगर्द हम पर विजय पा नहीं सकते।
मिट जाते हैं हँसते हुए हम अपने देश के लिए,
पर कभी दुश्मन को पीठ दिखा नहीं सकते।
हम दुश्मन को खदेड़ आते हैं उसकी जमीं तक,
चीन हो या चाहे पाकिस्तान हमसे पार पा नहीं सकते।
हम फौजी शेर का जिगरा रखते हैं,
तिरंगे में लिपट सकते हैं मगर तिरंगा झुका नहीं सकते।
कुर्बान हो जाये भले जिस्म का कतरा-कतरा,
अपने देश की मिट्टी का एक टुकड़ा तक गवाँ नहीं सकते।
आ तो सकते हैं बेशक जिन्दा हमारी सीमा पर दुश्मन,
पर हमारी गोलियों से बचकर जिन्दा जा नहीं सकते।
हमें हिन्दुस्तान ही प्यारा है, तिरंगा ही तो जान हमारा है।
‘भारत माता की जय’ के सिवा कुछ भी हम गा नहीं सकते।

🇮🇳 ‘जय हिंद जय भारत’🇮🇳

मेरा शत शत नमन सभी फौजी भाईयों को🙏🙏🙏

रचनाकार:-
प्रज्ञा शुक्ला ‘सीतापुर (उत्तर प्रदेश)

by Pragya

आँखों से दरिया

June 27, 2020 in शेर-ओ-शायरी

प्रेम से सराबोर होने दो हमको,
आँखों से दरिया छलक जाने दो ना।

by Pragya

हम परिंदे हैं…

June 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम बसाएंगे
अपना घरौंदा कहीं…
हम परिंदे हैं
एक जगह रुकते नहीं…
जहाँ मिलती हैं
खुशियाँ जाते हैं वहाँ
हम गमों में
घरौंदा बनाते नहीं…
चुनते हैं तिनके
घोसले के लिए..
जिंदगी भर कहीं
हम बसते नहीं…
पंख हैं, हौसला है
रुकेंगे नहीं..
भरेंगे जाकर उड़ानें कहीं…
हम परिंदे हैं
एक जगह रुकते नहीं…

by Pragya

कहां रह गए वो??

June 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इंतजार किया जी भर कर उनसे मिलने की कोशिश भी की,
कहाँ रह गये वो जिन्होने हर वादा निभाने की कसम भी ली।
आसान भी तो नही है सूर्य की किरणों की तरह बिखर जाना,
खुद की खुशियों को न्यौछावर कर दूसरो को खुशी दे जाना।
माना बहुत व्यस्त है जिन्दगी की उलझनों मे वह आजकल,
पर कहाँ रह गये जो मुझे याद करते थे हर दिन हर पल।
शायद खुशी मिलती होगी तुम्हे मुझे यूं तड़पता हुआ देखकर,
मेरा क्या?तुम खुश रह लो मुझे दुनिया मे तन्हा छोड़कर।
बोलो मिट गयी है यादे या भुलाने की कोशिश मे लगे हो तुम,
क्या?अब भी न मनोगे कि कितना ज्यादा बदल गये हो तुम।

by Pragya

रोटी के तमाशे

June 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये उम्र, ये मजबूरियाँ और रोटी के तमाशे,
फिर लेकर निकला हूँ पानी के बताशे।
बाज़ार के एक कोने मे दुकान सजा ली,
बिकेंगे खूब बताशे ये मैने आस लगा ली।
सबको अच्छे लगते है ये खट्टे और चटपटे बताशे,
इन्ही पर टिका है मेरा जीवन और उसकी आशायें।
बेचकर इन्हे दो जून की रोटी का जुगाड हो जाता है,
इसी कदर जिन्दगी का एक-एक दिन पार हो जाता है।
अपने लड़खड़ाते कदमों पर चलकर स्वाद बेचता हूँ,
इस तरह भूख और जिन्दगी का रोज खेल देखता हूँ।

by Pragya

हमसे दीवाने कहाँ..

June 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब कहां हमसे दीवाने रह गये

प्रेम की परिभाषा और मायने बदल गये, 

तब न होती थी एक- दूजे से मुलाकाते, 

सिर्फ इशारों मे होती थी दिल की बातें, 

बड़े सलीके से भेजते थे संदेश अपने प्यार का। 

पर अब कहाँ वो ड़ाकिये कबूतर रह गये, 

पर अब कहाँ हमसे दीवाने रह गये। 

 जब वो सज- धजकर आती थी मुड़ेर पर, 

हम भी पहुँचते थे सामने की रोड़ पर, 

देखकर मुझे उनका हल्का- सा शर्माना, 

बना देता था हमे और भी उनका दीवाना। 

पर अब कहाँ हमसे परवाने रह गये, 

पर अब कहाँ हमसे दीवाने रह गये। 

 दोस्तो संग जाकर कभी जो देखते थे फ़िल्मे, 

पहनते थे वेल बॉटम और बड़े नये चश्में, 

आकर सुनाते थे उन्हे हम गीत सब प्यारे, 

तुम ही तुम रहते हो बस दिल मे हमारे, 

पर अब कहाँ वो दिन प्यारे रह गये। 

पर अब कहाँ हमसे दीवाने रह गये।। 

 जो मिलता था मौका तो खुलकर जी लेते थे, 

कभी अपनी ‘राजदूत’ से टहल भी लेते थे, 

खूब उड़ाते थे धूल हम भी अपनी जवानी में, 

कभी हम भी ‘धर्मेन्द्र- हेमा’ बन जी लेते थे। 

पर अब कहाँ वो सुनहरे मौके रह गये, 

पर अब कहाँ हमसे परवाने रह गये। 

पर अब कहाँ हमसे दीवाने रह गये।। 

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