
Satish Chandra Pandey
बेरोजगारी
October 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कड़ी बेरोजगारी से
दुखी है हर युवा देखो
धरी ही रह गई तैयारियां
परीक्षा रुक गयीं देखो।
निराशा के भंवर में
पड़ न जाए देश का यौवन
समय रहते करो मिलकर
संवारो देश का यौवन।
नज्म कोई मुहब्बत की
October 3, 2020 in शेर-ओ-शायरी
न कह मुझसे सुनाने को
नज्म कोई मुहब्बत की
सयाना हो रहा हूँ अब
ज़रा सा शर्म करता हूँ।
जरा सा गौर से देखो
October 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुम्हारे हाथ में अपनत्व की
जो कुछ लकीरें हैं
उन्हीं में एक मैं भी हूँ
जरा सा गौर से देखो।
आईना सामने रख
खुद की नजरों में जरा देखो,
मिलूंगा नीलिमा में तुम
जरा सा गौर से देखो।
कहीं राहों में जब मुश्किल
खड़ी हो सामने कोई,
मिलूंगा साथ देता तुम
जरा सा गौर से देखो।
हर खुशी हो तुम्हारी बस
मुझे इतनी ही अभिलाषा
मित्र हूँ एक अदना सा
जरा सा गौर से देखो।
दोस्ती
October 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आपकी और अपनी दोस्ती
साबुन व पानी की तरह हो
एक दूसरे का साथ देकर
अपने भी और संपर्क में आने वालों के भी।
दाग -धब्बे दूर कर दें
आपकी बात सुनकर
October 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
निरुत्तर हो गए हम
आपकी बात सुनकर
निकल पाया न मुंह से
एक भी शब्द छनकर।
कह दिया आपने सब
कह नहीं पाए थे जो हम,
आपकी बात सुनकर
सोचते रह गए हम।
कभी उस ओर दौड़ा
कभी इस ओर दौड़ा
कहां सच का ठिकाना
खोजता रह गया मन।
आपने सच दिखाकर
बोलती बंद कर दी,
उचित-अनुचित किधर है
समझ सब कुछ गए हम।
आपकी बात सुनकर
निरुत्तर हो गए हम,
कह दिया आपने सब
कह नहीं पाए थे जो हम
ऐसी मिठास फैले
October 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
दो पंक्तियों से मेरी
ऐसी मिठास फैले,
मिट जायें नफ़रतें सब
दूर हों झमेले।
कविता तो प्रेम को है
बस प्रेम ही हो मकसद
लिखूं प्रेम लिख दूँ
निकलें न पद विषैले।
क्या पा सकूँगा ऐसे
औरों को ठेस देकर,
पा कर भी क्या करूँगा
यूँ छदम वेश लेकर।
गम दूर कर सकूं तो
लिखना उचित है मेरा,
दूजे के गम बढ़ाकर
बांटू न मैं अंधेरा।
उग जाए मेरी कविता
सूखी हुई जमीं पर
कर दे हरा-भरा सब
विद्वेष में कमी कर।
दो पंक्तियों से मेरी
ऐसी मिठास फैले,
मिट जायें नफ़रतें सब
दूर हों झमेले।
गांधी जी को नमन
October 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
उन्हें देख हिल गए, कांप गए अंग्रेज,
धोती वाले बापू जी की बात ही निराली थी।
उखाड़ा फिरंगी राज, एक किया था समाज,
राष्ट्रवादी भावना की, लहर सी ला दी थी।
सत्य के अहिंसा के, मजबूत अस्त्र थे,
धोती के अलावा, त्याग डाले सब वस्त्र थे।
निराशा में आशा की, चली थी खूब आंधी थे वे।
मोहनदास करमचंद महात्मा गांधी थे वे।
अहिंसा से अत्याचार के खिलाफ जंग लड़ी,
बिखरे हुए देश की मिलाई कड़ी से कड़ी।
दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह से शुरू किया,
लौट कर भारत में बुलंदी हासिल की।
धर्म गत भेद जातिगत भेद दूर किये,
गोरे दुम दबा भागने को मजबूर किये।
आज है जयंती देश करता नमन उन्हें।
शत-शत बार देश करता नमन उन्हें।
पूर्णिमा का चांद
October 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
पूर्णिमा का चांद चमका है गगन में आज पूरा।
चाँद चमका है तो मन कैसे रहेगा खुश अधूरा।
चाँद पूरा मन भी पूरा, क्यों रहे सपना अधूरा।
लक्ष्य पर फिर से बढ़ा पग, स्वप्न को कर दूं मैं पूरा।
धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते चाँद पूरा हो गया,
बाँट शीतलता सभी को, खुद की मंजिल पा गया।
किस तरह से प्यार से बढ़ते हैं यह दिखला गया,
राह अंधियारी में चलना, वह मुझे सिखला गया।
ईश्वर का खेल निराला है
October 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
ईश्वर का खेल निराला है
सब कुछ अपने प्रारब्ध
और कर्म से ही मिलता है
जैसे तुझे ताली
मुझे गाली।
सृजनहार ही सब सृजन करता है
हमने तो बस गलतफहमी पाली,
वही सींचता है लेखनी को
वही तो है जिंदगी का माली।
लेकिन कर्म भी तो
अपने-अपने हिसाब का है आली।
आप
October 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
मन के इतने खूबसूरत
आप कैसे हो गए,
आपको किसने सिखाया
इस तरह से स्नेह करना।
आप मे इतनी अधिक
ममता की बातें हैं भरी,
कि आप ऐसी लग रही हो
एक मिश्री की डली।
आपको पाने से आसूदाह हो
प्रसन्न हैं हम।
इत्तिका जब आप हो तो
ऐश से जीते हैं हम।
नींद
September 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
रात भर मैं नींद में सोया रहा
जब उठा अहसास सा होने लगा
बीतता बातों ही बातों में चला
यह समय तेरा व मेरा जा रहा।
ऋतु बदलने सी लगी
September 30, 2020 in मुक्तक
अब अचानक ऋतु बदलने सी लगी
ठंड का अहसास सा होने लगा
प्यार की बारिश में उगती ख्वाहिशें
पड़ न जाएं ठंड में पाले के पाले।
राक्षसों को मिटाने के लिए
September 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
मानवता पर प्रहार कर रहे
बेटियों पर अत्याचार कर रहे
राक्षसों को मिटाने के लिए
अवतार का इंतजार नहीं करना है,
बल्कि जोरदार मुहिम चलानी है,
कुकर्मियों को नानी याद दिलानी है,
बुरी नजर को मसल कर रख देना है
दुराचार को बर्दाश्त नहीं करना है।
बहुत हो चुका, बस बहुत हो चुका
देश की सत्ता तुझे कड़े नियम बनाने हैं
दुराचारियों का शिकार न बनें बेटियां
अब तुझे धरातल पर डंडे चलाने हैं।
जीवन सफर
September 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
खुशियां कई तरह की
गम भी कई तरह के
जीवन सफर निराला
साथी कई तरह के।
चलते चली है गाड़ी
कोई तो चढ़ रहा है
कोई उतर रहा है
राही कई तरह के।
कोई स्नेह करता
कोई बनाता दूरी
जीवन सफर में दोनों
जीने को हैं जरूरी।
सुई भी काम आती
सब्बल भी जरूरी
सारे महत्त्व के हैं
जीवन में हैं जरूरी ।
नशे की चपेट
September 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
यही तो सुन रहे हैं
आजकल लगातार कि
समाज को दिशा देते
हीरो कहे जाते
कलाकार नशे की चपेट में हैं,
आखिर क्यों है ऐसा
ये मकड़जाल कैसा
दंग है आम आदमी
पूछताछ गिरफ्तारी से
बॉलीवुड हिल गया है
सामने आती सच्चाइयों से
आम जनमानस सोचता रह गया है
मुहब्बत
September 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
मुहब्बत इस जिंदगी की
खूबसूरती है,
बिना मुहब्बत के
सब कुछ शून्य सा ही है।
मुहब्बत जीने का जरिया है
मुहब्बत निर्मल सी दरिया है
मुहब्बत जीवन भवन स्तम्भ की
मजबूत सरिया है।
कर्म पथ पर चल अडिग
September 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
राह में बाधाएं तेरे
आयें तो तब भी न रुक
शक्ति की मूरत है तू
छोड़ दे ये मन के दुख।
कर्म पथ पर चल अडिग
हो सत्य तेरे हाथ में
राह सच की चलते चल
ईश्वर है तेरे साथ में।
चलते हैं जो स्वस्थ मन से
कर्मपथ पर चाव से
उनको नहीं चिंता कि
कोई प्रेम दे या घाव दे।
खुद के दम पर चलते चल
पीछे नहीं आगे नजर रख
मन में दुख आने न दे
बस बढ़ाते रह तू पग।
चाहता हूं जल बनूँ
September 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
चाहता हूं जल बनूँ
धो डालूँ सारे दाग-धब्बे
नीर बनकर प्यास लोगों की
बुझाऊँ, तृप्त कर दूं।
या बनूँ नैनों का जल
गीले करूँ वियोग के पल
या बहूँ मैं प्यार की सरिता
करूँ कल-कल व छल-छल।
या बदरिया बन के बरसूं
रिम-झिमा झम, झम-झमा झम
जैसे किसी प्रियसी की पायल
छम-छमा छम-छम छमा छम।
या किसी झरने के पानी सा
बनूँ मैं श्वेत निर्मल,
आप आओ जब नहाने
बिंदास कर दूं आपके पल।
सपनों में शब्द चुनकर
September 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आप पर दो पंक्तियाँ
लिखना तो चाहता था,
लेकिन न लिख सकूँगा
थक सा गया हूँ दिन भर
आंखें हैं नींद पथ पर
अब कल सुबह लिखूंगा।
सपनों में शब्द चुनकर
रफ सी करूँगा कविता
जागूँगा जब सुबह को
बस आप पर लिखूंगा।
खिलखिलाती रहो
September 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुम सदा मुस्कुराती रहो
खिलखिलाती रहो,
जीवन के आंगन में मेरे
नेह बिखराती रहो।
तुम्हारे नेह से
क्यारी में घर की
खूबसूरत फुलवारी सजी है
यूँ ही महकाती रहो
खुशबू बिखराती रहो।
जाने कहाँ चले जाते हैं
September 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
जाने कहाँ चले जाते हैं
सांस उखड़ी, धड़कन रुकी
उड़ जाते हैं पखेरू, फिर
जाने कहाँ चले जाते हैं।
कुछ देर पहले ही बोलना
सारी संवेदना महसूस करना
कुछ देर बाद ही मौन हो जाते हैं
जाने कहाँ चले जाते हैं।
क्या बनाया है मायाजाल
जाने तक उसी में समाये रहते हैं,
सोचते हैं कभी नहीं जाऊंगा
लेकिन जाने का पता ही नहीं लगता,
जाने कहाँ चले जाते हैं।
वृद्धाश्रम में छोड़कर बूढ़े पिता को
September 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
वृद्धाश्रम में छोड़कर बूढ़े पिता को
लौट आया घर, जरा सा चैन पाया
मुस्का रही अर्धांगिनी ने जल पिलाया
आज उसकी रुचि भरा भोजन बनाया।
बोली बड़ी आफत हुई है दूर हमसे
खांसी की आवाजों से छुटकारा मिलेगा
चाय देने को उठो पानी पिलाओ
इन सभी बातों से छुटकारा मिलेगा।
ज्यों ही बैठे, भोजन को परोसा
बारह बरस का पुत्र बोला बाप से
क्या सभी जाते हैं वृद्धा आश्रम में
जब वो बन जाते हैं दादा जी किसी के,
एक दिन क्या आप भी वृद्धाश्रम में,
रहने लगोगे आप जब दादा बनोगे।
चोट खाकर पुत्र की इस बात से
दो कौर भोजन के नहीं खा पाया वो,
आक़िबत का आईना अपना दिखा जब,
पुत्र से कुछ भी नहीं कह पाया वो।
आंखों में मुहब्बत
September 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
उनकी आंखों में मुहब्बत
का जल है।
हमने समझा था बस वो
काजल है।
यकीन मानिए कि
इस तरह कभी हमने
उनकी आंखों की तरफ
गौर से देखा भी न था।
इस कदर मानता होगा हमको
हमने सच में कभी
इस बात को सोचा भी न था।
प्रेम की नदिया बहा दो
September 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
प्रेम की नदिया बहा दो
द्वेष नफरत छोड़ दो
देश के जन जन में एका
की जगा दो भावना।
दूर फेंको भेदभावों को
सभी को प्यार दो,
नफ़रतों के पोषकों को
त्याग दो, दुत्कार दो।
देश की उन्नति में बाधाएँ
रहेंगी तब तलक,
जाति-धर्मों में बंटी
जनता रहेगी जब तलक।
एक दिन जब एक स्वर में
सब कहेंगे हिन्द की जय
तब नहीं कोई भी ताकत
रोक सकती है विजय।
देश सीमा में दुश्मन
बेवजह ललकारते हैं
एकता आज सब
उनको दिखा दो आईना।
राक्षस
September 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कथाओं में जिन राक्षसों का
जिक्र होता है, वे कोई
राक्षस जाति नहीं थी
बल्कि ये वे दरिन्दे ही थे
जो आज भी अक्सर
सरे राह बदतमीजी करते हैं
छेड़ाखानी करते हैं,
नारियों पर कुदृष्टि रखते हैं,
बेटियों से जबरदस्ती करते हैं,
अपहरण करते हैं,
कुकृत्य करते हैं,
हवस की खातिर मार देते हैं,
वे राक्षस हैं दरिन्दे हैं जो
मानवता को शर्मसार करते हैं,
इनको पहचानना होगा
इनसे सावधान रहना होगा
सतर्क होकर इनसे
मानवता को बचाना होगा।
बेरोजगारी
September 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आईने तू इस तरह से
मत दिखा तो शक्ल मेरी
इन दिनों यौवन में हूँ
चिंताएं मेरी लाजमी हैं।
सोचता था मैं, कड़ी
मेहनत से तारे तोड़ लाऊं।
लेकिन यहां तो सारे पथ
हैं बन्द कैसे लक्ष्य पाऊं।
हर तरफ छाया अंधेरा
कल की चिंताओं ने घेरा,
घेर कर बेरोजगारी
तोड़ती उत्साह मेरा।
अब बता तू ही कि कैसे,
मैं चमक जीवित रखूं
कुछ नहीं कर पा रहा हूं,
किस तरह आगे बढूं।
देख लो माँ-बाप को
September 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
ढूढ़ते हैं रब को हम
मंदिरों, गिरिजाघरों में
भूल जाते हैं कि ईश्वर
हैं स्वयं अपने घरों में।
देख लो माँ-बाप को
ईश्वर दिखेगा आपको
बस जरा सच्ची नजर हो
रब दिखेगा आपको।
जो घरों में कष्ट देते हैं
ज़ईफ़ मां-बाप को,
वे नहीं ईश्वर को पाते
हैं कमाते पाप को।
रब को पाना है तो तुम
माँ-बाप की सेवा करो
वे ही सच में ईश हैं
उनकी तरफ देखा करो।
उचित सम्मान दूं
September 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
खूबसूरती को तुम्हारी,
क्या नया उपमान दूँ,
उपमान तो कितने ही
बेहतर दूं ,भले न दे सकूँ
लेकिन इतना तो कर सकूं कि
घर के बाहर व भीतर
तुम्हें उचित सम्मान दूं।
बन्द नफरत की निगाहें कर ले
September 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
सदा अगलात ही न खोज
मेरी वाणी में,
कभी तो सत्य के अल्फाज
भी ग्रहण कर ले।
प्यार के नैन को
उपयोग में ला,
बन्द नफरत की निगाहें कर ले।
न भर अस्काम खोज कर
अपनी झोली को,
बल्कि इफ्फत से अपनी राहें चल,
कमी मेरी नजरअंदाज कर ले,
नफरतों का उबाल कम कर ले।
शब्दार्थ-
अगलात- अशुद्धियां
अस्काम – बुराइयां
इफ्फत -पवित्रता
रोजगार की बात करना भी जरूरी है
September 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
रोजगार की बात करना भी जरूरी है
क्योंकि रोटी जीवन के लिए जरूरी है
युवा जो तैयारी कर रहे हैं प्रतियोगिताओं की
उनके लिए परीक्षाएं होना भी जरूरी है।
विज्ञापन नहीं निकलेंगे, परीक्षाएं नहीं होंगी
तो कैसे युवा पीढ़ी की आशाएं सफल होंगी।
खुश रहो आगे बढ़ो
September 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
खुश रहो आगे बढ़ो
स्वयं को व्यस्त रखो,
सभी से प्यार करो
तनाव दूर रखो।
अपनी मंजिल को चलो
सच्चे प्रयास करो,
डरो तो सच से डरो
नहीं बाकी से डरो।
महामारी से बचो
September 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
महामारी से बचो
मास्क मुंह तक नहीं
नाक तक लगाना है
खुद को बचाना है
सबको बचाना है।
जितना हो सके उतनी
सावधानी हो,
नियम पालन करो
यदि आपने
मानवता बचानी हो।
पक्का इरादा रखते हैं
September 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आक़िबत जो भी हो
परवाह नहीं करते हैं,
हमें तो कर्म करना है
मेहनत की बात करते हैं।
आग सीने में थोड़ी सी
बचा के रखते हैं,
उसी से गम के अंधेरे
मिटाया करते हैं।
छुरा ईमान का
सदैव पास रखते हैं,
इरादा नेक रख
संधान लक्ष्य करते हैं,
खाम पर सदा
पक्का इरादा रखते हैं,
हमें तो कर्म करना है
मेहनत की बात करते हैं।
शब्दार्थ –
आक़िबत- परिणाम
खाम- कच्चे
किस तरह की अहमियत है आपकी
September 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
किस तरह की अहमियत है
आपकी इस जिन्दगी में,
चाह कर भी कह नहीं पाते हैं हम
बिन कहे भी रह नहीं पाते हैं हम।
दायरे हर बात के निश्चित किये हैं जिंदगी ने
दायरों में कैद भी तो रह नहीं पाते हैं हम।
फिर कभी यह सोचते हैं
लाभ क्या कहने से है,
बिन कहे जब एक-दूजे को
समझ जाते हैं हम।
बहार बन कर तुम जिन्दगी में
September 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
बहार बन कर तुम जिन्दगी में
आये हो जब से बहारें खिली हैं।
अकेले अकेले तन्हा सफर था
आपसे ख़ुशी की फुहारें मिली हैं।
चलो फिर सजाएं
September 18, 2020 in शेर-ओ-शायरी
चलो फिर सजाएं
मुहब्बत की दुनियां
नहीं रोक पाये
हमें अब ये दुनियाँ।
बहुत हो चुकी अब
कमबख्त दूरी,
दर्द गम का सहना
नहीं है जरूरी।
बन गए शायर
September 17, 2020 in शेर-ओ-शायरी
असर है आपका शायद
कि हम भी बन गए शायर
किया इजहार शायरी से
ज़माना कह न दे कायर।
चल गए जीवन चरखे
September 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
बादिया सी जिंदगी में
आप बादल बन के बरसे,
खूब हरियाली सजा दी
जिंदगी के रोम हरषे।
ख्वाब में सोचा न था
आपको पाएंगे हम
आपके आने से सचमुच
चल गए जीवन चरखे।
शब्दार्थ –
बादिया – उजाड़ सी
हम इशारा जानते हैं
September 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
नाफ़हम मत समझना
हम इशारा जानते हैं,
आपकी नज़रों की जुम्बिश
की दिशा पहचानते हैं।
जर्ब मत दो इस तरह
सीने में अपने नैन से
सह न पाएंगे न जी पाएंगे
फिर हम चैन से।
शब्दार्थ —
जुम्बिश – हरकत
जर्ब – चोट
खुल के प्यार करते हैं
September 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
हम आंखों से नहीं
मुख से बात करते हैं
जिसे चाहते हैं
खुल के प्यार करते हैं।
यह न समझो कि हम
इजहार नहीं करते हैं,
बड़ों के सामने
थोड़ा लिहाज करते हैं।
नुमाइश नहीं करते
सरे बाजार हम
बिठाकर दिल के भीतर
प्यार तुम्हें करते हैं।
हम आंखों से नहीं
मुख से बात करते हैं
जिसे चाहते हैं
खुल के प्यार करते हैं।
इत्तमाम पा लिया है
September 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
इत्तिफाक से हमने
गुजीता किया जब
आपके चमन को,
गिरफ्तार कर लिया तब
आपने हमारे
गुमगश्ता मन को।
अब ऐसा लगता है
इत्तमाम पा लिया है,
आप हैं तो जीने का
इंतजाम पा लिया है।
न जुदाई का भय हो
September 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
ठीक कहा तुमने
पायें यदि मानव तन
अगले जनम में,
या बनें, कीट, पतंग,
जंगली जानवर,
अपनों के बीच
अपने हो सकने वालों
के बीच ही जनम पायें।
न जुदाई का भय हो
न दूर चले जाने का गम
न परम्परा की बंदिशें हों
न रूढ़ि की रूढ़िवादिता हो।
बस एक हो पाने में
सरलता ही सरलता हो।
पास ही रहो
September 17, 2020 in मुक्तक
बिना आपके सोचना भी मना है
बिना आपके पथ अंधेरा घना है,
बिना आपके जिन्दगी है अधूरी
पास ही रहो, जीने को हो जरूरी।
सुकूँ मिल रहा है
September 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
अब्सार आपके
समुन्दर हैं प्यार के,
सुकूँ मिल रहा है,
आपको निहार के।
प्रातः की बेला है
नई रोशनी है,
आप हो बगल में
और क्या कमी है।
सदा पास रहना
यूँ ही मुस्कुराना,
यही इक्तिजा है
यही कामना है।
अब्सार आपके
समुन्दर हैं प्यार के,
सुकूँ मिल रहा है,
आपको निहार के।
मित्र अपना कह दिया
September 16, 2020 in मुक्तक
आपने जब हमें
मित्र अपना कह दिया
यकीन मानिए,
जलवा हमारा बढ़ गया।
अब ये माथा आपका
झुकने न देंगे हम कभी
आपको सिर-माथ पर
हमने सजा कर रख लिया।
एक ही मुस्कान पर
September 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी
आज भी हम तुम्हारी
एक ही मुस्कान पर,
सैकड़ों शायरी बना सकते हैं
तुम मुस्कान तो दो।
आज भी शब्दों के फूलों को
बिछाकर राह में
स्वागत करेंगे, तुम, हमें
आने का कुछ पैगाम तो दो।
चुन नई राहें पथिक
September 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कवि कलम कहती है मत रह
तू निराशा में पथिक,
भूल जा बीती सभी कुछ
चुन नई राहें पथिक।
याद मत कर दर्द को
या दर्द की उस बात को तू,
भूल जा बच्चा सा बन जा
कर नई शुरुआत तू।
जिन्दगी है, हर तरह के
लोग होते हैं यहाँ,
कोई लुटाते नेह कोई
ठेस देते हैं यहाँ।
ध्यान रख ले वक्त भी
रहता नहीं है एक सा,
क्या पता राहों में कब
मिल जाये साथी नेक सा।
इसलिये तू मत समझ
खुद को अकेला, ओ पथिक,
आज दुख है तो तुझे कल
सुख मिलेगा, ओ पथिक।
फिर मुस्कुरा दो
September 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
फिर मुस्कुरा दो
ठीक वैसे ही
कि जैसे मुस्कुराए थे
मिले पहली दफा जब।
जिंदगी की आपाधापी
चलती रहेगी अंत तक
प्रेम को भी दें समय
सच्चा यही है फलसफा अब।
कौन सा क़ासिद तुम्हारे पास भेजूं
September 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी
कौन सा क़ासिद तुम्हारे पास भेजूं
जो मुहब्बत की बता दे असलियत
कौन सी कविता दूँ लिखकर साथ में
प्यार की समझा दे थोड़ा अहमियत।
आहिस्ता से बोल दो
September 15, 2020 in मुक्तक
आहिस्ता से बोल दो
क्या कह रहा मन
करोगे मुहब्बत या
दुत्कार दोगे।
इकबाल है हमारा
मिले आप पथ में
इजहार कर दिया,
क्या स्वीकार लोगे।