कर प्रतिकार

September 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दोष तुम्हारा क्या है अबले
तुम काहे को घबड़ाती हो।
मिले दण्ड अब उन दोषी को
जो तुझको हर पल तड़पाती हो।।
मर जाओगी खुद जाओगी
बस अपनी हस्ती मिटाकर।
तेरे जगह कोई और आएगी
बन काठ की पुतली चाकर।।
‘विनयचंद ‘क्या ऐसे कभी
खतम हो जाएगा अत्याचार।
हे अबले तू सबला बनकर
हार न मानो कर प्रतिकार ।।

संसद और सिनेमा

September 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

संसद साहित्य और सिनेमा ।
सत्य और संस्कार का है खेमा।।
पर्दे और पुस्तकें सब
कल्पनाओं का संसार है।
कल्पना कहाँ दुनिया में
सत्य का ही एक प्रसार है।।
संसद के शिक्षित व संस्कारी
नेताओं का देख कारनामा।
मन पर चोट लगे हैं ऐसे
जैसे ज़िन्दगी हो एक सिनेमा।
हमने बेकार को वोट दिया।
बेकार ने हमको लूट लिया।।
बेकारी से हम सब मरते
वो लड़ते श्वान समान।
काटना नोचना फाड़ना
और पटकना मेज मचान।।
गलती अपनी थी बस इतनी
हमने बनाया गुण्डों का खेमा।
हाय रे संसद हाय रे सिनेमा।।

मन्दिर के भीतर

September 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुझे मिले नहीं भगवान
हाय, मन्दिर के भीतर।
मैं बना रहा नादान
हाय, मन्दिर के भीतर।।
मातु-पिता सच्चे ईश्वर हैं
क्यों न तू पहचान करे।
जन्म दिया और पाला-पोषा
पल-पल हीं कल्याण करे।।
सेवा बिना नहीं उनके
सब दुखिया है संतान
हाय, जंजाल के भीतर।।
मुझे मिले नहीं भगवान
हाय मन्दिर के भीतर।।
गणपति को देखा जाके तो
दिखा मातु -पिता की भक्ति।
देखा जो श्रीराम प्रभु को
दिखी चरण अनुरक्ति
मातु-पिता को दे सम्मान
बने जगत पूज्य भगवान
हाय, मन्दिर के भीतर।।
मुझे मिले नहीं भगवान
हाय मन्दिर के भीतर।।
‘विनयचंद ‘नित कर सेवा तू
मातु-पिता की तन-मन से।
घर -बाहर नित दर्शन होंगे
न दूर रहो इन चरणन से ।।
सच्ची वाणी है ये जिसको
नित कहे सब वेद -पुराण
हाय, मन्दिर के भीतर।
मुझे मिले नहीं भगवान
हाय मन्दिर के भीतर।।

मेरे मन के कोने में

September 19, 2020 in मुक्तक

तुम बिल्डर हो
उम्र में इल्डर हो
हो सके तो
मेरे मन के किसी कोने में
अपना घर बना लो।
वीरान -सा छाया है
हर तरफ यहाँ पर
अपने प्यार का
सुंदर -सा शहर बना लो।।

पिया कहल चोरन

September 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

शिव गिरिजा संग आए घूमने
पृथ्वी लोक में एक बार।
कहीं पे देखा झगड़ा -झंझट
और कहीं पे देखा प्यार।।
पति -पत्नी की जोड़ी कोई
झगड़ रहे थे आपस में।
छींटाकसी और गालियों से
माहौल गरम था आपस में।।
सुन गिरिजा के मन में आया
क्यों न पूछूँ महादेव से।
पति से गाली सुनकर भी
कोई कैसे रहती प्रेम से।।
उऽऽमा तुम्हें क्या लेना इससे
फिर कभी बतलाऊँगा मैं।
घूम-घाम घर आकर गिरिजे
ले आओ कुछ खाऊँगा मैं।।
क्या महादेव आप भी
भांग रोज हीं खाते हो।
व्यंजन बहुत बने दुनिया में
बस मुझसे भांग पिसवाते हो।।
कुछ बाग लगाओ
कुछ साग लगाओ
मेरे घर में भी स्वामी अन -धन का भंडार हो ।
करूँ रसोई अपने हाथों खुशियाँ बेशुमार हो।।
करुँगा खेती तेरे करके अब तो भांग खिला दो।
अमर सुधा है तेरे हाथ में बस एक घूंट पिला दो।।
बाग लगाया साग लगाया शिवगिरिजा ने साथ में।
मेहनत और रक्षा वो करते सदा दिन और रात में।।
बात एक दिन हो गई ऐसी भोलेनाथ थे दूर कहीं।
साग तोड़ने लगी पार्वती होके अकेली तभी वहीं।।
दूर राह से चिल्लाए तब महादेव जी जोर से।
कौन चोरनी मेरे खेत में साग चुराए भोर से।।
खुशी के मारे पागल होके नाच रही थी पार्वती।
‘विनयचंद ‘की मैया मस्त हो गा रही थी पार्वती।।
कहाँ राखूँ डलिया
कहाँ राखूँ साग।
पिया कहल चोरनी
धन्य मोर भाग।।

शिक्षा की चौपाल

September 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

शिक्षा की चौपाल लगी
कहाँ रहे अब पढ़ने वाले।
संभावित प्रश्नों को रटकर
कागज पर हीं बढ़ने वाले।।
कई तरह के बोर्ड यहाँ हैं
हर भाषा हैं माध्यम के।
अंग्रेजी में काम करे सब
डाले अचार माध्यम के।।
होमवर्क नहीं बच्चे करते ।
शिक्षक भी न डण्डे रखते।।
शासन का जब कहना इतना
पास करे सब पढ़ने वाले।।
शिक्षा की चौपाल लगी
कहाँ रहे अब पढ़ने वाले।।
नब्बे पे उत्तान खड़े बस
झुके हुए पैंतालीस वाले।
नम्र बने बिन का विद्या
क्या करे कम चालीस वाले।।
जितना पढ़ो गुणो तुम जादा।
कामयाबी का लेकर वादा।।
जीवन सफल बनेगा तेरा
यही बड़ों का कहना है।
‘विनयचंद ‘नहीं स्वर्ण तू
पीतल भी तो गहना है।।
आत्मबल रख रे सदा सर्वदा
जीवन पथ पर बढ़ने वाले।।
हार तुम्हारी नहीं कभी है
पौरुष निज पथ गढ़ने वाले।।

कब तक हिन्दी………. भयभीत

September 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हिन्दी के व्याख्याता एक
बोल रहे थे सेमिनार में।
हिन्दी का प्रसार हो
जन-जन और सरकार में।।
बजवाई खूब तालियाँ
बात- बात पे मञ्च से।
समय खत्म होते ही
बेमन आए मञ्च से।।
खूब अनोखे भाषण थे
मस्त महोदय खाओ पान।
आप सरीखे हो सब तो
निश्चय हिन्दी का कल्याण।।
टन-टन टन-टन घण्टी बज गई
तत्क्षण उनके खीसे से।
हलो डीयर हाउ आर यू
बाहर आए बतीसे से।।
निहार रहा था केवल मैं
सुनकर उनकी बातचीत।
‘विनयचंद ‘बतलाओ कब तक
हिन्दी रहेगी यूँ भयभीत।।

जंगल में दाने

September 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कबूतरों का झुंड एक
उड़ रहा था आकास में।
बीच झाड़ियों के बहुत
दाने पड़े थे पास में।।
युवा कबूतर देख-देख
ललचाया खाने के आश में ।
बोल उठा वो सबके आगे
उतर चलें चुगने को साथ में।।
ना ना करके बूढ़ा बोला
यहाँ न कोई है जनवासा।
जंगल में दाने कहाँ से आए
इसमें लगता है कुछ अंदेशा।।
क्यों दादा तू बक-बक करते
खाने दो हम सबको थोड़ा।
जल्दी -जल्दी चुगकर दाने
आ जाएंगे हम सब छोरा।।
बात न मानी किसी ने उसकी
उतर के आ गए नीचे सब।
मस्ती में हो मस्त एक संग
खाए अंखिया मीचे सब। ।
तभी गिरा एक जाल बड़ा-सा
उन मासूमों के ऊपर।
एक संग में फँस सारे
खींझ रहे थे खुद के ऊपर।।
फर-फर फर-फर करने लगे सब
आकुल-व्याकुल सारे।
दूर खड़ा था एक बहेलिया
लेकर बृझ सहारे।।
आर्तनाद करते बच्चों को
देख पसीजा बूढ़ा।
जोड़ लगाओ उठा चलो
लेकर जाल सब पूरा।।
वही हुआ सब एक साथ में
उड़ने लगे ले जाल को।
दूर कहीं जाके जंगल में
ले धरती आए जाल को।।
मूषक मित्र महान ने क्षण में
कुतर जाल को काटा।
मनमानी और लालच का फल
दुखी करे कह डांटा।।
मान ‘विनयचंद ‘ बड़ों का कहना।
लालच में तू कभी न पड़ना।।
सबसे बड़ा बल होता दुनिया में
एक साथ में रहना,
साथ साथ हीं रहना।

अह्लाद मिलेगा

September 13, 2020 in Other

ज्ञान के पथ पर विवाद मिलेगा।
प्रेमी बनकर देख अह्लाद मिलेगा।।

भीतर शमशाद है

September 13, 2020 in मुक्तक

बाहर विषाद है
भीतर शमशाद है ।
अंतर्मुखी हो जाओ आली
फिर देखो प्रसाद हीं प्रसाद है।।

सावन :एक परिवार

September 11, 2020 in मुक्तक

सावन की बहार है
कविताओं की बौछार है।
कवियों और कवयत्रियों का
पावन ये परिवार है।।

मुस्कुराहट

September 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जहाँ मुस्कुराहटों की दौर है।
अन्यत्र कहाँ अपना ठौर है।।

एक परदेशी ने तुम पर भरोसा किया

September 9, 2020 in गीत

एक परदेशी ने तुम पर भरोसा किया।
तुम कपटी हुई , उससे धोखा किया ।।
नारी तो होती है ममता की मूरत।
क्या तुझको नहीं थी उसकी जरुरत।।
ज़िन्दगी के बदले मौत का तोफा दिया।
एक परदेशी ने तुम पर भरोसा किया।।
अमर सुधा रस का तुम में है वास।
फिर क्योंकर जहर को बनाया रे खास।।
मित्र भी गए मित्रता भी गई
पाक रिश्ते को तूने बदनाम कर दिया।।
एक परदेशी ने तुम पर भरोसा किया।

जौहरी

September 8, 2020 in मुक्तक

खुदा ने पत्थर को
वनडोल बनाया।
दम है उस जौहरी में
जो अनमोल बनाया।।

घर में डाॅन

September 8, 2020 in मुक्तक

मीच के आँखें रोते -रोते
खोज रहा हूँ होकर मौन।
मुझको रुलानेवाला जग में
छुपकर बैठा आखिर कौन?
नजर भला वो आए कैसे
घर में बैठा बनकर डाॅन ।।

हँसते -रोते देखा

September 8, 2020 in मुक्तक

पाकर सब नदियों का पानी
सागर को खूब मचलते देखा।
पत्थर के कलेजे रखनेवाले
हिमालय को पिघलते देखा।।
गम्भीर बड़ा आकाश मगर
हमने उसको भी रोते देखा।
सबको पाक करे जो नदियाँ
बीच कीचड़ में सोते देखा।।
‘विनयचंद ‘ इस दुनिया में
किसी को हँसते -हँसते देखा।
और किसी को रोते -रोते देखा।।

गुरुवर के प्रति

September 5, 2020 in मुक्तक

मान हैं
सम्मान हैं
देश की जान हैं।
आम नहीं खास नहीं
राष्ट्र निर्माता हैं शिक्षक।
नाक से नेटा टपक रहा था।
आंसू का कतरा लुढक रहा था।
बाहुपाश में भरकर जिसने अपनाया
वो मेरे भाग्यविधाता हैं वही ज्ञान के दाता हैं।।
ऐसे शिक्षक गुरुगरीष्ट को वन्दन है बारम्बार।
भूलोक से स्वर्गलोक तक खुशियाँ मिले अपार।।
गुरुवर आपके चरणों में कोटि-कोटि नमस्कार ।।

शिक्षक दिवस पर विशेष

September 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हृदय के गुहा में सघन था अंधेरा
ज्ञान की ज्योति जलाकर मिटाया।
लगते भैंस बराबर जो थे उसका
सम्यक अक्षर बोध कराया।।
मूढ़मति को निज कृपा दृष्टि से
ज्ञान जगत में मान दिखाया।
पिला के अमृत ज्ञान का मुझको
चिरजीवी संग अमर बनाया।
ऐसे शिक्षक गुरुवर को
‘विनयचंद ‘दिल से अपनाया।।

देश गान

September 2, 2020 in गीत

माँ तुम्हारे चरणों को
धोता है हिन्द सागर।
बनके किरीट सिर पे
हिमवान है उजागर।। माँ…..
गांवों में तू है बसती
खेतों में तू है हँसती
गंगा की निर्मल धारा
अमृत की है गागर।। माँ….
वीरों की तू है जननी
और वेदध्वनि है पवनी
हर लब पे “जन-गण”
कोयल भी ” वन्दे मातराम् ”
निश-दिन सुनाए गाकर।। माँ….
विनयचंद ‘बन वफादार
निज देश के तू खातिर।
तन -मन को करदे अर्पण
क्या है तुम्हारा आखिर?
माँ और मातृभूमि पर
सौ-सौ जनम न्योछावर।। माँ…

पत्थर का दिल

August 26, 2020 in मुक्तक

पत्थर का दिल कभी पिघलता नहीं
इसलिए तो इसमें गुमान भी नहीं होता।
तभी तो इसकी पूजा होती,
हर घर में नित सम्मान हीं होता।।

महफिल सजाए बैठे हैं

August 25, 2020 in मुक्तक

कब से तुम्हारी राह में नजरें बिछाए बैठे हैं।
चले भी आओ कि महफिल सजाए बैठे हैं।।

पत्थर से पंगा मत लेना

August 9, 2020 in Other

दोष नहीं दर्पण का थोड़ा
सदा सत्य दिखलाता है।
कपटी क्रूर कपूत घमण्डी
दर्पण को दोषी कहता है।।
सत्य असत्य के चक्कर में
पत्थर से पंगा मत लेना।
देख ‘विनयचंद ‘सीसा हो तुम
इसको मत भुला देना।।

पकड़ मत कान री मैया

August 7, 2020 in Poetry on Picture Contest

पकड़ मत कान री मैया
कसम कुण्डल की खाऊँ मैं।
शिकायत कर रही झूठी
कहानी सच की बताऊँ मैं ।।
करूँ क्यों मैं भला चोरी
घर में हैं बहुत माखन।
नचाती नाच छछिया पे
चखूँ मैं स्वाद को माखन।।
चूमकर गाल को मेरे
करती लाल सब ग्वालन।
छुपाने को इसी खातिर
लगाती मूँह पे माखन।।
सताई सब मुझे कितना
तुझे कैसे बताऊँ मैं?
पकड़ मत कान री मैया
कसम कुण्डल की खाऊँ मैं।।
शिकायत कर रही झूठी
कहानी सच की बताऊँ मैं।।
चराए शौख से कन्हा
मिलकर ग्वाल संग गैया।
गरीबी में करे कोई
मजूरी हाथ से मैया।।
भरन को पेट मैं इनके
घर -घर खास की जाऊँ मैं।
‘विनयचंद ‘हो मगन मन- मन
लीला रास की गाऊँ मैं।।
पकड़ मत कान री मैया
कसम कुण्डल की खाऊँ मैं।
शिकायत कर रही झूठी
कहानी सच की बताऊँ मैं।।

माखन की चोरी

August 6, 2020 in Other

मनमोहक छवि मनमोहन की
और मनहर है हर लीला उनकी।
आनन्दकन्द आनन्द सबन हित
घर-घर चोरी की माखन की।।

मुक्तक

August 5, 2020 in मुक्तक

नहीं आँचल कभी खिसकने दी
वो अपने माथ से।
आज देख रहे हैं सब उसको
होकर यूं अनाथ से।।

लेटी थी

August 5, 2020 in मुक्तक

आज न सुन रही थी
न हीं पढ़ रही थी
वो केवल लेटी थी।
मेरी कविताओं को
पढ़कर खुश होनेवाली
बहू नहीं वो बेटी थी।।

आखिरी मुलाकात

August 5, 2020 in मुक्तक

एक बहना चली बांधने राखी
अपने भाई के हाथ में।
क्रूर काल ने बदल दिया इसे
आखिरी मुलाकात में।।

अपने की अपनी

August 5, 2020 in मुक्तक

वो मेरे सिर्फ अपने की अपनी थी।
महसूस न होने दिया पराएपन को
फिर मैं कैसे कहूँ नहीं अपनी थी।

जाते हुए

August 5, 2020 in मुक्तक

एक बात भी न कर गई
वो जाते हुए।
हम सब को जग में छोड़ गई
रुलाते हुए।।

आखिर कौन

August 5, 2020 in मुक्तक

बस यही सोचकर रोता हूँ मैं मौन -मौन।
सबके हार गीले हैं आंसूओं से
मेरी आँखों को पोछेगा आखिर कौन।।

राजकारीगर

August 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वाह वाह मेरे विश्वकर्मा जी
शिल्पकला का सबको
कुछ न कुछ तो ज्ञान दिया।
किसी को बढ़ई बनया
तो किसी को
कुम्भकार का मान दिया।।
लोहार सोनार मिस्त्री का रूप
राजकारीगर का शान दिया।
पर राज कहाने के ख़ातिर
‘विनयचंद ‘ ये काम किया।।
जोड़ के टेढ़े -मेढे घर
खुद को क्यों बदनाम किया।
काम करो तू वही ‘विनयचंद ‘
जिसमें न हो छिया-छिया।।

चार राखी लाना पापा

August 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चार राखी लाना पापा
अबकी रक्षाबन्धन में।
बड़े प्यार से बांधूगी मैं
वीरों के अभिनन्दन में।।
पहली राखी बांधूगी मैं
भारत के वीर शहीदों को।
दूसरी राखी बांधूगी मैं
शरहद के वीर सपूतों को।।
तीसरी राखी बांधूगी मैं
अपने प्यारे भ्राता को।
चौथी राखी बांधूगी मैं
अपने जन्मदाता को।।
‘विनयचंद ‘ इन चारों से
हम हैं सदा सुरक्षित।
इनका करें सम्मान सदा
रखकर इन्हें सुरक्षित।।

आया राखी का पावन त्योहार भैया

August 1, 2020 in गीत

आया राखी का पावन त्योहार भैया।
तुझको पुकारे बहना का प्यार भैया।।
फूल अक्षत चंदन से मैं थाली सजाई।
मेवा मधुर और घी की ज्योति जगाई।।
आंगन में अहिपन बनाई दो-चार भैया।
आजा, तुझको पुकारे बहना का प्यार भैया।।
आया राखी का पावन त्योहार भैया……।।
सब मंगल भरे हैं इन धागों में यार।
ना मामूली है इसमें बहना का प्यार।
दिल से दिल का ये है आधार भैया।
जरा सुन ले ‘विनयचंद ‘ पुकार भैया।
आजा, तुझको पुकारे बहना का प्यार भैया।।
आया राखी का पावन त्योहार भैया ………..।।

गुरूकुल के वो दिन

July 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्या कहने उस दिन के
जब गुरूजी हुआ करते थे।
घर में हो या पाठशाला में
तन-मन से बच्चे पढ़ते थे।।
एक आदर था सबके दिल में
ग्रंथ गुरू और ज्ञान प्रति।
होकर उत्तीर्ण कक्षा से सब
योग्य पुरुष सब बनते संप्रति।।
काश ‘विनयचंद ‘ वो दिन
भारत में फिर आ जाता।
रोजगार की कमी न रहती
जीवन में हर सुख छा जाता।।

माँ हीं सबकुछ

July 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो शब्द कहाँ है शब्दकोष में
जो माँ की महिमा का बखान करे।
शारदे की लेखनी भी माँ बनके
मातृशक्ति का भरसक गान करे।।
माँ स्रष्टा है माँ द्रष्टा है
माँ हीं तो है पालनकारी।
औगुन हरती बच्चों की ये
बन रूद्रों की अवतारी।।
माँ से हीं तो ‘विनयचंद ‘
अग जग में सम्मान बढ़े।।

राफेल का भेंट

July 29, 2020 in मुक्तक

हे परमवीर हे युद्धवीर हे शरहद के रक्षक
दुश्मन के खातिर एक नकेल मैं देता हूँ।
दुश्मन मिल जाए गर्दिश में जिससे मिनटों में
एक आग्नेयास्त्र राफेल मैं देता हूँ।।

हे राम

July 29, 2020 in Other

हर सुबह हर शाम
मेरे मुख से निकले तेरा नाम
हे राम हे राम हे राम।।

मातु पिता में भगवान

July 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मातु पिता में ईश्वर होते
कहता भारत का ये ज्ञान।
माॅम डैड में गोड बसे है
क्या कहा फिरंगी ग्रंथ महान।।
गुरुकुल की राह भुलाए जब से।
ग्रैजुएट मूर्ख कहलाए तब से।।
ऐसा मूर्ख भला क्या जाने
अपना भी वो दिन आएगा।
जिसके खातिर सब को छोड़ा
आखिर उसी से दुत्कारा जाएगा।।

बेकारी की जिम्मेदारी

July 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

देश में बेकारी है
आखिर किसकी जिम्मेवारी है।
अक्षरबोध साक्षरता
या अल्पज्ञान की बिमारी है।।
मशीनी क्रांति का जोर
या फिर बढ़ती हुई आबादी है।
रोजगारों का अभाव
या फिर निकम्मेपन सरकारी है।।
साक्षर नहीं ज्ञानी बनो
हर हुनरमंद कि जग में उजियारी है ।
खुद का मालिक बनो विनयचंद ‘
‘ना इसमें कोई लाचारी है।।

उम्र आधी काट लूँगा

July 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुख बटाया साथ मिलकर
दुःख भी तेरा बाँट लूँगा।
उम्र आधी कट गई है
उम्र आधी काट लूँगा।।
हर कदम पर साथ देंगे
हमने खाई थी कसम।
चल चुके हम साथ मिलकर
शेष अब है दो कदम।।
विष भरी है ज़िन्दगी
तो खुशी से चाट लूँगा।
सुख बटाया साथ मिलकर
दुख भी तेरा बाँट लूँगा।।
उम्र आधी कट गई है
उम्र आधी काट लूँगा।।

एक नात लिखूँ

July 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं दिल की जज़्बात लिखूँ।
चाहता हूँ एक नात लिखूँ।।
मंदिर और मस्जिद में ढूँढ़ा
ढूँढ़ा काबा -काशी में।
गंगा और यमुना में ढूँढा
ढूँढा जलनिधि राशी में।
मिला नहीं जो मुझको
उसकी क्या मैं बात लिखूँ।
आखिर कैसे मैं नात लिखूँ।।
मौन खड़ी थी मंदिर की मूरत
कोलाहल मस्जिद में था।
एक दिन पाऊँगा मैं उसको
आखिर मैं भी जिद में था।।
तिनके में तरू तरू में तिनका
आखिर एक जात लिखूँ।
खुद में झाँक ‘विनयचंद ‘
हर डाली हर पात लिखूँ।
हर में हर जो बैठा उसकी
एक- एक सौगात लिखूँ।
इश्क ‘विनयचंद ‘कर इंसां से
लाख टके की बात लिखूँ।।

बहते पवन को किसने देखा?

July 21, 2020 in Other

न तुमने देखे न मैंने देखा।
बहते पवन को किसने देखा?
जुल्फ चुनरिया उड़ते जब जब।
बहती हवाएँ समझो तब तब।।
बादलों को जो चलते देखा।
बहते पवन को उसने देखा।।
न तुमने देखे न मैंने देखा।
बहते पवन को किसने देखा?
चहुदिश बजती एक सीटी-सी।
तन को ठण्ड लगे मीठी-सी।।
बृक्ष लता सब हिलते देखा।
बहते पवन को उसने देखा।।
न तुमने देखे न मैंने देखा।
बहते पवन को किसने देखा?
रोसैटी के ये भाव मनोहर।
शब्दों के एक हार पिरोकर।।
‘विनयचंद ‘ नित देखा।
न तुमने देखे न मैंने देखा।
बहते पवन को किसने देखा?

गीत

July 20, 2020 in गीत

रिमझिम बरसे सावन सजना।
झूले लगे हैं मोरे अंगना।।
सब सखियों के आए सजना।
क्यों है सूना मेरा अंगना।।
आजा अंगना के भाग जगा दे।
बमल मोहे झूला झूला दे़……बलम मोहे झूला झूलादे।।
लहगा चुनरी ले के आऊँ।
हरी चुड़ियाँ साथ में लाऊँ।।
हाथों में मेंहदी लगा के रखना।
सनम आऊँगा मैं तेरे अंगना।।
सारे लाज शरम तू भगा दे…. सनम मोहे झूला झूला दे।।

झूला लगाय दऽ पिया मोर अंगनमा में

July 19, 2020 in गीत

रिमझिम बरसे फुहार देखऽ सवनमा में।
झूला लगाय दऽ पिया मोर अंगनमा में।।
हरियर चुनरी हरियर चोलिया
हरियर हरियर पहिरनी चूड़िया कलईया में।
हथवा में मेंहदी रचैली सनम
नाम ले ले के तोहरे पियाजी बलईया में।।
गोरवा के पायलिया बोले झनाझन सवनमा में।
झूला लगाय दऽ पिया मोर अंगनमा में।।

मन भौरा

July 18, 2020 in शेर-ओ-शायरी

शुभ रात्रि मैं कहता हूँ
पर अँखियों में है नींद नहीं।
मन भौरा है कैद में
ये कारा है अरविंद नहीं।।

क्यों न आया बलम हरजाई

July 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सावन भी आया अमावस भी आई।
रिमझिम फुहार संग पावस भी आई।।
बागों में , खेतों में छाई हरियाली।
हाथों में मेंहदी भी मैंने रचा ली।।
दिल के उपवन ने झूला लगाया।
मन के संदेशा से तुझको बुलाया।।
क्यों न आया बलम हरजाई
मैंने रो रो के रतिया बिताई।।

खामोश लब

July 17, 2020 in Other

अपने खामोश लबों को कुछ शरारत तो दे दो।
मुझे बात करने की थोड़ी इजाजत तो दे दो।।

कानून का हत्यारा

July 11, 2020 in Other

कानून के दहलीज़ पर पहुँचने से पहिले
मारा गया कानून के रक्षक का हत्यारा।
कोई तो बतलाओआखिर कब तक
जिन्दा रहेगा बाँकी कानून का हत्यारा।।

मेरी फितरत

July 11, 2020 in मुक्तक

आम खाके गुठलियों का ढेर लगाना
है मेरी नहीं फ़ितरत।
एक गुठली से बृक्ष लगाना, चाह मेरी
और मेरी यही फितरत।।

नागपंचमी

July 10, 2020 in Other

बेशक जहरीले होते हैं
फिर भी इनकी होती अर्चन।
कालव्याल से कालक्षेप हित
करते हम सब वन्दन।।
ऐसा धर्म सनातन अपना
जिसका न कोई शानी है।
‘विनयचंद ‘ संग सारी दुनिया
दिल से ये सब मानी है।।

नागपंचमी की बधाई

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