असर
फ़िजाए भी कुछ बदलने लगी शायद असर उसपर भी तेरा छाने लगा
फ़िजाए भी कुछ बदलने लगी शायद असर उसपर भी तेरा छाने लगा
हम तो तेरे मुरीद हैं तुमसे मिले तमस ही मेरे नसीब है
आँखे रोके कहाँ रूकती तफ्तीश में लग जाती हैं छिपे हुए अश्क को पहचान लेती हैं
हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती एक बार फिर साबित यह होता है मत भागो चमकती चीज़ों के पीछे यह सब एक छलावा हैं उस…
कब अपनी इबादत “उन्हे ” तस्लीम होगी सभी सुताओ की ख्वाहिशे महफ़ूज होंगी ।
रात भी खुद के तम से डरी होगी चाँद की चमक भी शर्मिंदा होगी तारों ने ना टूटने की कसम खाई होगी जब बेबसी में…
अपनी दुर्वलताओ से भी अवगत करवाकर दुनिया को बताया, अहिंसा अपनाकर अर्द्ध नग्न फकीर कहा था कभी किसीने। बिना अस्त्र-शस्त्र के ही, चले लाठी ठेकाकर…
गांधीजी और शास्त्रीजी का जन्मदिन है एक साथ। सम्मान में इनके विनयचंद तू आज झुकाओ अपना माथ।।
स्मृतियों के झरोखो से ऐसे शूल निकल आए हम फिर से, मिले घावों को अनजाने ही कुरेद आये।
हमारे संविधान की विशेषता असंतुष्टो को भी संतुष्ट होने के अवसर उपलब्ध कराती है यही वजह है कि इंसाफ की प्रक्रिया तारीख़ दर तारीख़ चलती…
हम अभिभावकों के लिए यह कहाँ तक संभव है हर जगह बेटियों के साथ, परछाई बन चल पाना क्या यह उचित होगा, फिर से घर…
बताइए क्या जबाब दें, उस मासूम को कैसे कहें, बाहर का कोई ठिकाना नहीं है कहाँ, क्या, कौन भेङिया का रूप लिए है तेरी जिन्दगी…
पूछ रही नन्ही परी क्या होता यह दुराचार क्यूँ होता महिलाओं के साथ गलत व्यवहार क्यूँ माँ किसी से बात करने पर टोकती तू क्यूँ…
अब के बाद मां-बाप मां-बाप ना रहेंगे ना जिंदा ना मुर्दा रहेंगे तो बस सांस लेती काया।
ना जाने कितनी निर्भया ना जाने, कैसी मर्दानगी बर्बरता की हदें लांघी जुबां तक काटी धरती भी नहीं कांपी कानून को कुछ ना समझे कौन…
सावन के इस मंच पर कवियों का है संगम। सुंदर सुहानी संध्या में छोड़ें कुछ सरगम।। दो पद हम लिखते हैं दो पद तुम भी…
बस कुछ दिन की बात है सब भूल जाएंगे काम – धन्धों में मशगूल हो जाएंगे नईं कहानी का शोर मचाएंगे फिर कोई और निर्भया…
हाँ कुछ लोगों को समय रहते ही ज्ञान आ जाए अपनी क्षुधा की तृप्ति में, किसी और का चैन न उङाए
खुशी हो या गमी संग नहीं रहती सदा एक-दूसरे से मिलकर भी रहती जुदा-ज़ुदा
खुद को संभाल पाते, इस लायक ही कहाँ छोङा है कई अपनों ने ही, अपनेपन में, अपना बन, दिल तोङा है
अधरों पर कभी आया तेरा नाम नहीं नयनों में तेरा प्यार छलक आया हमें चाह नहीं तुझे पाने की दूरियाँ ही मुझे रास आया
सितारों की दुनिया में कैसा नशा छा रहा। दिल ने आदर्श बनाया मन ठगा जा रहा।। जन- जन ने हीरो बनाया था जिसको वही आज…
हिन्दी साहित्य के कर्णधार हे हे प्रकाशपुंज नक्षत्र हे दिनकर । हे राष्ट्रकवि आजादी के योद्घा रामधारीसिंह के जन्मदिवस पर।। पद पंकज में दे पुष्पांजलि…
ज़िंदगी मे डाली से गिरता हुआ पत्ता भी हमे सिखाता है कि अगर तुम बोझ बन जाओगे तो अपने भी तुम्हे गिरा देंगे.
मेरी रैना की शुरुआत है तुझसे इन नैनन की बरसात है तुझसे तुम जो दो मीठे बोल भी दो हर दर्द कबूल मुझे, जो मिले…
प्रेम हमारे लिए इबादत है ईश्वर की दी हुई सबसे खूबसूरत इनायत है प्रेम विश्वास का दूजा नाम है विश्वास नहीं तो बस यह हिमाकत…
सुबह सवेरे , आखोंदेखी घटना का है यह मंजर अरूणोदय से पहले पहुँची,बच्चों की टोली चलकर दौङ लगाते लगते थे, जैसे हो मंजिल पाने को…
खत्म होगा इन्तजार, स्वागत को कब होंगे तैयार वह सुहाना पल जब कोरोना मुक्त होगा यह संसार इस टूटन-घुटन पङी जिन्दगी से है सभी बेजार…
तस्लीम नहीं उनकी हिमाकत हरहाल में करेंगे अपनी हिफाज़त मुमानियत लगाए अपनी आकांक्षाओं पर नहीं तो भूल बैठेगे हम भी अपनी सराफत मकबूल नहीं तेरी…
क्यूँ करें उनकी हिमायत उद्धत रवैया जो अपनाए हुए हैं खुद पे लगा पाते नहीं मुमानियत बदस्तूर आतंक बन छाए हुए हैं
रफ्ता-रफ्ता चलते-चलते पहुँच गए हम किस मंजिल पे बोध नहीं है, सुध-बुध खोके मक़बूल नहीं,सब अर्पित करके (मकबूल-सर्वप्रिय)
अंजुमन में कैसे आऊं, पीत चुनरिया ले के .। केश खुले, श्रृंगार नहीं है , भीष्म पितामह, द्रोण भी बैठे ।
इंसाफ की लङाई लङनी हो तो फिर कोरोना का क्या डर मुस्कुरा के करेंगे हर मुश्किल का सामना, चाहे जिसका हो कहर
फांसी, एनकाउन्टर जैसी किसी भी सजा का नौनिहालो को न रहा है अब डर जब हो गया हो पतन नैतिक मूल्यों का फिर कैसे हो…
नदी नाम है अविरल बहती जलधारा की त्याग, गतिमय, अवगुण-गुण का भेद मिटाने की कश! हममें भी यह सब आ जाए अपना चित भी तरनी…
तरू को आलस सताता कहाँ सरिता को रुकना भाता कहाँ पाने की जद हो जिन्हें मुश्किलों से वो घबराता कहाँ ।
ज्ञान के पथ पर विवाद मिलेगा। प्रेमी बनकर देख अह्लाद मिलेगा।।
जब सब के भीतर तु है समाया तब भी मुझे कैसे तु नजर ना आया ख़तावार हूँ मैं खुद को ना इसका पात्र बना पाया।
कहते सर्दी में चाय की तलब बढ़ जाती है पर गर्मी में कौन सा कम हो जाती है।
हाल ही में प्रज्ञा जी की कविता ‘वनिता’ को प्रेस में काफ़ी सराहना मिली। सावन परिवार प्रज्ञा जी के लिये कामना करता है कि उनको…
हमें आता जाता कुछ भी नहीं, सिर्फ शब्दों में खेल रहा हूं| परिणाम का हमें कुछ पता नहीं, मीठा खट्टा बोल रहा हूं| शब्द आन…
ऋषि मुनियों की जिसकी धरती है स्वर्ग सी जो लगती है गंगा जहाँ पर बहती है दुनिया उसे भारत कहती है इस देश का होने…
हाल ही में सतीश पांडे जी को अगस्त माह में आयोजित काव्य प्रतियोगिता में किये गये सर्वश्रेष्ट प्रदर्शन के लिये ‘अमर उजाला’ और ‘शाह टाइम्स’…
बबीता मैम , बहुत सारे शिक्षकों का मुझे मार्गदर्शन प्राप्त हुआ परन्तु आपनें मुझे जीवन जीना सिखाया आपने । मैं तो कुछ भी नहीं थी…
हे गुरूवर करूँ आपका अभिनन्दनम् सानिध्य आप सबो का पाके बन जाऊँ मैं चन्दन शिक्षक दिवस पर सभी गुरुजनों का हार्दिक बधाई!
दिल भी मेरा, दिमाग भी मेरा आंसू भी मेरे, मुसकान भी मेरी बसेरा तेरा।
रोया हूं बहुत चादर में मुंह छुपा कर के, लायक हूं ना लायक नहीं, जो मरा नहीं किसी के प्यार में, गले में रस्सी का…
बेदर्दो से मत आस लगाओ, कि तुम्हारे दर्द के मल्हन बनेंगे| पराए काम आ सकते हैं, वक्त पर अपने साथ छोड़ जाएंगे|
किसी भी आलोचक के लिए सबसे अहम उसका आलोचनात्मक विवेक होता है | इस गुण के बिना आलोचक कवि या काव्य की आत्मा में प्रवेश…
#एक_लड़की_से_मैने_पुछा:- तुमने यह Artificial Ear #Rings_Locket_aur_Ring क्यों पहनी है। तुम्हारे Branded 👌🥼👕कपड़ो से तो तुम गरीब नहीं लग रही। #लड़की_बोली:- आज कल #असली गहने पहनने…
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