तनिक भी न मन बोझ रखना

March 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नींद आये अगर आपकी आंख में
तब समझना कि संतोष जीवन में है,
नींद उड़ जाये तब सोचना आप यह,
मन के भीतर भरा कोई बोझ है,
या किसी बात भर गया सोच है,
कहीं ना कहीं पर कोई लोच है।
लोच कर दूर मन में संतोष रखना
खूब मेहनत से निज राह में खोज रखना
चैन से चार घंटे बिता नींद में
उस समय तनिक भी न मन बोझ रखना।

मन भाये बहुत संगीत

March 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कौन सुनाए गीत
मुझे मन भाए बहुत संगीत।
गुन गुन करते भँवरे ने बोला
चूँ चूँ करती चिड़िया ने चहका,
मन के भीतर पुष्प सा महका,
जब आया मेरा मीत,
मुझे मन भाये बहुत संगीत
सुना दे सुर देकर दो गीत
न रह यूँ चुप मेरे ओ मीत
सुना दे कोई भी संगीत।

बना रहे बस संग तेरा

March 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ठेस न दे मुझे आली
तेरी यह रंग भरी पिचकारी।
श्वेत पहनकर, निकला था घर से
तूने निशाना दे मारी, रंग भरी पिचकारी।
मन गीला कर, तन गीला कर
वसन सभी रंगों से तर कर
बदल दिया रंग मेरा,
बदल दिया ढंग मेरा।
रंग भी बदले ढंग भी बदले
बना रहे बस संग तेरा।

भरूँ रंग मन में

March 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

गाऊँ गीत, भरूँ रंग मन में
होली मनाऊँ, प्रीतम संग में।
लाल रंगाऊँ प्रीति की चोली
पीत-हरे से खेल लूँ होली।
रंग उड़ाओ मारो न बोली
आओ ना हम संग खेलो होली।
तन मन रंगों से भरपूर रंग दो
ऐसे मनाओ हम संग होली।
गाओ-बजाओ प्रीति के सुर दो
नेह से मेरी गागर भर दो,
ले आओ तुम मित्रों की टोली
गाओ-बजाओ खेलो होली।

मेहनतकश की जिन्दगी

March 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो दिन भर
मेहनत करते हैं,
रात को सड़कों पर
शयन करते हैं।
ऊपर से पाला पड़ता है,
नीचे से शीत लगती है,
मेहनतकश की जिंदगी,
कठिन गीत लिखती है।
सपने में गुनगुनाता है,
रोकर मुस्कुराता है,
पैर खुले रख मुंह ढकता है
मुँह खुला रख पैर छुपाता है,
मच्छर गीत सुनाता है,
मच्छर के चक्कर में
खुद के कान में चपत लगाता है,
मच्छर के चुभाए शूल में भी
मेहनत की नींद सोते हैं।
कभी हँसते कभी रोते हैं,
थकान की नींद सोते हैं।

रंग के त्यौहार में

March 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऐसी सुना दे पंक्तियाँ
जो मधुर रस सींच दें,
रंग के त्यौहार में
रंगीनियों को सींच दें।
अश्क सारे सूख जायें
होंठ गीले से रहें,
नैन में काजल लगा हो
खूब नीले से लगें।
गाल पंखुड़ियां गुलाबी
लाल हो अधरों में रंग
देख कर के लालिमा भी
आज रह जायेगी दंग।
चाँद चमका हो मस्तक में
और दस्तक हो दिलों में
भर तेरे रंगों को खुद में
आज फूलों सा खिलूँ मैं।
प्रेम पिचकारी भरी हो
मारकर बंदूक सी
फिर उठे थोड़ी सी सिहरन
ठंड सी कुछ हूक सी।
खिलखिला भीतर व बाहर
खुशियां मनाऊं इन पलों की
खूब रंगों को उड़ेलूँ
होली मनाऊं इन पलों की।
ऐसी सुना दे पंक्तियाँ
जो मधुर रस सींच दें,
रंग के त्यौहार में
रंगीनियों को सींच दें।

सच की बनती है बात

March 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बात केवल सच की हो,
सच का हो सम्मान,
झूठ त्याग दे आज ही,
बात समझ इंसान।
बात समझ इंसान,
राह सच की अपना ले,
सच पर चल कर राह
स्वयं की आज बना ले,
कहे लेखनी सुबह
के बाद जन्मती रात,
जो सच रखता साथ
उसकी बनती है बात।

श्रम करने की ओर

March 18, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नींद में इस कदर न खो जाओ
ओ युवा! श्रम करके बढ़ जाओ,
छोड़ आलस्य की सभी बातें,
कर्म करने की ओर लग जाओ।
भूख मेहनत की आज सोने न दे,
हौसला एक पल भी खोने न दे,
प्यार की पेटियां भरी हों सब,
नफरतों का जमाव होने न दे।

हो अदब बड़ों का

March 18, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नींद तू रात को
सताना मत,
ऐसे सपनों को तू
दिखाना मत,
टूट कर गम मुझे
बहा जाये,
दर्द ऐसा हो जो
सहा जाये,
बोल ऐसा हो
जो मैं कह पाऊं,
रोल ऐसा हो
जो मैं कर पाऊं,
हो अदब बड़ों का
ऐसा कुछ,
उनकी नजरों से थोड़ा
भय खाऊँ,
ताकि गलती से पहले
थोड़ा सा,
बात समझूँ, जरा संभल जाऊँ।

मन की आशाएँ

March 18, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

राशिफल पढ़ते रहे हम उम्र भर
खुद ब खुद कुछ भी नहीं हो पाया है,
जो मिला मेहनत का फल था दोस्तो !!
बिन किये कुछ भी नहीं हो पाया है।
मन की आशाएँ धरी ही रह गईं,
जिस तरफ प्रयास हो पाया नहीं,
कर्म के फल से अधिक देना कभी
भाग्य की रेखा को भाया ही नहीं।
दे स्वयं की भावना को नेक स्वर
चार शब्दों को किया अंकित सदा
गम उठा लिपिबद्ध करते ही रहे
दूसरे का गीत गाया ही नहीं।

बिन कहे बात बताकर आये

March 18, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सामने बोल भी नहीं पाये
आँख हम खोल भी नहीं पाये
था वजन बात में भरा कितना
उसको हम तोल भी नहीं पाये।
आँख चुँधिया गई थी जब अपनी
धूल औरों में झोंक कर आये,
गा चुके गीत जब थे वे अपने
तब कहीं फाग हम सुना आये।
उनकी कोशिश थी जल छिड़कने की
उस जगह आग हम लगा आये,
साफ कालीन-दन बिछाए थे,
उनमें नौ दाग लगाकर आये।
जितनी शंका भरी थी उनके मन
सारी हम दूर भागकर आये,
तुम हमारे हो हम तुम्हारे हैं
बिन कहे बात बताकर आये ।
वे कभी खत लिखें या आ जायें,
सोचकर हम पता लिखा आये,
दिल की सुनते हैं नहीं ठुकराते
यह नियम हम उन्हें सिखा आये।

प्यारे से पल

March 18, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जल बरसा आकाश से, तृप्त हो गई भूमि,
पौधे फिर से जी उठे, हरी हो गई भूमि।
हरी हो गई भूमि, आज रौनक प्यारी लिख,
उग आई खुशहाली लेकर सुन्दर नख-शिख।
कहे लेखनी रंग भरे प्यारे से यह पल,
ओस रूप में मोती बन बिखरा सा है जल।

सादगी भाती है

March 18, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

गरम चाय पीने से
ताजगी आती है,
तुम्हारे व्यक्तित्व की
सादगी भाती है।
सवेरा भी जरूर
होता है राह दिखाने को
अंधेरा भी मिटता है,
रात भी जाती है।
मेहनत का फल
जरूर मिलता है,
ऊँची सफलता
हाथ भी आती है।
धरती में अर्जित धन
यहीं रह जाता है,
अच्छाई- बुराई तो
साथ भी जाती है।
तुम्हारे जाने के बाद
भुला नहीं देते हम
कभी कभी तो
याद भी आती है।

मुस्कान आपकी

March 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुस्कान आपकी
खिले फूल जैसी,
भुलाने सक्षम है
गम हमारे।
वाणी में इतना
मीठा भरा है,
विरोधी भी हो
जाते हैं तुम्हारे।
चमकता हुआ बल्ब
बोलूँ न बोलूँ,
मगर इस अंधेरे में
हो तुम दुलारे।
निराशा के कुएं में
पड़ने लगे थे
मगर तुमने आकर
किये नौ सहारे।

नदिया बहती है

March 16, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कल कल कल कल
नदिया बहती है,
साफ स्वच्छ है पानी,
जी करता है खूब नहा लूँ,
मगर डर रही है रानी,
मन की रानी का डरना
मेरे मन में करता हैरानी।
पूछा तो कहती है वो
क्यों करते हो इतनी नादानी
मौसम बदल गया है लेकिन
अभी भी है ठंडा पानी।
भरी दोपहर भी गर होती
तब भी थोड़ा कहते हम,
मगर सुबह में ठंड बहुत है
छींटे से धो डालो गम।

उनके बिन

March 16, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मिला हुआ प्रेम खोना मत
दिल मेरे जोर से तू रोना मत
शूल चुभ जायें उनकी राहों में
ऐसे बीजों को आज बोना मत।
अब पता खुद का तू बदल लेना
ताकि पाऊं नहीं मैं उनका खत,
खुद की नजरों में गिर पडूँ चाहे
खोज लूँ खो गई स्वयं इज्जत।
आ रही नींद को रोकूँ कैसे
उनके बिन अश्क को सोखूँ कैसे,
शूल गमले में दिल के उग आये
फूल रंगीन मैं रोपूं कैसे
हो सके तो कभी भी आ जाना
बैठ पलकों में मन लुभा जाना
दो घड़ी देख कर के खिल जाऊं,
उनके नैनों से आज मिल आऊं।

रहती हैं यादें

March 15, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

यादें ही बस साथ हैं, जीवन में अवशेष,
बाकी सब मिटता रहा, नहीं बचा कुछ शेष,
नहीं बचा कुछ शेष, उग रहे सूख रहे सब,
नाशवान है जिन्दगी, जाने रुक जाए कब,
कहे लेखनी करें, भले कितनी फरियादें,
बीता नहीं लौटता बस रहती हैं यादें।

छोड़ सब राहें झूठी

March 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

झूठी सीढ़ी मत बना, मंजिल चढ़ने हेतु,
खाली ऐसे बना मत तू कागज के सेतु,
तू कागज के सेतु, से स्वयं से मत कर छल,
ऐसे कैसे पार, होगा लक्ष्य का पथ कल,
कहे लेखनी आज जेब में रख सच बूटी,
बढ़ना है गर तुझे, छोड़ सब राहें झूठी।

रंग भरी है जिन्दगी (कुंडलिया)

March 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

रंग भरी है जिन्दगी, रंगों में रह मस्त,
कष्ट से भी खोज खुशी, कभी न होगा पस्त,
कभी न होगा पस्त, समय रंगीन बनेगा,
मन में खिलता रंग, तुझे प्रवीण करेगा,
कहे सतीश होली में पुलकित कर हर अंग,
जहां न अब तक लगा, वहां तू लगा ले रंग।
—— डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय,

सच्चाई की डोर

March 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपनी राहों को पकड़, चल मंजिल की ओर,
पकड़े रख मजबूत हो, सच्चाई की डोर,
सच्चाई की डोर, तुझे ऊंचाई देगी,
नहीं हारने देगी जीत कदम चूमेगी,
कहे लेखनी छोड़, तुझे क्यों चिंता रखनी,
सच्चा व्यक्ति सदा, पाता है मंजिल अपनी।

याद रहे जन दर्द

March 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सत्ता में जाकर जिसे, याद रहे जन दर्द,
वही मिटा सकता यहाँ, धूल और सब गर्द,
धूल और सब गर्द, पड़ी हो जो विकास में,
पहले वो हो साफ, रिआया इसी आस में,
कहे लेखनी सोई, रैयत बिछा के गत्ता,
नजरे इनायत कर, ले उस ओर ओ सत्ता।

नहीं छोड़ना तू अच्छाई

March 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सच्चाई की जीत है, सच्ची बातें बोल,
पाप न रख मन में कभी, मन की आंखें खोल।
मन की आंखें खोल, हो सके तो अच्छा कर,
अच्छा होगा सदा, सदा सच की चर्चा कर
कहे लेखनी नहीं छोड़ना तू अच्छाई,
सदा रहेगी साथ, तेरे तेरी सच्चाई।

नेक दिशा में

March 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अंक गणित समझे बिना, लगा लिए थे अंक,
धीरे-धीरे उग गए, उल्टे सीधे पंख।
उल्टे-सीधे पंख, मार्ग विचलित करने को।
हार्मोन भी स्रवित थे भ्रमित करने को,
बोले कलम यदि हो, कोई राजा या रंक,
नेक दिशा में पंख, लगें तो ले लो अंक।

कहीं आग कहीं पानी

March 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बहुत हो चुकी नफरत की आग
जल रहे हैं दिल के जंगल
मुहोब्बत कर चुके हैं खाक,
अब नहीं रही वैसी धाक
जो एक नजर पर
चुरा ले जाती थी दिल,
अब तो नजरें मिला पाना भी
हो गया है मुश्किल,
क्योंकि सच सामने आते ही
रिश्तों की बुनियाद जाती है हिल।
कहीं आग है
कहीं पानी है,
फिर भी न बुझा पाये तो
हमारी नादानी है।

रात है लेकिन न घबरा

March 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

रात है लेकिन न घबरा,
कल सुबह निश्चित उगेगी,
कर्म के बीजों को बो ले,
मंजिल तुझे निश्चित मिलेगी ।
भाग्य पर तू छोड़ मत दे,
प्रारब्ध पर निर्भर न रह,
हारने के भाव मत ला
जीत लूँगा रोज कह।
अंतस में तेरे शक्ति है
तू शक्ति का उपयोग कर,
कर्म से मत डिग कभी भी
जोश खुद में खूब भर।
स्वेद से जो प्यास अपनी
दे बुझा, ऐसा तू बन,
खूब चौके खूब छक्के
तू बना दे सैकड़ों रन।

खूबसूरत शाम

March 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खूबसूरत शाम
चारों ओर चमकते बल्ब
लग रहे हैं ऐसे
किसी ने
काली चुनरी में
सितारे जड़ दिए हों जैसे।
चमचम चमकता शहर
सांझ का पहर
देख ले जी भर कर
विलंब न कर।
ये आसमान के सितारे
जमीं पर किसने उतारे,
जिसने भी उतारे
मगर लग रहे हैं प्यारे।

बेटी घर की शान है

March 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेटी घर की शान है, बेटी है अभिमान,
बेटी का सम्मान कर, कहना मेरा मान,
कहना मेरा मान, उसे भी पढ़ा-लिखा तू,
अवसर देकर आज, उसे भी खूब बढ़ा तू,
कहे लेखनी मान, उसे खुशियों की पेटी,
आशा की है किरण, उसे कहते हैं बेटी।

हो गया है उजाला

March 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हो गया है उजाला
अब मुझे भान हुआ
जब खुली आँख तब
सुबह का ज्ञान हुआ।
इन चहकते हुए
उड़गनों ने बताया,
जाग जा अब तो तूने
अंधेरा है बिताया,
हो गई है सुबह
साफ कर तन वदन
दूर आलस भगा ले
कर्मपथ पर लगा मन।
रात भर स्वप्न देखे
अब उन्हें कर ले पूरा
इस तरह काम कर ले
रहे मत कुछ अधूरा।

ले गए याद सभी

March 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अंधेरे का गीत लिखूं
या सुबह की आस लिखूं
नींद आ-जा रही है,
और कुछ खास लिखूं।
स्वप्न हैं पास खड़े
इंतजार करते हैं,
बन्द आँखों में ही,
वे राज करते हैं।
बात गम की भी न थी,
साख कम भी न थी,
फिर भी मुड़कर के देखा
आंख नम भी तो न थी।
हम तो कहते ही रहे
बैठो जाओ न अभी,
मगर वो खुद तो गए
ले गए याद सभी।

पानी तूने धो दिये

March 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पानी तूने धो दिये, बड़े बड़ों के दाग,
तब भी हो पाया नहीं, मेरा मन बेदाग,
मेरा मन बेदाग, नहीं कुछ साफ भाव हैं,
जूते भीतर कीच, सने गंदले पांव हैं,
कहे लेखनी खूब, रही कवि की नादानी,
जहां दाग थे वहाँ, नहीं पहुँचाया पानी।

कैसे हो संतोष

March 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मन अस्थिर करता मुझे, कैसे हो संतोष,
खाली खाली आ रहा, खुद ही खुद पर रोष,
खुद ही खुद पर रोष, नहीं संतोष मुझे है,
सौ ठोकर के बाद, नहीं फिर होश मुझे है,
कहे लेखनी मान, बात को यंत्र है तन,
चला रहा है उसे, सौ तरह से मेरा मन।

घिस-घिस

March 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

घिस-घिस कर चप्पल बना, जीवन का संघर्ष,
खींच रहा पीछे मुझे, कैसे हो उत्कर्ष,
कैसे हो उत्कर्ष, चुभ रहे कंटक पथ में,
तुझे कहाँ महसूस, बात तू बैठा रथ में,
कहे लेखनी चली, जिन्दगी यूँ ही पिस-पिस,
बेबसी-मजबूरी, में यह जा रही घिस घिस।

खुशबू ला दूँगा

March 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

झड़ी लगा दूँगा यहाँ, लिख कर तुझ पर मीत,
प्यार मुहब्बत ही नहीं, दर्द भरे भी गीत,
दर्द भरे भी गीत, तुझे गाकर कह दूँगा,
फूल तोड़कर आज, यहाँ खुशबू ला दूँगा।
कहे लेखनी नई चाहना है उभर पड़ी।
इसीलिए तो बारिश, की उमड़ रही है झड़ी।

खोज रहा है आदमी

March 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खोज रहा है आदमी, अपने को ही आज,
मगर नहीं हो पा रहा, होने का अहसास,
होने का अहसास, स्वयं मानव होने का,
लोभ लालसा हाय बनी कारण खोने का,
कहे कलम बेचैन मत रह तू मानव रोज,
कभी कभी तू सत्य की बातें मन में खोज।

नारी ही तो मूल है

March 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नारी ही तो मूल है, जीवन का आधार,
नारी के बिन शून्य है, यह सारा संसार,
यह सारा संसार, रचाया नारी ने ही,
प्यार, मुहब्बत दया, उपजती नारी से ही,
कहे लेखनी समझ, दूर कर शंका सारी,
जीवन की कल्पना, तभी है जब है नारी।
——– अंतराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
———- डॉ0 सतीश चन्द्र पाण्डेय।

बोलूँ कैसे बात

March 7, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

चुप रहना आता नहीं, बोलूँ कैसे बात,
चावल पककर बन गया, गीला गीला भात,
गीला गीला भात, हर तरफ पानी पानी,
सूखे सूखे होंठ, और मन में नादानी,
कहे लेखनी बात समझ मन तू जा अब छुप,
कर अनदेखी आज बोल मत हो जा तू चुप।

उपजे मीठी खीर

March 7, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तीर न मारो बोल कर, उलाहना के बोल,
भीतर बैठा दर्द है, देखो आंखें खोल,
देखो आंखें खोल, सत्य स्वीकार करो तुम
चुभने वाली बात न करके प्यार करो तुम,
कहे लेखनी बोल में उपजे मीठी खीर,
छोड़ भी दो अब मत मारो वाणी के तीर।
—— डॉ0 सतीश चन्द्र पाण्डेय

खुश रहो पीटो ताली

March 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खाली क्यों हो सोचते, उल्टी बातें आप।
चाहत को नफरत समझ, क्यों लेते हो पाप,
क्यों लेते हो पाप, मुहब्बत पुण्य काम है,
जो रखता है नेह, वही सच में महान है।
कहे लेखनी आप, रहो खुश पीटो ताली,
चिंता में मत रहो, इस तरह खाली खाली।
———- डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय, चम्पावत, उत्तराखंड।

काँव काँव मत करना कौवे

February 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

काँव काँव मत करना कौवे
आँगन के पेड़ों में बैठ
तेरा झूठ समझता हूं मैं
सच में है भीतर तक पैठ।
खाली-मूली मुझे ठगाकर
इंतज़ार करवाता है,
आता कोई नहीं कभी तू
बस आंखें भरवाता है।
जैसे जैसे दुनिया बदली
झूठ लगा बढ़ने-फलने
तू भी उसको अपना कर के
झूठ लगा मुझसे कहने।
रोज सवेरे आस जगाने
काँव-काँव करता है तू
मुझ जैसों को खूब ठगाने
गाँव-गाँव फिरता है तू।
अब आगे से खाली ऐसी
आस जगाना मत मुझ में
तेरी खाली हंसी ठिठोली
चुभती है मेरे मन में।

मनुष्य हो तुम

February 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मनुष्य हो तुम
मनुष्यता सदैव पास रखो
पाशविक वृत्तियों को
पास आने न दो।
दया का भाव रखो
प्रेम की चाह रखो
ठेस दूँ दूसरे को
भाव आने न दो।
दया पहचान है कि
आप में मनुष्यता है
अन्यथा फर्क क्या है
फर्क का भान रखो।
पेट भर जाये खुद का
खूब भरता ही रहे
भले औरों को क्षुधा
चैन लेने ही न दे,
भावना आदमियत की
नहीं यह ध्यान रखो,
दया धरम ही सच है
मन में इसका ज्ञान रखो।

हलधर धरने पर

February 20, 2021 in Poetry on Picture Contest

हलधर धरने पर रहा, आस लगाये बैठ।
मानेगी सरकार कब, सोच रहा है बैठ।
सोच रहा है बैठ, मांग पूरी होगी कब।
अकड़ ठंड से गया, ताप सब छीन गया अब।
कहे लेखनी आज, व्यथित है कृषक भाई,
कुछ तो मानो मांग, दिखाओ मत निठुराई।
**************************
ठीक नहीं थी बात वह, लालकिले में पैठ।
आंदोलन धीमा पड़ा, सोच रहा है बैठ।
सोच रहा है बैठ, सभी नाराज हो गये।
जो अपने थे वही, पराये आज हो गये।
कहे लेखनी सोच, समझकर कदम उठाओ।
सत्य अहिंसा पर चल अपनी मांग उठाओ।
**************************
जनता तो समझी नहीं, आंदोलन का मर्म,
लेकिन अपनी बात को, रखना सबका धर्म।
रखना सबका धर्म, बात जो भी जायज हो।
लोकराज का धर्म , कभी नहीं गायब हो।
कहे लेखनी रखो, लचीलापन दोनों ही।
थोड़ा थोड़ा झुको, आज झुक लो दोनों ही।
**************************
रोटी देता है किसान, सेकूँ रोटी आज,
आंदोलन को चोंच दूँ, सोच रहा है बाज।
सोच रहा है बाज, मुझे फायदा हो जाए।
इधर उधर की बात, देख कृषक मुरझाये।
कहे लेखनी आज, जरूरत आन पड़ी है,
सुलह बने अब यही, जरूरत आन पड़ी है।
**************************
मांग उठाना देश में, नहीं कोई अपराध,
लोकतंत्र की रीत है, रखना अपनी बात।
रखना अपनी बात, और सुनना राजा को,
यही बात जो मधुर बनाती है सत्ता को।
कहे लेखनी इधर, मधुरिमा उधर मधुरिमा,
मांग रही है यही, समन्वय अब भारत माँ।
—— डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय

सच की राह चले चलो

February 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सच की राह चले चलो, चाहे हो व्यवधान,
सच को ही सब ओर से, मिलता है सम्मान।
मिलता है सम्मान, उसे जो सच होता है,
झूठ हमेशा झूठ, बना इज्जत खोता है।
कहे लेखनी मान बात सच को अपनाओ,
झूठ दूर कर आज, खूब आनन्द मनाओ।

कोमल सी दूब हो

February 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

राहों में आपके
कोमल सी दूब हो,
पाने का हो जुनून मन में
उमंग खूब हो।
आ जायें जब कभी
मायूसियों के दिन
कुहरे के बीच भी
थोड़ी सी धूप हो।
मन साफ हो दिखे वो
सच में हो सच की छाया
भीतर वही भरा हो
बाहर जो रूप हो।
हर ओर हो उमंगें
उल्लास का सफर हो
मन सब तरफ रमा हो
बिल्कुल न ऊब हो।

आज छोटी बिटिया रानी

February 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज छोटी बिटिया रानी
एक बरस की हो गई है
हाव-भाव से हमें लुभाती
बड़ी सरस सी हो गई है।
खुद के छोटे छोटे पांवों से
कदमों को उठा रही है,
मम, पप, अम्म आदि शब्दों से
संबोधित कर बुला रही है।
हैप्पी बर्थ डे कहने पर
प्यारी नजरों से देख रही है
कुछ तो नया आज है शायद
मन ही मन में समझ रही है।
———- सतीश चंद्र पाण्डेय
चम्पावत।

इंसान तेरे रूप अनेक

February 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

इंसान तेरे रूप अनेक
कोई ईमानदारी का प्रतीक
कोई बेमानी की मिसाल,
कोई जलता दीपक मंद करता है
कोई जलाता है मशाल,
कोई शांति का प्रतीक
कोई करता है बवाल
कोई बेशर्मी की हद पार करता है
कोई रखता है मुंह में रुमाल।
कोई निष्क्रिय रहता है
कोई करता है कमाल।
कोई खुद का ही पेट भरता है
कोई जरूरत मंद के लिए सजाता है थाल,
कोई कर्म से परिचय देता है
कोई बजाता है गाल।
कोई दूसरों के लिए
मार्ग खोलता है
कोई दूसरों के लिए
रचाता है भंवरजाल।
इंसान तेरे रूप अनेक
कभी सहेजता रिश्तों को
कभी देता है फेंक।

मगर है चाँद सा

February 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आप खो गए थे
मन उद्वेलित था
अब आ गए हो
है प्रफुल्लित सा।
नभ में सूरज उदित सा,
मन है मुदित सा।
आपका होना
रात को चाँद सा,
काजल लगी आंख सा।
मगर प्रविष्टि है कठिन दिल में
क्योंकि वो बना है
शेर की माँद सा।
मगर है चाँद सा।

सैकड़ों लोग लापता हो गए

February 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हिमखंड टूटा
पानी का ऐसा प्रवाह आया
वे पत्तों की तरह बह गए
देखते ही देखते
सैकड़ों लोग लापता हो गए।
जाने कहाँ खो गए।
चीत्कार- करुण-क्रन्दन
से रो उठी घाटी,
प्रवाह बह गया
केवल मजदूरों के
निशान रह गए बाकी।

ढलना पड़ता है

February 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अनुकूल वातावरण
मुश्किल से मिलता है
या तो स्वयं ढलना पड़ता है
या उसे अपने अनुसार
ढालना पड़ता है।
कर्म किए बिना
कुछ नहीं होता है
कर्म के बावजूद परिणाम में
ईश्वर की इच्छा को ही
मानना पड़ता है।
आग जलाने को
माचिस को रगड़ना ही पड़ता है
भाग जगाने को
परिश्रम करना ही पड़ता है।

जिन्दगी संघर्ष है

February 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिन्दगी संघर्ष है,
संघर्ष कर, संघर्ष कर
सोच में नेकी उगा ले
हार से बिल्कुल न डर।
सोच दिल से कौन है जो
दर्द ने जकड़ा नहीं,
कौन ऐसा है जिसे
पीड़ ने पकड़ा नहीं।
संघर्ष कर संघर्ष कर
सोच कुछ मत
पार लगती है उसी की
जो सत्य से डरता नहीं।

क्या है इसका राज (कुंडलिया छन्द)

February 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बोलो क्यों तुम हँस रहे, बिना बात के आज,
इतने गदगद हो रहे, क्या है इसका राज,
क्या है इसका राज, प्रेम की आहट है क्या,
उमड़ रही मन आज, किसी की चाहत है क्या,
कहे लेखनी भले, छुपा लो चाहत को तुम,
कवि से कैसे छुपा सकोगे आहट को तुम।

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