इतने हैं तेरे रूप के मैं सबको गिना नहीं पाउँगा,

May 4, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

इतने हैं तेरे रूप के मैं सबको गिना नहीं पाउँगा,

खोल कर रख दी पल्लू की हर एक गाँठ तुमने,

मैं तुम्हारे प्रेम का किस्सा सबको सुना नहीं पाउँगा,

डर कर छिप जाता था अक्सर तेरे पीछे,,
आज इस भीड़ में भी मैं तुझको भुला नहीं पाउँगा।।
राही (अंजाना)

जो ऊँगली पकड़ चलाती है

May 4, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो ऊँगली पकड़ चलाती है,
जो हर दम प्यार लुटाती है,
जो हमको सुलाने की खातिर,
खुद भूखी ही सो जाती है,
खेल खिलौने कपड़े लत्ते जो हमको दिलवाती है,
खुद एक ही साड़ी में जो सारा जीवन जीती जाती है,
अपने सपनों को तज कर जो हमको सपने दिखलाती है,
कोई और नहीं कोई और नहीं वो बस एक माँ कहलाती है॥
राही (अंजाना)

चन्द अल्फाज़ो में बयां होगी नहीं

May 2, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

चन्द अल्फाज़ो में बयां होगी नहीं,

ये कहानी किताबों में जमा होगी नहीं,

यूँही सरेआम हो जायेगी दास्ताँ सारी,

बस दो एक रोज़ में हवा होगी नहीं,

मुहब्बत पुरानी है लम्बी टिकेगी दोस्तों,

ये ज़िन्दगी मुलाकातों में फ़ना होगी नहीं,

बहुत नज़दीक से छूकर देखी हैं आँखें उनकी,

अब ता-उम्र मेरे दिल की दवा होगी नहीं।।

राही (अंजाना)

सुनी सुनी सी बात लगे इस बस्ती में

May 2, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुनी सुनी सी बात लगे इस बस्ती में,

कुछ तो है जो ख़ास लगे इस बस्ती में,

कभी सोंच आज़ाद लगे इस बस्ती में,

कभी हालत नासाज़ लगे इस बस्ती में,

मालिक ही का राज चले इस बस्ती में,

बाकी सब लाचार बचे इस बस्ती में,

पैसों की ही बात रखे इस बस्ती में,

अब कोई दिल न साफ़ रखे इस बस्ती में,

आँखों में ही ख्वाब सजे इस बस्ती में,

दिल के कितने राज़ दबे इस बस्ती में,

कहने को कुछ यार बचे इस बस्ती में,

अब मजदूर कुछ दो चार बचे इस बस्ती में।।

राही (अंजाना)

तेरी तस्वीर

April 29, 2018 in शेर-ओ-शायरी

जब एहसासों को शब्दों में उतार न सकी मेरी कलम,

तब स्याही की हर बून्द ने मिलकर तेरी तस्वीर बना ली।।

राही (अंजाना)

बनाकर कागज़ की कश्तियाँ

April 29, 2018 in मुक्तक

बनाकर कागज़ की कश्तियाँ पानी में बहाते नज़र आते थे,

एक रोज़ मिले थे वो बच्चे जो अपने सपने बड़े बताते थे,

बन्द चार दीवारों से निकलकर खुले आसमान की ठण्डी छावँ में,

इतने सरल सजग जो अक्सर खुली किताब से पढ़े जाते थे।।
राही (अंजाना)

पहरेदार

April 21, 2018 in शेर-ओ-शायरी

मेरे हर ख़्वाब पर तेरा ही पहरा है।
अब कोई और इनका पहरेदार नहीं।

 

बदलते रहते हैं ज़ुबा लोग पल दो पल में कई बार

April 16, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बदलते रहते हैं ज़ुबा लोग पल दो पल में कई बार,
मगर एक चेहरा बदलने में मुकम्मल वक्त लगता है,
छुपाने से छिप जाते हैं राज़ सिरहाने में कई बार,
मगर झूठ से पर्दे उठ जाने में ज़रा सा वक्त लगता है॥

– राही (अंजाना)

किनारे पर भी रहूँ तो लहर डुबाने को आ जाती है,

April 15, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

किनारे पर भी रहूँ तो लहर डुबाने को आ जाती है,

बीच समन्दर में जाने का हौंसला हर बार तोड़ जाती है,

दिखाने को बढ़ता हूँ जब भी तैरने का हुनर,

समन्दर की फिर एक लहर मुझे पीछे हटा जाती है,

अनजान है वो लहर एक बात से फिर भी मगर देखो,
के वो खुद ही किनारे से टकराकर फिर लौट के आना मुझे सिखा जाती है॥

राही (अंजाना)

वो परछाईं सा साथ चलता रहा है

April 15, 2018 in शेर-ओ-शायरी

वो परछाईं सा साथ चलता रहा है,
कभी दिखता तो कभी छिपता रहा है,
दिन के उजाले की शायद समझ है उसको,
तभी अंधेरे में ही अक्सर मिलता रहा है,
कभी चाँद सा घटता तो कभी बढ़ता रहा है,
हर हाल में वो मुझसे रुख करता रहा है॥
– राही (अंजाना)

बचपन से ही जीवन के रंग में,

April 13, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बचपन से ही जीवन के रंग में,
मैं धीरे धीरे ढ़ल लेती थी,

छोटे छोटे पैरों से अक्सर,
मैं खुद अपने दम पर चल लेती थी,

रिश्तों की एक मोटी चादर को,
मैं साँझ सवेरे बुन लेती थी,

अपने सम्बंधों की माला में,
मैं फूल चुनिंदा चुन लेती थी,

झोंका एक हवा ने मेरे,
ख़्वाबों को जब भी रौन्ध दिया,

अपने अंतर्मन की आवाज़ों को,
मैं सोती रातों में सुन लेती थी,

लोगों की बातें ज्यों मेरे,
दिल की दीवारों पर लगती थी,

दृढ़ निश्चय की आशा लेकर,
मैं आसमान में उड़ लेती थी।।

राही (अंजाना)

जो करता रहा इंतज़ार पल पल,

April 13, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो करता रहा इंतज़ार पल पल,
आज हर पल का वो हिसाब माँगता है,
दिल के रिश्तों की कीमत और प्यार का खिताब माँगता हैं,
कितना बदल गया है वो,
हर बात पर अब ईनाम माँगता है,
तरसता था मिलने को हर दिन कभी, आज वही हर दिन वो इतवार माँगता है,
बिन कुछ कहे चलता रहा साथ जो, वो आज दो कदम पर विश्राम माँगता है,
पूछा ना सवाल कोई जिसने एक क्षण भी कभी,
वो आज छोटी छोटी बात पर जवाब माँगता है॥
#राही (अंजाना)

आसमान में पतंग, यारों का कोई यार नहीं दिखता

April 13, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

आसमान में पतंग, यारों का कोई यार नहीं दिखता,

आज के रिश्तों में वो गहरा कोई प्यार नहीं दिखता,

मिलते हैं ख़्वाबों में आकर चेहरे अंजाने अक्सर,

मगर हकीकत में चेहरा कोई क्यों साफ़ नहीं दिखता।।

राही (अंजाना)

चुप्पियाँ कहती हैं कितना बोलता हूँ मैं

April 13, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

चुप्पियाँ कहती हैं कितना बोलता हूँ मैं,
सपने कहते है कितना जागता हूँ मैं,
रास्ते कहते हैं कितना ठहरता हूँ मैं,
लम्हें कहते हैं कितना सिमटता हूँ मैं,
चादर कहती है कितना लिपटता हूँ मैं,
हथेली कहती है कितना बटोरता हूँ मैं,
मन कहता है कितना सुनता हूँ मैं,
समय कहता है कितना बदलता हूँ मैं॥
#राही(अंजाना)

अँधेरे और रौशनी के बीच का फर्क मिटाना चाहती हूँ

April 9, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

अँधेरे और रौशनी के बीच का फर्क मिटाना चाहती हूँ,

माँ की कोख से निकल बाहर मैं आना चाहती हूँ,

जो समझते है बोझ मैं उनको जगाना चाहती हूँ,

कन्धे से कन्धा मिलाकर अब दिखाना चाहती हूँ,

खड़ी हैं दीवारें जो दरमियाँ दो सरहदों के सहारे,

गिराकर हर रंज मैं रंग अपना लगाना चाहती हूँ,

– राही (अंजाना)

तेरी आँखों के बिस्तर पर अपने प्यार की चादर बिछा दूँ क्या?

April 8, 2018 in शेर-ओ-शायरी

तेरी आँखों के बिस्तर पर अपने प्यार की चादर बिछा दूँ क्या?
तेरे ख़्वाबों के तकिये के सिरहाने मैं सर टिका लूँ क्या?
कर दूँ मैं मेरे दिल के जज़्बात तेरे नाम सारे,
दे इजाज़त के तेरी आँखों से मेरी आँखें मिला लूँ क्या?
अच्छा लगता है मुझे तेरी पलकों का आँचल,
तू कहे तो खुद को इस आँचल में छुपा लूँ क्या?
– राही (अंजाना)

परिंदे

April 5, 2018 in शेर-ओ-शायरी

बन्द पिंजरे से उड़ जाने का अरमान लिए बैठे हैं,

कुछ परिंदे अपनी आँखों में आसमान लिए बैठे हैं,

बनाये थे जो कभी रिश्ते इस ज़ालिम ज़माने से,

आज उसी की बनाई सलाखों में नाकाम हुए बैठे हैं।।

– राही (अंजाना)

खुद ही से खुद ही के परिचय की तलाश में

April 5, 2018 in शेर-ओ-शायरी

खुद ही से खुद ही के परिचय की तलाश में,

लोग भटकते हैं दरबदर कस्तूरी की तलाश में,

यूँ तो तय हैं सभी किरदार कहानी के मगर,

हर मोड़ पर बदलते हैं चेहरे नए चेहरे की तलाश में।।

– राही (अंजाना)

मिल जायेगी ताबीर मेरे ख्वाबों की एक दिन

April 2, 2018 in ग़ज़ल

मिल जायेगी ताबीर मेरे ख्वाबों की एक दिन,
या ख्वाब बिखर जायें कुछ कह नहीं सकता।

बह जाउं समंदर में तिनके की तरहं या फ़िर,
मिल जाये मुझे साहिल कुछ कह नहीं सकता।

इस पार तो रौशन है ये मेरी राह कहकशा सी,
मेरे उस पार अंधेरा हो कुछ कह नहीं सकता।

गुमनाम है ठिकाना और गुमनाम मेरी मंजिल,
किस दर पे ठहर जाउं, कुछ कह नहीं सकता।

एक बेनाम मुसाफिर हूँ और बेनाम सफर मेरा,
किस राह निकल जाउं, कुछ कह नहीं सकता।

कर दी है दिन रात एक रौशन होने की ख़ातिर,
पर किस कोठरी का अँधेरा मिटाऊँ कुछ कह नहीं सकता।

बन कर बहता रहा हूँ फ़िज़ाओं में हवाओं की तरह,
पर किसे कब छू जाऊं कुछ कह नहीं सकता।

करता हूँ फरियाद मन्दिर, मस्ज़िद गुरुद्वारे में सर झुकाकर,
किस दर पर हो जाए सुनवाई कुछ कह नहीं सकता।

डूबती कश्तियों के सहारे बैठ कर क्या होगा

March 31, 2018 in शेर-ओ-शायरी

डूबती कश्तियों के सहारे बैठ कर क्या होगा,

समन्दर के इतने किनारे बैठ कर क्या होगा,

तैरना है तो लहरों के बीच जाना ही होगा,

यूँ डर के दायरे में सिमट कर क्या होगा।।

~ राही (अंजाना)

अपनी पलकों को इतना मत झपकाया कर

March 31, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपनी पलकों को इतना मत झपकाया कर,

तू मेरे दिल को इतना मत धड़काया कर,

हर बात तेरी किसी ज़ुबां की मोहताज तो नहीं,

तू चुप रहकर भी अपने एहसास मुझे बताया कर,

हवाओं को किसी शिफारिश की ज़रूरत कहाँ,

तू जो है बस वही बनकर मेरे करीब आया कर।।

राही (अंजाना)

अनुभव की राहों पर चलकर खुद मैंने भी देखा है

March 31, 2018 in शेर-ओ-शायरी

अनुभव की राहों पर चलकर खुद मैंने भी देखा है,

अपनों को अपनों से छलते खुद मैंने भी देखा है,

आसमान को धरती से मिलते खुद मैंने भी देखा है,

ख़्वाबों को यूँ पूरी रात जागते खुद मैंने भी देखा है।।

– राही (अंजाना)

Poetry on Pictures

March 25, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

 

कविता

March 25, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ कहती नहीं बहुत कुछ कह जाती है कविता,

खामोश दिखती है पर बहुत बोल जाती है कविता,

चन्द शब्दों से नहीं एहसासों से बुनी जाती है कविता,

खुद बंधती नहीं मगर सबको बाँध जाती है कविता,

कवियों की कलम से रची जाती है कविता,

हर किसी के दिल को छू कर जाती है कविता,

ख़ुशियों के मौसम हो या गमों के बादल,

कभीं दिल तो कभी आँखों में उतर जाती है कविता,

यूँ तो उलझे हुए सवालों को सुलझा जाती है कविता,

सच कहूँ तो कोरे कागज़ पर चित्र बना जाती है कविता।।

राही (अंजाना)

मैं जुगनू हूँ दोस्त

March 25, 2018 in शेर-ओ-शायरी

अन्धेरा होकर भी अन्धेरा होता नहीं मेरे घर में,

मैं जुगनू हूँ दोस्त रौशनी अपने साथ रखता हूँ।।

राही (अंजाना)

बांधकर बेड़ियों से कोमल पैरों को खींच कर

March 25, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बांधकर बेड़ियों से कोमल पैरों को खींच कर,
घर की चौखट के बाहर वो कभी जाने नहीं देते,

हिम्मत जो जुटाती है बेटी कोई पढ़ने को,
तो उसके कदमों को आगे कभी वो जाने नहीं देते,

कितने संकुचित मन होते हैं वो,
जो झूठी रस्मों से बाहिर कभी आने नहीं देते।।
राही (अंजाना)

गोरैया चिड़िया

March 20, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुबह सुबह घर के आँगन में वो फुदक फुदक इठलाती थी,

गोरैया चिड़िया जब अक्सर हमसे मिलने आती थी,

विलुप्त हो रही है जो पंछी वो चूँ चूँ करके गाती थी,

छोटे छोटे बच्चों को भी वो मन ही मन में भाती थी,

बड़ी सरलता से जो घर की छत पर हमको दिख जाती थी,

अब इंटरनेट के पन्नों पर वो ढूंढे से मिल पाती है।।
राही (अंजाना)

ना जाने कितने मौसमों की हवा ली हमने

March 20, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

ना जाने कितने मौसमों की हवा ली हमने,

ना जाने कितने साँसों को सदा दी हमने,

कहने को कह दी हर बात सरसराहट से हमने,

ना जाने कितने ही दिलों को दवा दी हमने।।

राही (अंजाना)

बहुत दूर तलक जाकर भी कहीं दूर जा पाते नहीं

March 20, 2018 in मुक्तक

बहुत दूर तलक जाकर भी कहीं दूर जा पाते नहीं,

परिंदे यादों के तेरी मेरे ज़हन से उड़ पाते नहीं,

बनाकर जब से बैठे हैं मेरी रूह पर घरौंदा अपना,

किसी जिस्म पर चैन से ये ठहर पाते नहीं।।

राही (अंजाना)

Poetry on Picture

March 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जोड़कर तिनका-तिनका घोंसला बनाने में

March 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जोड़कर तिनका-तिनका घोंसला बनाने में,

वक्त के साथ भावनाओं के मोती सजाने में,

बड़ी हिफ़ाज़त से रखती है चिड़िया जिन परिंदों को,

वो एक पल भी नहीं लगाते फिर अपने पर को फैलाने में,

हवाओं से कर के दोस्ती घूम लेते हैं आसमानों में,

फिर जुट जाते हैं वो भी अपनी पहचान बनाने में॥

राही (अंजाना)

खोकर अपना वजूद

March 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

खोकर अपना वजूद फिर बनाने की कुब्बत रखता है,

ये सूखा हुआ पेड़ फिर हरा हो जाने की सिफत(गुण)रखता है,

उजड़ी हुई शाखों पर मत जाओ इसकी यारों,

ये हर शख्स की साँसों में जीवन की लहर रखता है॥
राही (अंजाना)

ज़िन्दगी की किताब

March 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

अभी ज़िन्दगी की किताब के चन्द पन्नों को पटल कर देखा है।
अपने बचपन को जैसे सरसरी निगाहों से गुजरते देखा है,
यूँ तो खुशियों के पायदान के पृष्ठ पर आज पैर हैं हमारे,
मगर हमने भी दुखों के हाशियों पर खड़े रहकर देखा है॥
राही (अंजाना)

रस्म

March 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी रस्म किसी किस्म का ताला नहीं लगता,

इस जीवन के पौधे पर कोई जाला नहीं लगता,

जंक लग जाती है बाँधने वालों की ज़ुबाँ पे मगर,

इस रूह की माटी पे कोई गाला (उत्सव) नहीं लगता।।

राही (अंजाना)

सुकून का सागर

March 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुकून का सागर जैसे आँखों से बाँध बैठे हैं,

चेहरे चेहरों से ही जैसे अपना रिश्ता मान बैठे हैं,

चाहत नहीं है के मिल जाए ख़बर ज़मी से आसमान की,

वो तो हवाओं के हवाले से ही सभी जज़्बात जान बैठे हैं,

छू कर भी गुजर जाते हैं कभी ख़्वाब सर्द रातों में,

क्यों ख़्वाबों को हकीकत का वो पैगाम मान बैठे हैं।।
राही (अंजाना)

शकून सक्सेना की कवितायें (चित्र)

March 16, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

किताबों के बनाकर छप्पर अक्षरों के बिस्तर

March 16, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

किताबों के बनाकर छप्पर अक्षरों के बिस्तर लगाये बैठे हैं,

ज्ञान की सारी पोथियाँ आज हम लेपटॉप में दबाये बैठे हैं,

कलम की स्याही के वजूद को मिटाने की खातिर जैसे,

हम की-बोर्ड पर अपनी उँगलियों को सजाये बैठे हैं,

छिपाकर खुद ही ढूढ़ते थे चन्द पन्नों में तस्वीर जिनकी,

आज डेस्कटॉप पर उन्हीं का वालपेपर लगाये बैठे हैं।।
राही (अंजाना)

नोच खाने को बैठी है एक ज़िन्दगी

March 16, 2018 in Other

एक नज़र चाह कर भी मिलाने को तैयार नहीं,
ज़िन्दगी एक पल भी सर उठाने को तैयार नहीं,

नोच खाने को बैठी है एक ज़िन्दगी ज़िन्दगी को कैसे,
क्यों एक लम्हा भी कोई ठहर जाने को तैयार नहीं।
राही (अंजाना)

स्वच्छ भारत

March 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्वच्छता सम्बन्धी कुछ बातों को सबके दिल तक पहुँचाना होगा,
ये जागरूकता फैलाने में हम सब को साथ निभाना होगा,
फैल रहा जा कूड़ा करकट उसको मिल जुल कर साफ़ कराना होगा,
बचना हो गर संक्रमण से तो गलियों को स्वच्छ बनाना होगा,
बिता रहे कचरे में हर पल उन बच्चों को ये बतलाना होगा,
काम काज करके ही उलझे अनके जीवन को सुलझाना होगा,
बहुत हो चुकी नासमझी अब इसको फिर न दोहराना होगा,
गुप् चुप कर न चुप कर हमको खुल कर सामने आना होगा,
कमी ज्ञान की है या मौन की, इस भ्रम से बाहर आना होगा,
मोदी जी के स्वच्छ भारत अभियान से हम सबको हाथ मिलाना होगा,
अपने घर के संग संग भारत को स्वच्छ समृद्ध बनाना होगा,
अलग नहीं अब एक दिशा में मिलकर हम सबको कदम बढ़ाना होगा।।
राही (अंजाना)

ज़िन्दगी की किताब

March 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

 

अभी ज़िन्दगी की किताब के चन्द पन्नों को पटल कर देखा है।
अपने बचपन को जैसे सरसरी निगाहों से गुजरते देखा है,
यूँ तो खुशियों के पायदान के पृष्ठ पर आज पैर हैं हमारे,
मगर हमने भी दुखों के हाशियों पर खड़े रहकर देखा है॥
– राही (अंजाना)

खेल

March 10, 2018 in शेर-ओ-शायरी

कौन कहता है के खेल को सीखना होगा,
खेल है तो खेल को खेलना ही होगा,
हार जीत की परवाह कहाँ है किसी को,
पर अपने हिस्से का टुकड़ा तो छीनना होगा।।
– राही (अंजाना)

नारी

March 9, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

शिव की शक्ति बनकर तूने हर एक क्षण साथ निभाया नारी,
पिता- पती के घर को तूने हर एक क्षण महकाया नारी,
हर एक युग में अपने अस्तित्व का तूने एहसास कराया नारी,
प्रश्न उठे भरपूर मगर हर जन को तूने निरुत्तर कर दिखाया नारी,
ममता के आँचल में मानुष को तूने प्रेम सिखाया नारी,
आँख उठी जो तुझपर तूने काली रूप दिखाया नारी,
बेटा-बेटी के बीच पनपते फर्क को तूने मिटाया नारी,
कन्धे से कन्धा मिलाकर तूने जग में सम्मान फिर पाया नारी।।
राही (अंजाना)

रस्म

March 7, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो भी रस्म थी हर रस्म निभाता रहा हूँ मैं,
तेरे माथे से हर शिकन मिटाता रहा हूँ मैं।
खुद को समन्दर किया तेरी ख़ातिर,
तेरी प्यास बुझाता और खुद को सुखाता रहा हूँ मैं,
तू मुझसे नज़रें चुराता रहा, और एक टक तुझसे आँखें मिलाता रहा हूँ मैं,
तू भुला कर प्यार की राह चलने लगा,
और उजालों भरी राहों पर भी, तेरे प्यार के दीपक जलाता रहा हूँ मैं,
तू उठ गया छोड़ कर मुझे सोता हुआ जो कहीं,
दिन रात खुद को ही जगाता रहा हूँ मैं।
: राही

यार इसमें तो मज़ा है ही नहीं

March 6, 2018 in शेर-ओ-शायरी

यार इसमें तो मज़ा है ही नहीं, यार इसमें तो मज़ा है ही नहीं,
कोई हमसे ख़फ़ा है ही नहीं,
इश्क है मर्ज़ है इसकी कोई भी दवा है ही नहीं।।।
राही (अंजाना)

क्या बनायेगा मुद्दा

March 5, 2018 in शेर-ओ-शायरी

क्या बनायेगा मुद्दा, जमाना हमारी बातों का।
हमारी तो ख़ामोशी भी चर्चा में है।
राही (अंजाना)

जो भी दिल में है छुपा मुझको तो दिखा दीजे

March 5, 2018 in ग़ज़ल

जो भी दिल में है छुपा मुझको तो दिखा दीजे,

जो ज़ुबा तक न आ सके तो आँखों से जता दीजे,

 

प्यार है हमसे तो खुल कर के ही बयां कीजे,

न हो कोई बात तो इशारे में ही ये खता कीजे,

 

यूँ तो ख़्वाबों में बनाई हैं बातें कितनी,

न हो मंज़ूर तो गुज़ारिश है के भुला दीजे,

 

रखके सीने से लगाई हैं यादे तेरी,

अब सरेआम न इनको  यूँ हवा दीजे,

 

जो भी दिल में है छुपा मुझको तो दिखा दीजे॥

राही (अंजाना)

तेरी ख़ामोशी भी चर्चा में है

March 4, 2018 in शेर-ओ-शायरी

तेरी ख़ामोशी भी चर्चा में है,
तू कुछ कहेगा तो मुद्दा ही बनेगा सनम।
– राही (अंजाना)

होली की शुभकामनायें कविता के अंदाज में

March 1, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जरा सा मुस्कुरा?☺ देना होली मानाने से पहेले
हर गम को जला ??देना होली जलाने से पहेले
मत सोचना की किस किस ने दिल?? दुखाया है अब तक
सबको माफ़ ??कर देना रंग लगाने से पहेले
क्या पता फिर ये मौका?? मिले न मिले
इसलिए दिल?? को साफ़ कर लेना होली से पहेले
कहीं यह सन्देश ?? हम से पहेले कोई आप को न भेज दे
इसलिए होली ????❤ की शुभ कामना ले लीजिये सबसे पहेले

निकल जाऊंगा

February 20, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

सोंचा नहीं था समन्दर के इतना किनारे निकल जाऊंगा,
जिनसे डरता था उन्हीं लहरों के सहारे निकल जाऊंगा,

जहाँ बनाता ही नहीं बह जाने के खौफ से रेत के मकाँ कोई,
वहीं शौक से किरदार को अपने यूँही जमाकर निकल जाऊंगा॥
राही (अंजाना)

रेत से बने इस रक्त के पुतले पर

February 12, 2018 in शेर-ओ-शायरी

रेत से बने इस रक्त के पुतले पर,
रस्म ऐ रूह का रूतबा क्या कहूँ,

बदलते रोज़ चेहरों के मुखौटे पर,
जश्न ऐ जाम का कब्जा क्या कहूँ॥

राही (अंजाना)

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